आओ प्रतिभावान को प्रोत्साहन देकर काबिलियत को सर्वोपरि बनाएं

RAJNITIK BULLET
0 0
Read Time10 Minute, 10 Second

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – वर्तमान कुछ वर्षों से हमारे पीएम महोदय अपने अनेक जनसभाओं में परिवार वाद और वंशवाद का मुद्दा उठाते हैं और उसको विकास का बाधक बताते हुए आम जनता का ध्यान इस ओर आकर्षित करते रहते हैं, जिसका नतीजा बिहार में एक और महाराष्ट्र में दो बार देखने को मिला है सबसे बड़ी बात तो परिवार की फूट का आश्चर्यजनक नतीजा आज देखने को मिला 2 जुलाई 2023 को जो सारे देश ने देखा इसी तर्ज पर महाराष्ट्र में एक परिवारवाद में कुछ माह पहले ऐसा हो चुका है।
सदियों पुराने भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज वंश वाद परिवारवाद के किस्से राजा महाराजाओं के स्तरपर हम बहुत पढ़ें हैं कि यह फलाने वंशज का है, यह राजशा ही परिवार का है जो वर्तमान रूप में कुछ दूसरे रूपों में यह फलाने नेता का रिश्ते दार है, ढिकानें उद्योगपति का रिश्तेदार है, इत्यादि अनेक वंशवाद परिवारवाद से शब्दों की बात होती है। हालांकि मेरा मानना है कि किसी भी परिवार या वंश का उनके किसी भी घरेलू पेशे व्यापार व्यवसाय का अनुसरण करना स्वाभाविक ही है क्योंकि वह मनीषी जीव उसी परिवार में जन्म लेकर बाल्य काल से ही उस पेशे व्यापार व्यवसाय के माहौल में छोटे से बड़ा होता है तो उसका भविष्य हम उसी क्षेत्र में जोड़ने की कोशिश करते हैं, एक उदाह रण के तौर पर अगर कोई एक इंजिनियर, सीए है तो क्या इसी कारण उसके पुत्र को इंजीनियर सीए नही बनने दिया जाएगा? अगर इंजी नियर का बेटा भी इंजीनियर बने तो वंशवाद को बढ़ावा देने जैसा है क्या ? किसी वकील का बेटा क्या वकालत नही कर सकता है, क्योंकि ये वंश वाद को बढ़ावा देना होगा?? अगर वह अच्छा वकील ही नही है तो उसके पक्षकार ही उसे अपने आप ही ठुकरा देंगे। इसमे वंशवाद कहा से आ टपका ?? ठीक वैसे ही अगर पिताश्री मंत्री था या विधायक था तो बेटे को भी भी मंत्री या विधायक बनने से रोकने वाला कानून देश में या दुनियां मे कहीं नही है। हालांकि राजनीतिक क्षेत्र में आम जनता अपने वोट के बल पर उसे रोक सकती हैं।
साथियों जैसे काबिल न होने पर बड़े नामचीन वकील का बेटा बड़ा वकील नही बन पाता है वैसे ही नेताजी के बेटे नाकाबिल है तो जनता अपने आप ही उसे ठुकरा देगी। सवाल तो काबिलियत का है नकि पिताश्री क्या थे इस बात का है, और व्यवसाय में तो ऐसे ही होता है, उत्तरा धिकारी कोई परिवार से ही होता है। वंशवाद अपने आप मे कोई चुनौती नही है। ना ही वंशवाद में कोई बुराई भी है। केवल एक वंश का कोई है इस बात के लिए सही योग्यता है या नही इसे देखे बगैर ही उसे चुनना या उसे किसी भी पद पर बैठाना जरूर गलत है अन्याय और बुराई है।
साथियों बात अगर हम पौराणिक काल के वंशवाद की तुलना आज के परिवारवाद भाई भतीजावाद से करें तो, कुछ विशेषयज्ञ वंशवाद की तुलना राजशाही से करते हैं, उनके अनुसार फर्क है तो इतना ही कि पहले राजे महाराजे अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करते थे, भारत के लोकतंत्र में आज यह काम उनके लिए चाहे, अनचाहे ढंग से जनता या वोटर करते हैं। इसी तर्क को लेकर कुछ नेता यह दोहराने से नहीं थकते कि उनके परिवार के लोग राजनीति में चुनाव जीत कर आए हैं, किसी की मेहरबानी या खैरात से नहीं है।
