(एड. किशन सनमुखदास भावनानी)
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर यह बात एकमत सर्वमान्य है कि भारतीय बौद्धिक क्षमता की कुशलता का जवाब नहीं है जिस तरहसे पिछले कुछ वर्षों से वैश्विक स्तरपर हम उपलब्धियों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रतिष्ठा के झंडे गाड़ रहे हैं, उसको देखते हुए मेरा मानना है कि इसके पूर्व हमने इस तरह की उपलब्धियां देखें सुने नहीं हैं, क्योंकि जिस तरह योजनाएं बनाकर लागू हो रही है और सफलताओं के झंडे गाड़ रही है, उसके पीछे उसे क्रियान्वयन करने की रणनीति होती है। मेरा मानना है कि अगर हम योजनाएं बना रहे हैं तो उसे क्रियान्वयन करने या अमल में लाने की पूरी पुख्ता तैयारी करना जरूरी होता है ताकि उसे उचित रणनीति से क्रियान्वयन किया जा सके। सिर्फ योजनाएं बनाने से नहीं बल्कि उनके सफल क्रियान्वयन से ही अपेक्षित परिणाम प्राप्त होते हैं, जिसके लिए कुशल नेतृत्व का होना अत्यंत आवश्यक है। चूंकि आज 10 नवंबर 2022 को केंद्र सरकार एक कार्य योजना लागू करने जा रही है इसलिए आज हम, इलेक्ट्रानिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी और पीआईबी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 का आगाज – 5 दिसंबर 2022 को प्रीलान्च।
साथियों बात अगर हम केंद्र सरकार की 5 दिसंबर 2022 से लागू योजना की करें तो, मोटे अनाज के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक कार्य योजना तैयार की है। सरकार ने दुनिया भर में मोटे अनाज के निर्यात और प्रचार के लिए 16 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एक्सपो और क्रेता-विक्रेता सम्मेलन में निर्यातकों, किसानों और व्यापारियों की भागीदारी के लिए यह योजना बनाई है। कार्य योजना के अनुसार विदेशों में भारतीय दूतावासों को अनाज की ब्रांडिग और प्रचार की जिम्मेदारी दी है। इसमें संभावित खरीददारों जैसे डिपार्टमेंटल स्टोर्स, सुपर मार्केट्स और हाइपर मार्केट्स की पहचान करना जिससे व्यापारिक बैठकें और समझौते किये जा सकें। भारतीय मोटे अनाज को बढ़ावा देने के हिस्से के रूप में, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने विभिन्न वैश्विक प्लेटफार्मों पर मोटे अनाज और इसके मूल्यवर्धित उत्पादों को प्रदर्शित करने की योजना बनाई है। संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में घोषित किया है। भारत मोटे अनाज का प्रमुख उत्पादक है। वैश्विक उत्पादन में भारत की लगभग 41 प्रतिशत की अनुमानित हिस्सेदारी है। देश में 2021-22 में मोटे अनाज के उत्पादन में 27 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। देश में राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश शीर्ष पांच मोटे अनाज के उत्पादक हैं। अनुमान है कि मोटे अनाज का बाजार 9 अरब डालर से बढ़कर 2025 तक 12 अरब डालर हो जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 का प्री-लान्च 05 दिसम्बर 2022 को होगा। इसमें एफपीओ जैसे सघ्लाई चैन के हितधारक, स्टार्ट अप्स, निर्यातक, मोटे अनाज आधारित मूल्यवर्धित उत्पादों के उत्पादकों को शामिल किया जाएगा। इसके अतिरिक्त भारतीय मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिए इंडोनेशिया, जापान, ब्रिटेन आदि देशों में क्रेता- विक्रेता बैठकें आयोजित की जाएंगी। सरकार रेडी टू ईट (आरटीई) तथा रेडी टू सर्व (आरटीएस) श्रेणी में नूडल्स, पास्ता, ब्रेकफास्ट सीरियल्स मिक्स, बिस्कुट, कुकीज, स्नैक्स, मिठाई जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों के निर्यात प्रोत्साहन के लिए स्टार्टअप को भी सक्रिय कर रही है। 16 प्रमुख किस्म के मोटे अनाजों का उत्पादन होता हैं और उनका निर्यात किया जाता है। इनमें ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, चीना, कोदो, सवा/सांवा/ झंगोरा, कुटकी, कुट्टू, चैलाई और ब्राउन टाप मिलेट हैं।
सरकार रेडी टू ईट (आरटीई) तथा रेडी टू सर्व (आरटीएस) श्रेणी में नूडल्स, पास्ता, ब्रेकफास्ट सीरियल्स मिक्स, बिस्कुट, कुकीज, स्नैक्स, मिठाई जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों के निर्यात प्रोत्साहन के लिए स्टार्टअप को भी सक्रिय कर रही है। एपीईडीए ने दक्षिण अफ्रीका, दुबई, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, सऊदी अरब, सिडनी, बेल्जियम, जर्मनी, ब्रिटेन तथा अमेरिका में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के कार्यक्रम बनाए हैं। एपीईडीए इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण फूडशो, क्रेता-विक्रेता बैठकों और रोड शो में भारत के विभिन्न हितधारकों की भागीदारी में सहायता करेगा।
