छठ व्रत समाजवाद को प्रोत्साहित करता है

RAJNITIK BULLET
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(डा. नन्दकिशोर साह) प्रकृति ने विभिन्न कार्यों के संपादन के लिए विभिन्न अलौकिक शक्तियों का निर्माण किया है। छठ व्रत सीधे-सीधे प्रकृति की उपासना का पर्व है। मनुष्य तो व्रत करता ही है, परंतु इस पर्व को उत्सव बनाने के लिए मनुष्य ने प्रकृति और पर्यावरण का ही सहारा लिया है। हम सब जानते हैं कि सूरज से ही जीवन है। प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा भी सूरज ही करता है। इसलिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी एवं सप्तमी 4 दिनों तक लगातार चलने वाला छठ पर्व भारत ही नहीं, अब तो इसके बाहर भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है।
सभी लोग घाट पर सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनसे पुनः बहुत कुछ मांगते हैं क्योंकि पूरा जीवन देने वाला तो वही है। इसमें माताएं अपने संतान के स्वास्थ्य, सुरक्षा और दीर्घ जीवन की कामना छठी माई से करती हैं। सूरज से बेटा के साथ-साथ बेटी भी व्रती महिलाएं मांगती हैं। वह एक मात्र देवता है जिनकी डूबते समय भी पूजा होती है।
छठ पर्व सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व बिहार वासियों का सबसे बड़ा पर्व है। ये उनकी संस्कृति है। स्वच्छता का प्रतीक है। इन दिनों लोग अपने घर के प्रत्येक सामान की साफ- सफाई करते हैं। साथ ही सार्वजनिक स्थलों को भी साफ करते हैं। बिहार और आसपास के राज्यों में सूर्योपासना का पर्व ‘छठ’ धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। अंततः सूर्य के पूर्ण प्रकाश का दर्शन होता है। इस ईश्वरीय प्रकाश को पाकर साधक कृत-कृत्य हो जाता है। बड़ा ही प्यारी और सुखद अनुभूति होती है।
छठ पर्व में भारतीय जीवन दर्शन भी समाहित है। यह समूचे विश्व को बताता है कि उगते हुए अर्थात उदीयमान सूर्य को तो संपूर्ण जगत प्रणाम करता है लेकिन हम तो उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ ससम्मान डूबते हुये अर्थात अस्ता- चलगामी सूर्य की भी उपासना और पूजा करते है। सूरज का समय अटल है। यह हमारे भारतीय समाज का आशावादी विश्वास है। छठ समाज को एक करने वाला व्रत है। सूरज सबसे जुड़े हुए हैं इसलिए वह सबको जोड़ देते हैं। जाति-वर्ग, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष सब मिलकर एक घाट पर एक साथ सूरज को प्रणाम करते हैं। यह प्रकृति पर्व तो है हीं, यह योग भी है। पानी में खड़े होना, उपवास, घाट तक दंड देते जाना आदि योग को ही निरूपित करता है।
बिना सामूहिक हुए पर्वों का आनंद नहीं लिया जा सकता है। वैसे तो यह मुख्यतया बिहार का पर्व है लेकिन इसकी तैयारी में व्यापक स्तर पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पूरा देश कई माह पहले से लगा रहता है। डोम से सूप, कुंभकार से मूर्ति एवं मिट्टी बर्तन, चर्मकार से वाद्य यंत्र, कामगारों से छंइटी, स्वर्णकारों से बर्तन, माली से फूल, तमोली से पान, किसानों से ईंख, केला आदि कृषि उत्पाद, बनिए एवं बाजार से वस्त्र एवं अन्य उपयोगी वस्तुएं, ब्राह्मण से पूजन कृत्यादि। यह बात अलग है कि वर्तमान समय में कोई व्यवसाय अब जाति आधारित नहीं रहा। कहने का आशय कुल इतना है कि इस त्योहार में परस्पर निर्भरता की भावना मजबूत होती है एवं इसकी आवश्यकता का एहसास होता है। साथ हीं पूंजी का वितरण भी होता है।
छठ व्रत मेरी दृष्टि मे एक मात्र पर्व है, जो न केवल समाजवाद को प्रोत्साहित करता है बल्कि समाज को आर्थिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक दृदृष्टिकोण से काफी हद तक क्षणिक ही सही लेकिन वह परिपक्वता कायम करता है, जिसकी बुनियाद पर हम एक आदर्श समाज की स्थापना कर सकते हैं।

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