वाह रे सेवा समितियां! – सेवा शुल्क का डंडा – अपनी सेवा समिति के प्रचार का जोरदार फंडा

RAJNITIK BULLET
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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी के तेजी से विकास के कारण दूरसंचार के माध्यमों में भी तेज हवा की गति से भी अधिक गति से वृद्धि हुई है, जो अनेक प्रकार के मीडि या प्लेटफज्ञूर्मों चैनलों एप्स के माध्यम से हम देख रहे हैं। आज अगर सात समंदर पार एक पत्ता भी हिलता है तो यह खबर सैकंडों में पूरी दुनियां में फैल जाती है। या यूं कहें कि हर उस व्यक्ति जिसके पास मोबाइल है, उस तक न केवल खबर पहुंचती है बल्कि उसके चित्र या वी डियो भी पहुंच जाते हैं और फिर पूरी दुनियां के सोशल मीडिया में सुर्खियां बन जाती है कि फलां जगह वह पत्ता हिला। यह तो केवल खबर हुई, परंतु इस प्रौद्योगिकी संचार माध्यमों का सबसे अधिक फायदा पहुंचा है तो वह मेरे अनुसार ऐसे व्यक्तियों संस्था पकों, समितियों चाहे वह कम र्शियल हो या फिर सामाजिक, व्यक्तिगत हो या फिर पारिवा रिक उनको हुआ है क्योंकि उन्हें अपनी संस्था, संघ समिति दल का प्रचार करने का एक हथियार या बनाया बल मिल गया है। ऐसा मैं आज इसीलिए कह रहा हूं।क्योंकि करीब करीब सभी कमर्शियल संस्थाएं तो सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार करती है परंतु मैं देख रहा हूं कि आजकल सामाजिक, व्यक्तिगत पारिवा रिक सेवा समितियां भी इस का भरपूर उपयोग कर रही है।मैंअभी एक सेवा समिति को देखा जिन्होंने छात्रों का एक पेड गाइडेंस सत्र रखा था, हालांकि वह पेड न्यूज की तरह पेड सेवा थी परंतु उसे इस तरह प्रचारित किया गया मानो वह समिति बहुत बड़ी मानवीय सेवा कर रही हैं, उनकी तैयारीयों का प्रचा र प्रसार सोशल मीडिया में अनेक ग्रुप में किया गया फिर उसके गाइडेंस सत्र का प्रचार कर संपन्नता के दूसरे दिन समाज के मुखी चैधरी, राजनीतिक कार्यकर्ता सेवा समिति के उस आयोजन के बारे में प्रतिक्रिया, प्रशसनीय संदेश पत्रों को सोशल मीडिया में डाला गया। मानों उनका लक्ष्य केवल अपनी सेवा समिति का प्रचार करना हैहालांकि वह गाइडेंस सत्र प्रति सहभागी से तीन चार सव हरे पीले लेकर एंट्री दी गई थी जो रेखां कित करने वाली बात है। दूसरी ओर ऐसी अनेक संस्था एं समितियों को भी देखा हूं जो अपनी निशुल्क सेवा चुप चाप में कर रही है जिनकी किसी को कानों कान हवा भी नहीं लगती, मेरा मानना है कि यह उच्च कोटि की सराहनीय सेवा को जो भी संस्था या मंडल कर रहा है उसे नगर केवासियों को भी पता नहीं होता परंतु कुछ सेवा समितियां ऐसी है कि वाह रे सेवा समितियां! सेवा शुल्क का डंडा, फिर भी अप नी सेवा समिति के प्रचार का जोरदार फंडा! चूंकि शुल्क लेकर भी अपनी सेवा का ढिंढोरा पीटने वाली समितियां बनाम गुप्त सेवा करने वाली सेवा समितियां बहुत दिख रही है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल का माध्यम से चर्चा करेंगे,बड़े बुजुर्गों की कहावत गुप्त सेवा महासेवा, सेवा ऐसी करो रे भाई किसी को कानों कान खबर ना हो भाई, को सामा जिक सेवा समितियां ने आत्म सत करने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम शुल्क लेकर भी अपनी सेवा का ढिंढोरा पीटने, फोटो खींचने वाली सेवा समितियों की करें तो, जिन लोगो को जुनून है कि मुझे समाज की सहा यता करनी है तो वो फोटो के पीछे नही काम के पीछे ध्यान देते है। क्यों कि जो काम करता है उनका नाम अपने आप लोगो के जुबान पर आने लगता है। जो फोटो खीच कर सोशल साइट पर डालने के लिए उतावले रहते है उनका समाज सेवा का भाव बस यही तक रहता है। हम अनेकों जगह अक्सर देखते हैं कि कोई एक कार्य शाला/गाइडेंस सत्र का आ योजन किया जाता है और उसके लिए अच्छी