एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर अकड़बाजी एक ऐसा अनूठा मानवीय विकार है, जो मान वीय कतार में अंतिम व्यक्ति से लेकर प्रथम व्यक्ति में, चप रासी से लेकर उच्चस्तरीय अधिकारी, संतरी से लेकर मंत्री व देशी उच्चस्तरीय पदा सीन से लेकर पूरी दुनियाँ के उच्चस्तरीय पदासीनों में पाया जा सकता है इसीलिए ही अनेक जुमले जैसे, चीन ने दिखाई अपनी अकड़बाजी, अकड़बाज कलेक्टरों को सब क सिखाएंगे सीएम, पद मिल ते ही अकड़बाजी बढ़ी जैसे अनेकों जुमले हमें जीवन में अनेकों बार सुनने को मिलते रहते हैं। अभी बीती 23 नवंबर 2024 को विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आते ही एक खबर, प्रिंट व डिजिटल मीडिया में वायरल हुई कि चुनाव जीतने के बाद सर्टिफिकेट मिलते ही चुनाव जीते उम्मीदवार अकड़ बाज हुए, यह हेडिंग देखने को मिलीकुदरत ने इस खूबसूरत सृष्टि में मानव काया की अन मोल रचना कर उसे कुशाग्र बुद्धि क्षमता के रूप में अनमो ल अस्त्र सौंपा है! तो गुरूर, अभिमान, अहंकार, अकड़, अहंवाद, गुमान, नखरो जैसी अनेक विशुद्धयां भी डाली है, और उसे चुनने की ताकत भी इस मानवीय जीव में डाल दी है ताकि मानवीय जीवन यात्रा में अच्छे काबिल और उचित लोग उस उचित स्थान याने मंजिल तक पहुंच सके और सारी मानवता का कल्याण कर अच्छाई से अपनी जीवन यात्रा पूर्ण कर वापस वैकुंठ धाम में प्रवास करें, हमने अप ने बड़े बुजुर्गों से सुने हैं कि जिस मानव के पास लक्ष्मी मां प्रवास करती है तो उसे पद, प्रतिष्ठा देकर उसकी परीक्षा लेती है, जिसमें विकारों से लेकर उपरोक्त विशुद्घियां और नम्रता, सहयोग, इमान दारी जैसी शुद्घियों का घेरा डालती है, फिर मानव का कार्य है कि अपनी बुद्धि के बल पर विशुद्धियों और शुद्धियों का चुनाव करें स्वाभाविक ही है, कुशाग्र बुद्धि का व्यक्ति शुद्धियों को और बाकी लोग विशुद्धियों को चुनेंगे जिस के कारण विशुद्धियों को चुन ने वाले के यहां से लक्ष्मी मां प्रस्थान करती है यह महत्व पूर्ण बात संपूर्ण मानव जाति के लिए रेखांकित करने योग्य बात है। इन उपरोक्त पैरा में बताए गए शब्दों को हम गुरूर में परिभाषित कर सकते हैं, यही लक्ष्यों की सफलताओं में सबसे बड़ा बाधक है इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि नम्र ता, सहयोग, ईमानदारी सहि त सभी शुद्धि सूचक शब्दों को अपनाकर लक्षित मंजिलों तक पहुंचकर अपना खुद का, समाज, जिला, राज्य और राष्ट्रीय का भला कर सकते हैं।
साथियों बात अगर हम अकड़ को समझने की करें तो, किसी भी व्यक्ति में अकड़ आती है तो उसके पीछे ज्यादा तर दो ही वजह हो सकती है पहला पैसा दूसरा पावर। इन दोनों से अकड़ का बढ़ जाना स्वाभाविक हो जाता है, इनके आगे कोई रिश्ता मायने नही रखता है लोगों के लिए। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ऐसा मेने अपने आस पास होता हुए देखा है। इति हास गवाह है कि अकड़ में रहने से नुकसान ही होना है रावण का उदाहरण अद्वितीय है।
अकड़ एक खुशहाल परि वार को तबाह कर बस अकेले जीने के लिए भी मजबूर कर सकती है। ये एक तरह का पर्दा आंखों पर डाल देती है जिससे उसको कुछ दिखाई ना दे। जब कोई इंसान आप से मेलजोल बनाये नही रखेगा तो अपने आप ही अपने मन में बस उसके प्रति व्यवहार कम हो जाएगा या यूं कहें कि खत्म ही हो जाएगा। आजकल सबको ये पसन्द है कि अच्छे से विनम्र होकर कोई बात करे सम्मान दे। अ कड़ में रहने से इंसान अकडा जाता है। उनकी विचारधारा अलग ही स्तर की होती है वो मानते हैं कि बस जो है हम है तो ऐसे स्वभाव के लोग रिश्ते क्या समझ पाएँगे? रिश्तों को निभाने के लिए विन्रम के साथ साथ मिलनसार होना भी बहुत आवश्यक है।
