बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष पूजा, अरदास, भजन कीर्तन व प्रभातफेरी कणाह प्रसाद का विशेष महत्व

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। वैश्विक स्तर पर भारत सर्वधर्म समभाव का सटीक प्रतीक माना जाता है, क्योंकि यहां हर धर्म के त्योहारों का आनंद सब मिलकर लेते हैं, जो विदेशी सैलानी भी लेने आते हैं, व पूर्ण रूप से प्रभावित व संतुष्ट होकर जाते हैं। अभी हमने कुछ दोनों पूर्व ही महाकुंभ उत्सव चेट्रीचंड्र, ईद, रामनवमी का उत्साह देखे हैं जो अलग-अलग जाति धर्म समाजों के त्यौहार है, परंतु हमने देखे कि इन्हें सभी ने मिलकर मनाया, जो हमारी सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, इसी कड़ी में 13 अप्रैल 2025 को एक और अध्याय जुड़ गया है, क्योंकि इसदिन पूरा भारत विशेष रूप से पंजाब हरियाणा उत्तरप्रदेश उत्तरा खंड हिमाचल प्रदेश जम्मू कश्मीर सहित अनेको राज्यों में मनाया जा रहाहै। हमारी राईसिटी गोंदिया में भी बड़े धूमधाम से, बैसाखी पर्व को मनाया जाता है, इस दिन मैं स्वयं भी गुरुद्वारे जाकर दर्शन लाभ उठाता हूं, अमृत वेले प्रभातीवेले से ही प्रभात फेरी सहित अनेकों कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं, जहां भक्तों के भाव देखकर मैं भी भावभोर हो जाता हूं। हालांकि यह विशेष रूप से सिख समाज व किसानों के ही त्यौहार है, परंतु इसे मनाता सारा मानव समाज है। चूँकि बैसाखी उत्सव, समाज और धर्म के संगम का प्रतीक है, इसलिए आज हम मीडिया उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, बैसाखी पर्व 13 अप्रैल 2025, खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक है, खालसा पंथ की स्थापना व नई फसल कटाई की शुरुआत का प्रतीक है तथा बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष पूजा अर्चना, अरदास, भजन कीर्तन व प्रभात फेरी कणाह प्रसाद है का अत्यधिक विशेष महत्व है।
साथियों बात अगर हम भारत में बैसाखी पर्व मनाए जाने की करें तो, बैसाखी के पर्व को वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है। बैसाखी का त्योहार पूरे हर्षोल्लास के साथ करीब करीब पूरे भारत में मनाया जाता है। हर साल बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को ही मनाया जाता है, हर वर्ष बैसाखी के दिन सूर्य मेष राशि में करते हैं। बैसाखी के त्योहार से पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रों में फसलों की कटाई शुरू हो जाती है। बैसाखी के पर्व को वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है, और इस साल यह पर्व 13 अप्रैल को ही मनाया जा रहा है। बैसाखी के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है। सिख समुदाय के लोग गुरुवाणी सुनते हैं, घरों में भी लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। खीर, शरबत आदि पकवान बनाए जाते हैं, इस दिन शाम के समय घर के बाहर लकड़ियां जलाई जाती हैं, जलती हुई लकड़ियों का घेरा बनाकर गिद्दा और भांगड़ा कर अपनी प्रसन्नता जाहिर करते हैं। लोग गले लगकर एक दूसरे को बैसाखी की शुभकामना एं देते हैं। बता दें बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं, वै शाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है। इस दिन सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं जिस कारण इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। बैसाखी को पोइला, बौइशाख, विशु, और बीहू जैसे नामों से भी जाना जाता है। बैसाखी सिखों का महत्वपूर्ण त्योहार है। 