कर्तव्यों को पहली प्राथमिकता देने जनभागीदारी का होना तात्कालिक जरूरी

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वैश्विक स्तरपर दुनियां भर की नजरें भारत के अद्भुत तेजी से करते विकास में रोज होने वाले नए-नए आयामों पर लगी हुई है, जिसमें वर्तमान ही नहीं अगले 25 वर्षों का विजन 2047 पर काम करना शुरू हो गया है। आजादी के हमने 75 वर्ष पूर्ण किए हैं अब 1947-2047 के 100 वर्ष की ओर बढ़ रहे हैं जिसे अमृतकाल का नाम दिया गया था जो अब कर्तव्यकाल बन गया है जिसकी जानकारी माननीय पीएम महोदय ने 4 जुलाई 2023 को एक कार्य क्रम के संबोधन के दौरान दी।
इसलिए आज हम पीआ ईबी में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, कर्तव्यों को पहली प्राथमिकता देनें जनभागीदारी का होना तात्कालिक जरूरी है।
साथियों बात अगर हम अगले 25 वर्षों के अपने कर्तव्य काल की करें तो अब अगले 25 वर्षों की स्वर्ण महोत्सव जिसमें वर्ष 2047 में आजादी को 100 वर्ष पूर्ण होंगे, उसमें संकल्प और सामर्थ्य को बल देना होगा और इन 25 वर्षों की रूपरेखा का जिक्र किया गया है जो काबिले तारीफ है। हम नागरिकों को अब चाहिए कि इसके एक कदम आगे बढ़कर हमें अपने संवि धान में प्राप्त मौलिक अधि कारों के साथ-साथ सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफा रिशों पर केंद्र सरकार ने 42 वें संविद्दा न संशोधन अधि नियम 1976 को लागू किया था जिसमें संविधान के भाग 4 के अंतर्गत अनुच्छेद 51 डालकर मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया था, उनका पूर्ण रूप से पालन करें। साथियों उल्लेख नीय है कि राष्ट्रीय आपात काल (1975-1977) के दौरान ही मूल कर्तव्यों की आवश्यकता पर समिति ने रिपोर्ट दी थी जिसमें 10 कर्तव्य फिर 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 में 11 वें कर्तव्य को जोड़ा गया था इसलिए हमें भारत को अब फिर सोने की चिड़िया बनाने के लिए अपने मौलिक अधिकारों को जिस मजबूती से संवैधानिक तरीके से प्राप्त करने की तर्ज पर अब हमें अपने मौलिक कर्तव्यों को भी निभाने का प्रण, संकल्प करना होगा क्योंकि दशकों से हम देखतें आ रहे हैं कि आपने मौलिक अधिकारों के लिए हम हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा व्यक्तिगत या पी आईएल के हसते खट खटा ते हैं, अब उसी अंदाज में कर्तव्यों का पालन करें।
साथियों परंतु हम कर्तव्यों के प्रति उतने सजग नहीं रहतें हालांकि यहां कर्तव्यों को गैर न्यायोचित रूप से जोड़ा गया है और अपनी गैर -न्यायोचित छवि के कारण मौलिक कर्तव्यों को ना निभाने पर कोई अर्थदंड या सजा का प्रावधान नहीं है।
परंतु अब समय आ गया है कि हम चार कदम आगे बढ़कर स्वतः संज्ञान लेकर मौलिक कर्तव्यों की अस्पष्टता के कारण जो आलोचना हो रही है उसको ना केवल हम संकल्प लेकर अपनाएं बल्कि इसके संवैद्दानिक ढांचे में शामिल करने की ओर कदम बढ़ाने होंगे याने हम अब अप ने मौलिक कर्तव्यों को अनि वार्यता से निभाने का संकल्प करना होगा।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्यों की करें तो, भारत में 11 मौलिक कर्तव्यों की सूचीसंविधान का अनुच्छेद प्रावधान इस तरह है। 51। (1) संविधान का पालन कर ना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। (2) उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना, जिन्होंने हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रेरित किया। (3) भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बनाए रख ना और उसकी रक्षा करना। (4) देश की रक्षा करना और जरूरत पड़ने या कहे जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करना। (5) भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे सद्भाव और समान भाईचारे की भाव ना को बढ़ावा देनाय महिलाओं के सम्मान के लिए अपमान जनक प्रथाओं का त्याग करना। (6)हमारी मिली जुली संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देना और उसका संरक्षण करना। (7) वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण को महत्व देना, उसकी रक्षा करना और उसमें सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना। (8) वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना का विकास करना। (9)सार्वजनि क संपत्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना। (10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रया स करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक पहुंचे। (11) माता -पिता या अभिभावक का अपने बच्चे को शिक्षा के अव सर प्रदान करने का कर्तव्य, छह से चैदह वर्ष की आयु के बीच (86वें संशोधन अधि नियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया) के मामलों ।