एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
द केरल स्टोरी – टैक्स फ्री बनाम बैन
वैश्विक स्तरपर भारत संस्कृति सभ्यता आध्यात्मिकता का प्रतीक रहा है। लेकिन सांस्कृतिकता की धरोहर नाटकों फिल्मों के क्षेत्र में भी भारत का बहुत विशिष्ट पुराना इतिहास रहा है। हमने दशकों पूर्व बचपन में अनेक धार्मिक फिल्में देखी है। भारतीय टैक्स फ्री फिल्मों का चलन भी लंबे समय के इतिहास से चला रहा है जो, 63 साल पूर्व 1960 में आई सत्येन बोस की फिल्म मासूम, 1964 में चेतन आनंद की हकीकत, 1977 में मनोज कुमार की शिर्डी को भी टैक्स फ्री किया गया था। उसी तरह विवादापस्थ फिल्मों पर भी विवाद और बैन विवाद का डंडा चला था जिसमें पानीपत, बाजीराव मस्ताना, पद्मावत, आंधी, द कश्मीर पाइल्स के बाद अब द केरल स्टोरी पर भी पक्ष विपक्ष के बीच हंगामा हो रहा है। चूंकि आज द केरल स्टोरी की चर्चा सारे देश से लेकर हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक और प्रद्दानमंत्री से मुख्यमंत्रियों और अन्य मंत्रियों तक भी तथा अनेक राज्यों में टैक्स छूट से लेकर बैन तक उथल पुथल मची हुई है, जो एक राज्य मैं 10 तारीख को संपन्न हुए चुनावी सभाओं में भी खूब गरमाया रहा, इसलिए मीडिया में उपलब्ध जानकारी, टीवी चैनलों पर डिबेट के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से हम चर्चा करेंगे द केरल स्टोरी टैक्स फ्री बनाम बैन। राज नीति की आड़ में भ्रष्टाचार, सत्ता का भोग, प्रतिशोध, गलत प्रेक्टिस, कहानियां, हकीकत पर हमेशा से ही सिनेमा का हिस्सा रहा है।
साथियों बात अगर हम इसके सुप्रीम कोर्ट तक जाने की करें तो दिनांक 9 मई 2023 को, सुप्रीम कोर्ट 15 मई 2023 को उस याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया है, जिसमें विवादास्पद फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार करने वाले केरल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई, जो 5 मई 2023 को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। वकील ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मामला कुछ अत्यावश्यक है और कहा, यह राज्य की कहानी से संबंधित है। इसमें किसी प्रकार की तात्कालिकता है।
हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया है, उन्होंने अंतरिम रोक से इनकार कर दिया है। उनके अनुरोध पर अदालत 15 मई 2023 को मामले की सुनवाई करने पर सहमत हुई। केरल हाईकोर्ट की दो न्यायमूर्तियांे खंडपीठ ने 5 मई को फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि फिल्म ने केवल इतना कहा कि यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रमाणित किया है। खंडपीठ ने फिल्म का ट्रेलर भी देखा और कहा कि इसमें किसी विशेष समुदाय के लिए कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि याचिका कर्ताओं में से किसी ने भी फिल्म नहीं देखी है और निर्माताओं ने डिस्क्लेमर जोड़ा है कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण है। हालांकि, हाईकोर्ट ने निर्माता की यह दलील भी दर्ज की कि फिल्म का टीजर, जिसमें दावा किया गया कि केरल की 32, हजार से अधिक महिलाओं को..उसको उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स से हटा दिया जाएगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी फिल्म के खिलाफ याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था। बेंच ने याचिकाकर्ता को राहत के लिए फिर से हाईकोर्ट जाने को कहा था। फिल्म को लेकर काफी विवाद हो रहा है और कई राजनीतिक पार्टियों ने फिल्म की रिलीज का विरोध किया था। वहीं फिल्म को लेकर हो रही कान्ट्रोवर्सी के बीच सेंट्रल बोर्ड आफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने इसे ए सर्टिफिकेट दिया है इसके साथ ही कई सीन्स पर सेंसर बोर्ड की कैंची भी चल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ में डिस्क्लेमर की मांग वाली याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ताओं से हाई कोर्ट जाने को कहा।
याचिकाकर्ता इस डिस्क्लेमर की मांग कर रहे हैं कि फिल्म काल्पनिक पर आधारित है न कि सच्ची कहानी पर। कोर्ट ने कहा था कि वह सभी मामलों की सुनवाई नहीं कर सकता है और याचिकाकर्ताओं को आवश्यक राहत पाने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, उच्च न्यायालय जल्द से जल्द मामले की सुनवाई पर विचार कर सकता है।
