एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ महीनो से हम प्रिंट इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया में पढ़ सुन व देख रहे हैं कि केन्या बांग्लादेश ब्रिटेन सहित कुछ देशों में घरेलू आंदोलन हिंसा चरम पर है, तो वही यूक्रेन-रूस व हमास-इजरायल युद्ध भी अपने चरमस्तर पर पहुंच गए हैं,तो वहीं अबबभयंकर युद्ध के आसार ईरान इजरायल के बीच भी दिख रहे हैं। मेरा मानना है कि अगले दो दिन के भीतर इन दोनों के बीच युद्ध का आगाज हो सकता है, क्योंकि जिस तरह से दोनों देशों के समर्थक देशों के समूह अपने अपने स्तर पर मिसाइलें जमीन से लेकर हवाई व जल मार्ग पर सेट कर रहे हैं, उस से तो यही आभास हो रहा है। इसलिए मेरा मानना है कि दुनियां के एक नए संकट में फंसने की संभावना है, तो वही छोटे देशों पर पूर्ण विक सित देशों का दबदबा भी देख ने को मिल रहा है, जो हम ने श्रीलंका नेपाल पाकिस्तान इराक इत्यादि देशों में पिछले समय में देखे हैं, जिसका नॉरेटिव आंदोलन से ही सेट होता है जो फिर हिंसात्मक हो जाता है। हमने अभी हाल ही के दिनों में केन्या में देखें कि वित्त विधेयक 2024 राष्ट्र पति द्वारा वापस लेने के बाद भी आंदोलन जारी रहा व राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग की जा रही है, वैसे ही ब्रिटेन में एक जाति समुदाय विशेष के द्वारा तीन बच्चों को चाकू मारने से हिंसा भड़क उठी है, जो वापस पीछे हटते हुए नहीं दिख रहे हैं, इसी तरह बांग्लादेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूरा आरक्षण हटाकर केवल 5 प्रतिशत तक कर देने के बावजूद भी हिंसात्मक आंदोल न तीव्र होते चला गया जिससे वहां की पीएम को भागकर भारत में शरण लेना पड़ा है। मेरा मानना है कि इन सभी हिंसात्मक आंदोलन के पीछे कोई बड़ी साजिश व ताकतें जरूर हो सकती है। क्योंकि अकेले के दम पर और बिना फंडिंग के इतना बड़ा नेटवर्क खड़ा कर आंदोलन करना संभव नहीं है, जिसमें तख्ता पलटकर पीएम को भागना पड़े। मीडिया में आ रहा है कि, बांग्लादेश केस के पीछे कुछ विकसित देशों के बांग्ला देश की पीएम से नाराज होने का कारण शामिल हो सकता है, जैसे अमेरिका को एयर बेस के लिए शेख हसीना का इनकार, चीन को बीआरए के लिए जमीन देने से इनकार, पाकिस्तान से पहले ही खुन स पर इस तिकड़ी के कारण ऐसे अंजाम के कयास लगाए जा रहे हैं। अब इस स्थिति से भारत को भी सीख लेने की जरूरत है। परंतु मेरा मानना है कि भारत की विदेश नीति व कूटनीति ऐसी है कि ऐसी स्थितियों का आना दूर की कौड़ी है, परंतु चींटी को भी कमजोर नहीं समझना वाली कहावत का संज्ञान लेते हुए हाई अलर्ट पर रहना जरूरी है। वैसे भारत हाई अलर्ट लेवल पर है, क्योंकि दिनांक बीती दिनांे 06 अगस्त 2024 को सभी विपक्षी दलों को आमंत्रित कर बांग्लादेश मुद्दे पर मंथन कर एक राय निकल गई, उधर पीएम विदेशमंत्री व गृहमंत्री सहित अनेकों अपने स्तर पर बैठके कर रणनीतिक स्थिति यों का आकलन किया गया है। चूंकि ब्रिटेन केन्या बांग्ला देश में हिंसात्मक आंदोलन, बांग्लादेश में तख्तापलट व भारत को रहना होगा हाई अलर्ट व दुनियां में तेजी से विकास और हैप्पीनेस से विक सित राष्ट्र की ओर बढ़ने के लिए सटीक विदेश नीति कूट नीति विशेषज्ञ होना समय की मांग है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत तेजी से विकसित देश बनने की ओर अग्रसर, विदेशी ताकते ढूंढ रही है अटकाने के अवसर, अलर्ट पर रहने नहीं छोड़नी होगी कोई कोर क सर।
