एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया- सृष्टि में अनमोल बौद्धिक ज्ञान का धनी मान वीय प्राणी को जन्म से ही परिवार, समाज, मानवीय संप र्कों से व्यवहारिक शिक्षा और ज्ञान मिलना शुरू हो जाता है। याने जैसे जैसे मानुष बाल्य काल से बचपन और फिर युवा होता है, वैसे-वैसे व्यवहारिक ज्ञान शिक्षा के माध्यम से ऑटोमेटिक अली स्वत संज्ञान से उसकी बौद्धिक क्षम ता परिपक्व होती जाती है और फिर स्कूल कालेज से लेकर अनेक डिग्रियों यानें किताबी ज्ञान पाकर सोने पर सुहागा की कहावत हम पूरी करते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि, शिक्षा दो तरह की होती है। एक किताबी शिक्षा और दूसरी व्योहारिक शिक्षा। अगर किताबी शिक्षा के साथ साथ हमको व्याहारिक शिक्षा का ज्ञान नहीं है तो हम शिक्षित होते हुए भी अशिक्षित की श्रेणी में आयेंगे। और अगर हमको शिक्षा के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी है तो हम शिक्षित लोगो की श्रेणी में आयेंगे।
साथियों हम आम तौर पर देखते हैं कि स्थिति बिगड़ती देख अच्छे-अच्छे व्यवहारिक ज्ञान वाले व्यक्तिभी किताबी ज्ञान वालों को कहते हैं तुम तो पढ़े लिखे हो! हम को क्या समझता है हम तो अनपढ़ हैं, बस!इसी वाक्य में वे अपनी जवाबदारी से पीछा छुड़ाकर किताबी ज्ञान वालों के ऊपर डाल देते हैं और जब स्थिति अपने पक्ष में हो रही तो कहते हैं, देखो मैंने यह किया, फिर तुम्हारी पढ़ाई लिखाई क्या काम की? इसीलिए स्थिति पक्ष में हो या विपक्ष में दोनों स्थितियों में व्यवहारिक ज्ञान के धनी की ही जीत है। इस सामाजिक स्थिति पर व्यंग्य के रूप में हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम व्यवहारिक ज्ञान और किताबी ज्ञान दोनों की जरूरत की करें तो की करें तो सच तो यह है कि हमें किताबी ज्ञान और व्यावहारिक ज्ञान दोनों की आवश्यकता है। सिर्फ कि ताबी ज्ञान से हम जीवन में फंस जाएँगे, खासकर तब जब हम कक्षा से बाहर निकलेंगे और सिर्फ व्यावहारिक ज्ञान से हम फंस जाएँगे क्योंकि हम सरल निर्देश नहीं पढ़ पाएँगे या सरल गणितीय समस्याएँ हल नहीं कर पाएँगे। लेकिन मेरा मानना है कि हमें किताबी ज्ञान से ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान की जरूरत है, क्योंकि जीवन समस्याओं से भरा है और इन समस्याओं के लिए व्यावहारिक समाधान की जरू रत है, उदाहरण के लिए अगर कोई भविष्य में इंजीनियर बनना चाहता है, तो चाहे वह कितना भी पढ़े-लिखे, उसे व्यावहा रिक ज्ञान नहीं होगा जब तक वह अभ्यास न करे, वह किताबें पढ़कर घर में तार नहीं लगा सकता। व्यावहारिक ज्ञान के जरिए ही थामस एडिसन ने कई बार असफल होने के बाद आखिरकार एक लाइट बल्ब का आविष्कार किया था। किताबी ज्ञान सिर्फ समाधान देता है जबकि व्यावहारिक ज्ञान समाधान को कारगर बनाता है। इसकी तुलना उस व्यक्ति से की जा सकती है जो साल भर नौकरी के लिए प्रार्थना करता है लेकिन आवेदन नहीं करता या नौकरी की तलाश में नहीं जाता।
