एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तरपर यह सर्वविदित है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसमें हजारों जातियां अनेकों धर्मों के लोग सौहार्दपूर्ण वातावरण में साथ साथ रहते हैं। हर द्दर्म का सम्मान हर नागरिक करने के लिए तत्पर रहता है, चाहे वह हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई या किसी भी द्दर्म जाति का हो उनके हर त्यौहार में सभी मिलकर भाग लेकर मानते हैं परंतु हम पिछले कुछ वर्षों से देख रहे हैं कि एक ध्रुवीकरण की राजनीति जोर-शोर से चल रही है और ऐसी अनर्गल बयान बाजियां हो रही है जो तथ्यों से परे है। अभी हाल ही में कुछ दिनों में कुछ बयान मीडिया में सामने आया कि शिक्षा क्षेत्र में आर क्षित वर्ग को समाप्त किया जाएगा या फिर सोमवार 29 जनवरी 2024 को एक केंद्रीय मंत्री का बयान आया है कि सीएए को जल्द ही लागू कर दिया जाएगा, इसे 7 दिनों में के अंदर लागू कर दिया जाएगा, जबकि अभी 31 मार्च 2024 से 9 दिवसीय बजट सत्र शुरू हुआ है जिसमें 1 फरवरी 2024 को अंतरिम बजट पेश किया जाएगा। ऐसा मेरा मानना है कि एक सप्ताह में इसे लागू करना मुमकिन नहीं है।
इसके रिएक्शन में पश्चिम बंगाल के सीएम का बयान आया कि अपने जीवन काल में वह कभी भी इसे लागू नहीं करेगी। जबकि उत्तरा खंड सीएम का बयान आया के 5 फरवरी को यूसीसी विद्दा नसभा के सत्र में पेश किया जाएगा, जिसका ड्राफ्ट एक या दो फरवरी को मिलने की संभावना है। जैसा कि हम जानते हैं कि चूंकि लोकसभा चुनाव 2024 पास आया यूसीसी मुद्दा गर्माया। चूंकि लोकसभा चुनाव के पर्व का मेला सजने लगा है, यूसीसी सीएए, सीएनएन पर अनर्गल बयान बाजी का खेला इस लिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, सीएए एनआरसी, यूसीसी जैसे राजनीतिक द्द्रुवी करण मुद्दों पर रचनात्मक बात चीत में बाधा पहुंचाने वाले बायानों से बचने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम दिनांक 29 जनवरी 2024 को एक केंद्रीय मंत्री द्वारा दिए गए सीएए पर बयान की करें तो सत्ताधारी पार्टी शीघ्र ही अपने दो लंबित विवादित मुद्दों नागरिकता संशोधन अद्दि नियम (सीएए) और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की दिशा में बढ़ रही है। सीएए केंद्र सरकार को लागू करना है, जबकि यूसीसी को अपनाने के लिए कुछ राज्य कानूनी प्रक्रिया शुरू करने वाले हैं। उधर एक केंद्रीय मंत्री ने सोमवार को एक समाचार चैनल को बताया कि देश में एक सप्ताह के अंदर सीएए लागू कर दिया जाएगा। पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना में पड़ने वाली बनगांव सीट से सांसद हैं। भारत बांग्लादेश सीमा के पास इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतुआ समुदाय की बहुत बड़ी आबादी रहती है।पूर्व मेंपार्टी बांग्लादेश में रहने वाले इस समुदाय के लोगों का उत्पीड़न रोकने और भाग कर भारत आ चुके लोगों को भारतीय नागरिकता देने की मांग करती रही है। चुनाव के दौरान पार्टी पड़ोसी देश से अवैध घुसपैठ के मसले को भी जोर-शोर से उठाती है। मतुआ समुदाय से आने वाले पत्तन, पोत परिवहन औरजलमार्ग केंद्रीय राज्य मंत्री ने भी बीते रविवार को इसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। सीएए के माध्यम से ऐसे गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है जो अपने देश में उत्पीड़न से तंग आकर भारत आ गए हैं। जिन्हें इस कानून का लाभ मिलेगा, उनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्मों के ऐसे लोग शामिल