ईद-उल-अजहा पर विशेष साहिबे हेसीयत पर लाजिम है कुर्बानी

RAJNITIK BULLET
0 0
Read Time4 Minute, 5 Second

कुर्बानी के दिनों में कुर्बानी से अफजल अमल कोई नहीं

(देवेंद्र कुमार सिंह)
रामकोट-सीतापुर। ईद -उल-अजहा बकराईद हजरत इब्राहिम अलैहिस्स लाम और उनके बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की यादगार है। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे को एक बयाबान इलाके में छोड़ आए। माँ हाजिरा ने इनके बचपन का पूरा किस्सा इनके वालिद को सुनाया की जब पानी और खुजूर सब कुछ खत्म हो गया तब हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने अपनी ऐड़ियों को रगड़ना शुरु किया। भूख और प्यास की सिद्दत को देख कर माँ हाजिरा ने शफा और मरवा की पहाड़ियों पर पानी की तलाश में दौड़ती रही। हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की ऐड़ियों की रगड़ने की वजह से अल्लाह ने एक चश्मा जारी किया जिसको आबे जम- जम कहा जाता है। हजारो साल पहले इसी जमी पर यह वाकिया पेश आया कि एक मरतबा हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने ख्वाब में देखा कि अपने प्यारे बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्स लाम की कुर्बानी दे रहा हूं। नबियों का ख्वाब हमेशा सच होता था इसीलिए हजरत इब्राहिम अलैहिस्स लाम ने अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को एक दिन कुर्बानी के लिए ले गए। हजरत इब्राहिम अलैहिस्स लाम ने अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कुर्बानी देने के लिए छूरी पर खूब धार लगाई और हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम की गर्दन पर छूरी रख कर जूबाह करना शुरू किया लेकिन हजरत इब्राहिम अलैहिस्स लाम अपने बेटे को अपनी आँखों के सामने जिबाह न कर सके।
तब इनके प्यारे बेटे ने कहा आप अपनी आँखों पर काली पट्टी बांध लीजिये तब हमें कुर्बान कीजिये। उन्होंने अपनी आँखों पर काली पट्टी बांध ली और कुर्बान करना शुरू किया जिबाह करते वक्त उन्हें दुम्बे की आवाज आई और आँखे खोली दुम्बे को कुर्बानी की नजर में देखा और हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम सामने खड़े नजर आये।
तब आसमान से अल्लाह की आवाज आयी की ए इब्राहिम तुमने अपना ख्वाब सच कर दिखाया। तभी से यह तरीका मुस्लमान अपनाते आ रहे है। नबी हुजूर पाक सल्ललाहूअलैहिवस्ललम ने फरमाया कुरबानी से ज्यादा महबूब अमल कोई नहीं। और हर बाल के बदले तुम्हे एक नेकी मिलेगी। हर मुस्लमान पर कुर्बानी लाजिम है। जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या इनको खरीदने की रकम या तिजारत का माल हो। उन पर कुर्बानी लाजिम (फर्ज) हो जाती है। वो औरते जो अपने जेवर की मालिक है उन पर भी कुरबानी वाजिब है।
कुर्बानी अफजल है कि जिलहिज्जा को करे या ग्याराह और बारह को भी कर सकते है। कुर्बानी के गोस्त को तीन भाग में बाटा जाता है एक हिस्सा गरीबो के लिए दूसरा हिस्सा रिस्तेदारो के लिए और तीसरा हिस्सा अपने लिए रखा जाता है। कुर्बानी करने वाला गोस्त की नियत ना रखे।

Next Post

लखनऊ में बेरोजगार युवक-युवतियों ने सीएम आवास से लेकर भाजपा आफिस तक किया प्रदर्शन

(शमशाद […]
👉