दुनिया को व्यावहारिक ज्ञान की आवश्यकता है क्योंकि यह वह ज्ञान है जो हमें बता एगा कि देश में भुखमरी को कैसे कम किया जाए, सड़क पर दुर्घटनाओं की संख्या को कैसे कम किया जाए, किसी घातक बीमारी को फैलने से कैसे रोका जाए आदि, इसलिए व्यावहारिक ज्ञान का हमारे जीवन में अधिक प्रभाव पड़ता है। साथियों बात अगर हम किताबी ज्ञान की करें तो, परिभाषा के अनुसार जिसने किताबी ज्ञान अर्जित किया हो और स्कूल कालेज की परी क्षाओं को पास करके डिग्री हासिल की हो वो शिक्षित है, और जिसे अक्षर ज्ञान ना हो, वो किताबी अनपढ़। पर क्या शिक्षा का अर्थ सिर्फ केवल किताबी ज्ञान अर्जित करना ही है? एक शिक्षित इंसान के द्वारा फेंका हुआ कचरा, अगर सुबह एक किताबी अशिक्षित इंसान (सफाई कर्मचारी) उठा ता है। ऐसे में किसे शिक्षित कहना चाहिए सफाई कर्मचारी को या कचरा फेंकने वाले को? आजकल की शिक्षा ऐसे ही रट्टा फिकेसन की शिक्षा होती जा रही है। जहाँ मतलब समझ आए या ना आए, बस रट्टा मारों और पास हो जाओ।
साथियों शायद इसीलिये किताबी पढ़े-लिखे अनपढ़ों की संख्या बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ दशकों में शिक्षा का स्तर काफी बढ़ गया है पर शिक्षा की वैल्यू खत्म होती जा रही है। ध्यान दे तो याद आता है जहाँ कुछ साल पहले ग्रेजुएशन ही काफी था, आज पोस्ट ग्रेजुएशन, क्या पीएचडी की भी कोई वैल्यू नहीं है। तकनीकी शिक्षा पर जोर है। तकनीकी शिक्षा गलत नहीं है पर सिर्फ तकनीकी शिक्षा से काम नहीं चलेगा।
साथियों बात अगर हम किताबी शिक्षित और किताबी अनपढ़ व्यक्तियों की करें तो, बहुत अंतर है। किताबीअनपढ़ आदमी केलकुलेटर चलाना नहीं जानता सारा हिसाब किताब उंगलियों से करना पड़ता है पढ़ा-लिखा आदमी विना केलकुलेटर के चार में से दो घटाने के लिए भी अपनी उंगली नहीं घिसता। किताबी अनपढ़ व्यक्ति के पास अपने अनुभव के अतिरिक्त कुछ नहीं होता जबकि पढ़ा-लिखा व्यक्ति और के अनुभव भी उपयोग में ले आता है।
किताबी अनपढ़ व्यक्ति अधिक प्रेक्टिकल होता है शि क्षित व्यक्ति इतना नही होता। कहीं बाहर जाने पर पढ़ा- लिखा व्यक्ति आसानी से पता ढूढ लेता है जबकि किताबी अनपढ को परेशानी होती है। एक युग था जब समाज में किताबी अनपढ बहुत थे तो उनका कामकाज भी उसी तरह चलता था। आज किताबी अनपढ़ व्यक्ति को हर तरह की परेशानी उठानी पड़ती है। उसे पढ़े-लिखे लोगों पर आश्रित रहना पड़ता है।
साथियों शिक्षित व्यक्ति किसी भी सुनी सुनाई बातों पर जल्दी विश्वास नहीं करता है जब तक वह उन्हे अपनी मन की कसौटी पर खरा नहीं उतार लेता। जबकि एक किता बी अनपढ़ व्यक्ति को कह दो कि तुम्हारा कान कौवा ले गया है तो वह अपने कान को नहीं देखेगा बल्कि कौवे के पीछे भागना शुरू कर देगा।
