एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया (महाराष्ट्र)।
वैश्विक स्तरपर भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच गहरा अंतर्संबंध है।लंबे समय से यह बहस चलती रही है कि तंबाकू, सिगरेट,शराब और अन्य नशे के उत्पाद देश के स्वास्थ्य ढाँचे पर बोझ डालते हैं और इसके कारण सरकारों को स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक व्यय करना पड़ता है।इसी परिप्रेक्ष्य में 5दिसंबर 2025 को लोकसभा ने हेल्थ एंड नेशनल सिक्योरिटी सेस बिल,2025 को मंजूरी दी, जिसने राजनीतिक हलकों स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राज्यों के बीच एक गहरा विमर्श खड़ा कर दिया। मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि यह विधेयक न केवलस्वास्थ्य सुरक्षा पर अतिरिक्त संसाधन जुटाने की कोशिश है,बल्कि यह इस तथ्य को भी स्वीकार करता है कि नशे और स्वास्थ्य संबंधी संकट अंततः राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करते हैं। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य उन वस्तुओं पर अतिरिक्त सेस लगाना है जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं, जैसे सिगरेट, बीड़ी ,पान मसाला गुटखा, शराब और अत्यधिक चीनी वाले पेय। इन उत्पादों के सेवन से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का बोझ वर्षों से बढ़ता जा रहा है और इससे स्वास्थ्य ढाँचा पर भारी आर्थिक दबाव पड़ता है। सरकार का दावा है कि यह विधेयक केवल राजस्व बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सुर क्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए बनाया गया है ताकि महामारी, बायो- सिक्योरिटी जोखिम और गैर- संचारी रोगों के बढ़ते खतरे का मुकाबला किया जा सके। सरकार का तर्क है कि कोविड -19 ने साफ कर दिया कि स्वास्थ्य संकट किसी भी समय राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में बदल सकता है,इसलिए स्वास्थ्य और सुरक्षा दोनों को एकीकृत दृष्टिकोण सेदेखना आवश्यक है। विपक्ष का कहना है कि सरकार स्वास् थ्य की आड़ में राजस्व बढ़ाना चाहती है और तंबाकू कंपनियों के सेलिब्रिटी विज्ञापन पर रोक न लगाना इस नीति की मंशा पर सवाल खड़ा करता है। विपक्ष ने लोकसभा में यह भी पूछा कि जब सरकार पान मसाला और सिगरेट पर सेस बढ़ाकर कीमतें महंगी कर रही है तो फिर इन उत्पादों का विज्ञापन अभिनेता और क्रिके टर क्यों कर रहे हैं। इसके जवाब में सरकार ने कहा कि विज्ञापन संबंधी नए नियम तैयार किए जा रहे हैं और इन उत्पादों के प्रचार पर कठोर प्रतिबंध लगाने पर विचार चल रहा है। सरकार का यह भी कहना है कि कीमतें बढ़ाने का उद्देश्य केवल राजस्व नहीं, बल्कि खपत में कमी लाना है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संग ठन और विश्व बैंक के कई अध्ययनों में यह सिद्ध हुआ है कि तंबाकू और शराब पर कर बढ़ाने से सेवन में उल्लेखनीय गिरावट आती है, विशेषकर युवा वर्ग के बीच। वित्त मंत्री ने भी स्पष्ट किया कि सेस का उद्देश्य लोगों को इन हानिकारक वस्तुओं से दूर रखना है, क्यों कि जैसे ही कीमतें बढ़ती हैं, खपत स्वाभाविक रूप से घट ती है और इसका सकारात्मक स्वास्थ्य प्रभाव सीधे समाज पर पड़ता है।
साथियों बात अगर हम इस बिल के मुख्य प्रावधानों की करें तो, बिल के प्रमुख प्रावद्दान, क्या है ‘हेल्थ एंड नेशनल सिक्योरिटी सेस बिल 2025’ इस विधेयक का मूलउद्देश्य स्वास्थ्य संरक्षण के लिए अति रिक्त कराधान के माध्यम से एक विशेष कोष तैयार करना है। इसमें उन उत्पादों पर सेस लगाने का प्रस्ताव है जो स्वा स्थ्य के लिए सर्वाधिक हानि कारक माने जाते हैं, जैसे- (1) सिगरेट और बीड़ी (2) पान मसाला और गुटखा (3) बिना धुएँ वाला तंबाकू (4) शराब (कुछ उच्च श्रेणी उत्पा दों सहित) (5) शीतल पेय जिनमें अत्यधिक चीनी हो (6) वे वस्तुएँ जिनका सेवन गैर- संचारी रोगों को बढ़ाता है सरकार का प्राथमिक दावा है कि यह सेस किसी सामान्य राजस्व के लिए नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य अवसंरचना, राष्ट्रीय चिकित्सा आपातकाल प्रणाली, महामारी-तैयारी और सीमाई क्षेत्रों की मेडिकल- सुरक्षा को मजबूत करने के लिए है।