साथियों बात अगर हम कुछ वर्षों से परिवारवाद भाई भतीजावाद पर बढ़ते विरोधी ट्रेंड की करें तो, वर्तमान समय में पीएम के कटु आलोचक भी मानते हैं कि उन्होंने भार तीय राजनीति के व्याकरण को कई मायनों में बदला दिया है। आज परिश्रम, दक्षता और योग्यता रूपी मानवीय गुणों ने तेजी से चाटुकारिता और परिवारवाद वाली राजनीति की जगह ले रही है।
वैसे भी जो पार्टी लंबे समय तक सत्ता में रहती है, वही भविष्य के लिए खेल के नियम तय करती है। सभी छोटे खिलाड़ी उस फार्मूले का अनुकरण करते हैं। एक पार्टी भी लंबे समय तक सत्ता में रही है। लिहाजा अधिकांश पार्टियों ने उसका अनुकरण किया। उस पार्टी ने भारतीय राजनीति को वंशवाद की राजनीति का सूत्र सिखाया। बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी सरी खे दिग्गजों ने पार्टी को एक आंदोलन के रूप में चलाया, लेकिन स्वतंत्रता के बाद वह उनकी मात्र बनकर रह गई। उसने समय के साथ खुद को देश के प्रथमपरिवार के रूप में स्थापित कर लिया ऐसा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आया है हालांकि उसकी पुष्टि नहीं की गई है।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा लाल किले की प्राचीर से परिवार वाद भाई भतीजावाद मुद्दे पर क्षणिक संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा दूसरी एक चर्चा मैं करना चाहता हूं भाई-भतीजावाद, और जब मैं भाई-भतीजावाद परिवारवाद की बात करता हूं तो लोगों को लगता है मैं सिर्फ राजनीति क्षेत्र की बात करता हूं। जी नहीं, दुर्भाग्घ्य से राजनीति क्षेत्र की उस बुराई ने हिन्दुस्तान की हर संस्थाओं में परिवारवाद को पोषित कर दिया है। परिवार वाद हमारी अनेक संस्थाओं को अपने में लपेटे हुए है। और इसके कारण मेरे देश के टैलेंट को नुकसान होता है। मेरे देश के सामर्थ्य को नुकसान होता है। जिनके पास अवसर की संभावनाएं हैं वो परिवारवाद भाई-भतीजे के बाद बाहर रह जाता है। भ्रष्घ्टाचार का भी कारण यह भी एक बन जाता है, ताकि उसका कोई भाई-भतीजे का आसरा नहीं है तो लगता है कि भई चलो कहीं से खरीद करके जगह बना लूं। इस परिवारवाद से भाई-भतीजा वाद से हमें हर संस्थाओं में एक नफरत पैदा करनी होगी, जागरूकता पैदा करनी होगी, तब हम हमारी संस्थाओं को बचा पाएंगे। संस्थाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए बहुत आवश्यक है। उसी प्रकार से राजनीति में भी परिवारवाद ने देश के सामर्थ्य के साथ सबसे ज्यादा अन्याय किया है। परिवारवादी राजनीति परिवार की भलाई के लिए होती है उसको देश की भलाई से कोई लेना-देना नहीं होता है और इसलिए लालकिले की प्राचीर से तिरंगे झंडे के आन-बान-शान के नीचे भारत के संविधान का स्मरण करते हुए मैं देशवासियों को खुले मन से कहना चाह ता हूं, आइये हिन्दुस्तान की राजनीति के शुद्धिकरण के लिए भी, हिन्दुस्तान की सभी संस्थाओं की शुद्धिकरण के लिए भी हमें देश को इस परिवारवादी मानसिकता से मुक्ति दिला करके योग्यता के आधार पर देश को आगे ले जाने की ओर बढ़ना होगा। यह अनिवार्यता है। वरना हर किसी का मन कुंठित रहता है कि मैं उसके लिए योग्य था, मुझे नहीं मिला, क्योंकि मेरा कोई चाचा, मामा, पिता, दादा-दादी, नाना-नानी कोई वहां थे नहीं। यह मनरू स्थिति किसी भी देश के लिए अच्छी नहीं है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि परिवार वाद बनाम प्रतिभावान काबि लियत आओ प्रतिभावान को प्रोत्साहन दे कर काबिलियत को सर्वोपरि बनाएं। वंशवाद परिवारवाद भाई भतीजावाद से प्रतिभा वान काबिलियत के सर्वोपरि सामर्थ्य को क्षति है। प्रतिभा वान काबिलियत का बाधक भाई भतीजावाद परिवारवाद एक बुराई है।

Next Post

E-PAPER 10 JULY 2023

CLICK […]
👉