(राममिलन शर्मा)
रायबरेली। सेन्ट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ओपी यादव ने कहा कि एक मई का दिन दुनिया के मजदूरों एवं श्रमिक वर्ग को समर्पित है। मजदूरों के राष्ट्र निर्माण में उनके अमूल्य योगदान को सलाम करने का दिन है, लेकिन यह भी सच है कि सत्ता में बैठे लोगों ने कल कारखानों के मालिकों, उद्योगपतियों एवं पूंजीपतियों व सामंतवादियों की स्वार्थी एवं मजदूरों के शोषण की प्रवृत्ति के कारण मजदूर की मुट्ठी में कभी पेट भरने को दाने नहीं आये। वर्त मान सरकार आत्म निर्भरता के नाम पर लोगों को आलसी और अपाहिज बना रही है। पांच किलो अनाज देकर उनका मुँह बन्द कर देती है कि वह अपने अधिकार की आवाज न उठा सके, लोगों का मानना है कि हमें पेट भरने के लिए मछली न दी जाय बल्कि मछली पकड़ने का हुनर सिखाया जाय, जिससे वे आत्म निर्भर हो सके। सरकार के जुमलेबाजी घोषणाओं के कारण नौजवानों में हताशा और निराशा ने जन्म ले लिया है, जो देश के भावी कर्णधारों के लिए चिन्ता का विषय है। अरविन्द कुमार बाजपेयी एडवोकेट ने कहा कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मजदूरी मिल जानी चाहिए। डीजीसी रेवेन्यू दिनेश कुमार यादव ने कहा कि मजदूरों के हक की बात हम इसलिए करते हैं कि यदि कोई फावड़ा का मजदूर है तो हम कलम के मजदूर हैं। आर.एस. वर्मा एडवोकेट ने कहा कि भारत में मजदूर दिवस 1 मई 1923 को मद्रास में सबसे पहले मनाया गया। डी.एन. पाल एडवोकेट ने कहा कि मई दिवस की शुरूवात लेबर किसान पार्टी हिन्दुस्तान ने शुरू किया था। इस अवसर पर आरपी सिंह, राम प्रकाश यादव, अनुज बरवारी, राम सागर, शुभम कुशवाहा, संदीप यादव, मनोज कुमार सिंह, संदीप वर्मा, रामशंकर वर्मा आदि अधिवक्ताओं ने मजदूर दिवस पर आयोजित गोष्ठी में अपने-अपने विचार रक्खे।
मजदूर की मुट्ठी में कभी पेट भरने के दाने नहीं आये – ओपी यादव
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