दुनियां के हर देश में बसे भारतवंशी धनतेरस से भाई दूज तक फिर छठ महात्योहार में खुशियों से सरोबार होंगे
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर अगर हम गहराई से देखें तो भारत में करीब करीब हर दिन किसी न किसी पर्व को मनाने का होता है। कभी सामाजिक, जाति, धार्मिक तो कभी राष्ट्रीय तो कभी चुनावी पर्व मनाने का दिन होता है, जिसका एक महत्वपूर्ण भाव अनेकता में एकता है, इसके कारण ही भारत एक विशाल काय जनसंख्या वाला देश विभिन्न धर्मो जातियों उपजा तियां के बीच सर्वधर्म सद्भाव के प्रेम से संजोया हुआ एक खूबसूरत गुलदस्ता है, इसी लिए ही हर धर्म समाज का पर्व हर दिन आना स्वाभाविक है। परंतु उन कुछ पर्वों में से धनतेरस से दीपावली भी और फिर छठ महापर्व एक ऐसा खूबसूरत त्यौहार पर्व है जिसे भारत में ही नहीं पूरी दुनियां में बसे भारतवंशियों द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत आज 10 दिसंबर 2023 से हो गई है जो 5 दिन तक बड़ी सौहार्द पूर्ण के साथ और खुशियों के साथ मनाया जा रहा है, फिर अब दीपावली के छठवें दिन से छठ पर्व मनाया जाएगा, जो धार्मिक आस्था का खूब सूरत प्रतीक है। चूंकि दीप जले दीपावली आई, धनतेरस ने दीपावली का आगाज कर दिया है और पांच दिवसीय दीपावली पर्व का धनतेरस के भावपूर्ण स्वागत से शुरू हो गया है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जान कारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे दुनियां के हर देश में बसे भारतवंशी धनतेरस से भाई दूज तक फिर छठ के महात्योहार में खुशियों से सराबोर होंगे।
साथियों बात अगर हम दीपावली महापर्व की शुरुआत आज धनतेरस 10 नवंबर 2023 से शुरू होने की करें तो, दीपावली का शुभारंभ द्दनतेरस के दिन से ही हो जाता है और भाई दूज तक यह 5 दिवसीय उत्सव मनाया जाता है। सबसे पहले द्दन तेरस, फिर नरक चतुर्दशी, उसके बाद बड़ी दिवाली, फिर गोवर्द्धन पूजा और सबसे आखिर में भाई दूज पर इस पर्व की समाप्ति होती है।
धनतेरस इस बार आज 10 नवंबर को मनाई गई है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धन तेरस मनाई है। पौराणिक मान्यताओं में यह बताया गया है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन से भगवान द्दनवं तरी प्रकट हुए थे और उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। उन्हें विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है।
धनतेरस को उनके प्राक ट्योत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेरजी और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और सोने-चांदी के अलावा बर्तनों की खरीद करते हैं। धनतेरस को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तुओं में 13 गुना वृद्धि होती है और आपको धन की कमी नहीं होती। त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 10 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर होगा और अगले दिन 11 नवंबर को दोपहर में 1 बजकर 57 मिनट पर समाप्त होगी। धनतेरस का त्योहार प्रदोष काल में मनाया जाता है, इसलिए यह शु्क्रवार को 10 नवंबर को हुआ।
साथियों बात अगर हम पांच दिवसीय दीपावली महा पर्व की करें तो (1) पहला दिन-पहले दिन को धनतेरस कहते हैं। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदा चार्य धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम ‘धनतेरस’ पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। (2) दूसरा दिन – दूसरे दिन को नरकचतुर्दशी रूप चैदस और काली चैदस कहते हैं। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरका सुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन एवं स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्धघ् िहोती है।
(3) तीसरा दिन – तीसरे दिन को दीपावली कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। अतः इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए। दूसरी मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान रामचन्द्रजी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर घर लौटे थे।
श्रीराम के स्वागत हेतु अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाए थे और नगरभर को आभायुक्त कर दिया था। तभी से दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा है। 5 दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा दीपावली होता है।इस दिन रात्रि को धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश तथा द्रव्य, आभू षण आदि का पूजन करके 13 अथवा 26 दीपकों के मध्य 1 तेल का दीपक रखकर उसकी चारों बातियों को प्रज्वलित करना चाहिए एवं दीपमालिका का पूजन करके उन दीपों को घर में प्रत्येक स्थान पर रखें एवं 4 बातियों वाला दीपक रातभर जलता रहे, ऐसा प्रयास करें। (4) चैथा दिन-चैथे दिन अन्न कूट या गोवर्धन पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि को अच्छे से स्नान करा कर उन्हें सजाया जाता है। फिर इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं और उनका पूजन कर पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि त्रेता युग में जब इन्द्रदेव ने गोकुल वासियों से नाराज होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांव वासियों को गोवर्धन की छांव में सुरक्षित किया। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा भी चली आ रही है। (5) पांचवां दिन – इस दिन को भाई दूज और यम द्वितीया कहते हैं। भाई दूज, पांच दिवसीय दीपावली महापर्व का अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहन को अपने घर बुलाता है जबकि भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए पधारेंगे। साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से भाई दूज पर यह परंपरा बन गई।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि दीप जले दीपावली आई-धनतेरस ने किया दीपा वली पर्व का आगाज। पांच दिवसीय दीपावली पर्व धन तेरस के भावपूर्ण स्वागत से शुरू हुआ दुनियां के हर देश में बसे भारतवंशी धनतेरस से भाई दूज तक फिर छठ महात्योहार में खुशियों से सरोबार होंगे।
पांच दिवसीय दीपावली पर्व धनतेरस के भावपूर्ण स्वागत से शुरू हुआ
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