(संदीप सक्सेना) बलरामपुर। गर्भावस्था एवं शिशुजन्म दोनों ही एक महिला के जीवन की सामान्य घटनाएँ हैं। अधिक्तर गर्भवती महिलाओं को शिशु सामान्य अवस्था में जन्म लेता है। लेकिन करीब 15 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं में जटिलताएं आती है जिसका अनुमान पहले से नहीं लगाया जा सकता। इसमें कुछ जटिलताएं मां और बच्चे दोनों के लिए प्राण घातक हो सकती हैं। इसलिए अस्पताल में दक्ष परिचारिका की उपस्थिति जटिलताओं की शीघ्र पहचान एवं उनके उचित प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
शुक्रवार को यह बातें अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरसीएच डा. बी.पी. सिंह ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अन्र्तगत होटल लव्य इंटरनेशनल में आयोजित पांच दिवसीय स्किल्ड बर्थ अटेंडेंट (एसबीए) प्रशिक्षण के समापन पर कही। उन्होने कहा कि बच्चे का जन्म चाहे संस्थागत हो या सामुदायिक स्तर पर लेकिन दक्ष परिचारिका की उपस्थिति में होना चाहिए जिससे मातृ शिशु मृत्यु दर में काफी हद तक कमीं आ सकती है। उन्होने बताया कि 18 वर्ष से कम या 40 वर्षों से अधिक की महिलाओं में गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएं होने की संभावना ज्यादा रहती है। पहली बार गर्भवती या जो चार या अधिक बार गर्भवती हुई है उनमें भी गर्भावस्था या प्रसव से जुड़ी जटिलताएं होने का खतरा ज्यादा रहता है। डा. बी. पी. सिंह ने कहा कि शोध बताते हैं कि वे महिलाएं जिन्होंने दो संतानों के बीच 3 साल से कम का अंतर रखा हो, उनमें अपरिपक्व प्रसव एवं कम वजनी शिशु को जन्म देने की संभावना अधिक रहती है और इस तरह यह शिशुमृत्यु के खतरे को बढ़ावा मिलता है।
एसीएमओ डा. जयप्रकाश ने कहा कि महिलाओं को पिछली गर्भावस्था से कम से कम दो साल का अंतराल या पिछले गर्भपात से तीन महीनों का अंतर न होने पर महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना रहती है। हांलाकि किसी भी महिला में, गर्भावस्था के किसी भी चरण पर जटिलताएं आ सकती हैं, इसलिए ऐसे केसेस के प्रबंधन के लिए समय पर प्रसूति देखभाल सेवाएं प्रदान करने का प्रावधान जरूरी है और प्रत्येक महिला को गर्भावस्था, शिशुजन्म एवं प्रसवोपरात देखभाल प्रदान करने के लिए स्किल्ड बर्थ अटेंडेंट की आवश्यकता होती है। जिन्हे इस प्रशिक्षण के माध्यम से प्रशिक्षित किया जा रहा है।
प्रशिक्षक व जिला तकनीकी विशेषज्ञ एनएचएम डा. शैलेन्द्र सिंह ने बताया कि डिस्ट्रिक्ट लेवल हाउस होल्ड एण्ड फेसिलिटी सर्वे (डी.एल.एच.एस.) 3-2007 08 के अनुसार भारत में 52.3 प्रतिशत शिशु का जन्म घरों पर होते हैं और इनमें से 5.7 प्रतिशत शिशु का जन्म ही किसी दक्ष परिचारिका की उपस्थिति में हो पाता है। यह आंकड़े यह प्रदर्शित करते हैं कि हमारे देश में बहुत अधिक अनुपात में शिशुजन्म बिना किसी दक्ष परिचारिका की मौजदूगी में हो रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में जो महिलाएं जानलेवा जटिलताओं से ग्रसित होती हैं उन्हें आपातकालीन जीवन रक्षक सेवाऐं प्राप्त नहीं हो पाती हैं। कौशलहीन व्यक्तियों द्वारा प्रसव करना भी बढ़ी हुई मातृ मृत्यु के लिए जिम्मेदार हो सकता है।
प्रशिक्षण के समापन के दौरान गाइनोलाॅजिस्ट डा माही कीर्ति सिसौदिया, मेडिकल अफसर डा. सारिका साहू, बाल रोग विशेषज्ञ डा महेश कुमार वर्मा व जिला महिला चिकित्सालय की नर्स मेंटर प्रेरणा डेविड ने भी प्रशिक्षणार्थियों को तमाम जानकारी दी। जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता एनएचएम विनोद त्रिपाठी ने बताया कि पहली बार जिले में एसबीए का प्रशिक्षण कराया गया है। सभी 32 प्रतिभागियों का पांच दिवसीय थ्यौरी प्रशिक्षण सम्पन्न हो गया है। 08 नवम्बर से जिला महिला चिकित्सालय में सभी का 16 दिवसीय प्रेक्टिकल 04-04 के बैच में सम्पन्न कराया जाएगा। इस दौरान जिले के विभिन्न अस्पतालों से 26 एएनएम, 04 आयुष लेडी मेडिकल अफसर व 02 स्टाफ नर्स सहित कुल 32 लोग मौजूद रहे।
प्रशिक्षण में दी गई सरकारी अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव कराने की महत्वपूर्ण जानकारियां
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