’प्रधान व पंचायत सचिव के मजबूत गठ-जोड़ के चलते बढ रहा भ्रष्टाचार।
यह योजना भ्रष्टाचार रूपी राक्षस का आहार बन कर रह गयी है. आज पंचायत प्रतिनिधियों की कमाई का मुख्य जरीया मनरेगा ही है।
(धर्मेन्द्र सिंह) ’सुरसा (हरदोई)’- हम बात कर रहे है जनपद हरदोई के सुरसा ब्लॉक अन्तर्गत ग्राम पंचायत उमरापुर की जहाँ पर प्रधान व पंचायत सचिव ने मिलकर मनरेगा मे जमकर भ्रष्टाचार किया है। फर्जी मस्टररोल बनाकर लाखों रुपये का गमन किया गया है।
’ऐसे हुआ भ्रष्टाचार’
1. एक पैर से विकलांग व्यक्ति का मस्टररोल पास किया गया जोकि मिट्टी खोद ही नही सकता।
2. जो महिलाएं कभी घर से निकलती ही नहीं उनका भी मस्टररोल पास किया गया
3. ग्राम पंचायत के मजदूर न रखकर बाहरी मजदूरों से काम कराया जा रहा।
4. सपा जिलाउपाध्यक्ष का बना है लेबर बंतक जोकि कभी काम करने नही जाते फर्जी तरीके से पास होता हैं मस्टररोल।
मनरेगा में जॉब कार्ड धारियों के खाते में भुगतान की व्यवस्था की गयी, पर भ्रष्टाचारी तो तू डाल-डाल मैं पात-पात के तर्ज पर, अपने चहेतों का (जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न होते हैं और मजदूरी नहीं करते) जॉब कार्ड खोलवाते हैं, जाली मस्टर रौल तैयार करते हैं और उनके खाते के माध्यम से भुगतान प्राप्त करते हैं. कार्यस्थल पर परियोजना के अनुमानित लागत के साथ कार्य संख्या इत्यादि का विवरण देते हुए नियमानुसार नागरिक सूचना पट (च्नइसपब प्दवितउंजपवद ठवंतक) गाड़नी होती है पर इसका बिल्कुल ही पालन नहीं किया जाता. काम शुरु करने से पहले च्नइसपब प्दवितउंजपवद ठवंतक (मनरेगा के नियमानुसार) गाड़ना जरुरी है, जिससे स्थानीय नागरिक हो रहे कार्य के बारे में जान सकें तथा अगर कोई खामी बरती जा रही हो तो वे समझ सकें. एक तरह से ठवंतक गाड़ देने से सोशल ऑडिट स्वयंमेव होते रहता है. लोग बोर्ड देखते हैं फिर कार्य की गुणवत्ता. मनरेगा एक ऐसी योजना है जिसमें पब्लिक को सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) का अधिकार है, पर जानकारी एवं जागरूकता के अभाव के कारण लोग अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पाते।
यह नरेगा में भ्रष्टाचार को स्थापित तरीका है एवं संस्थागत रूप ले चुका है. भ्रष्टाचार की इस प्रक्रिया में गांव में चलने वाली योजना में जो मजदूर काम कर रहे होते हैं उनके नाम मास्टर रोल में नहीं होते हैं, जिनके नाम मास्टर रोल में होते हैं वे घर पर बैठे रहते हैं. इस प्रक्रिया में योजना राशि का गबन श्रम का शोषण कर होता है।
श्रम के शोषण पर आधारित भ्रष्टाचार की इस प्रक्रिया में वास्तविक रूप से काम करने वाले मजदूर (जिनका मास्टर रोल में नाम नहीं है) को फर्जी मजदूर (जिनका मास्टर रोल में नाम है लेकिन घर बैठे हैं) के खाते में आई राशि का कुछ हिस्सा नकद दे दिया जाता है. मास्टर रोल पर दिखने वाले फर्जी मजदूर ठेकेदार-बिचैलिया-योजना लाभुक के नाते-रिश्तेदारी में हो सकते हैं या ऐसे ग्रामीण भी हो सकते हैं जिन्हें काम की बहुत ज्यादा जरूरत नहीं है. इस प्रक्रिया में वास्तविक मजदूरों को 200 रुपया प्रतिदिन के हिसाब से हफ्ते में 1200 रुपया दिये जाते हैं. लेकिन रोज उनसे दोगुना काम लिया जाता है।
यानि कि प्रावधान के अनुसार, अगर 54 बजि मिट्टी काटनी है तो उनसे लगभग दोगनी मिट्टी 100 बजि काटने को कहा जाता है।
यानि कि 194 रुपये की मजदूरी के हिसाब से एक मजदूर रोज 388 रुपये का काम करता है लेकिन उसे सिर्फ 200 रुपये प्रति दिन के हिसाब से भुगतान होता है. यानि कि एक मानव दिवस के 94 रुपये भ्रष्टाचार की भेँट चढ़ जाते हैं।