हैं, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके हैं। संसद ने सीएए कानून को दिसंबर 2019 में पारित कर दिया था। सबसे पुरानी पीढ़यां और अन्य विपक्षी दलों ने इस कानून का खुलकर विरोध किया था। इस कानून के विरोध में देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। सूत्रों का कहना है कि सीएए के लिए नियम लोकसभा चुनावों की घोषणा से बहुत पहले अधिसूचित किए जा सकते हैं। पिछले महीने कोलकाता में एक बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा था कि सीएए को लागू करने से और नहीं टाला जा सकता। केन्द्रय के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बंगाल सीएम ने आरोप लगाया कि वो पिछले पांच साल से सीएए के मुद्दे पर लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास करती रही है। ऐसा ही वह अब कर रही है। एक पार्टी के प्रवक्ता ने कहा,हमारी पार्टी की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कह दिया है कि राज्य में सीएए लागू नहीं किया जाएगा। रूलिंग पार्टी नेता लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे झूठे वादे कर राजनीतिक तिकड़मबाजी का प्रयास कर रहे हैं। संसदीय प्रक्रिया के मुताबिक, सीएए नियम संसद में कानून पारित होने के छह महीने के भीतर तैयार हो जाने चाहिए। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री इन नियमों को लाने के लिए संसदीय समिति से नियमित रूप से समय विस्तार लेते रहे हैं। सीएए में क्या है? साल 2019 लाए गए सीएए के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में बसे बांग्ला देश, पाकिस्तान और अफगानि स्तान से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाइयों सहित प्रताड़ना झेल चुके गैर- मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है।
साथियों बात अगर हम सीएएन, एनआरसी यूसीसी से संबंधित मुद्दों को पक्ष विपक्ष के दृष्टिकोण से समझने की करें तो, संबंधित चिंताएं सीएए को अक्सर प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से जोड़ा जाता है। आलोचकों को डर है कि संयुक्त होने पर ये मुसलमानों के बहिष्कार का कारण बन सकता है। जिससे ऐसी स्थिति पैदा होगी जहां नागरिकता धर्म के आद्दार पर निर्धारित की जाएगी। राष्ट ªविहीनता की संभावनाएं-ऐसी चिंताएं हैं कि अगर लोग नागरिकता के मानदंडों को पूरा करने में विफल रहते हैं और दूसरे देश की नागरिकता नहीं है तो सीएए और एन आरसी के लागू होने के बाद बड़ी संख्या में लोग राष्ट ªविहीन हो सकते हैं।धार्मिक भेदभाव- नागरिक (संशोधन) कानून में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से विशिष्ट धार्मिक समुदायों (हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी) को अवैध अप्रवासियों के लिए भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान हैस इस पर आलोचकों का तर्क है कि ये प्रावधान भेद भावपूर्ण है, क्योंकि इसमें मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया है। धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन, विरोधियों का तर्क है कि सीएए कुछ द्दार्मिक समूहों का पक्ष लेकर और दूसरों को बाहर करके भार तीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों को कमजोर करता है। विरोध और नागरिक अशांति सीएए को लेकर देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन देखने को मिले, जिस पर कई लोगों ने भारत के सामा जिक ताने-बाने, समावेशिता और विविधता के सिद्धांतों को लेकर संभावित प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की, संवैधानिक मूल्यों को चुनौती इसके अलावा, आलोचकों का ये भी तर्क है कि सीएए भारतीय संविधान में निहित समानता और गैर भेदभाव के मूल्यों को चुनौती देता है. इसके पीछे वजह ये बताई गई कि ये कानून अप्रवासियों के बीच उनके धर्म के आधार पर अंतर करता है।