कोविड -19 के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि स्वास्थ्य संकट तुरंत राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में बदल सकता है। इसलिए इस विधेयक में स्वास्थ्य और सुरक्षा को एकीकृत वित्तीय दृष्टिकोण से देखने की कोशिश की गई है। सेस की राशि सीधे केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए हेल्थ एंड सिक्योरिटी फंड में जमा होगी। इससे जुड़े प्रावधानों में शामिल है।
(1) राज्यों को उनके स्वास् थ्य खर्च के अनुपात के आद्दार पर अनुदान
(2) राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसि यों के लिए मेडिकल प्रावधान
(3) महामारी- निगरानी और बायो- सिक्योरिटी संरचना को मजबूत करना।
(4) कैंसर एनसीडी और तंबाकू-जनित रोगों के लिए विशेष कार्यक्रम।
साथियों बात अगर हम कोविड- 19 के दौरान देश ने क्या देखा इसको समझने की करें तो शराब और सिगरेट जैसी वस्तुएँ पाँच से दस गुना ऊँची कीमत पर भी बिक रही थीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि इन वस्तुओं की लत मांग को कृत्रिम रूप से ऊँचा बनाए रखती है, लेकिन साथ ही यह भी पाया गया कि कीमतें बढ़ने से नए उपभोक्ता इनसे दूर रहते हैं। महामारी के अनु भव ने सरकार को यह सोचने पर मजबूर किया कि नशे की वस्तुओं की बिक्री को नियंत्रित करना और उनकी खपत को कम करना सार्वजनिक स्वास् थ्य के लिए अनिवार्य है। इसी लिए इस विधेयक के माध्यम से सरकार केवल कराधान ही नहीं, बल्कि निगरानी प्रणा ली मजबूत करने, अवैध तंबाकू और शराब की आपूर्ति रोकने, स्वास्थ्य शिक्षा बढ़ाने और नशा मुक्ति कार्यक्रमों का विस्तार करने पर भी जोर दे रही है।
साथियों बात अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनु सार स्थिति को समझने की करें तो हर वर्ष विश्वभर में लगभग 80 लाख लोग धूम्र पान के कारण समय से पहले मरते हैं और इनमें से 10 लाख लोग वे होते हैं जो स्वयं धूम्र पान नहीं करते, बल्कि दूसरों के धुएँ का शिकार बनते हैं। भारत में स्थिति और भी गंभीर है, जहाँ हर वर्ष धूम्रपान से 10 लाख और अन्य तंबाकू उत् पादों के कारण कुल मिलाकर लगभग 13.5 लाख मौतें दर्ज की जाती हैं। ये आँकड़े बताते हैं कि भारत एक ऐसी स्थिति में है जहाँ तंबाकू किसी महा मारी की तरह फैल चुका है और इसके विरुद्ध कठोर नीति याँ आवश्यक हैं।
यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के एक अध्ययन के अनुसार, एक सिगरेट पीने से जीवन के लगभग 20 मिनट कम हो जाते हैं और यदि कोई व्यक्ति दस वर्षों तक प्रतिदिन दस सिगरेट पीता है तो उसकी जीवन प्रत्या शा लगभग 500 दिन कम हो जाती है। यह अध्ययन दर्शाता है कि तंबाकू केवल एक आदत नहीं बल्कि जीवन को तेजी से समाप्त करने वालाजोखिम है और इससे देश की कार्य- क्षमता, उत्पादकता और आर्थिक विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ ता है। साथियों बातें कर हम अब यदि यह प्रश्न उठता है कि क्या यह विधेयक केवल पैसा जुटाने का साधन है इसको समझने की करें, तो इसका उत्तर स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देता है। इस बिल में दोहरे उद्देश्य सम्मिलित हैं, एक स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करने के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना, और दूसरा तंबाकू और नशे की वस्तुओं के उपयोग को नियंत्रित कर लोगों को स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित करना। सरकार ने तंबाकू-निषेध कार्यक्रमों, स्कूल-कालेजों में जागरूकता अभियान, सामाजिक मीडिया पर स्वास्थ्य चेतावनियों, सेलि ब्रिटी विज्ञापन पर नियंत्रण, अवैध सप्लाई चेन पर कठोर दंड