संसद के मानसून सत्र को चलाने की बड़ी चुनौती केंद्र सरकार के समक्ष खड़ी है। कोविड-19 का कुप्रबंधन, ईंधनों की आसमान छूती महंगाई आदि को लेकर विपक्षी पार्टिंयां केंद्र सरकार को संसद में घेर सकती हैं। वहीं, सरकार की कोशिश रहेगी कि मौजूदा सत्र में 30 बिल और 3 अध्यादेश बिना किसी परेशानी के पास कराए जाएं, जो शायद संभव नहीं? मंत्रिमंडल में अब महिलाओं की संख्या अच्छी है। विपक्ष से निपटने के लिए सत्र के दौरान क्या होगी सत्तापक्ष की रणनीति आदि को लेकर उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण, ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति से डॉ0 रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-
प्रश्न- मानसून सत्र को सुचारू रूप से चलाना इस बार उतना आसान नहीं होगा?
उत्तर- विरोध गलत नीतियां और निर्णयों का होना चाहिए, अच्छे फैसलों के लिए नहीं? लेकिन अब हर बात का विरोध करने का फैशन हो गया है। मानसून सत्र छोटा है, सिर्फ 19 दिन का होगा सत्र। करीब 30 बिल और 3 अध्यादेश पारित होने हैं, जो सभी जनता के हितों के लिए हैं। ऐसे बिलों में भी अगर विपक्ष अपनी टांग अड़ाता है, तो मुझे उनकी किस्मत पर तरस ही आएगा। बिलों में अडंगा ना लगे, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी दलों से सहयोग की अपील भी की है। दोनों ने अलग-अलग सर्वदलीय बैठकें भी की हैं। मुझे लगता है, समूचा मानसून सत्र अगर सुचारू रूप से चल जाए और सभी बिल व अध्यादेश पास हो जाएं, तो ये सत्र नई लकीर खींच सकता है। यह सबसे सफल सत्र माना जाएगा।
प्रश्न- महिलाओं की संख्या भी मंत्रिमंडल में इस बार अच्छी है?
उत्तर- ये सब मोदी युग में ही संभव है। वरना, कांग्रेस के जमाने में ऐसा कभी नहीं हुआ। मोदी ने हमेशा महिलाओं को आरक्षण देने और उन्हें सम्मान देने की वकालत की है जिसकी तस्वीर आप देख भी रहे हैं। पहली मर्तबा केंद्रीय मंत्रिमंडल में महिला मंत्रियों की इतनी संख्या हुई है। कोरोना संकट को देखते हुए सत्र का समय छोटा रखा गया है लेकिन है बहुत महत्वपूर्ण। रोजाना ‘ऑन एन एवरेज’ दो बिलों को पेश करने का लक्ष्य है। हमारी पूरी की कोशिश रहेगी कि बिलों के प्रस्तावों के वक्त विपक्ष ज्यादा हावी न हो और किसी तरह की कोई परेशानी पैदा ना कर सके।
प्रश्न- ऐसे कौन-से महत्वपूर्ण बिल हैं जिनको सरकार इस सत्र में पास कराना चाहेगी?
उत्तर- एक नहीं, बल्कि सभी बिल महत्वपूर्ण हैं। मानव तस्करी विधेयक, केंद्रीय विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक, डीएनए टेक्नोलॉजी बिल, लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप, कंटेनमेंट संशोधन बिल, सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिल, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट बिल, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी, कोल बियरिंग एरिया बिल, चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे कई महत्वपूर्ण बिल हैं जिनका तत्काल प्रभाव से लागू होना समय की दरकार भी है। एकाध बिल ऐसे हैं, जो पिछले सत्रों से लंबित हैं, जैसे इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड बिल? जिसका उद्देश्य कर्ज में घिरे कॉरपोरेट्स को आसान तरीके से कम समय में दिवाला प्रक्रिया पूरा करने की अनुमति देना है।
प्रश्न- दिल्ली को लेकर भी कोई बिल पास किया जाना है?
उत्तर- जी हां। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता के प्रबंधन को लेकर एक बिल पेश होना है जिसका मकसद दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता साफ करना होगा। दिल्ली-एनसीआर के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक-2021 बिल है जो सीधे आमजन की सेहत से संबंध रखता है। दिल्ली की आबोहवा दीवाली त्योहार के वक्त बहुत खराब हो जाती है। स्थानीय सरकार कुछ करने की बजाय सिर्फ हल्ला मचाती है। ठीक है अगर विपक्ष का धर्म विरोध करना ही है, तो कुछ मुद्दों पर उन्हें गंभीर होना होगा। विरोध की आड़ में कहीं ऐसा न हो आमजन का नुकसान कर दें। बिनावजह के विरोध से बात नहीं बनने वाली।
प्रश्न- प्रश्नकाल की व्यवस्था तो खत्म है, ऐसे में विपक्ष सवाल कैसे कर पाएगा?
उत्तर- प्रत्येक बिल को पास करने से पहले सभी विपक्षी दलों के सदस्यों से बात की जाती है। उन्हें विश्वास में लिया जाता है। समस्या होने पर वोटिंग होती है, उनका पक्ष जाना जाता है। एकतरफा कोई निर्णय नहीं होता। संसद सदस्य सवाल करते हैं और उनका जवाब संबंधित मंत्री देते हैं। ऐसे में ये आरोप लगाना कि सरकार सुनती नहीं, यह तो सरासर गलत है। बिल कितने भी अच्छे क्यों न हो, विपक्षी दल बिना शोर मचाये रह ही नहीं सकते।
प्रश्न- किसान नेताओं ने भी संसद के बाहर धरना देने का ऐलान किया है?
उत्तर- लोकतांत्रिक देश में धरना देना और आंदोलन करना सबका हक है। सात महीनों से वह आंदोलन कर रहे हैं, उनसे बातचीत भी हुई, लेकिन अपनी जिद पर अड़े हैं। इस सूरत में कोई हल कैसे निकल सकता है। बातचीत के लिए उन्हें ऑफर भी दिया, लेकिन मानने को राजी नहीं हैं। रही बात संसद के बाहर प्रदर्शन करने की, तो सुरक्षा पहलुओं के लिहाज से उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। संसद लोकतंत्र का मंदिर है, जहां देश की दिशा तय होती है। उसमें उन्हें खलल नहीं डालना चाहिए। बाकी उनकी जैसी इच्छा, वैसा करें।