साथियों बात अगर हम अपने दैनिक दिनचर्या की करें तो हमारा शासकीय, अशास कीय, निजी क्षेत्रों में अनेक ऐसे पदों पर बैठे अधिकारियों, व्यक्तियों, कर्मचारियों से पा ला पड़ा होगा और हम सोच ने पर मजबूर हो गए होंगे? कि पद के लिए कितना गुरू र है इन्हें! जब यह पद चला जाएगा या रिटायर्ड हो जाएं गे तो इनका क्या होगा और हमने अपनी आंखों से ऐसे व्यक्तियों की बुरी हालत होते देखी है,उनका परिवार अशांत रहता है, आंतरिक सुख उन्हें कभी नहीं मिलता क्योंकि उन्होंने जीवन भर अपने गुरूर और भ्रष्टाचार को अपना रखा था तो उनका जीवन कभी सुखी नहीं होगा वह अपने जीवन के लक्ष्य तक कभी पहुंच नहीं पाएंगे ऐसी गारंटी है।
साथियों बात अगर हम गुरूर रूपी विशुद्धि से हानियों की करें तो, गुरुर जीवन का सबसे बड़ा संकट है, ये जिस पर छा जाता है, उसके जीवन को बर्बाद कर देता है। गुरुर को हम गर्व भी मानते है, इति हास गंवा है, जो व्यक्ति गुरुर से अलंकृत हुए है, उनका नाश शीघ्र ही हुआ है!! जिसमे हम सबसे प्रमुख राजा रावण को ले सकते है। गुरुर से बुद्धि का नाश होता है। गुरुर एक लत है और यह लत जिसको लगती है उसका जीवन बर्बा दी की ओर अग्रसर होता है अपने जीवन में गुणों को प्रवेश नहीं देता है और खुद को बड़ा समझ कर दूसरों को नीचा स मझता है इसी बीच वह अप ने ज्ञान मे बढ़ोतरी नहीं कर पाता है, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वा स है।
साथियों बात अगर हम गुरुर के चक्रव्यूह में फंसे इंसा न की करें तो, गुरुर के चक्र व्यूह से ग्रसित इंसान कभी किसी के अनुसरण को स्वी कार नहीं कर पाता। अंततः एक ही परिणति को प्राप्त हो ता है, वह है सर्वनाश। जब व्यक्ति गुरुर के चक्रव्यूह में फंसा होता है तो नम्रता, बुद्धि, विवेक चातुर्य सभी गुण उससे दूर हो जाते हैं। उस व्यक्ति की नजर में हमेशा सभी लोग निम्न स्तर के ही होते हैं। सदैव दूसरों की राह में बाधा उत्पन्न कर प्रसन्नता अनुभव करते हैं। औरों को गिराकर अपनी राह बनाने की चेष्टा करते रहते हैं। वे लोग अपने दंभ में इतनी वृद्धि कर लेते हैं कि कल्पना भी नहीं कर पाते कि एक दिन उनका प तन भी अवश्यंभावी है।
साथियों गुरुर मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, क्योंकि गु रुर मनुष्य का सर्वनाश कर के छोड़ता है। वह मनुष्य के विवेक को हर लेता है। उसकी बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है। गुरुर अर्थात अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता और वो खुद को ही सर्वे-सर्वा और सर्वश्रेष्ठ समझता है। गरुर मनुष्य को गर्त में ले जाता है। गरूर की रुचि दिखाने में हो ती है। प्रतिभा का प्रदर्शन भी होना चाहिए, परंतु यदि प्रतिभा में जुगनू-सी चमक हो तो गरूर पैदा होगा और यदि सूर्य-सा प्रकाश हो तो प्रतिभा का निरहंकारी स्वरूप सामने आएगा।
साथियों बात अगर हम गुरूर से बचने की कवायत की करें तो, बुद्धि के क्षेत्र में तर्क है, हृदय के स्थल में प्रेम और करुणा है। अहंकार यहीं से गलना शुरू होता है। अपनी प्रतिभा के बल पर आप कित ने ही लोकप्रिय और मान्य क्यों न हो, पर गरुर के रहते अशांत जरूर रहेंगे। अहं छो ड़ने का एक आसान तरीका है मुस्कराना। गरूर का त्याग करके मनुष्य ऊँचाई को प्राप्त कर सकता है। इसलिए मुस्क राइए, सबको खुशी पहुँचाइए और गुरुर को भूल जाइए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि वाह रे गुरुर, गुरुर में रहोगे तो रास्ते भी ना देख पाओगे, मंजिल पाना तो बहुत दूर की बात है, लक्ष्यों की सफलता में गुरुर सब से बड़ा बाधक-नम्रता, सहयो ग, ईमानदारी लक्षित मंजि लों तक पहुंचाने की चाबी है।
लक्ष्यों की सफलता में मानवीय विशुद्घियां सबसे बड़ी बाधक – नम्रता, सहयोग, इमानदारी लक्षित मंजिलों तक पहुंचाने की चाबी
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