युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो और देश का भविष्य उज्जवल हो क्या यह संभव है

RAJNITIK BULLET
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(राजेश कुमार)
मुरादाबाद। भारत की संपूर्ण जनसंख्या का लगभग एक तिहाई 45 करोड़ युवा जो अपने घरों से रोजगार के लिए बाहर निकले थे वह रोजगार ना मिलने के कारण निराश हताश होकर अपने घरों को वापस लौट गए। आप उनकी मानसिक स्थिति, सामाजिक स्थिति तथा परिवार और समाज का उपेक्षित व्यवहार उनको मझधार में अटकी नौका के समान महसूस हो रहा होगा और यह स्थिति आत्महत्या या किसी गलत रास्ते पर जाने के लिए मजबूर कर देती है। ऐसी स्थिति में इंसान सही और गलत में भेद नहीं कर पाता है। देश का युवा देश का भविष्य होता है परंतु जब देश का आधे से अधिक युवा निराश, हताश और किंकर्तव्यविमूढ की स्थिति में है। आप सोचिए देश के युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो और देश का भविष्य उज्जवल हो क्या यह संभव है? जैसे-जैसे पूंजीपतियों के हाथ में ज्यादा से ज्यादा संसाधन देते जाएंगे, मौजूदा आर्थिक संकट जिसके परिणाम बेरोजगारी और मंदी, ज्यादा तेजी पकड़ती जाएगी, मौजूदा संकट के और गहरा होने पर अर्थात दलदल में फंसने के उपरांत हिंदुत्व से लैस सरकार तेज सांप्रदायिक हमला करके असली संकट (शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार) से लोगों का ध्यान भटकाने की हर संभव कोशिश करेगी इसके अलावा उनके पास और कोई रास्ता ही नहीं है जिससे वास्तविक संकट और बढ़ता ही जाएगा। हकीकत में अपने लगने वाले लोग भी गरीबी अमीरी के आधार पर देखते देखते कैसे अलग हो जाते हैं और अलग-अलग लगने वाले लोग परंतु आर्थिक स्थिति के समान होने पर किसी भी जाति और धर्म के लोग देखते देखते एक हो जाते हैं। एक ही जगह पहुंच जाते हैं, क्योंकि उनके हित एक जैसे हो जाते हैं, उनका स्टेटस एक जैसा हो जाता है, लेकिन आदमी जाति और धर्म के चक्कर में इतना बेहोश और नशें में है कि हकीकत को पहचान ही नहीं पाता कि उसी जाति और धर्म के लोग उसका किस प्रकार शोषण कर रहे होते हैं। देखिए ट्रेन की जनरल बोगी में, लैट्रिन में कैसे गरीब लोग जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के समान हुए बिना भी ठूंस-ठूंस के भरे हुए होते हैं। क्या उसमें उनकी जाति और धर्म के बड़े लोग यात्रा कर रहे होते हैं, वह यदि उसी ट्रेन में भी होते हैं तो एसी के फर्स्ट क्लास डिब्बे में चल रहे होते हैं, हवाई जहाज में कौन यात्रा कर रहा होता है उस समय उसी बिरादरी का गरीब मजदूर कैसे अलग हो जाता है, जिससे उनका उस जाति और धर्म के लोगों से कोई भी संबंध नहीं होता है, आटो रिक्शा, टेंपो में बेहद परेशानी से यात्रा कर रहे होते हैं, क्या उसी जाति और धर्म के लोग टैंपू के पायदान रिक्शा, आटो रिक्शा, साइकिल से चल रहे होते हैं। क्या लंबी- लंबी राशन की दुकानों पर, सरकारी अस्पताल की लाइन में क्या उसी जाति धर्म के अमीर लोग उनके साथ लगे हुए होते हैं। क्या इनके सुख दुख से उनकी जाति के अमीर लोगों को कोई मतलब होता है, नहीं भाइयों यही सच्चाई है। लेकिन जब तक हम जाति और धर्म के नशे में रहेंगे तब तक जाति और धर्म के नाम पर नफरत फैलाकर शोषक, शोषितों का हमेशा शोषण करता रहेगा। इसलिए वर्गीय एकता कायम करके संघर्ष के माध्यम से अपने हक अधिकारों को लीजिए। भारतीय संविधान का एकमात्र उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी कम करना है, परंतु आर्थिक गैर बराबरी इस हद तक बढ़ गई है कि एक परसेंट लोगों की संपत्ति 80 परसेंट हो गई है, साथ ही सर्वोच्च धनाढ्य लोगों की संपत्ति इतनी बढ़ गई है कि देश के 50 परसेंट लोगों के पास भी उतनी संपत्ति नहीं है जितनी की सर्वोच्च संपन्न लोगों के पास है, सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी बढ़ने से राजनीति में एक व्यक्ति एक वोट और उसकी सामान वैल्यू का भी कोई अर्थपूर्ण उद्देश्य नहीं रह जाएगा, कहने का मतलब यह है की सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी बढ़ने से राजनीतिक लोकतंत्र स्वत ही समाप्त हो जाएगा, चाहे लोग वोट के माध्यम से सरकार क्यों ना चुनते रहे, यह एक गंभीर और चिंतनीय मुद्दा है। गंदगी/कूड़ो के ढेर से रोजी-रोटी का जुगाड़ करने वाले कल परसों से हिंदुओं के मोहल्लों में कूड़ो के ढेर को बेशकीमती धरोहर समझकर लूटने में लगे थे, मैंने रुक कर पूछा कि आपके अच्छे दिन कब आएंगे, उनका जवाब था इन 2 दिन तो मौज रही है, काफी कूड़ा मिला है, रात्रि के 8 बजे भी गंदगी के ढेर से इसलिए नहीं हट रहे थे कि सुबह तक कोई दूसरा ना ले जाए, अर्थात न्यू इंडिया और विश्व गुरु भारत में भी गंदगी/कूड़ा के ढेर से रोजी रोटी का जुगाड़ करने वालों की लंबी लाइन है, मेरे लिए वह भावनात्मक पल था, आंखें नम थी, लेकिन वह कर्मवीर की तरह कर्म करने में जुटे हुए थे, काश इनको और इनके बच्चों को अच्छी शिक्षा का मौका मिल जाता तो इनमें से भी कोई डाक्टर अंबेडकर या शहीद ए आजम भगत सिंह इत्यादि, जैसा महान व्यक्तित्व निकल सकता था, अवसरों के अभाव में देश कितनी मेधाओं से वंचित हो रहा है। आज भी भूखमरी की हालत यह है कि हमारी दयालु भारत सरकार 80 करोड़ लोगों को फ्री में खाद्यान्न उपलब्ध करा रही है। दीपावली के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक शुभ कामनाएं इस आशा और विश्वास के साथ कि मातालक्ष्मी की कृपा से धन बरसे या ना बरसे। परंतु भूख/रोटी के लिए कोई ना तरसे।

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