नागरिकता का निर्धारण करने में जटिलता आलोचक सीएए और एन आरसी को लागू करने की प्रक्रिया को जटिल और गलतियों की संभावना के रूप में देख रहे हैं। इन लोगों का तर्क है कि बेगुनाहों को अपनी नागरिकता साबित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, नतीजतन अन्यापूर्ण परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं। राजनीतिक ध्रुवीकरणजब से सीएए और एनआरसी का मामला सामने आया तब से इस मुद्दे पर जम कर राजनीति हो रही है और राजनीतिक रूप से धु्रवीकृत हो गया है। अलग-अलग राजनीतिक दल अलग-अलग रुख अपना रहे हैं। इस विभाज नकारी माहौल में इस धु्रवीकरण ने मामले पर रचना त्मक बातचीत में बाधा डालने का काम किया।हाशिए पर चले जाने का डर कुछ समु दायों, खासतौर पर मुसलमानों के बीच ये डर है कि सीएए और एनआरसी कानून उनके हाशिए पर जाने, बहिष्कार और यहां तक कि निर्वासन का कारण भी बन सकते हैं। सीएए पर विश्व की क्या प्रति क्रिया है? सीएए को अंतरराष् ट्रीय निकायों और मानवाद्दि कार संगठनों से भी आलोचना का शिकार होना पड़ा, जिन्होंने संभावित मानवाधिकार उल्लं घन और धार्मिक भेदभाव के बारे में चिंता व्यक्त की।
साथियों बात अगर हम एक केंद्रीय मंत्री के बयान के बाद दूसरे नेताओं के बयानों की करें तो, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने लोकसभा चुनाव से पहले सीएए का मुद्दा उठाने के लिए मंगलवार को बीजेपी पर जमकर निशाना साधा और कहा कि वह अपने जीवनकाल में राज्य में इसे लागू नहीं होने देंगी। उत्तरी दिनाजपुर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मैं यहां एनआरसी की इजाजत नहीं दूंगी। ममता ने कहा कि बीजेपी वाले बोल रहे हैं कि यूनीफार्म सिविल कोड लागू करेंगे। राजतंत्र कायम रहेगा, लोकतंत्त्र ने कहा कि बांग्लादेश बार्डर पर बीएसएफ कहता है कि हमारा कार्ड लेना होगा। आपका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, यह राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र है। मेरे पास आधार कार्ड है, राशन कार्ड है, हम सब इस देश के नागरिक हैं। यदि आप नागरिक नहीं हैं तो वोट क्यों देते हैं। अगर आप नागरिक नहीं हैं तो आपको राशन कैसे मिलते हैं, आपको कन्याश्री कैसे मिलते हैं, आपको पेंशन कैसे मिलते हैं, इसलिए आप सभी नागरिक याद रखें, हम बंगाल में एन आरसी लागू नहीं होने देंगे। पार्टी के वरिष्ठ नेता ने कहा, सीएए और एनआरसी अब देश की जरूरत है। राशन लेना होगा तो आधार देंगे, लेकिन सीएए और एनआरसी होगा तो विरोध करेंगे। यह नहीं चलेगा। शांतनु ठाकुर ने गलत नहीं बोला है। दरअसल, केंद्रीय मंत्री ने सोमवार को दावा किया कि सीएए एक हफ्ते के भीतर देश में लागू कर दिया जाएगा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि लोकसभा चुनाव 2024 पास आया-सीएए यूसीसी का मुद्दा गरमाया। सजने लगा है लोकसभा चुनावी पर्व का मेला-सीएए यूसीसी पर बयान बाजी का खेला। सीएए एनआरसी यूसीसी जैसे राजनीतिक ध्रुवीकरण मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत में बाधा पहुंचाने वाले बयानों से बचने की जरूरत है।
सजने लगा है लोकसभा चुनावी पर्व का मेला-सीएए यूसीसी पर बयान बाजी का खेला
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