वृक्ष सम्माननीय हैं उनकी संवेदनाओं को समझें -न्यायमूर्ति विमला जैन

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(डा. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’)
केवल जैन संस्कृति में ही नहीं अपितु विश्व की सभी संस्कृतियों में वृक्ष सम्माननीय है। इससे कुछ आगे जाकर जैन संस्कृति वृक्ष को एकेन्द्रिय जीव के रूप में स्वीकार करती है। भूमि के नीचे स्थित वृक्षों का नेटवर्क सभी पेड़-पौधों को आपस में जोड़ता है। यह नेटवर्क जानकारी का बड़ा भण्डार होता है। पारिस्थिकी से संबंधित सूचनाओं का समृद्ध स्रोत होता है। पेड़ के नीचे खड़े होने और उसकी छांव तले बैठने से हमें सुकून मिलता है। अच्छी सेहत का अहसास होता है। पेड़ांे को छूने और गले लगाने से हमें मानवीय स्पर्श का अनुभव होता है। पेड़ प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से हमें आक्सीजन देता है। वर्ल्ड वाइड वेब की भांति बुड वाइड वेब पारिस्थिकी सूचनाओं का विशाल भण्डार है। यह सभी पेड़ पौधों का आंतरिक और पारस्परिक संबंधों का अंतर्जाल है जो सभी को आपस में जोड़कर रखता है। यह पेचीदा संचार तंत्र पेड़ांे के बीच पोषक तत्त्वों जैसे संसाधनों को साझा करता है। सभी पेड़ अपनी जड़ों के माध्यम से दूसरे पेड़ों को सूचनाएँ और संदेश भेजते हैं। सूचनाओं का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। साथ मिलकर काम करते हैं। आपस में एक-दूसरे से बातंे करते हैं। आपस में मिल-जुलकर अपने आसपास के पेड़ों की मदद करते हैं। आपने देखा होगा कि जब हम अपने लान या बागीचे में एक पौधा या पेड़ लगाते हैं तो वह फल नहीं देता और उसी प्रजाति के दो या दो से अधिक लगाते हैं तो वे अच्छे फल देते हैं। यह उनकी सामाजिक संरचना का ही परिणाम है। अतः हमें उनकी संवेदनाओं को समझना होगा। हम पेड़- पौधों की रक्षा करें। उनका पूरा-पूरा ध्यान रखें।
मनुष्य की सामान्य इच्छाओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा बिना किसी कठिनाई के पूरी की जा सकती है, किन्तु जब इच्छा बहुगुणित होकर कलुषित हो जाती है, तब उसे पूरी करना प्रकृति के लिए कठिन हो जाता है। मनुष्य की यह बहुगुणित इच्छा ही प्राकृतिक संकटों की जननी है। इसी कलुषित एवं बहुगुणित इच्छा की तुष्टि के फलस्वरूप पर्यावरण तहस-नहस हो जाता है। वायु, जल, ध्वनि एवं दृदृश्य प्रदूषित हो जाते हैं। जैसे- जैसे व्यक्ति की इच्छा बहुगुणित और कलुषित होती जाती है, उसकी संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। उसका मन, चित्त, धवलता के स्थान पर कालिमा गृहण कर लेता है। आइये, हम कालिमा के पथ को छोड़कर धवलता के पथ पर अग्रसर हों और अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर अपने पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्द्धन करें। ये विचार माननीय न्यायमूर्ति विमला जैन ने नैनागिरि में तीर्थंकर वन में पौधों के समृद्धिकरण के एक कार्यक्रम व्यक्त किये। श्री सुरेश जैन (आईएएस) ने कहा हमें पेड़-पौधों का बच्चों की भांति पालन-पोषण करना होगा।
ज्ञातव्य है कि नैनागिरि में तीर्थंकर वाटिका (तीर्थंकर वन) को संपोषित करने के श्री ए.के. जैन, मुख्य अभियंता (सेवानिवृत्त) एवं श्री विनोद जैन, उप वनसंरक्षक (सेवा निवृत्त) के भाव जागृत हुए। आप दोनों पूरी लगन, निष्ठा, तन, मन, धन से नैनागिरि में तीर्थंकर वन निर्मित करने में करीब दो वर्ष से मेहनत कर रहे हैं। आप दोनों नैनागिरि जी को हरा-भरा रखने की परिकल्पना को साकार कर रहे है। आप चाहते है कि भावी पीढ़ी को तीर्थंकर कैवल्य वृक्षों की ज्ञानवर्धक जानकारी मिल सके। तीर्थ क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन, प्राकृतिक सौन्दर्य सतत बना रहे। उपरोक्त कार्य में आप लोगांे के अन्नय साथी श्री संतोष जैन, एस.डी.ओ. फारेस्ट, जबलपुर सतत सहयोग दे रहे है।

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