कृषि विभाग द्वारा दो दिवसीय किसान पाठशाला का किया गया आयोजन

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(प्रेम वर्मा) उन्नाव 14 सितम्बर। उप कृषि निदेशक मुकुल तिवारी ने बताया कि आज जनपद के समस्त विकास खण्डों में सरकार की मंशा के अनुरूप कृषि विभाग के 117 प्रसार कार्मिकों द्वारा दो दिवसीय किसान पाठ शालाओं का आयोजन किया गया। किसान पाठ शाला में 3882 महिला और 5361 पुरुष कुल 9243 किसानों ने प्रतिभाग किया। पाठशाला के आयोजन में कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए किसानों कोे हैंण्ड सेनिटाइज, साबुन आदि का प्रयोग कराया गया। पाठशाला में किसान बहनों एवं भाइयों को बताया गया कि सभी प्रकार के कृषि कार्यों को करने से पहले तथा बाद में हाथों को साबुन से नियमित रूप से धोयें अथवा सेनिटाइजर का प्रयोग करें। कार्य करते समय आंख मुँह, नाक को हाथ से न छुएं ताकि संक्रमण से बचे रहें। कृषि कार्यो में लगे श्रमिकों के बीच 04 से 05 फीट की दूरी रखते हुए सोशल डिस्टंे सिंग बनाए रखें।
इन कार्यों में लगे हुए श्रमिक अपने चेहरे पर मास्क अथवा अंगोछा/दुपट्टा अच्छी तरह ढकें। फसलों की कटाई /मड़ाई एवं अन्य कृषि कार्यों हेतु कृषि यंत्रों को प्राथमिकता दें। उपज का संग्रह 3-4 फीट में फैले छोटे-छोटे ढेर में किया जाये, तथा अच्छी तरह सुखाकर ही भण्डारण करें। भण्डारण के लिए बोरों को 05 प्रतिशत नीम के तेल में भिगोकर उपचारित करने के बाद अच्छी तरह सुखाकर उपयोग में लाएं। फसलोत् पादन के लिए बीज, उर्वरक, कृषि रक्षा रसायन जैसे कृषि निवेशाों में से उर्वरक एक महंगा और महत्वपूर्ण निवेश है।
उन्होंने बताया कि किसान भाई उर्वरक प्रयोग में इन बातों पर विशेष ध्यान दें। यूरिया से पौधों को केवल नाइट्रोजन प्राप्त होता है। नाइट्रोजन पौधे को हरा रखने और उसकी वानस्पतिक बढ़वार के लिए आवश्यक तत्व है। इसकी सहायता से पौधे प्रकाश में अपना भोजन बनाते हैं। इसलिय यूरिया का प्रयोग बुवाई के समय तथा खड़ी फसल में वानस्पतिक वृद्धि के लिए 2 से 3 बार किया जाता है।
किसान भाई बहन जो यूरिया खेत में प्रयोग करते हंै उसका लगभग 30-40 प्रति शत ही पौधों द्वारा उपभोग किया जाता है शेष लगभग 60-70 प्रतिशत पानी में घुलकर मिट्टी के नीचे सतहों में या खेत के बाहर अथवा अधिक तापमान की दशा में वाष्प के रूप में उड़कर हवा में चला जाता है।
डी0ए0पी0 खाद में नाइ ट्रोजन 18 प्रतिशत और फास्फोरस 46 प्रतिशत होता है। डी0ए0पी0 या एस0 एस0 पी0 का उपयोग फास्फोरस आपूर्ति के लिए फसल की बुवाई के समय किया जाता है, क्योंकि प्रारम्भिक अवस्था में अंकुरण और पौधों की जड़ बनने के लिए और फसल की प्रारम्भिक अवस्था में अन्य पोषक तत्वों को मिट्टी से सोखने के लिए फास्फोरस जरूरी होता है। फास्फोरस तत्व मिट्टी में नाइट्रोजन की भांति चलायमान नहीं होता, जहां डाला जाता है वहीं पड़ा रहता है। यदि पौधों की जड़ वहॉ पहुँच गयी तो पौधे द्वारा ले लिया जाता है अन्यथा मिट्टी के कणों से चिपका पड़ा रहता है। इसलिए यह आवश्यक है कि फास्फोरस तत्व वाले उर्वरकों का उपयोग बुवाई के समय बीज के नीचे या बिल्कुल पास में किया जाय ताकि जमाव होते ही पौधे उससे पोषण पा सकें। अब खेत में मशीनीकरण के कारण पशुओं का प्रयोग कम हो गया है इसलिए गोबर की खाद की उपलब्धता कम है। ऐसी दशा में किसान भाइयों को जीवामृत, घन जीवामृत जैसे जैविक खेती में उपयोग किये जाने वाले फार्मुलेशन तैयार कर उपयोग करना चाहिये। मिट्टी में केवल उर्वरक डाल देने से ही नहीं पौधों को प्राप्त हो जाते हैं। इन तत्वों को घुलनशील एवं पौधों द्वारा सोखने योग्य बनाने में मिट्टी का तापमान, नमी और मिट्टी में पाये जाने वाले असंख्य सूक्ष्म जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, हरी खाद आदि के प्रयोग से लाभकारी सूक्ष्म जीवों की संख्या मे वृद्धि होती है जिससे मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक दशा सुधरती है। जनपद में मुख्य रूप से द्दान एवं गेहूँ की खेती की जाती है, विगत कुछ वर्षों से कृषि कार्य में कृषि यन्त्रों का प्रयोग अधिक होने एवं कृषि मजदूरों की कमी तथा विशेष कर धान एवं गेहँू का फसल अवशेष जलाया जा रहा है, जिसके कारण वातावरण प्रदूषित होने के साथ-साथ मृदा में पोषक तत्वों की बहुत अधिक क्षति होती है साथ ही मृदा के भौतिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेष जलाने से कार्बन मोनो आक्साइड, कार्बन डाई आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड निकलता है। इन गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे आँखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण जीर्ण हृदय एवं फेफड़े की बीमारी के रूप में मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। फसल अवशेष जलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कार्बन की क्षति होती है। पोषक तत्वों के नष्ट होने के अतिरिक्त मिट्टी के कुछ गुण जैसे भूमि तापमान, पीएच नमी, उपलब्ध फास्फोरस एवं जैविक पदार्थ भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। धान की कटाई एवं गेहूँ की बुवाई के मध्य बहुत कम समय लगभग 20 से 30 दिन ही उपलब्ध होता है। कृषकों को गेहूँ की बुआई की जल्दी होती है तथा खेत की तैयारी में कम समय लगे एवं ‘शीघ्र ही गेहूँ की बुआई हो जाये इस उद्देश्य से कृषकों द्वारा अवशेष जलाने के दुष्परिणामों से भिज्ञ होते हुये भी, फसल अवशेष जला देते हैं, जिसकी रोकथाम करना पर्यावरण के लिये, अपरिहार्य है।
उप कृषि निदेशक ने अपील करते हुये कहा किसान भाइयों एवं बहने अपने फसल अवशेष को जलाने के बजाय समीपस्थ गो-शाला में पहुँचाकर दो ट्राली पराली के बदले एक ट्राली गोबर की खाद ले जाए और अपने खेत की मृदा को स्वस्थ्य और उपजाऊ बनाएं।

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