(मोनू शर्मा) कोंच (जालौन)। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने केंद्र सरकार को पूंजीपतियों की सरकार बताते हुए कहा कि सरकार ने धन्नासेठों की तिजोरी में बैठ कर किसानों का अस्तित्व खत्म करने बाले कृषि कानून बनाए हैं। जिन कानूनों को त्रुटि रहित बता कर सरकार अपनी पीठ ठोंक रही थी वही सरकार वार्ता की मेजों पर कम से कम एक दर्जन संशोधनों के लिए राजी हो गई थी। यह इस बात का संकेत है कि सरकार द्वारा बनाए गए तीनों कृषि कानून किसानों की नहीं पूंजीपतियों की भलाई के लिए बनाए गए हैं। यह बात उन्होंने यहां भाकियू की जिला स्तरीय समीक्षा बैठक के दौरान कही। कोंच नगर के मथुरा प्रसाद गार्डन में मंगलवार को भारतीय किसान यूनियन की जिला स्तरीय सांगठनिक समीक्षा में जिले भर की तहसील और ब्लॉक इकाइयों के पदाधिकारी एवं सैकड़ों की संख्या में किसान मौजूद थे। केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानूनों को लेकर उनमें गुस्सा साफ दिखा। भाकियू के प्रदेश उपाध्यक्ष हरदत्त पांडे के पर्यवेक्षण में आयोजित समीक्षा बैठक में जिले की सभी इकाइयों ने अपनी प्रगति आख्या प्रस्तुत की। आगामी 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में होने बाली किसान महा पंचायत में अधिक से अधिक किसानों के पहुंचने के आह्वान के साथ संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजवीर सिंह जादौन ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनों कृषि कानूनों को किसानों की बर्बादी के कानून बताते हुए इनकी जमकर मुखालफत की। कहा कि सरकार पूंजीपतियों की गोद में बैठकर किसानों की बर्बादी का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है लेकिन किसान उसकी मनमानी बिल्कुल नहीं चलने देंगे, सरकार को किसानों की मांगें माननी ही होंगी। या तो सरकार गोली चलवा कर दिल्ली बॉर्डर पर पिछले नौ महीने से डटे किसानों को वहां से हटाए या फिर काले कृषि कानून वापिस ले क्योंकि जब तक कानून निरस्त नहीं होंगे और एमएसपी पर कानून नहीं बनेगा, तब तक किसानों की घर वापिसी नहीं होगी।जादौन ने कहा कि किसान की लड़ाई सिर्फ किसान की नहीं है बल्कि एक सौ चालीस करोड़ भारतवासियों की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों की आड़ में सरकार किसानों को बर्बाद और अपने चहेते औद्योगिक घरानों को मालामाल करने का जो मंसूबा पाले हुए है वह कभी पूरा नहीं होगा। उन्होंने साफ कहा कि भाकियू न तो किसी की सरकार गिराने जा रही है और न किसी की बनवाने, वह सिर्फ अपने अस्तित्व और अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है। यह आंदोलन किसान की नसल और फसल बचाने की लड़ाई है। सरकार तो वार्ता की मेज पर उसी वक्त हार गई थी जब वह अपने तथाकथित त्रुटिरहित कानूनों में किसानों द्वारा सुझाए गए संशोधन लागू करने पर राजी हो गई थी। जब उसके कानूनों की कलई खुल गई तो वह वार्ता की टेविल से ही भाग खड़ी हुई। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को फटकार लगा चुकी है कि कृषि प्रधान इस देश में इतने घटिया और लचर कानून लागू नहीं हो सकते। कोर्ट की फटकार के बाद सरकार ने कानूनों को होल्ड पर रख कर किसानों से वार्ता के लिए जो समिति बनाई थी उसके एक सदस्य ने तो यह कहते हुए इस्तीफा तक दे दिया था कि वह इन कानूनों के पक्षधर रहे हैं लिहाजा समिति में उनकी मौजूदगी सवाल खड़े करेगी। इससे साफ हो जाता है कि सरकार की मंशा में ही खोट है। संचालन जिलाध्यक्ष डॉ. द्विजेंद्र सिंह ने किया। इस दौरान डॉ. केदारनाथ, बृजेश राजपूत, दिनेश प्रताप, रामकुमार पटेल, भगवान दास, महेंद्र भाटिया, चंद्र मोहन, चतुरसिंह, डॉ. पीडी निरंजन, श्यामसुंदर, राजू कुंवरपुरा, चित्तरसिंह, वकील साहब, इमाम बक्स, सुरेंद्र पटेल, सुनील, रामलला, राकेश पटेल आदि मौजूद रहे।
केंद्र सरकार है पूंजीपतियों की सरकार-जादौन
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