एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर आज आतंकवाद की एक ऐसी ट्रेंड सी चल पड़ी है, जिसमें आज कोई देश अछूता नहीं रह गया है। एक क्रिमिनल व्यक्ति या देश के दिमाग में अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दुश् मनों के वजूद को ही मिटाने की आईडियाएं या सोच उभ रती रहती है, जो सीधे मानव बम, केमिकल बम जैविक बम और अभी उभर के आया है कृषि जैविक बम! बनकर सब कुछ नष्ट कर देता है हमने अभी तक साइबर, जैविक इत्या दि अनेकों वेपंस के आतंकवाद का नाम सुने हैं, लेकिन अमेरि का में दिनांक 4 जून 2025 को देर शाम ऐसे चीनी दो व्यक्तियों को पकड़ा गया जो फंगस को तस्करी कर अमेरि का लाए थे, जो फसलों में तेजी से रोग पैदा कर संक्रमण के जरिए पूरी फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है चाहे वह गेहूं मक्का बाजरा सहित कोई भी फसल हो इसे एक तरह से बायोवेपन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जो दुश्मन देश को भूखा मरने पर मजबूर कर सकता है, क्योंकि इस वेपन के जरिए उस देश की पूरी फैसलें जहरीली व सूख जाती है, यानें किसी भी तरह से इंसानों के खाने लायक नहीं रहती, हमारी पीढ़ीयों को कोविड-19 महामारी के बारे में हमेशा याद रहेगा जो तथा कथित चमदागड़ से चीन से उदय हुई थी, ऐसा संदेश व्यक्त किया गया था। एक तरह से कृषि आतंकवाद का नया वर्जिन आजाद हुआ है, जिसका पहला निशाना अमेरि का हो सकता था। हालांकि इसके पूर्व इसका प्रयोग 1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटेन में आलू की फसलों को नष्ट करने के लिए इसे विमान से छोड़ा गया था। चूँकि चीनी साजिश पर दुनि याँ हैरान, अमेरिका को भूखा मारने का था प्लान, फंगस के जरिए अनाज खाद्य पदार्थ फसलों को बर्बाद करना था प्लान तथा आधुनिक आतंक वाद व युद्ध मानवीय जीवों की मृत्यु, फसलों भोजन स्वा स्थ्य संपत्तियों भूमि पानी हवा पर्यावरण यहां तक कि सभ्यता का भी विनाश करना है,जो दुखदाई है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, वि श्व का पहला कृषि आतंक वाद, कोविड-19 महामारी जैसे इंसानों को नष्ट कर देती है वैसे फंगस फसलों को बर्बाद कर देता है जो रेखांकित कर ने वाली बात है।
साथियों बात अगर हम विश्व के पहले कृषि आतंक वाद की करें तो, हमने अक्सर साइबर टेररिज्म और इको टेररिज्म जैसे शब्द सुने हैं। हालांकि, अमेरिका में 4 जून को एग्रो टेररिज्म का एक दुर्लभ मामला सामने आया। अमेरिका की जांच एजेंसी एफबीआई ने एग्रो टेररिज्म यानी कृषि आतंकवाद की साजिश के आरोप में दो चीनी नागरिकों को अरेस्ट किया है, एफबीआई के मुताबिक, उन दोनों ने फ्यू जेरियम ग्रामिनेरियम नामक एक खतरनाक फंगस चीन से अमेरिका में तस्करी की थी, यह ऐसा फंगस है, जो फसलों में रोग पैदा करके इन्हें बर्बाद कर देता है। इसे एग्रीकल्चर टेररिज्म वेपन के तौर पर इस्ते माल किया जाता।
कुल मिला कर कहा जाए तो इस खतरनाक फंगस को जैविक हथियार यानी बायो वेपन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, इन दोनों चीनी नागरिकों पर मिशिगन कमें साजिश, फंगस की तस्करी, झूठे बयान और धोखाधड़ी का आरोप है, अमेरिका में एग्रो टेररिज्म की इस घटना से लोगों के मन में उत्सुकता जग गई है। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, फंगस फ्यूजेरि यम ग्रामिनेरियम एक संभावित एग्रो टेररिज्म हथियार है और यह अरबों डालर के नुकसान का कारण बन सकता है, यह एक खतरनाक हानि कारक फंगस है, जो गेहूं, जौ, जई और मक्का जैसी अनाज फसलों को संक्रमित करता है, वास्तव में इसे उन पांच सबसे विनाश कारी फंगल रोगाणुओं में से एक माना जाता है जो कृषि पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करते हैं, अब सवाल है कि क्या चीन इस प्लान से अमेरि का को बर्बाद करने चला था? कितना खतरनाक है यह विशे षज्ञों का कहना है कि यह फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट (एफ एच बी) या ‘स्कैब’ नामक बीमारी का कारण बनता है,जो अनाज की गुणवत्ता को नुक सान पहुंचाता है, और फसल की पैदावार को कम करता है, शोध के अनुसार, फंगस गेहूं की अमीनो एसिड संरचना में बदलाव करता है, जिससे दाने सिकुड़ जाते हैं और शेष अनाज दूषित हो जाता है, इस फंगस के गेहूं को प्रभावित करने की स्थिति में स्पाइक लेट्स की बाहरी सतह पर भूरे, गहरे बैंगनी-काले नेक्रो टिक घाव बन जाते हैं जो गेहूं के कान को तोड़ते हैं। चावल में यह प्रभावित बीजों को लाल कर देता है और बीज की सतह पर या पूरे बीज पर भूरे रंग के धब्बे पैदा कर सकता है, संक्रमित अनाज हल्के, सिकुड़े और भंगुर होते हैं। साथियों बात अगर हम कृषि आतंकवाद को समझने की करें तो, सरल शब्दों में कहें तो जैविक एजेंटों का इस्तेमाल करके पूरी