साथियों बात अगर हम 28 अगस्त 2022 को पीएम के मन की बात में मोटे अनाज के उल्लेख की करें तो, उसमे मोटे अनाज की पौष्टिकता पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा था कि भारत में आदि काल से ही मोटे अनाज की खेती होती रही है और वह हमारे भोजन का अहम हिस्सा रहे हैं। स्वयं अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया कि मैं पिछले कई वर्षों से विदेशी मेहमानों के भोजन में मोटे अनाजों से बने कुछ पकवान अवश्य रखता हूं और उनका महत्व भी बताता हूं। मोटे अनाज को महत्व दिलाने के लिए उनकी सरकार ने वर्ष 2018 को मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था। अब भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अगले वर्ष अर्थात 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जिसे 70 देशों ने समर्थन दिया है।
राशन प्रणाली के तहत मोटे अनाजों के वितरण पर जोर दिया जा रहा है आंगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन योजना में भी मोटे अनाजों को शामिल कर लिया गया है। मोटे अनाजों में मुख्य रूप से बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी और जौ शामिल हैं। ये हर दृष्टि से सेहत के लिए लाभदायक हैं। पिछली सदी के सातवें दशक में हरित क्रांति के नाम पर गेहूं व धान को प्राथमिकता देने से मोटे अनाज उपेक्षित हो गए। इसके बावजूद पशुओं के चारे तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढ़ने के कारण इनका महत्व बना रहा। कोरोना के बाद मोटे अनाज इम्युनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इन्हें सुपर फूड कहा जाने लगा है।
साथियों बात अगर हम मोटे अनाज के फायदों की करें तो, न केवल सेहत, बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी मोटे अनाज किसी वरदान से कम नहीं। इनकी पैदावार के लिए पानी की जरूरत कम पड़ती है। खाद्य व पोषण सुरक्षा देने के साथ-साथ ये पशु चारा भी मुहैया कराते हैं। इनकी फसलें मौसमी उतार-चढ़ाव भी आसानी से झेल लेती हैं। इसका यही अर्थ है कि पानी की कमी और बढ़ते तापमान के कारण खाद्यान् उत्पादन पर मंडराते संकट के दौर में मोटे अनाज उम्मीद की किरण जगाते हैं, क्योंकि इनकी खेती अधिकतर वर्षाधीन इलाकों में बिना उर्वरक-कीटनाशक के होती है। पोषक तत्वों की दृष्टि से ये गुणों की खान हैं। प्रोटीन व फाइबर की भरपूर मौजूदगी के चलते मोटे अनाज डाइबिटीज, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप का खतरा कम करते हैं। इनमें खनिज तत्व भी प्रचुरता में होते हैं, जिससे कुपोषण की समस्या दूर होती है। इन्हें लेकर बढ़ती जागरूकता का ही नतीजा है कि जो मोटे अनाज कभी गरीबी के प्रतीक माने जाते थे, वे अब अमीरों की पसंद बन गए हैं। हम एक ऐसे दौर में रह रहे हैं, जहां जीवन शैली में बदलाव के कारण कई बीमारियां बढ़ रही हैं। इन बीमारियों में मोटे अनाज फायदेमंद हैं। इससे मोटे अनाज का बाजार लगातार बढ़ रहा है। दुनिया में तमाम लोगों को ग्लूटेन से एलर्जी होती है। मोटे अनाज ग्लूटेन मुक्त होते हैं। इसलिए इनके निर्यात की संभावनाएं भी बढ़िया हैं। चावल और गेहूं जैसे अधिक खपत वाले अनाजों की तुलना में मोटे अनाजों के पौष्टिक मूल्य अधिक होते हैं। मोटे अनाज कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होते हैं और बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को मजबूत करने में मदद करता है। साथ ही, शिशु आहार और पोषण उत्पादों में मोटे अनाजों का उपयोग बढ़ रहा है। देश में उपलब्ध भूजल का 80 प्रतिशत खेती में इस्तेमाल होता है। मोटे अनाजों की खेती से बड़ी मात्रा में पानी बचाया जा सकता है। यदि भारत को पोषक खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग से निपटना है तो वर्षाधीन इलाकों में दूसरी हरित क्रांति जरूरी है। यह तभी संभव है जब कृषि शोध और मूल्य नीति मोटे अनाजों को केंद्र में रखकर बने। मोटे अनाजों की खेती मुख्य रूप से छोटे एवं सीमांत किसान करते हैं, तो उन्हें बढ़ावा देने से छोटी जोतें भी लाभकारी बन जाएंगी। सरकार गेहूं-धान की एक फसली खेती के कुचक्र से निकालकर विविध फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत पोषक अनाज उपमिशन के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 का आगाज – 5 दिसंबर 2022 को प्रीलान्च मोटा अनाज पोषण तत्वों की दृष्टि से गुणों की खान है पर्यावरण की दृष्टि से वरदान है। भारत की पहल पर 70 देशों के समर्थन से अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष 2023 घोषित होना कुशल नेतृत्व की गाथा है।
मोटा अनाज पोषण तत्वों की दृष्टि से गुणों की खान है, पर्यावरण की दृष्टि से वरदान है
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