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्यों की विशेष ताओं की करें तो (1) मौलिक अधिकार सभी लोगों के लि ए होता है, चाहे नागरिक हो या विदेशी परंतु मौलिक कर्तव्य सिर्फ नागरिकों के लिए होता है। (2) यह गैर न्यायोचित है अर्थात संविधान में इसके लिए न्यायालय द्वारा क्रियान्वयन की व्यवस्था नहीं की गई है। (3) यह भारतीय परंपराओं, धर्म, कला एवं पद्ध तियों से संबंधित है। भारत जैसे देश में धार्मिक और आ ध्यात्मिक संस्थाएं, हमेशा से समाज उत्थान के केंद्र में रही हैं।
आज देश अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे कर चुका है, और अगले 25 वर्षों का संकल्प लेकर हमने अमृत काल में प्रवेश किया है। आज जब हम विरासत और विकास को एक गति दे रहे हैं। समाज की हर वर्ग की भागीदारी से परिवर्तन आ रहा है। इस लिए, ग्लोबल काउंसिल जैसे आयोजन भारत के बारे में जानने का, और बाकी विश्व को इससे जोड़ने का एक प्रभावी जरिया है।
साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा 4 जुलाई 2023 को एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो उन्होंने कहा आज भारत भी कर्तव्यों को पहली प्राथमिकता बना कर आगे बढ़ रहा है। आजादी के 100 वर्ष के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते हुए, हमने हमारे अमृतकाल को कर्तव्यकाल का नाम दिया है। हमारे इन कर्तव्यों में आध्यात्मिक मूल्यों का मार्गदर्शन भी है, और भ विष्य के संकल्प भी हैं। इसमें विकास भी है, और विरासत भी है। आज एक ओर देश में आध्यात्मिक केन्द्रों का पुनरो द्धार हो रहा है तो साथ ही भारत इकॉनमी और टेक्नो लजी में भी लीड कर रहा है। आज भारत दुनिया की टाप-5 इकाॅनमी में शामि ल हो चुका है। आज भारत में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है। डिजिटल टेक्नालजी और 5 जी जैसे क्षेत्रों में हम बड़े-बड़े देशों का मुकाबला कर रहे हैं। दुनिया में आज जितने भी रियल टाइम आनलाइन व्यवहार हो रहे हैं, उसके 40 प्रतिशत अकेले भारत में हो रहे हैं।
साथियों बात अगर हम मौलिक कर्तव्यों की करें तो भारत में 11 मौलिक कर्तव्यों की सूची संविधान का अनुच्छेद प्रावधान इस तरह है। 51। (1) संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों और संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना। (2) उन महान आदर्शों को संजोना और उनका पालन करना, जिन्होंने हमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम प्रेरित किया। (3) भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता को बनाए रख ना और उसकी रक्षा करना। (4) देश की रक्षा करना और जरूरत पड़ने या कहे जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान कर ना। (5) भारत के सभी लोगों के बीच धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या अनुभागीय विविधताओं से परे सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना य महिलाओं के सम्मान के लिए अपमान जनक प्रथाओं का त्याग करना। (6) हमारी मिली- जुली संस्कृति की समृद्ध विरा सत को महत्व देना और उस का संरक्षण करना। (7) वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण को महत्व देना, उसकी रक्षा करना और उसमें सुधार कर ना और जीवित प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना। (8) वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच और सुधार की भावना का विकास करना। (9) सार्वजनिक संप त्ति की रक्षा करना और हिंसा से दूर रहना। (10) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में प्रयास करना ताकि राष्ट्र निरंतर प्रयास और उपलब्धि के उच्च स्तर तक पहुंचे।
(11) माता-पिता या अभि भावक का अपने बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान कर ने का कर्तव्य, छह से चैदह वर्ष की आयु के बीच (86वें संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया) के मामलों में है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 1947-2047 अमृत काल अब कर्तव्यकाल हुआ। कर्तव्यों को पहली प्राथमिकता देने जन भागीदारी का होना तात्कालिक जरूरी।
हम भार तीयों को कर्तव्य काल में भार तीय संस्कृति विरासत, आध्यात्मिक मूल्यों का मार्गदर्शन भविष्य के सं कल्प में मददगार साबित होंगे।

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