1699 में इसी दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। मान्यतानुसार इस पंथ की स्थापना का लक्ष्य धर्म और नेकी के रास्ते पर चलना और उसका पालन करना था। किसान अपनी फसल काटने की खुशी में यह त्योहार मनाते हैं तो वहीं पंजाब में इस दिन गिद्दा-भांगड़ा किया जाता है, इस दिन को सिक्खों के नए साल के रूप में भी मनाया जाता। इस दिन नगर कीर्तन निकाले जाते हैं और समाज में भाई चारे का संदेश दिया जाता है। इसके अलावा, लोग इस दिन नई फसल के आगमन की खुशी में एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं। साथियों बात अगर हम बैसाखी उत्सव पर्व के महत्व की करें तो, बैसाखी का पर्व सिख धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। यह दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक है। गुरु जी ने इस दिन सभी जातिगत भेदभावों को समाप्त कर दिया था और एकता का संदेश दिया था। यह पर्व सिखों के लिए एक नया अध्याय, एक नई शुरुआत और धार्मिक सिद्धांतों के पालन का दिन है। गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में खालसा पंथ की स्थापना ने समाज को एकजुट करने के लिए एक मजबूत कदम उठाया था। बैसाखी पर सिख धर्मावलंबी गुरुद्वारों में विशेष पूजा और अरदास करते हैं। इस दिन विशेष रूप से गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और नगर कीर्तन की परंपरा निभाई जाती है। लोग इस दिन को अपने पवित्र कर्तव्यों को याद करने, गुरु के बताए मार्ग पर चलने और धर्म के प्रति अपनी आस्था को और गहरा करने का अवसर मानते हैं। बैसाखी का पर्व सिख धर्म के लिए एक समय होता है जब वे अपने गुरु की शिक्षा औरखालसा पंथ के महत्व को मानते हुए एकजुट होते हैं और समाज में शांति, भाईचारे और समानता का प्रचार करते हैं। बैसाखी का पर्व भारतीय समाज में एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से कृषि प्रधानसमाज के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बैसाखी के दिन नई फसल की कटाई होती है। किसानों के लिए यह दिन खुशहाली और समृद्धि का प्रती क होता है, क्योंकि उन्हें अपनी मेहनत का फल मिल रहा होता है।
खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शहर अनेक प्रदेशों में यह पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को किसान अपनी नई फसल की खुशहाली के रूप में मनाते हैं, और पारंपरिक तरीके से खेतों में काम करते हुए ढेर सारी खुशियां मनाते हैं। समाज के लोग एक साथ मिलकर नृत्य, संगीत और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। पंजाब में श्भांगड़ाश् और श्गिद्दाश् जैसे पारंपरिक नृत्य होते हैं, जो न केवल आनंद का स्रोत होते हैं, बल्कि एकता और भाईचारे को भी बढ़ावा देते हैं। यह दिन अपने आप में खुशी और एकजुटता का प्रतीक होता है, जब लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर खुशी बांटते हैं और जीवन के नए चक्र की शुरुआत का स्वागत करते हैं। सिख समुदाय के लोगों के बीच बैसाखी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। वे इस त्योहार को बेहद खुशी और आनंद के साथ मनाते हैं। यह त्योहार पंजाबी नए साल की शुरुआत का प्रतीक है, बैसाखी के पर्व को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है बैसाखी फसल, नई शुरुआत और सिख समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और उनकी कटाई भी शुरू हो जाती है, इसीलिए बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाया जाता है।
साथियों बात अगर हम बैसाखी के इतिहास की करें तो, बैसाखी का इतिहास 30 मार्च, 1699 को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खाल सा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने सिख समुदाय के सदस्यों से गुरु और भगवान के लिए खुद को बलिदान करने के लिए आगे आने के लिए कहा था, आगे आने वालों को पंज प्यारे कहा जाता था, जिसका अर्थ था गुरु के पांच प्रियजन,बाद में, बैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने तब एक एकीकृत राज्य की स्थापना की, इसी के चलते ये दिन बैसाखी के तौर पर मनाया जाने लगा। बैसाखी स्पेशल कणाह प्रसाद-भारत में कोई भी त्योहार बिना मीठे के नहीं मनाया जाता है। पंजाबी बैसाखी पर (गुड़, आटे का हलवा) यानि कणाह प्रसाद खासतौर पर तैयार करते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि बैसाखी पर्व 13 अप्रैल 2025 खुशहाली व समृद्धि का प्रतीक – खालसा पंथ की स्थापना व नई फसल कटाई का प्रतीक ल।बैसाखी के दिन का उत्सव कृषि, समाज व धर्म के संगम का प्रतीक है। बैसाखी के दिन गुरुद्वारों में विशेष पूजा, अरदास, भजन कीर्तन व प्रभातफेरी कणाह प्रसाद का विशेष महत्व है।

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