ब्लाक पिसावा की पंचायत कपसा में दिखी मनरेगा की असली हकीकत

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(बीके सिंह) सीतापुर। प्रदेश सरकार जहां कल्याण कारी योजनाओं को लागू करने के लिए पानी की तरीके से पैसा बहाती है। जिससे कि आम जनमानस को काम मिले और कार्य भी प्रभावी तरीके से हो सके लेकिन शासन की योजनाओं पर पानी फेर रहे मातहत आखिर कब तक बच पाएंगे यह बड़ा सवाल है, आखिर कौन है इनका रक्षा कवच? जिसके चलते भ्रष्टाचार हो जाता है और कानो कान खबर तक नहीं होती यहां तक की एक और काम होता है और दूसरे और को यह पता नहीं कि कार्य में बड़े पैमाने पर लाखों का भ्रष्टाचार हो रहा है और यह गुनाह जिम्मेदारों की निगरानी में हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं आखिरकार अगर जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी समझ रहे हैं तो फिर यह गुनाहगार जो सरकारी पैसे को बपौती समझकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती? मामला बड़ा आम खास है और योजना मनरेगा से जुड़ा हुआ है, जिसमें लाखों रुपए का घोटाला जिम्मेदारों की निगाहों से कैसे बच रहा है सवाल खड़े हो रहे हैं बताते चलें कि पिसावां विकासखंड की ग्राम पंचायतों में ऐसा देखने को मिला जो हैरतअंगेज करने वाला है। लेकिन उसके बावजूद सवाल के कटघरे में जिम्मेदार आ रहे हैं और अब तक जो भी हुआ उसमें कितना भ्रष्टाचार हुआ इसका आकलन लगाया जा सकता है इसी ब्लाक की ग्राम पंचायत कपसा में मनरेगा का कार्य बड़ी जोर शोर से कागजों पर चल रहा है और यहां पर सैकड़ों की संख्या में अब तक मजदूर कागजों पर दिखाई दे रहे थे जिस पर संवाददाता ने इसकी परख के लिए अपनी टीम के साथ स्थानीय स्तर पर जाकर जमीनी हकीकत देखी तो आंखें खुली रह गई। जिसमें कागज पर दो कार्य चल रहे हैं और सैकड़ों की संख्या पर लेबरों का भुगतान किया जा रहा है। कमलेश के खेत के पास बंधा निर्माण कार्य, चमन पुत्र बृजलाल के खेत का भूमि सुधार एवं मेड़बंदी कार्य सिर्फ कागजों पर चल रहा है। जिसकी हकीकत जानने टीम पहुंची तो वहां पर ना तो कोई मजदूर कार्य करता मिला। सूत्र यह भी बताते हैं की है कार्य करीब 4-5 दिन पहले कुछ लेबर चले थे उसके बाद से कार्य बंद है सिर्फ कागजों पर पैसा निकालने का कार्य किया जा रहा है। तो वही हकीकत में जानकारी हो की सैकड़ों की संख्या में मजदूर दिखाए जाते हैं? क्या आज भी ऐसा ही है यह आज मजदूर नहीं आए ऐसा क्या कहा जा सकता है कुल मिलाकर जो देखा गया वह यही साबित करता है कि केवल गिनती के मजदूर दिखाई दिए और बातें हो रही हैं कि सैकड़ों की संख्या की तादाद में प्रति दिवस मजदूर दिखाए जाते हैं अब देखना यह है कि जिम्मेदारों की जिम्मेदारी आंखों के सामने आने पर क्या उन्हें याद आएगी फिलहाल तो यह आगे की कार्यवाही ही बताएगी कि ऊंट किस करवट बैठता है।

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