की पूरी फसल बर्बाद करना ही एग्रो टेररिज्म है, यह कृषि प्रणा लियों में बीमारियों या कीटों या अन्य हानिकारक जैविक एजेंटों को व्यापक नुकसान पहुंचाने के इरादे से डालने का कार्य है, ऐसे कार्य का एकमात्र मकसद खाद्य श्रृंखला को टारगेट करना है मकसद है, अर्थव्यवस्था को तबाह कर ना और सामाजिक अशांति पैदा करना, इसमें पकड़े जाने की संभावना जीरो है और कम लागत में यह बड़ा मक सद को पूरा करती है, एग्रो टेररिज्म के दूरगामी प्रभाव होते हैं, खासकर उन देशों के लिए जिनकी अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है, इसे बहुत प्रभावी भी माना जाता है क्यों कि यह बिना ध्यान दिए जा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रकार का आतंक वाद नया या अनोखा नहीं है, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने ब्रिटेन में कोलोराडो आलू बीटल के साथ आलू की फसलों को टारगेट किया। ये बीटल 1943 में इंग्लैंड में पाए गए थे, बीटल को विमान से छोड़ा गया था, मोसटागनेम विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र में यह भी कहा गया है कि जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध जारी रहने पर अनाज के जंग के बीजाणुओं के साथ एग्रो टेररिज्म पर विचार किया था, अब समझिए अगर अमेरिका में चीनी साजिश सफल हो जाती तो अमेरिका की पूरी फसलें बर्बाद हो जातीं।
अमेरिका में दो चीनी नाग रिकों द्वारा खतरनाक फंगस फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम की तस्करी मामले ने वैश्विक कृषि सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना उस संभावित भविष्य की चेता वनी है, जहां बीज, मिट्टी और फसलें भी आतंकवाद के हथि यार बन सकते हैं। यह फंगस अनाज को सड़ा देता है और इंसानों व जानवरों दोनों को गंभीर रूप से बीमार कर सक ता है, जिससे यह जैविक युद्ध का मौन हथियार साबित हो सकता है। इसे एग्रो टेररिज्म यानी कृषि आतंकवाद का संभावित हथियार बताया गया है। क्या है कृषि आतंकवाद फसलों को नष्ट करने के लिए जैविक एजेंट का इस्तेमाल करना पक्का कृषि आतंकवाद ही कहलाता है।
साथियों बात अगर हम कृषि आतंकवाद के भारत पर प्रभाव पड़ने की करें तो, इसका मकसद अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना और समाज में तनाव पैदा करना होता है। यह तरी का सस्ता और पकड़ में आने में भी मुश्किल है।
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 17 परसेंट है और देश की आधी से अधिक आबादी खेती से जुड़ी है। विशेष रूप से पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश जैसे सीमावर्ती राज्यों में, जो पाकिस्तान और चीन से सटे हुए हैं, कृषि आतंकवाद का खतरा अधिक गंभीर है।
2016 में बांग्लादेश से आए जहरीले फंगस मैग्नापार्थे ओरा इजा पाथोटाइप ट्रिटिकम ने पश्चिम बंगाल के दो जिलों में भारी तबाही मचाई थी। सरकार ने इस खतरे को नियं त्रण में रखने के लिए तीन वर्ष तक वहां गेहूं की खेती पर प्रतिबंध लगाया। इसलिए सतर्क रहना जरूरी -भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश, काबू पाना मुश्किल होगा -पहले भी भारत में हेड ब्लाइट की घटनाएं सामने आ चुकी हैं, विशेषकर उत्तर भारत में -सीमाओं से लगे क्षेत्रों, विश्वविद्यालयों, कृषि अनुसंधान संस्थानों पर कड़ी निगरानी जरूरी कई कदम उठाए जा चुके -भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से फफूंदरोधी गेहूं की किस्मों पर रिसर्च -कुछ राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में रोग प्रतिरो धक बीजों का ट्रायल शुरू किया गया -किसानों को बीज उपचार और फसल चक्र बद लाव जैसी सलाहें दी गईं समय रहते पाया काबू अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी आफ मेडि सिन की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत में गेहूं की फसलों में हेड ब्लास्ट के लक्षण कई बार देखे गए हैं। हालांकि, हर बार समय पर नियंत्रण पा लिया गया। विशेष ज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यद्दिक वर्षा, आर्द्रता और गर्म हवाओं वाले मौसम में इस रोग का खतरा और बढ़ सकता है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इस का विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि विश्व का पहला कृषि आतं कवाद- कोविड-19 महामारी नें जैसे इंसानों को नष्ट किया वैसे फंगस फसलों को बर्बाद कर देता है। चीनी साजिश पर दुनियाँ हैरान- अमेरिका को भूख मारने का था प्लान- फंगस के जरिए, अनाज, खाद्य पदार्थ, फसलों को बर्बाद कर ना था प्लान। आधुनिक आतंक वाद व युद्ध, मानवीय जीवन की मृत्यु, फसलों भोजन स्वास्थ्य संपत्तियों भूमि पानी हवा व पर्यावरण यहां तक कि सभ्यता का भी विनाश करता है जो दुखदाई है।