सीआरपीसी आईपीसी एविडेंस एक्ट को रिप्लेस करने वाले बिल संसद में पेश – संसदीय कमेटी को भेजें – शीघ्र कानून बनेंगे

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गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करने की दिशा में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के आधारस्तंभ सीआरपीसी, आईपीसी, एविडेंसएक्ट्र का रिप्लेसमेंट मील का पत्थर साबित होगा
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर भारत की बदलती तस्वीर नए भारत के विजन 2047 को बल देने के लिए माननीय पीएम ने 15 अगस्त को लाल किले से देश के सामने पांच प्रणों में से एक प्राण था गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना, जिसको साकार रूप देने के लिए अनेकों अंग्रेजों के शासनकाल के कानून रद्द कर दिए गए हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं रह गया था। परंतु संसद के मानसून सत्र 2023 में इस दिशा में एक ठोस कदम उठाया गया है जहां अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए भारतीयक्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में तीन महत्वपूर्ण कानून लागू किए थे जिन्हें अब रिप्लेस करने के लिए संसद में पेश किए गए हैं जिन्हें सिलेक्शन कमेटी में भेजा गया है,उम्मीद है शीत सत्र 2023 में वे भी कानून की शक्ल अख्तियार कर लेंगे जिसमें यह सीजेएस वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार हो जाएगा इन कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं, जो 1860-2023 तक सबसे बड़ा बदलाव है यानी अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम 1860- 20 23 तक के युग की समाप्ति करने की पहल कर डिजि टल इंडिया को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं। चूंकि सीआरपीसी आईपीसी और एविडेंस एक्ट क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की बुनियाद है और इन्हें रिप्ले स किया जा रहा है, इसलिए हम पीआईबी में उपलब्ध जानका री के सहयोग से इस आर्टिक ल के माध्यम से चर्चा करेंगे, सीआरपीसी आईपीसी एवि डेंस एक्ट को रिप्लेस करने वाले बिल संसद में पेश, संस दीय कमेटी को भेजे गए, शीघ्र कानून की शक्ल अख्ति यार कर लेंगे। साथियों बात अगर हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में कानूनों को रिप्लेस करने की करें तो इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित होगा, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विद्देय क, 2023 स्थापित होगा। समाप्त होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेजी शासन को मजबूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं, केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो ब्तच्ब् को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो प्च्ब् को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धा राओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय साक्ष्य विधेयक, जो एविडेंस को रिप्लेस करेगा, इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं। भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट,5 न्यायिक अकादमी 22 विधि विश्वविद्या लय,142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए हैंगृह मंत्री ने कहा कि 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो ब्तच्ब् को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है भारतीय न्याय संहिता, जो प्च्ब् को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। साथियों बात अगर हम इन तीनों कानूनों के बारे में जानने की करें तो, ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, कुल 475 जगह गुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर आज हम नए कानून लेकर आए हैं कानून में दस्तावेजों की परि भाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रा निक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लाग्स, कम्प्यू टर, स्मार्ट फोन, लैपटाप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेश नल साक्ष्य, डिवाइस पर उप लब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजि टलाइज करने का प्रावधान इस कानून में किया गया हैसर्च और जब्ती के वक्त वीडियोग्राफी को कंपल्सरी कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा, पुलिस द्वारा ऐसी रिकार्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी। तीन साल बाद हर साल 33 हजार फारेंसिक साइंस एक्स पर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे, कानून में लक्ष्य रखा गया है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है7 वर्ष या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फारेंसिक टीम की विजिट को कंपल्सरी किया जा रहा है, इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभा वना बहुत कम हो जाएगी। नागरिकों की सुविधा सुनिश् िचत करने के लिए आजादी के 75 सालों के बाद पहली बार जीरोएफआईआर को शुरू करने जा रही है जिसका उल्लेख आज12 अगस्त 2023, को माननीय पीएम ने एक संबोधन में भी किया, अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सके गा। पहली बार ई-एफआई आर का प्रावधान जोड़ा जा रहा है, हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अद्दिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में आनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा। यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिका र्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगापीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगीछोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है, अब 3 साल तक की सजा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे, इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे। बात इन तीनों नए कानूनों की विशेषताओं की करें तो, आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी, इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे, बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर आन लाइन उपलब्ध कराना होगा सिविल सर्वेंट या पुलिस अद्दि कारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए सरकार को 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमीशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाए गा। घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्राव द्दान लेकर आए हैं, अंतरराज् यीय गिरोह और संगठित अप राधो के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सजा का नया प्रावधान भी इस कानून में जोड़ा जा रहा है शादी, रोज गार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आधार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है, गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है।18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथअपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है, माब लिंचिग के लिए 7 साल, आजी वन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं। मोबाइल फोन या महिला ओं की चेन की स्नेचिंग के लिए कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब इसके लिए भी प्रावधान रखा गया हैहमेशा के लिए अपंगता आने या ब्रेन डेड होने की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। बच्चों के साथ अपरा ध करने वाले व्यक्ति के लिए सजा को 7 साल से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है, अनेक अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रावध्द्दान किया गया हैसजा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सजा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सजा में ही बदला जा सकेगा और किसी भी गुनह गार को छोड़ा नहीं जाएगा
साथियों बात अगर हम पिछले इन कानूनों में अक्सर राजद्रोह धारा के दुरुपयोग के बारे में जानने की करें तो, राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्त करने जा रही है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधि कार है। पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गति विधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखं डता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है। अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में एक ऐतिहासिक फैस ला किया है, सेशन्स कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस् िथति में ट्रायल होगा और उसे सजा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो दुनिया में कहीं भी छिपा हो, उसे सजा के खिलाफ अपील करने के लिए भारतीय कानून और अदालत की शरण में आना होगा, कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस् टम में एक आमूलचूल परिव र्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा। इस कानून में महिलाओं और बच्चो का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सजा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महि ला का शोषण करने और माब लिंचिग जैसे जघन्य अप राधों के लिए दंड का प्रावद्दा न और संगठित अपराधों और आतंकवाद पर नकेल कसने का काम भी किया है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तीन कानूनों का 1860-2023 का युग समाप्ति की प्रक्रिया शुरू सीआरपीसी आईपीसी एवि डेंस एक्ट को रिप्लेस करने वाले बिल संसद में पेश संस दीय कमेटी को भेजें – शीघ्र कानून बनेंगे। गुलामी की सभी निशानिययों को समाप्त करने की दिशा में क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के आधार स्तंभ सीआरपीसी, आई पीसी, एविडेंसएक्ट्र का रिप्लेसमेंट मील का पत्थर साबित होगा।

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