खासी शुल्क वसूली जाती है, उसके बावजूद समिति के नाम से सोशल मीडिया में बढ़-चढ़ कर समिति का प्रचार किया जाता है कि वह समिति यह आयोजन कर रही है, उसका प्रोग्राम जानबूझकर के लग्जरी किया जाता है, गोल टेबलों पर शाही नाश्ता खान-पान लग्जरी व्यवस्था कर उसके फोटो मीडिया में सर्कुलेट किए जाते हैं, फिर राजनीतिक व्य क्ति/मुखी साहब के तारीफी लेटरों को मीडिया में डालकर समिति का प्रचार प्रसार कि या जाता है। शायद वह प्रिंट मीडिया में भी देखने को मिल जाएगा। दूसरी तरफ कुछ ऐसी सेवा समितियां भी होती है जिनके द्वारा बिना शुल्क के कुछ अच्छे प्रोग्राम किए जाते हैं, उसके बावजूद भी मीडिया में तो क्या कहीं भी कानों कान खबर नहीं लग ती और उस प्रोग्राम के अच्छे परिणाम भी निकल आते हैं। इसे कहते हैं सच्ची सेवा यही है बड़े बुजुर्गों वाली गुप्तसेवा महासेवा, जिसको सभी सेवा समितियों द्वारा रेखांकित कर ने की अति खास जरूरत है।
साथियों बात अगर हम सेवा के सामान्य प्रकारों की करें तो, हमारे अनुसार सेवा के तीन प्रकार होते हैं। मनुष्य तीन प्रकार से धर्म और समाज की सेवा कर सकता है। तन से सेवा-तन से हम समाज की अनेक तरह से सेवा कर सकते हैं। कहीं कोई समाज सेवा का कार्य चल रहा हो तो वहाँ जुड़कर अपनी सामर्थ्य के अनुसार कोई भी शारारिक कार्य कर सकते हैं जैसे किसी प्यासे को पानी पिला देना, किसी असहाय को उसके गंतव्य तक पहुँचा देना, कभी-कभी किसी सार्वजनिक स्थल पर साफ सफाई कर देना या कम से कम समय मिलने पर वृक्षारोपण ही कर देना ये सारी सेवाएं तन द्वारा की जानें वाली समाज सेवा ही है। धन से सेवा -किसी भी सामाजिक अथवा पारमा र्थिक कार्य में धन की अहम भूमिका होती है।पानी पीने के लिए प्याऊ की व्यवस्था करना, यथा सामर्थ्य अन्न दान, वस्त्र दान करना। गरीब कन्याओ की शादी मे मदद करना, निःशुल्क चिकित्सा प्रदान करना, निःशुल्क विद्यालयों का निर्माण करने के साथ-साथ धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन जैसे अनेकानेक सेवा कार्य धन से ही संभव हो पाते हैं। मन से सेवा-तन और धन की असमर्थता में भी हम मन से समाज की सेवा कर सकते हैं समाज के हित का चिंतन, उचित परामर्श और सदैव समाज सेवा में कार्यरत लोगों की प्रशंसा और उनका आत्मबल और मजबूत हो ऐसी बात करना भी आपके द्वारा की जाने वाली मानसिक सेवा ही है। ज्यादा कुछ न कर सको तो प्रभु के समक्ष रोज सर्व मंगल की कामना के लिए प्रार्थना करना भी आपके द्वारा समाज की मानसिक सेवा ही है। तन से, धन से अथवा तो मन से, प्रभु ने जिस भी लायक आपको बनाया है, उसी अनुसार समाज सेवा करने का सौभाग्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
साथियों बात आगर हम सेवा के सही परिदृश्य को देखें तो, समाज सेवा का सही तरीका आज के परिदृश्य में यह है कि समाज के गरीब, जरूरतमंद या निर्धन या अनपढ़ लोगों की येन केन प्रका रेण मदद की जाए। मदद पैसे से भी की जा सकती है या फिर समय और सलाह देकर भी। कई लोग करते हैं जिन से से जितना बन पाता है। लेकिन जब सेवा के इस काम में समान विचार वाले लोगों का ग्रुप बन जाता है तो सेवा के कार्यों में तेजी आ जाती है। इसमें ठीक भी रहता है। मदद चाहने वाले का काम पूरा हो जाता है। सेवा से समाज में सुधार आने लगे तो समझिए आप सही दिशा में हो।स्वार्थ थोड़ा बहुत तो हर व्यक्ति का छुपा हुआ होता है जैसे तन मन धन से सेवा करने वाला सोचेगा कि लोगों तक मेरी जानकारी पहुँचे। मेरा नाम हो। लेकिन गरीब आदमी सेवा में पूरी तरह से लग जाये तो वो सोचेगा कि मेरे परिवार का काम आराम से चल जाये इतनी मजदूरी मिल जाये तो मैं ज्यादा मन लगाकर काम करूंगा।
