शोध को डॉक्टर्स मे एक ब्रेन डेड मरीज के उपर ट्राय किया है जिसमें पाया कि सुअर की किडनी लगाने के बाद वह सही तरीके से काम कर रहा है लेकिन मान ब्रेन डेड रोगी होने के कारण मनुष्य की प्रतिक्रिया इसमें नहीं मिल सकी हैं। यह परिक्षण केवल 54 घंटों के लिए किया गया था।
इंसान में सूअर की किडनी का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट
इस शोध को डॉक्टर्स मे एक ब्रेन डेड मरीज के उपर ट्राय किया है जिसमें पाया कि सुअर की किडनी लगाने के बाद वह सही तरीके से काम कर रहा है लेकिन मान ब्रेन डेड रोगी होने के कारण मनुष्य की प्रतिक्रिया इसमें नहीं मिल सकी हैं। यह परिक्षण केवल 54 घंटों के लिए किया गया था। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने कहा कि यह प्रक्रिया एक मील का पत्थर है। डॉ डॉरी सेगेव, जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल ऑफ मेडिसिन में प्रत्यारोपण सर्जरी के प्रोफेसर, जो शोध में शामिल नहीं है, ने कहा कि “हमें अंग की लंबी उम्र के बारे में और जानने की जरूरत है। फिर भी यह एक बड़ी सफलता है।
अमेरिकी सर्जनों के कारनामे से दुनिया हैरान
2014 में, कैलिफोर्निया के ला जोला में सिंथेटिक जीनोमिक्स नामक एक फर्म ने एक अनूठी और क्रांतिकारी परियोजना पर काम शुरू किया। विचार यह था कि सूअरों में आनुवंशिक परिवर्तनों का एक समूह बनाया जाए ताकि उनके अंग बिना अस्वीकृति के मनुष्यों में प्रत्यारोपण के लिए अधिक उपयुक्त हो सकें। इसका उद्देश्य प्रत्यारोपण के लिए अंगों की बढ़ती कमी को दूर करना था। सिंथेटिक जीनोमिक्स ने सिल्वर स्प्रिंग, मैरीलैंड में स्थित एक अन्य बायोटेक फर्म, यूनाइटेड थेरेप्यूटिक्स कॉर्पोरेशन के साथ भागीदारी की। यूनाइटेड थेरेप्यूटिक्स का मानना है कि अकेले अमेरिका में, हर साल 1 मिलियन लोगों को अंतिम चरण के अंग रोग होते हैं और उन्हें हृदय, गुर्दे या फेफड़े के प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है।