और नशामुक्ति केंद्रों का विस्तार करने की योजना बनाई है। इसके साथ ही तंबाकू उगाने वाले किसानों को वैक ल्पिक फसलों की ओर प्रेरित करने का प्रावधान भी किया जा रहा है ताकि आर्थिक रूप से वे प्रभावित न हों। चूँकि तंबाकू और शराब से संबंधि त कई कर व्यवस्था राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आती है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि राज्यों पर इस बिल का प्रभाव महत्वपूर्ण होगा। हालांकि केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति को नुकसान न हो, इसके लिए कम्पेन्सेशन ग्रांट का प्रावधान किया गया है। इस कानून से राज्यों के स्वा स्थ्य बजट को भी लाभ होगा क्योंकि केंद्रीय हेल्थ एंड सिक् योरिटी फंड से राज्यों को उनकी जरूरत और स्वास्थ्य सूचकांकों के आधार पर धन उपलब्ध कराया जाएगा। यह भी अपेक्षित है कि केंद्र और राज्यों के बीच अवैध शराब, नकली तंबाकू, स्वास्थ्य कार्य क्रम और रोकथाम तंत्र को लेकर बेहतर समन्वय स्थापित होगा। साथियों बातें कर हम विश्व में नशा मुक्ति वातावरण उत्पन्न करने की करें तो स्वास् थ्य के लिए हानिकारक नशे जैसे तंबाकू, शराब, ड्रग्स, सुंघनी, ई-सिगरेट, निकोटिन पाउच तथा अन्य व्यसनी पदार्थ आज समाज में गहरी जड़ें जमा चुके हैं। इन पर रोक लगाने के लिए सरकारें अनेक कड़े कानून, दंड और प्रतिबंध लागू करती रही हैं, परंतु केवल कानून बनाने से समस्या का समाधान पूर्ण रूप से संभव नहीं हो पाता। नशे की प्रवृत्ति ऊपर से नीचे मिलीभगत, सामा जिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक परिस्थितियों से भी गहराई से जुड़ी होती है, जिस के कारण कठोर दंडात्मक प्राव धान कई बार वास्तविक बद लाव लाने में पर्याप्त नहीं होते। इसके विपरीत जनजागरूकता एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो व्यक्ति की सोच और व्यवहार को मूल स्तर पर प्रभावित कर ती है। जब जनता को यह सम झाया जाए कि नशा केवल शरीर ही नहीं, परिवार और समाज को भी प्रभावित करता है, तब वह स्वयं नशे से दूर रहने का निर्णय ले पाती है। विद्यालयों, महाविद्यालयों कार्य स्थलों, पंचायत स्तर पर जाग रूकता अभियान, स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा परामर्श, सोशल मीडिया के माध्यम से सही जानकारी, और नशामुक्ति केंद्रों की भूमिका, ये सभी उपाय कानून से कहीं अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए नशे को रोकने के लिए दंडा त्मक कार्रवाई के साथ-साथ बड़े पैमाने पर जनजागरण, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा और युवाओं के लिए सकारा त्मक विकल्प उपलब्ध कराना अनिवार्य है। यही वह संतुलित रणनीति है जो समाज को नशा मुक्त और स्वस्थ बना सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि हेल्थ एंड नेशनल सिक्योरिटी सेस बिल 2025 केवल एक कराधान नीति नहीं, यह स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को एक सूत्र में जोड़ने का प्रयास है। भारत में तंबाकू से होने वाली 13.5 लाख वार्षिक मौतें, आर्थिक हानि, कैंसर-बोझ, और कोविड जैसे अनुभवों ने साबित कर दिया है कि नशे की समस्या केवल सामाजिक चिंता नहीं, यह सुरक्षा और विकास का मुद्दा है।
यह बिल यह भी स्वी कार करता है कि स्वस्थ नागरि क ही सुरक्षित राष्ट्र बनाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी, जैसे ऑस्ट्रेलिया, यूके, सिंगापुर, में इसी मॉडल पर “हेल्थ सेस” लगाए जाते हैं और खपत में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है।यह विधेयक केवल राजस्व का साधन नहीं बल्कि राष्ट्र की स्वास्थ्य-सुरक्षा और भविष्य की पीढ़ियों को नशे से मुक्त करने की दिशा में एक बड़ी नीति शुरुआत है।
विधेयक का मुख्य उद्देश्य उन वस्तुओं पर अतिरिक्त सेस लगाना है जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं
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