माध्यमिक शिक्षा के उतार-चढ़ाव

RAJNITIK BULLET
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(राजेश कुमार वर्मा) आज शिक्षा में नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं जैसे शिक्षा एक प्रयोग में प्रयोगात्मक विषय बनकर रह गया है। हमारे देश के शिक्षाविदों ने जो शिक्षा का ढांचा खड़ा किया था वह कितना अच्छा था जब विद्यालयों का समय शरद कालीन और ग्रीष्मकालीन मौसम के अनुसार था। विद्यालयों को वास्तव में देखा जाए तो धरातल पर और कागजों पर कुछ और है बहुत अधिक अंतर है। विद्यालयों में प्रयोगशाला ही नहीं हैं यदि हैं अभी तो उनमें उपकरणों का अभाव है। आज का विद्यार्थी प्रयोग में लाए जाने वाले उपकरण के नाम पर नाम तक नहीं जानता है। परीक्षा प्रणाली के दोषों को दूर करने के लिए अनेक आयोगों, समितियों, शिक्षा शास्त्रियों, अनुसंधानकर्ताओं और सामान्य नागरिकों को समय-समय पर समितियां अपने विचार प्रस्तुत किए। जिसमें कई आयोजित आयोगों ने काम किया जैसे राधा कृष्ण आयोग मुदालियर आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूजीसी शिक्षा मंत्रालय तथा विभिन्न समितियों आदि ने तथा विद्वानों शिक्षाविदों व अध्यापकों के द्वारा विभिन्न कार्यालयों एवं विचार गोष्ठियों में कक्षाओं में सुधार करने के लिए अनेक सुझाव दिए लेकिन आज जो नए नए प्रयोग किए जा रहे हैं विद्यालय तो खोले गए हैं लेकिन वह विद्यालय जो मान्यता का मानक भी पूरा नहीं करते हैं उन्हें परीक्षा केंद्र बनाया जाता है जो छात्रों के हित में नहीं है छात्र इससे कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं।

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