साथियों बात अगर हम बांग्लादेश के मुख्य रूप से आंदोलन छात्र प्रणेता वह आंदोलन को हाईजैक हिंसक करने की करें तो बांग्लादेश में जारी संकट के केंद्र में वहां के स्टूडेंट हैं। माना ये जा रहा है कि छात्रों के हिंसक प्रदर्शन ने ऐसी नौबत पैदा कर दी कि पीएम रहीं शेख हसीना को पद से इस्तीफा देकर, देश तक छोड़ना पड़ा। लेकि न ऐसे में सवाल ये है कि बांग्लादेश में इतना सब कुछ सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने ही किया है? या फिर छात्रों के आंदोलन में शेख हसीना विरोधी ताकतें भी मिल गईं, जिसकी वजह से आंदोलन और उग्र हो गया। दावा ये भी है कि आंदोलन छात्रों के हाथों से निकलकर पूरी तरह से कट्टर इस्मालिक संगठनों के हाथों में चला गया, कहा जा रहा है कि ज मात-ए-इस्लामी और उस के छात्र संगठन बांग्लादेश में तांडव मचा रहे हैं। बांग्ला देश में प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने वहां के राष्ट्रपति को संसद भंग करने का भी अल्टीमेटम दिया। छात्रों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगे पूरी नहीं की गईं, तो इससे भी ज्यादा उग्र हो जाएंगे प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे, स्टूडेंट ली डर्स ने इसका वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि वो देश में आगजनी और हिंसा का विरोध करते हैं और उन लोगों को भी रोकने की कोशिश कर रहे हैं, जो इस आंदोलन को हाईजैक करने की कोशिश कर रहे हैं। छात्रों ने कहा है कि वो सेना की तरफ से बनाई गई, सर कार को स्वीकार नहीं करेंगे। बता दें कि बांग्लादेश के ये वो तीन छात्र नेता हैं, जिन्होंने शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। बता दें कि इन तीनों छात्र नेताओं को बाग्लादेश की डिटेक्टिव ब्रांत ने बंधक भी बनाया था और आंदोलन वापस लेने के लिए जबरदस्ती वीडियो भी बनवाया था। जब ये कैद में थे, तब गृहमंत्री ये दावा कर रहे थे कि इन्होंने अपनी मर्जी से आंदोलन को खत्म करने की बात कही है। जब मामला खुला तो प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़क गया। प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि हजारों लोग सड़कों पर उतर गए। उन्होंने संसद भवन और प्रधा नमंत्री कार्यालय पर कब्जा कर लिया। आज छात्रों को यही ग्रुप, शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने पर जश्न मना रहा है।
साथियों बात अगर हम शेख हसीना के इस्तीफे देने और देश छोड़ने की करें तो, शेख हसीना अमेरिका और चीन की परवाह किए बिना बांग्लादेश को राष्ट्र प्रथम केसिद्धांत के तहत विकास के रास्ते पर आगे ले जा रही थी। जिसकी वजह से एशि या के कई देशों के मुकाबले विकास और हैप्पीनेस के मा मले में बांग्लादेश बेहतर स्थि ति में था, जो अमेरिका और चीन सहित पाकिस्तान की कई ताकतों को एकदम पसंद नहीं आ रहा था। बांग्लादेश में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन इतना बढ़ा कि शेख हसीना को अपनी सत्ता छोड़कर देश से भागना पड़ा। वह भारत पहुंचीं और कई देशों से अपने लिए शरण की गुहार लगाती दिखीं। लेकिन बांग्लादेश में जो कुछ हुआ है, वह बांग्लादेश तक ही सीमित है ऐसा नहीं है।