साथियों बात अगर हम वर्तमान संदर्भ में लोगों द्वारा सेवा को प्रोफेशन की नजरों से देखने की करें तो,समाज सेवा दो प्रकार के लोग करते हैं। एक वे जो इसके लिए अपना जीवन लगा देते हैं, बदले में किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं करते हैं। दूसरे वे जो रोजगार की तलाश में इधर आ जाते हैं, स्वयं सेवी संस्था बना कर सरकार व बड़ी बड़ी इंडस्ट्रीज से फंड की व्यवस्था करके अपना जीवन यापन करते हैं। समाज सेवा को आज के संदर्भ में लोग प्रोफेसन के तौर स्वीकार कर रहे हैं? क्योंकि इससे नेता नगरी, राजनीति का मार्ग आ सान हो जाता है। समाज सेवा से सीधे ही पब्लिक से जुड़ने का मौका मिलता है। चार पांच साल की मेहनत के बाद सीधे ही पंचायत या नगर पालिकाध्नगर निगम में पद मिल जाता है। वर्तमान समय में समाजसेवा महज सेवा नही रही बल्कि सेवा के साथ उसमें मेवा यानी ठीक ठाक पैसा भी है। समाज सेवा करने के इच्छुक व्यक्ति अकेला ज्यादा कुछ कर नही सकता इसीलिए और लोगो को भी इसमें सम्मिलित करने की आवश्यकता होती है। आज जहां हर चीज को पैसे से नापा जाता है ऐसे माहौल में सेवा भी कोई मुफ्त में करना मुनासिब नही समझता। प्रोफेसनल तरीके से किए गए हर कार्य के पीछे पैसे लगते है ये बात लोग अब समझने लगे है।
साथियों बात अगर हम अपने व्यापार व्यवसाय व सेवा को सही मायनों में सेवा के दृष्टिकोण से देखने की करें तो, सबसे बढ़िया एक ही प्रकार है, अपना काम ईमानदारी से करो। अगर एक अधिकारी कामचोरी नहीं करता या काम के लिए रिश्वत नहीं लेता तो वो समाज सेवा ही है। अगर एक डाक्टर मल प्रैक्टिस लालची प्रैक्टिस नहीं करता तो वो भी समाज सेवा है। अगर वकील अपने मुव क्किल का केस ईमानदारी से लड़े और घोका ना दे तो वो भी समाज सेवा है, शिक्षक ट्यूशन की लालच छोड़ कर स्कूल में ही अच्छा पढ़ा दे तो वो भी समाज सेवा ही है ना ? हम समाजसेवा कैसे कर सकते है? 1) समाज में अपने कर्तव्यों का सही से पालन करके। 2) आस पास ऐसे लोगों को पहचान कर जिन्हें किसी भी प्रकार कि आवशय कता है, उनकी संभव मदद करके। 3) यदि हमारे आस पास ऐसा कोई नहीं है तो सबसे अच्छा तरीका, हम सरकारी अस्पताल जाइए वहाँ पर अनेको प्रकार के लोग मिल जाएगे जिन्हे आपकी मदद कि आवशयकता होंगी, पर उनकी मदद करने से पहले उनके बारे में अवश्य जान ले, कि उन्हें हमारी मदद करना कहीं उनके स्वाभिमान पे ठेस ना प्रतीत हो। हम सीधे डाॅक्टर के पास जाकर भी उनकी आर्थिक मदद कर स कते हैं, जिससे उनके स्वाभि मान को भी ठेस नही पहुंचेगी। हम अपना खून डोनेट कर सकते हैं,उनको मदद मिल जाएगी। अपने आस पास के गरीब बचो को मुफ्त तालीम, ट्यूशन दें। हर मुमकिन कोशिश करें उनको आगे लाने के लिये उसे देश का भविष्य सुधरेगा भी और उन गरीब बचो को सहायता मिलेगी और कुछ भी नही कर सकते तो इतना जरूर करें कि हमारी जरूरत की चीजें किसी गरीब छोटे व्यापारी से खरीदें और या तो खुद इस्तेमाल करो या फिर किसी गरीब को दे दें। उससे गरीब व्यापारी को रोज गार और उस गरीब का पेट भरेगा और भी बहोत सारी चीजें है करने के लिए। अगर अपने आस पास गौर करोगे तो बहोत सारी तकलीफे है लोगो को जिसकी हम मदद कर सकते हैं, ये भी समाज सेवा ही होगी। और वो भी मुफ्त। किसी अंधे को रास्ता दिखाना भी समाज सेवा ही है भाई। अतः अगर हम उप रोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि शुल्क लेकर भी अपनी सेवा का ढिंढोरा पीटने वाली सेवा समितियां बनाम गुप्त सेवा करने वाली सेवा समितियां। वाह रे सेवा समि तियां! – सेवा शुल्क का डंडा – अपनी सेवा समिति के प्रचार का जोरदार फंडा। बड़े बुजुर्गों की कहावत, गुप्त सेवा महा सेवा, सेवा ऐसी करो रे भाई किसी को कानों कान खबर ना हो भाई सामाजिक सेवा समितियों ने आत्मसत करने की जरूरत है।

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