जलवायु परिवर्तन की मौसम संबंधी चरम घटनाएं, आघात चिंता व तनाव का कारण बनकर युवाओं के दिमाग पर असर की चिंता वाजबी

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। वैश्विक स्तर पर अजरबैजान की राजधानी बाकू में 12 दिवसीय जलवायु सम्मेलन जारी है। बीतेें 11 नवंबर 2024 से शुरू हुए इस सम्मेलन में करीब 200 देशों के हजारों प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं। बैठक में जलवायु संकट से निपटने के लिए ज रूरी प्रयासों पर चर्चा की जा रही है। इस दौरान भारत ने भी क्लाइमेट चेंज से दुनियाँ कोबचाने के लिए अपना प्लान सामने रखाहै। भारत ने विकसित देशों से अपना वादा पूरा करने को कहा है, कि पेरिस समझौते के मुताबिक विकसित देशों को विकासशील देशों के लिए क्लाइमेट फाइनेंस जुटाना चाहिए, इसमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं होना चाहिए। विकसित देशों को 2030 तक हर साल कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरि की डाॅलर विकासशील देशों को देने के लिए प्रतिबद्ध हो ना चाहिए। भारत ने कहा है कि जिस नए जलवायु वित्त (क्लाइमेट फाइनेंस) पैकेज पर बातचीत की जा रही है, उसे निवेश लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता सीओपी 29 में क्लाइमेट फाइनेंस पर समान विचारधारा वाले विकासशील देशों की ओर से बोलते हुए भारत ने इस बात पर जोर दिया कि विकासशील देशों को गर्म होती दुनियाँ से निपटने के लिए दिया जाने वाला ग्रांट, रियायती और नाॅन-डेब्ट (बिना कर्ज) सहायता के जरिए मिलना चाहिए। नया क्लाइ मेट फाइनेंस पैकेज या नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य इस साल काॅप 29 के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता और विकासशील देशों की उभरती प्राथमिक ताओं के अनुसार होना चाहिए, साथ ही यह उन प्रतिबंधात्मक शर्तों से मुक्त होना चाहिए जो डेवलपिंग नेशंस के विकास में बाधा डाल सकती हैं। यह समर्थन ब्राजील के बेलेम में काॅप 30 की ओर बढ़ने के लिए महत्वपूर्ण है, जहां सभी पक्ष जलवायु संकट से निपटने के लिए अपनी राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं और योगदान का ब्यौरा पेश करें, भारत ने एनसीक्यूओ को निवेश लक्ष्य में बदलने का विरोध करते हुए कहा कि पेरिस समझौते में यह साफ है कि विकसित देश ही क्लाइ मेट फाइनेंस जुटाएंगे, ऐसे में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और उसके पेरिस समझौते के आदेश के बाहर किसी भी नए लक्ष्य को शामिल किया जाना अस्वीकार्य है। हमें पेरिस समझौते और इसके प्रावधानों पर फिर से बातचीत करने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती, दरअसल भारत समेत तमाम विकास शील देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन और पेरिस समझौते के तहत, विकसित देशों की जिम्मेदारी है कि वे उनके लिए क्लाइमेट फाइनेंस जुटाएं, लेकिन अब विकसित देश एक वैश्विक निवेश लक्ष्य के लिए जोर दे रहे हैं जो सरकारों, निजी कंपनियों और निवेशकों सहित विभिन्न स्रोतों से फंड जुटाएगा! संकट से फायदा उठाने में जुटे अमीर देश? इस मामले में क्लाइमेट एक्टिविस्ट का कहना है कि क्लाइमेट फाइनेंस को निवेश लक्ष्य में बदलना उन लोगों के साथ धोखा है जो क्लाइ मेट चेंज के चलते संकट का सामना कर रहे हैं उन्होंने कहा कि भारत समेत तमाम विकास शील देशों के लिए यह साफ है कि उन्हें ग्रांट और नाॅन डेब्ट के जरिए यह फंड दिए जाने की आवश्यकता है न कि ऐसी निवेश योजनाओं की, जो अमीर देशों को इस संकट से फायदा उठाने दें, जिसे बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है, इससे कम कुछ भी दोहरा अन्याय है। चूँकि काॅप-29 में करीब 200 देशों के हजारों प्रतिनिधियों द्वारा जलवायु परिवर्तन संकट से निपटनें जरूरी प्रयासों पर चर्चा हो रही है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,जलवायु परिवर्तन की मौसम संबंधी चरम घटनाएं आघात चिंता व तनाव का कारण बनकर युवाओं के दि माग पर असर की चिंता करना वाजबी है।
साथियों बात अगर हम विशेषज्ञों द्वारा एक नए दावे की करें तो, शिखर सम्मेलन के दौरान विशेषज्ञों ने एक नया दावा करके दुनिया में हड़कंप मचा दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अजरबैजान में विभिन्न देशों के सरकारी प्रतिनिधि एकत्र हुए हैं, जिसमें युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले असर को तत्काल प्राथमिकता दिए जाने की मांग की जा रही है। विशेषकर बच्चों और कि शोरों के साथ काम करने वाले मनोचिकित्सकों बेहद चिंतित हैं। उनका कहना है कि हम उच्च तापमान और आत्मघाती विचारों तथा व्यवहारों के बीच संबंध पर अपने शोध को शिखर सम्मेलन में साझा कर रहेहैं। हमारे हालिया अध्ययन से पता चलता है कि गर्म मौसम में आत्महत्या के