क्योंकि, जब अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकिस्तान के साथ अन्य कई आतंकी ताकतें किसी देश में हस्तक्षेप करती हैं तो ऐसा ही होता है। इस का इसके पहले सबसे बेहतर उदाहरण अफगानिस्तान और श्रीलंका में हुआ तख्ता पलट है। लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई शेख हसीना की सरकार ने ये सोचा भी नहीं होगा कि पाकिस्तान की राह पर चल कर वहां भी सेना के इशारे पर तख्तापलट की साजिश होगी और वह भी छात्र आंदो लन की आड़ में, जिसमें देश की आतंकी ताकतें भी शामिल होंगी। साथियों बात अगर हम शेख के बेटे द्वारा मीडिया में इशारा बाहरी ताकतों की ओर करने की करें तो, सुपर पावर देश बांग्लादेश में एयरबेस के लिए जमीन मांग चुका था और शेख हसीना ने इससे इन कार कर दिया था। अमेरिका इससे नाराज था और वह चाहता था कि वह बांग्लादेश का चुनाव हार जाए। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं और अब अमे रिका को लग गया कि उनके हाथ से चीजें खिसक गई है और उन्होंने इस बात का सम र्थन शुरू किया कि हसीना ने अलोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराए। जबकि, यही अमेरिका पाकिस्तान में खान की चुनी हुई सरकार को गिराने और आर्मी की मदद से शरीफ की सरकार बनवाने के लिए आगे आई और वहां शाहबाज की सरकार का ग ठन कर अपना काम सीधा कर रहा है। उसे ऐसे में पाकि स्तान में लोकतंत्र दिखाई देता है और बांग्लादेश में सबकुछ अलोकतांत्रिक दिखाई देता है। शेख हसीना ने अपने दो दशक के कार्यकाल में भारत और चीन दोनों के साथ अपने संबंध बेहतर बनाए। भारत के साथ वह फ्री ट्रेड की राह पर भी बढ़ रही थी, लेकिन चीन को तो बांग्लादेश में बी आरई के लिए जमीन चाहिए थी। हसीना इसके लिए राजी नहीं थी, ऐसे में वह चीन को भी नाराज कर बैठी। ऐसे में हसीना घेरलू मोर्चे पर, इस्ला मिक रेडिकलिज्म के मोर्चे पर घिरने के साथ ही विदेशी सुपर पावर की आंखों में भी खटकने लगी थी।
साथियों बात अगर हम बांग्लादेश में तख्तापलट को बाहरी ताकतों का अंजाम के रूप में देखने की करें तोयह जो आंदोलन बांग्लादेश में देखने को मिला, यह केवल बांग्लादेश तक ही सीमित है, ऐसा सोचना हमारे लिए भी खतरनाक हो सकता है। क्योंकि, पश्चिमी देश जो दूसरे देशों के लोकतंत्र में हस्तक्षेप करते हैं तो उसका असर ऐ सा ही होता है। शेख हसीना लोकतांत्रिक तरीके से चुनावी प्रक्रिया के जरिए चैथी बार चुनकर वहां की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन, वहां बेगम खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी और बांग्लादेश के प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन ज मात उल-मुजाहिदीन, जमात -ए-इस्लामी यह पचा नहीं पा रही थी और फिर अमेरिकी डीप स्टेट, चीन और पाकि स्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का जिस तरह से उन्हें सपोर्ट मिला, उसी की तस्वीरें हमको बांग्लादेश में नजर आ रही है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इस का विश्लेषण करें तो हम पा एंगे कि ब्रिटेन केन्या बांग्ला देश में हिंसात्मक आंदोलन- बांग्लादेश मेंतख्तापलट भारत को रहना होगा हाईअलर्ट। भारत तेजी से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर- विदेशी ताकतें ढूंढ रही है अटकाने के अवसर-अलर्ट पर हैं नहीं छोड़ेगे कोई कोर कसर! दुनि यां में तेजी से विकास और हैप्पीनेस से विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ने के लिए, सटीक विदेश नीति कूटनीति में वि शेषज्ञ होना समय की मांग है।
दुनियां में तेजी से विकास और हैप्पीनेस से विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ने के लिए, सटीक विदेश नीति कूटनीति में विशेषज्ञ होना समय की मांग
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