एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। दुनियां में जिसके पास प्रसन्नता, मन की शांती, संतोष भरा मन हो वो भाग्य शाली और खुश इंसान है। केवल आज की ही क्यूं वो इंसान हर दुनियां मे खुश है। महाभारत मे धर्मराज युधिष्ठिर से एक यक्षने प्रश्न पुछा के हे धर्मराज सबसे बडा सुख कौन सा है इस प्रश्न के उत्तर के स्वरूप युधिष्ठिरजी ने कहा समाधान ही सर्वोत्तम सुख है। मनुष्य के पास बहुत सारा पैसा हो अछी शादीशुदा जिंदगी हो अच्छे माता पिता हो लेकिन मन मे संतोष व प्रसन्नता न हो तो ऐसा व्यक्ती आज की या किसी भी दुनिया मे खुश नही हो सकता। आज की दुनिया मे पैसा अतिआव श्यक है। लेकीन मन का संतोष प्रसन्नता उससे भी अधिक आवश्यक है,और एक बात जो की आवश्यक है वो है आपकी सेहत, सेहत अछी हो तो व्यक्ती का जीवन आनंदमय होता है। वैसे तो कुदरत द्वारा रचि त इस अनमोल खूबसूरत सृष्टि में रचनाकर्ता ने मानवीय जी वन में अनेक गुण दोषों को शामिल कर संजोया है, इस का उपयोग करने सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमता का भी सृजन कर दिया है। बस!! जरूरत है अब माननीय जीव को उसे गुण- दोष सुख-दुख खुशियां-गम प्रसन्नता-दुख इत्यादि का चुनाव कर अपने जीवन को सफल और असफल बनाएं उसके ऊपर है!! क्योंकि प्र सन्नता और सुख दुख भी बौद्धिक क्षमता के आधार पर माननीय जीव को खुद चुनना होता है! इसलिए आज हम छठ की पावन बेला पर मन की प्रसन्नता पर उसके गुणों, प्रक्रिया सुजन करने के तरीकों पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे। साथियों बात अगर हम प्रसन्नता की करें तो खुलकर हंसना, मुस्कुराना, प्रसन्न रहना, मन की प्रसन्नता खुद सृजित की हुई दवा के समान है, क्योंकि इसमें सब दुख तो नष्ट होते हैं, जीव अपने कर्म में असफल नहीं होता। बुद्धि तुरंत स्थिर रहती है। सामाजिक प्रतिष्ठा और गुणों की सुगंध दूर तक जाती है एक अलग हस्मुख व्यक्तित्व की हमारी छाया हमारे अपने परि चितों सहयोगियों पर पड़ती है। प्रसन्नता हमारा ऐसा अन मोल खजाना है, जिसे जितना लूटाएंगे उतना ही बढ़ता चला जाएगा, खिलखि लाते चेहरे और प्रसन्नता की आंखों की चमक मनीषियों को दुर्ल भ पूंजी है, क्योंकि प्रसन्नता सुकून से जीने की कुंजी है। यह खजाना तब बढ़ता है जब हम दूसरों की खुशीयों में अपनी खुशी को समाहित करते हैं। हमें छोटी -छोटी चीजों में प्रसन्नता, सुख ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए, विश्वसनीय मन के भाव की खुशी का भाव अभूत पूर्व सफलता और दूरगामी सकारात्मक परिणाम होता है। आध्या त्मिकता, उदारता, परो पकार सहनशीलता, सहिष्णु ता इत्यादि मन की प्रसन्नता के प्रमुख स्त्रोतों में से कुछ हैं, जिन को जीवन में अपनाने की जरूरत को रेखांकित किया जा सकता है।
साथियों बात अगर हम अंतरराष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस, संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी विश्व प्रसन्नता इंडेक्स रिपोर्ट इत्या दि अन्तर्राष्ट्रीय स्तरपर प्रसन्नता के मूल्यों की करें तो प्रसन्नता को हाई वैश्विक टाॅनिक मा ना जाता है। प्रसन्नता दिवस मनाया जाता है अलग-अलग देशों के प्रसन्नता से रहने के क्रमांक बताए जाते हैं, परंतु बहुत हैरानी की बात है प्रसन्नता इंडेक्स में अनेक पूर्ण विकसित देशों के साथ ही भारत भी पिछड़ा हुआ है जो रेखांकित करने वाली बात है!! विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 20 22 में 146 देशों की रिपोर्ट के अनुसार फिनलैंड लगातार 5 वर्षों से प्रथम और डेनमार्क द्वितीय और आयरलैंड तृतीय स्थान पर है। जबकि इस रि पोर्ट में भारत 136 वी रैंक पर है याने लास्ट टाॅप टेन इतनी खराब हालात जो आश्चर्य वाली बात है।