साथियों बात अगर हम फिल्म को बैन संबंधी मांग की करें तो, फिल्म को बैन करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक याचिकाएं दी गईं, लेकिन फिल्म पर बैन नहीं लगा। मध्घ्य प्रदेश, यूपी जैसे अनेक राज्यों ने फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है, जबकि तमिल नाडु में मल्टीप्लेक्स एसो- सिएशन ने इस फिल्म को दिखाने से इनकार कर दिया है। बंगाल ने भी बैन किया है। सेंसर बोर्ड सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 और सिनेमेटो- ग्राफी रूल 1983 के तहत काम करता है। मतलब सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं घोषित कर सकता। लेकिन यहां एक खेल है, सेंसर बोर्ड चाहे तो फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर सकता है, और जिस फिल्म को सेंसर बोर्ड सर्टिफिकेट नहीं देता वो किसी भी थिएटर में रिलीज नहीं हो सकती। देखा जाए तो यह बैन करने जैसा ही हुआ। साल 2022 में 31 मार्च के दिन केंद्र सरकार ने राज्यसभा में कहा था कि सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकती मगर सिनेमेटोग्राफ एक्ट 1952 (ब) के तहत गाइडलाइन के उल्लंघन पर सर्टिफिकेट देने से मना कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि- फिल्म सेंसरशिप जरूरी है, और इस लिए जरूरी है क्योंकि एक फिल्म में दिखाई गई चीजें दर्शकों को इन्फ्लुएंस करती हैं। फिल्में दर्शकों के दिमाग पर मजबूत प्रभाव डालती हैं और उनकी भावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं। फिल्में जितनी अच्छी चीजें सिखा सकती हैं उतनी ही बुराई भी फैला सकती हैं। साथियों बात अगर हम फिल्म को टैक्स फ्री करने की करें तो, किसी फिल्म को टैक्स फ्री कब घोषित किया जाता है। इसके लिए कोई तय नियम नहीं है। फिल्म में संबोधित विषयों की प्रासंगिकता के अपने मूल्यांकन के आधार पर, राज्य सरकारें अलग-अलग फिल्मों के आधार पर कर आय के अपने दावे को छोड़ने या न करने का निर्णय ले सकती हैं। किसी विशिष्ट क्षेत्र में पर्यटन या उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण विषयों पर विचार किया जा सकता है। यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार क्या सोचती है। यह विषय, जागरूकता फैलाने का कारण हो सकता है और ये अलग-अलग फिल्मों के विषय पर निर्भर करता है। 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की शुरुआत से पहले, भारत में प्रत्येक राज्य की अपनी मनोरंजन कर दर थी। अगर किसी फिल्म को कर-मुक्त दर्जा दिया जाता है तो मनोरंजन कर माफ कर दिया जाता है और इसका मतलब यह होगा कि टिकट काफी निजी कीमत पर उपलब्ध होंगे।
जीएसटी के लागू होने के बाद, शुरुआत में मूवी टिकट पर 28 फीसदी कर की दर लगाई गई थी। हालांकि, बाद में दो अलग -अलग टैक्स स्लैब पेश किए गए, 100 रू से कम कीमत वाले टिकट पर 12 फीसदी जीएसटी और 100 रू से ऊपर की कीमत वाले टिकट पर 18 फीसदी जीएसटी। इस कर से उत्पन्न राजस्व संघीय और राज्य सरकारों के बीच समान रूप से वितरित किया जाता है। अब, जब कोई राज्य किसी फिल्म को कर-मुक्त घोषित करता है, तो वह केवल आधे मनोरंजन कर से छूट देता है, जो टिकट की कीमत के आधार पर या तो 9 फीसदी या 6 फीसदी होगा। इसका मतलब यह है कि कर-मुक्त राज्यों में मूवी टिकट अभी भी सस्ते हो सकते हैं, लेकिन छूट अब उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी। एक सामान्य नियम के रूप में, जब कोई फिल्म सामाजिक रूप से प्रासंगिक और प्रेरक विषय से संबंधित होती है, तो राज्य सरकारें कभी-कभी इसे व्यापक दर्शकों के लिए सुलभ बनाने के इरादे से कर से छूट दे सकती हैं।
द कश्मीर फाइल्स के दर्शकों को आकर्षित करने और राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने के साथ, विभिन्न सरकारों ने फिल्म को कर-मुक्त घोषित किया है, जिसमें हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि द केरल स्टोरी – टैक्स फ्री बनाम बैन। फिल्म में डिस्क्लेमर जोड़ा है कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण है, यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित – सीबीएफसी द्वारा ए सर्टिफिकेट दिया गया है। राजनीति की आड़ में भ्रष्टाचार, सत्ता का भोग, प्रतिशोध, गलत प्रैक्टिस की कहानियां और हकीकत हमेशा से ही सिनेमा का हिस्सा रहा है।
फिल्म में डिस्क्लेमर जोड़ा है कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण है, यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित – सीबीएफसी द्वारा ए सर्टिफिकेट दिया गया है
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