आओ साहित्य में ऐसी धार लगाऐं कि नोबेल पुरस्कार को चलकर भारत आना पड़े

RAJNITIK BULLET
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आओ अपनी लेखन शैली के जरिए वंचितों की आवाज बनें, इंसानी भावनाओं को जाहिर करें, जो अपनी बात उचित फोरम पर करने में समर्थ नहीं है
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर यह सर्व विदित है कि भारत आदि अनादि काल से संस्कृत, साहित्य आध्यात्मिकता का गढ़ रहा है, जो हम हमें हमारे हजारों वर्षों पूर्व के इतिहास में भी देखा जा सकता है। पारंपरिक कलाओं में तो भारत को महारत हासिल है, इसी लिए ही भारतीय, भारतीय मूल, निवासी, अनिवासी अपनी अभूतपूर्व बौद्धिक क्षमता का प्रतीक माने जाते हैं, यही कारण है कि वैश्विक स्तरपर मुख्य पदों पर अधिकतम मूल भारतीय ही दिखते हैं। परंतु मेरा मानना है के यह गहराई से सोचनीय विषय है कि दुनियां में अनेक प्रतिष्ठित पुरस् कारों से हम वंचित क्यों रहे हैं,जोअनेक क्षेत्रों में दिए जाते हैं, जिनमें से एक नोबेल पुर स्कार भी है जिसमें विजेताओं की घोषणा करने का क्रम 2 से 9 अक्टूबर 2023 तक शुरू है, जिसमें मेडिसिन भौतिक रसायन और दिनांक 5 अक्टूबर 2023 को देर शाम साहित्य, जो हम सब साहित्यकारों का विषय है, के नोबेल पुरस्कार की घोषणा की गई जिसमें नार्वे के 64 वर्षीय लेखक जॉन फैंस को के नाम की घोषणा की गई है, क्योंकि कमेटी ने माना है कि उन्होंने नाटकों और कहानियों से उन लोगों कोआवाज दी है जो अपनी बात कहने में सक्षम नहीं थे, उन्होंने ड्रामा के जरिए उन इंसानों की भावनाओं को जाहिर किया है जो आमतौर पर जाहिर नहीं कर सकते, जिन्हें समाज में तब्बू समझा जाता है। उन्होंने पहले ही उपन्यास रेड एंड स्लेक में आत्महत्या जैसे गहरे संवेदन शील मुद्दे पर लिखा। उनकी मशहूर किताबों में पतझड़ का सपना भी शामिल है। वे नार्वे के चैथे साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है हालांकि इन्हें वर्ष 1928 से लंबी गैप के बाद 2023 में यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है। बता दें साहित्य में अब तक 120 लोगों को नोबेल पुरस्कार दिया गया है जिसमें महिलाएं केवल 17 हैं, जिनके लिए नोबेल कमेटी की काफी आलो चना भी हुई है। बता दें नोबेल पुरस्कार 6 क्षेत्र मेडिसिन भौतिक रसायन साहित्य शांति और आर्थिक क्षेत्र में दिए जाते हैं। प्रत्येक क्षेत्र के विजेता को 8.33 करोड रुपए, नगद प्रमाण पत्र और गोल्ड मेडल दिया जाता है। यह पुरस्कार वैश्विक स्तर पर एक बहुत ही उच्च स्तर का प्रति ष्ठित पुरस्कार है जो अभी तक भारत को केवल 10 क्षेत्रों में ही पुरस्कार मिले हैं।सबसे ज्यादा नोबेल पुरस्कार जीतने वाले, फरवरी 2021 तक आर्थिक विज्ञान में पुरस्कार सहित 603 बार पुरस्कार दिए जा चुके हैं। कुल 962 व्यक्ति यों और 28 संगठनों को यह पुरस्कार मिला है. व्यक्तिगत रूप से सबसे ज्यादा नोबेल पुरस्कार जीतने वालों में क्यूरी फैमिली का नाम आता है। वहीं देश की बात करें तो संयुक्त राज्य अमेरिका 368 के साथ पहले नंबर पर, यूके 132 के साथ दूसरे नंबर पर और जर्मनी 107 के साथ तीससरे नंबर पर है। भारत साहित्य क्षेत्र में पूर्वजों से ही महारत हासिल है, फिर भी हम इस क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार हासिल नहीं कर सके हैं अभी 2023 का साहित्य नोबेल पुरस्कार भी नॉर्वे को गया है। हालांकि कई वर्षों से भार तीय मूल के ब्रिटिश निवासी प्रसिद्ध लेखक सलमान रश्मि को मिलने की संभावना व्यक्ति की जा रहीथी इसलिए, आओ साहित्य में ऐसी धार लगाऐं कि नोबेल पुरस्कार को चलकर भारत आना पड़े। इस लिए हम मीडिया में उपलब्द्द जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, आओ अपनीं लेखन शैली कहानियों के जरिए उन इंसानी भावनाओं को जाहिर करें जो अपनी बात को उचित फोरम पर करने में समर्थ नहीं है। साथियों बात अगर हम साहित्य का नोबेल पुरस्कार विजेता नार्वे के जान फासे को जानने की करें तो, 29 सितबंर, 1959 को जन्में फासे को नार्वे के सबसे प्रसिद्ध नाटककारों में गिना जाता है। उन्होंने लगभग 40 नाटकों के साथ कई उपन्यास, लघु कथाएं, बच्चों की किताबें, कविता और निबंध भी लिखे हैं। वे नार्वेजियन भाषा के लिखित मानक नाइनोर्स्क लिपि में लिखते हैं। दुनिया भर की 40 से अधिक भाषाओं में उनकी कृतियों का अनुवाद हुआ है। उनका पहला उपन्यास राउड्ट, स्वार्ट साल 1983 में प्रकाशित हुआ था। फॉसे बोले- पुरस्कार पाकर अभि भूत हूं। कहा, मैंने पिछले एक दशक से खुद को साव धानी पूर्वक मानसिक रूप से तैयार किया है कि ऐसा हो सकता है। जब फोन आया तो बहुत खुशी हुई। पुरस्कार पाकर मैं अभिभूत और कुछ हद तक भयभीत’ भी हूं। नार्वे के पीएम ने कहा, एक अद्वितीय लेखक की एक बड़ी मान्यता, जो दुनियाभर के लोगों पर प्रभाव डालती है। पूरा नॉर्वे बधाई देता है और आज गर्व महसूस कर रहा है। नोबेल पुरस्कार के आद्दि कारिक पेज के मुताबिक नोबेल पुरस्कार विजेता जान फासे को एक नाटककार के रूपमें सफलता 1999 मेंउनके नाटक नोकोन केजेम टिल आ कोमे के बनने के साथ मिली। वह आज दुनिया में सबसे अधिक प्रदर्शन किए जाने वाले नाटककारों में से एक हैं। उनके कलेक्शन में नाटक, उपन्यास कविता, निबंद्द, बच्चों की किताबें और अनुवाद शामिल हैं। जान फासे का जन्म नार्वे के हौगेसुंड में हुआ था। जान फासे की टार्जेई वेसास के साथ समानता जान फासे और नार्वे जियन नाइनोर्स्क साहित्य के भीष्म पितामह कहे जाने वाले टार्जेई वेसास के साथ बहुत कुछ समानता है। फॉसे आधुनिकतावादी कलात्मक तकनीकों के साथ भाषाई और भौगोलिक दोनों तरह के मजबूत स्थानीय संबंधों को जोड़ते हैं।उन्होंने अपने वॉल्वरवांड शाफ्टन में सैमुअल बेकेट, थामस बर्नहार्ड और जार्ज ट्राकल जैसे नाम शामिल किए हैं। वहीं, वे अपने पूर्ववर्तियों के नकारात्मक दृष्टि कोण को साझा करते हैं, उनकी विशेष ज्ञानवादी दृष्टि को दुनिया की शून्यवादी अवमानना के परिणाम के रूप में नहीं कहा जा सकता है।
साथियों बात अगर हम नोबेल पुरस्कार 2023 विजेता की लेखनी की करें तो, उनकी लेखनी में भावनाओं का जिक्र उन्होंने उपन्यासों को एक ऐसी शैली में लिखा हैजिसे फासे मिनिमलिज्म’ के नाम से जाना जाता है। इसे उनके दूसरे उपन्यास स्टेंग्ड गिटार (1985) में देखा जा सकता है। वे अपनी लेखनी में उन कष्टप्रद भावनाओं को शब्दों में जिक्र करते हैं, जिसे सामान्य तौर पर लिखना मुश्किल होता है। स्टेंग्ड गिटार में उन्होंने लिखा कि एक नौजवान मां कूड़ा कचरा नीचे फेंकने के लिए अपने फ्लैट से बाहर निकलती है, लेकिन खुद को बाहर बंद कर लेती है, जबकि उसका बच्चा अभी भी अंदर है। उसे जाकर मदद मांगनी है, लेकिन वह ऐसा करने में असमर्थ है क्योंकि वह अपने बच्चे को छोड़ नहीं सकती। ऐसा कहा जाता है कि फॉसे उन्हें आवाज देते हैं, जिन्हें व्यक्त नहीं किया जा सकता। उनके नाटकों में काफी इनोवेशन होता है, जिसे काफी पसंद भी किया जाता है। यही वजह है कि इस अवॉर्ड के लिए इस साल उन्हें चुना गया है।
साथियों बात अगर हम नोबेल पुरस्कार की करें तो प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कारों में फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मेडिकल, लिटरेचर और शांति आर्थिक विज्ञान शामिल हैं। बता दें डायनामाइट इनोवेशन के लिए प्रसिद्ध स्वीडिशआविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल ने 1896 में अपने निधन के बाद इन पुरस् कारों के माध्यम से अपनी विरासत छोड़ दी। 1968 में, स्वीडन के केंद्रीय बैंक द्वारा आर्थिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत की गई थी। साहित्य में नोबेल पुरस् कार 2022 में एनी एर्नाक्स को मिला था।
