2024 के चुनावों से पहले महाराष्ट्र में होगा बड़ा खेल, उद्धव सेना की होगी NDA में वापसी?

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Feb 09, 2023
2024 के चुनाव में अभी तो वैसे करीब साल भर का वक्त शेष है। लेकिन लोकसभा की सीटों के लिहाज से सबसे अहम प्रदेश महाराष्ट्र पर इस जोड़ी की निगाहें टिकी हैं, जहां 48 लोकसभा सीटें आती हैं।
जिस भाजपा के बारे में कभी कहा जाता था कि ‘बैठक, भोजन और विश्राम… भाजपा के यह तीन काम’ उस अवधारणा को नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पूरी तरह बदलकर रख दिया। 182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार करने का करिश्मा एक बार नहीं बल्कि दो-दो बार करके दिखाया और 2019 की जीत को 2014 से भी बड़ा बनाया। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी पूरे देश में ऐसी दौड़ी की क्या भोपाल क्या जयपुर क्या बंगाल एक-एक कर सारे प्रदेश भाजपा की झोली में आकर गिरने लगे। मोदी के अश्वमेध रथ पर अमित शाह जैसा सारथी घर्र-घर्र करते हुए आगे बढ़ा तो उसकी चाप से हिन्दुस्तान का मुकद्दर रचने चले नए सिंकंदर की जयजयकार सुनाई पड़ने लगी। 2019 में भाजपा को मिली विराट सफलता के बाद राजनीति की दुनिया की ये मशहूर जोड़ी 2024 के आम चुनाव में जीत का हैट्रिक लगाने को बेताब नजर आ रही है।
महाराष्ट्र में होगा कोई नया खेल?
2024 के चुनाव में अभी तो वैसे करीब साल भर का वक्त शेष है। लेकिन लोकसभा की सीटों के लिहाज से सबसे अहम प्रदेश महाराष्ट्र पर इस जोड़ी की निगाहें टिकी हैं, जहां 48 लोकसभा सीटें आती हैं। लगभग 25 वर्षों तक चले शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन टूट चुका है और साथ ही टूट नहीं है उद्धव ठाकरे की पार्टी भी। वैसे महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से जानने वाले एक बात से भली-भांति अवगत होंगे की तमाम तरह की राजनीतिक प्रतिद्ववंदिता और सियासी शह व मात के खेल के बीच पीएम मोदी ऐसे के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार और उद्धव सेना की कमान संभालने वाले उद्धव ठाकरे दोनों के ही साथ व्यक्तिगत संबंध बेहद मधुर हैं। विरोधियों पर आक्रमक प्रहार के लिए जाने जाने वाली ठाकरे सेना इस बात का हमेशा से ख्याल रखती है कि पीएम मोदी पर तीखा हमला से बचा जाए। उनका बार-बार ताना मारना देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे तक ही सीमित है। असंभावित एमवीए (महा विकास अघाड़ी) गठबंधन और सरकार बनाने वाले पवार भी ठाकरे के संकटमोचक हैं। वैसे पवार ने पीएम मोदी से निजी संबंध बनाए हैं।
कोश्यारी का इस्तीफा है शुरुआत
शिवसेना के साथ राकांपा और कांग्रेस ने एमवीए गठबंधन के जरिए महाराष्ट्र में नए तरह से प्रयोग की नींव रखी। लेकिन जून 2022 में शिंदे के विद्रोह के बाद उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी और शिवसेवना ने पार्टी में टूट के तौर पर इसकी कीमत भी चुकाई। भाजपा के साथ गठजोड़ करने के उनके फैसले से गिरा दिया गया था। इसी बीच महाराष्ट्र की राजनीति में एक और चीज देखने को मिली जब ठाकरे के शासन के दौर में उन पर बेहद ही मुखर रहने वाले राज्यपाल बी एस कोशियारी ने अपना इस्तीफा दे दिया। बीएस कोशियारी का “इस्तीफा” एक संकेत है कि केंद्र शिवसेना के साथ संबंधों में “अड़चन” को दूर करने की कोशिश कर रहा है। कांग्रेस में हालिया आंतरिक कलह ने उसके सहयोगियों के भी कान खड़े कर दिए हैं।
बीएमसी चुनाव बनेगा बड़ा फैक्टर
बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) की चुनाव तिथि जल्द ही घोषित होने की संभावना है। इसका प्रदेश की राजनीति में महत्व को 40 हजार करोड़ रुपये के बजट के साथ ही अंदाजा लगा सकते हैं। बीएमसी, भारत में सबसे समृद्ध सहयोग, वर्तमान में शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट द्वारा नियंत्रित है, जिसमें भाजपा दूसरे स्थान पर है। शिवसेना का ठाकरे गुट यह सुनिश्चित करेगा कि वह बीएमसी पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। बीएमसी शिवसेना को धन और शक्ति प्रदान करती है और वह अपने दशकों पुराने नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए सौदा करने से नहीं हिचकेगी।
फडणवीस को मिलेगी फिर से सीएम की कुर्सी?
भाजपा में शिवसेना के ठाकरे गुट की वापसी के लिए प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा फडणवीस की महत्वाकांक्षाओं के साथ भी सीधे तौर पर जुड़ी है। भाजपा नेता जो कभी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे और वर्तमान में शिंदे के डिप्टी के रूप में कार्य कर रहे हैं। फडणवीस की भी शायद ये मंशा होगी कि शिवसेना के शिंदे सेना गुट का महाराष्ट्र भाजपा में विलय हो जाए। इसका अंदेशा बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान से भी लगा सकते हैं जब हाल ही में, महाराष्ट्र में कुछ भाजपा नेताओं ने कहा कि फडणवीस को मुख्यमंत्री होना चाहिए।
एनसीपी के प्रभाव को बेहअसर करना मकसद?
एक वक्त था जब कांग्रेस महाराष्ट्र की सियासत में सीनियर पार्टनर की भूमिका में होती थी। लेकिन अब वो महाविकास अघाड़ी में सबसे छोटे साझेदार के रूप में दिखती है। वहीं एनसीपी लगातार राज्य की सियासत में मजबूत होती जा रही है। आलम ये हो गया है कि उद्धव छाकरे की पार्टी हो या सरकार जब भी कोई संकट आया तो संकटमोचक की भूमिका में शरद पवार ही नजर आए। इससे महाराष्ट्र की सियासत में एनसीपी की उपस्थिति और मजबूत होती नजर आई। बीजेपी की नजर एक तीर से दो शिकार करने की है। उद्धव गुट को साथ मिलाने से जहां महाराष्ट्र में उसकी पकड़ और मजबूत होगी। वहीं एनसीपी के बढ़ते दायरे को भी सीमित करने में सहायता मिलेगी। शिवसेना उद्धव गुट बीजेपी की वैसे भी पुरानी साझेदार है और विचारधारा के मामले में भी दोनों के भी काफी समानता है। लेकिन बीजेपी कोई भी कदम शिंदे गुट को साथ लेकर ही उठाना चाहेगी।

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