साथियों बात अगर हम मन की प्रसन्नता के गुण एवं लाभों की करें तो, प्रसन्नता तो व्यक्ति का मानसिक गुण है, जिसे व्यक्ति को अपने दैनि क जीवन के अभ्यास में लाना होता है। प्रसन्नता व्यक्ति के अंतर्मन में छिपे उदासी, तृष्णा और कुंठाजनित मनोविकारों को सदा के लिए समाप्त कर देती है। वस्तुतः प्रसन्नता चुंब कीय शक्ति संपन्न एक वि शिष्ट गुण है। प्रसन्नता दैवी वरदान तो है ही, यह व्यक्ति के जीवन की साधना भी है। व्यक्ति प्रसन्न रहने के लिए एक खिलाड़ी की भांति अपनी जीवन-शैली और दृष्टिकोण को अपना लेता है। उसके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफ लता असफलता जय-पराजय, और सुख-दुख उसके चिंतन का विषय नहीं होता। वह तो अपने निर्धारित लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है। प्रसन्नता मानवों में पाई जाने वाली भावनाओं में सबसे सकारा त्मक भावना है। इसके होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं, अपनी इच्छाओं की पूर्ति से संतुष्ट होना। अपने दिन- रात के जीवन की गतिविधियों को अपनी इच्छाओं के अनुकूल पाना। किसी अचा नक लाभ से लाभांवित होना। किसी जटिल समस्या का समाधान प्राप्त होना।
साथियों बात अगर हम प्रसन्नता के लक्ष्यों की प्राप्ति की करें तो, प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति परिस्थितियों से संघ र्ष करते हुए अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेता है। यदि वह असफल भी हो जाता है तो निराश होने और अपनी विफलता के लिए दूसरों को दोष देने की अपेक्षा अपनी चूक के लिए आत्मनिरीक्षण करना ही उचित समझता है। ज्ञानीजन और अनुभवी बताते हैं कि प्रसन्नता जैसे दैवीय -वरदान से कुतर्की और षड îंत्रकारी लोग सदैव वंचित रह जाते हैं। प्रसन्न व्यक्ति स्वयं को प्रसन्न रखकर दूसरों को भी प्रसन्न रखने की अद् भुत सामथ्र्य रखता है। प्र सन्नता को प्रभु-प्रदत्त संपदा समझने वाले व्यक्ति ही सदैव सुखी रहते हुए यशस्वी, मनस्वी, महान और पराक्रमी बनकर समाज और राष्ट्र के लिए आदर्श स्थापित करने में सक्षम हो सकते हैं। प्रसन्नता ही सुखी जीवन का मूल मंत्र है। प्रसन्नता हमारा अनमोल खजाना है। प्रसन्न ता को जरूर लुटाइए फिर देखिए, उसका खजाना बढ़ता चला जाएगा। भलाई करना कर्त्तव्य नहीं, आनन्द है। क्यों कि वह प्रसन्नता को पोषित करता है। सबको प्रसन्न कर ने की शक्ति सब में नहीं होती। प्रसन्नता आत्मा को शक्ति प्रदान करती है। प्रसन्नता पूर्वक उठाया गया बोझ हल्का महसूस होता है। प्रसन्नता शब्द का प्रयोग मानसिक या भावनात्मक अवस्थाओं के संदर्भ में किया जाता है, जिस में संतोष से लेकर तीव्र आनंद तक की सकारात्मक या सुख द भावनाएं शामिल हैं। इसका उपयोग जीवन संतुष्टि, व्यक्ति परक कल्याण, यूडिमोनिया, उत्कर्ष और कल्याण के संदर्भ में भी किया जाता है इसलिए हर व्यक्ति ने इस गुण को अपने में समाहित कर जीवन को सफल बनाने के मंत्र को अपनाना चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दुनियां की सबसे बड़ी खुशी का बोध मन की शांती और हंसने से होता है प्रसन्नता हमारा ऐसा अनमोल खजाना है, जितना लुटाओगे उतना बढ़ता चला जाएगा। जिसके पास प्रसन्नता, मन की शांती, संतोष भरा मन हो वो आज की दुनियां मे सबसे अधिक खुश है।
जिसके पास प्रसन्नता, मन की शांती, संतोष भरा मन हो वो आज की दुनियां मे सबसे अधिक खुश है
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