जबकि एक पढ़ा लिखा व्यक्ति पहले अपने शरीर के सभी अंगों को ठीक से चेक करेगा। फिर क्यू कहेगा? बस यही शिक्षित और किताबी अनपढ़ व्यक्ति में अंतर है। किताबी अनपढ लोगों पर व्या हारिक ज्ञान होता है मगर अशिक्षित व्यक्ति वह होते हैं जो व्याहारिक ज्ञान में भी पिछड़े होते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर शिक्षित में संस्कार और लोकाचार का अभाव मिल ता है। दोनों शब्द पर्यायवाची है पर कह देते हैं यह किताबी अनपढ अंगूठा टेक है मगर वह संस्कारित हो सकता है।
अशिक्षित के लिए कहा जाता है कि तुम तो पढ़- लिखकर अशिक्षित ही रहे। किताबी अनपढ को कुछ बातें में अनदेखा कर देते हैं या कहे वह अपनी कमजोरी छुपा जाते हैं, पर अशिक्षित से ऐसी आशा कम की जाती है। वह अपनी कमी नहीं छुपा पाते। कुछ विशेष अंतर नहीं है भावना त्मक अंतर ही लगता हैै। किताबी अनपढ की अपेक्षा अशिक्षित शब्द अधिक बुरा लगता है।
साथियों बात अगर हम संस्कारों और विचारधारा की करें तो व्यवहारिक शिक्षा और ज्ञान के परिपक्व व्यक्ति अपने कुल और माता पिता की विचा रधारा पर चलकर संस्कारों का परिचय देते हैं। वहीं किताबी ज्ञान डिग्री लेने वाले कुछ अपवादों को छोड़कर संस्कारों और विचारधारा में साफ फर्क दिखा देने लगते हैं अपने कुल और माता पिता की विचारधारा पुरानी और ढकोसली लगने लगती है रिश्ते नातों में कमजोरी को बल मिलता है और विवाहित होने पर सिर्फ अपने परिवार की जवाबदारी तक सीमित हो जाते हैं जबकि व्यवहारिक ज्ञान के धनी व्यक्तियों में ऐसा नहीं है परंतु यह हम जरूर कहेंगे के किताबी ज्ञान वालों से अधिक ज्ञान समझ रखने वाले व्यवहारिक ज्ञान के द्दनी व्यक्तियों के दोनों हाथों में मलाई होती है जिससे स्थिति अनुसार प्रयोग में करते हैं स्थिति बिगड़ी तो तुम तो पढ़े लिखे हो! हम ठहरे अनपढ़, हमको क्या समझता है! और परिस्थिति का हमारे तरफ झुकाव रहा तो, देखो तुम तो पढ़े लिखे हो! तुम्हारी पढ़ाई लिखाई किस काम की? हम तो अनपढ़ ही अच्छे है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उस का विश्लेषण करें तो हम पाएं गे कि, शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जो हमारे मानवीय गुणों को भी विकसित करें।
हमें संवेदनशील, सहन शील और व्यवहारिक के साथ -साथ देश और समाज के प्रति जागरूक भी बनाएं। जैसे प्राचीन काल में गुरुकुल में होती थी। जहाँ ना सिर्फ पुस् तक ज्ञान सिखाते थे बल्कि आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यवहा रिक और शस्त्र ज्ञान भी शिक्षा के साथ-साथ ही सिखाया जाता था। अगर अच्छी किताबी शिक्षा या व्यवहारिक शिक्षा होने के बावजूद भी हम दकि यानुसी सोच रखते हैं। अपने घर को साफ रखते हैं, पर सड़क पर कचरा करते है। दूसरो की पर्सनल लाईफ पर कमेंट करते हैं तो हमारे शिक्षित होने का क्या अर्थ है?
व्यवहारिक शिक्षा और ज्ञान में परिपक्व व्यक्तियों द्वारा किताबी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों पर तानों की बौछार!

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