विचार और व्यवहार के कारण युवाओं के आपातकालीन विभाग में आने की आशंका अधिक होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने की दिशा में अपर्याप्त कार्रवाई के कारण यह समस्या बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन पहले से ही युवाओं केमानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। मौसम संबंधी चरम घटनाएं – जैसे कि 2019 में आस्ट्रेलिया की विनाशकारी जंगलों की आग की घटनाएं और उसके बाद तूफान और बाढ़ – इन घटनाओं ने बच्चों की स्कूली शिक्षा को बाधित किया है, विस्थापन के लिए मजबूर किया तथा ऐसी घटनाएं आघात, चिंता और तनाव का कारण बनती हैं। गर्म मौसम के साथ युवाओं में आत्मघाती व्यवहार का जोखिम बढ़ जाता है। औसत तापमान में मामूली वृद्धि का मतलब हर साल गर्म दिनों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। जल वायु परिवर्तन के बारे में चिंता युवा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है। सीओपी 29 में नेताओं को यह समझना होगा कि जल वायु परिवर्तन पर अपर्याप्त कार्रवाई के कारण युवाओं का मानसिक स्वास्थ्य पहले से ही गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है, जिनमें खराब मौसम, गर्मी, जबरन पलायन और स्कूल, काम और स्वास्थ्य देखभाल में व्यवधान शामिल हैं।
साथियों बात अगर हम भारत द्वारा अपना मजबूत पक्ष रखने की करें तो, भारत ने सीओपी 29 में न्यायसंगत परिवर्तन पर मंत्रियों के दूसरे वार्षिक उच्च स्तरीय गोलमेज के दौरान अपना पक्ष मजबूती से रखा। इसमें भाग लेने वाले देशों को यूएई के जस्ट ट्रांजिशन वर्क कार्यक्रम से किए जा रहे अपेक्षाओं पर विचार विमर्श करना था। साथ ही स्थायी विकास और गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देने वाले न्यायसंगत परिवर्तन संदर्भ में अपनी जलवायु योजनाओं को और अधिक परिभाषित करने और लागू करने के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में यह कार्यक्रम किस तरह से काम कर सकता है, इस पर भी विचार किया जाना था। सभी पक्षों से अपेक्षा की गई थी कि वे इस बात पर चर्चा करें कि कार्यान्वयन के साधनों की पूरी श्रृंखला पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और समर्थन कैसे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान और राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाओं के संदर्भ में अपने न्यायपूर्ण परिवर्तन मार्गों को आगे बढ़ाने में सहा यता कर सकता है। भारत ने अपना पक्ष रखा, न्यायपूर्ण बदलावों के वैश्विक आयामों को अवश्य पहचाना जाना चाहिए और सीओपी 29 में किए जा रहे कार्यों में उन्हें प्रति बिंबित किया जाना चाहिए।
इसमें यह भी उल्लेख है कि इस बहुपक्षीय प्रक्रिया में निहित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना अनुरूप चर्चा में सभी पक्षों के बातों को शामिल किया जाना चाहिए। भारत ने सभी पक्षों से निम्न लिखित विषयों पर चर्चा का आह्वान किया-
(1) एकपक्षीय बलपूर्वक उपाय, जो सुचारू व्यापार को बाधित करते हैं और देशों को समान विकास के अवसरों तक पहुंचने से रोकते हैं।
(2) हरित प्रौद्योगिकियों पर बौद्धिक संपदा अधिकार, जो विकासशील देशों तक उनकी सहज पहुंच में बाधा डालता है।
(3) कार्बन क्रेडिट, जो विकसित देशों द्वारा विकास शील देशों को वैश्विक कार्बन बजट के अत्यधिक उपयोग के लिए दिया जाता है। इस कार्बन ऋण का मुद्रीकरण खरबों में होगा। विज्ञान जो समस्त जलवायु विमर्श को निर्देशित करता है – क्या यह वैश्विक समानता और पर्यावरणीय न्याय के विचारों पर आधारित है? जलवायु परिवर्तन संबंधी चर्चा में अस मानता का मुद्दा। विकसित देशों में नागरिकों की पसंद सर्वोच्च है, जबकि विकास शील देशों के नागरिकों पर परिवर्तन के कारण लागतें थोपी जाती हैं। टिकाऊ जीवन शैली को बढ़ावा देना जिस पर इस वर्ष नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में सहम ति हुई थी। भारत ने सभी पक्षों को याद दिलाया कि इन मुद्दों पर स्पष्ट चर्चा और सीओपी 29 में लिए गए नि र्णयों में इनका समावेश, विश् वास निर्माण की आधारशिला होगी जिससे वास्तविक रूप से समतापूर्ण और न्यायसंगत वैश्विक परिवर्तन संभव होगा।
अतः अगर हम उपरोध पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करेंतो हम पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्रजलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन 11-23 नवंबर 2024-अंतिम पड़ाव में भारत का आगाज, सीओपी-29-करीब 200 देश के हजारों प्रतिनिधियों द्वारा जलवायु संकट से निपटनें जरूरी प्रयासों पर चर्चा, जलवायु परिवर्तन की मौसम सं बंधी चरम घटनाएं, आघात चिंता व तनाव का कारण बनकर युवाओं के दिमाग पर असर की चिंता वाजबी है।

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