साथियों बात अगर हम अब तक भारतीयों को मिले नोबेल पुरस्कारों की करें तो, अलगअलग वर्ग में कुल 10 नोबेल पुरस्कार जीत चुके हैं। लिस्ट में सबसे पहले रविंद्र नाथ टौगोर को साहित्य के लिए यह पुरस्कार मिला था। विज्ञान के लिए सर चंद्रशेखर वेंकट रमन को भी यह पुरस् कार मिल चुका है।उसके बाद इलेक्ट्रॉन पर काम करने वाले हरगोबिंद खुराना को, मानव सेवा के लिए मदर टेरेसा, फिजिक्स के लिए सुब्रमण्यन चंद्रशेखर, अर्थशास्त्र के लिए अमर्त्य सेन, सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल, रसायन विज्ञान के लिएवेंकटरमण रामकृष्णन, मजदूरों के बच्चों को शिक्षा के लिए कैलाश सत्यार्थी को और गरीबी हटाने के लिए अभिजीत विनायक बनर्जी को यह पुरस्कार मिल चुका है।
साथियों बात अगर हम मूल भारतीय प्रसिद्ध साहित्य कार सलमान राशिद की करें तो, साहित्य और दुनिया से राब्ता रखने वाला शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो सलमान रुश्दी को न जानता हो। वे अपनी कलम से शानदार कहानियां रचते हैं लेकिन कई बार उनकी बेबाकी विवाद का विषय बन जाती है। पश्चिमी न्यूयॉर्क के एक कार्यक्रम में स्टेज पर ही उनपर चाकू से हमला किया गया जिससे एक बार फिर वह चर्चाओं में हैं। सलमान रुश्दी भारतीय मूल के हैं। देश की आजादी से करीब दो महीने पहले 19 जून,1947 को उनका जन्म मुंबई में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से कश्मीर का था। उनके पिता नई दिल्ली में एक सफल कारोबारी बन गए थे इसलिए परिवार इस स्थिति में आ पाया कि वह अपने 14 साल के बेटे को पढ़ाई के लिए ब्रिटिश पब्लिश स्कूल भेज सके।
ब्रिटिश नागरिकता और किंग्स कालेज में पढ़ाई इसके बाद 1964 में रुश्दी ने ब्रिटिश नागरिकता ले ली और अपनी मातृभाषा पश्तो के बदले अंग्रेजी में लिखा शुरू किया। रुश्दी ने कैंब्रिज के किंग्स कालेज में पढ़ाई की और थिएटर का कोर्स किया। मिड नाइट चिल्ड्रेन’ से मिली अंतरराष्ट्रीय ख्याति उन्होंने अपना पहला उपन्यास ‘ग्रिमस’ प्रकाशित किया लेकिन दूसरे उपन्यास ‘मिडनाइट चिल्ड्रेन’ से उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। यह उपन्यास भारत की आजादी और विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखा गया था। बाद में इस उपन्यास के लिए उन्हें बुकर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। यह उपन्यास अमेरिका और ब्रिटेन में बेस्ट सेलर साबित हुई। सलमान रुश्दी ने एक दर्जन से ज्यादा उप न्यास, ढेर सारे निबंध और आत्मकथा लिखी हैं।सलमान रुश्दी ने ‘गोल्डन हाउस’ नाम का उपन्यास भी लिखा है जिसमें बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने से लेकर ट्रंप के राष्ट्रपति बनने तक एक युवा अमेरिकी फिल्मकार की कहानी है। इसके प्रकाशन से पहले रुश्दी ने कहा था कि अस्मिता, सच, आतंक और झूठ पर यह उनका अंतिम उपन्यास होगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि साहित्य क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार 2023 विजेता साहित्यकार का नाम घोषित। आओ साहित्य में ऐसी धार लगाऐं कि नोबेल पुरस्कार को चलकर भारत आना पड़े! आओ अपनी लेखन शैली के जरिए वंचितों की आवाज बनें। अपनी लेखन शैली, कहानियों के जरिए उन इंसानी भावनाओं को जाहिर करें, जो अपनी बात उचित फोरम पर करने में समर्थ नहीं है।

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