आतंक के लिए शरीर नहीं, दिमाग की जरूरत, बॉम्बे HC ने जीएन साईबाबा को किया बरी तो SC ने लगाया स्टे, जानें क्या है पूरा मामला

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 Oct 15, 2022
सुप्रीम कोर्ट ने माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया।
साईबाबा और अन्य के खिलाफ केस

2013 में गढ़चिरौली में पुलिस ने दावा किया कि उसे भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्यों और उसके मोर्चे रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट के बारे में गुप्त सूचना मिली है। पुलिस ने उस साल महेश तिर्की, पांडु नरोटे, हेम मिश्रा, विजय तिर्की और पत्रकार प्रशांत राही को गिरफ्तार किया था। 9 मई 2014 को साईंबाबा को गिरफ्तार किया गया था। सभी छह आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधियों के जरिए भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया था। साईंबाबा सहित आरोपियों पर माओवादी साहित्य, पत्र, पत्राचार, पर्चे, और भाकपा (माओवादी) की बैठकों के ऑडियो-वीडियो क्लिप वाले दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के कब्जे में पाए जाने का आरोप लगाया गया था। 7 मार्च, 2017 को गढ़चिरौली सत्र अदालत ने आरोपी को गैरकानूनी गतिविधियों, साजिश, यूएपीए के तहत आतंकवादी गिरोह की सदस्यता और समर्थन और भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक साजिश के आरोपों में दोषी ठहराया। साईंबाबा समेत पांच आरोपियों को इन धाराओं के तहत अधिकतम सजा यानी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। विजय तिर्की को 10 साल की सजा सुनाई गई थी। तेईस गवाहों से पूछताछ की गई।

यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी

यूएपीए की धारा 45(1) कहती है कि कोई भी अदालत केंद्र या राज्य सरकार या उनके द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना अधिनियम के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी। धारा 45(2) के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा रिपोर्ट पर विचार करने के बाद ही निर्धारित समय के भीतर अभियोजन की मंजूरी दी जानी है। प्राधिकरण से अपेक्षा की जाती है कि वह मंजूरी के लिए सरकार को सिफारिश करने से पहले जांच एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों की एक स्वतंत्र समीक्षा करेगा। इस मामले में जांचकर्ताओं ने स्वतंत्र समीक्षा के लिए सबूत अभियोजन निदेशालय को भेजे। निदेशालय ने अपने निदेशक के माध्यम से सिफारिश की कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला है और इसलिए मंजूरी दी जा सकती है। इसके आधार पर महाराष्ट्र के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिवों ने मंजूरी दी। 2013 में गिरफ्तार किए गए पांच आरोपियों के खिलाफ पहली मंजूरी 15 फरवरी 2014 को मिली थी। साईंबाबा पर मुकदमा चलाने के लिए दूसरी मंजूरी 6 अप्रैल, 2015 को मिली थी।

प्रतिबंधों में हाई कोर्ट ने क्या कहा?

अपने 101 पन्नों के फैसले में जस्टिस रोहित देव और अनिल पानसरे की डिवीजन बेंच ने कहा कि मामले में आरोपी के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने का मंजूरी आदेश ‘‘कानून की दृष्टि से गलत और अमान्य’’ था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यूएपीए के तहत वैध मंजूरी के अभाव में निचली अदालत की कार्यवाही ‘‘शून्य और अमान्य’’ थी और इसलिए फैसला (निचली अदालत का) रद्द करने योग्य है। अदालत ने माना कि आतंकवाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है और आतंक के घृणित कृत्य सामूहिक सामाजिक क्रोध और पीड़ा उत्पन्न करते हैं। फैसले में कहा गया कि‘आतंक के खिलाफ युद्ध सरकार द्वारा दृढ़ संकल्प के साथ छेड़ा जाना चाहिए और आतंक के खिलाफ लड़ाई में शस्त्रागार के हर वैध हथियार को तैनात किया जाना चाहिए, एक नागरिक लोकतांत्रिक समाज कानूनी रूप से प्रदान किए गए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय त्यागे जाने को सहन नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि यूएपीए मूल रूप से आतंकवादी गतिविधियों को कवर नहीं करता था। आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (टाडा), 1987, और आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (पोटा), 2002 सहित अन्य कानून आतंकवाद से तब तक निपटे जब तक कि उन्हें निरस्त नहीं किया गया या समाप्त होने की अनुमति नहीं दी गई। कठोर होने के कारण इन दोनों कानूनों की आलोचना की गई और केंद्र सरकार आलोचना के प्रति संवेदनशील थी। आतंकवाद के विभिन्न पहलुओं को कवर करने के लिए समय-समय पर यूएपीए में संशोधन किया गया है, जबकि इसके दुरुपयोग के बारे में चिंताओं का जवाब भी दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा फैसला?

सुप्रीम कोर्ट ने माओवादी संबंध मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा और अन्य को बरी करने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को निलंबित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने साईबाबा के इस अनुरोध को भी खारिज कर दिया कि उनकी शारीरिक अक्षमता और स्वास्थ्य स्थिति को देखते हुए उन्हें घर में नजरबंद किया जाए। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा- इस मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। लिहाजा साईबाबा जेल में ही रहेगा।

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