शासकीय अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा अपने पद का रुतबा रील्स बनाकर या पोस्ट कमेंट्स में लिखना अनुशासनहीनता के दायरे में लाना जरूरी

RAJNITIK BULLET
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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया- वैश्विक स्तरपर करीब करीब हर देश के नाग रिकों में यह भाव होता है कि वह अपने देश की सेवा के रूप में सरकारी नौकरी करें, स्वाभाविक रूप से हम जानते हैं कि व प्रैक्टिकल देखते भी हैं कि एक चपरासी से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों को अपने पद का कितना रुतबा मिलता है वे अपने पद व रुतबे के आगे अपना आच रण, व्यवहार देशसेवा जनता के सेवक इत्यादि अनेक कर्तव् य व जिम्मेदारियां भूल जाते हैं, हालांकि मेरा इशारा सभी पर नहीं बल्कि ऐसे कर्मचारियों पर है जो अपने पद व रुतबे से अपने आप को सरकार का दामाद समझने लगते हैं। वैसे भी सरकारी कर्मचारियों को सरकारी दामाद ही कहा जाता है। मैंने अपने वकालत के करि यर में जीवन में अनेकों आफिसों में देखा है कि सरकारी अद्दि कारी पद का रुतबा दिखाते हैं। बात केवल यही तक सीमित नहीं आजकल सोशल मीडिया युग में अपने पद का रुतबा मीडिया पोस्ट में भीरी ल्स या कोई मैसेज या कमेंट कर अपने पद का रुतबा व पहचान दिखाने में आगे रहते हैं ताकि लोग उनको ध्यान से सुनें या अपने दबाव तंत्र को महत्व दिलाते हैं, शायद इन्हीं खामियों के कारण जम्मू कश्मीर व गुजरात सरकारों ने पहले ही अपने सिविल सेवा आचरण नियम संशोद्दित कर सख्त कर दिए हैं। अब महा राष्ट्र सरकार ने भी दिनांक 19 मार्च 2025 को विधानसभा सत्र में घोषणा कर दी है कि तीन माह के अंदर महाराष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 को संशोधित कर ऐसे सख्त बनाए जाएगें, क्योंकि 1979 में सोशल मीडिया नहीं थी इसलिए उस समय के आचरण से यह नियम ठीक लगते थे, परंतु अभी डिजिटल दुनियाँ में इस ऐसे संशोधिन कर सख्त नियम बनाए जाएं, मेरा ऐसा मानना है कि अब समय आ गया है कि हर राज्य ने अपने राज्यों के सिविल सेवा आचरण नियमों को अति सख्त करने की जरूरत है, ताकि हर समय कर्मचारी अद्दि कारी अपने को सरकारी दामाद समझाने के बजाय जनता का सेवक समझे, हर जगह अपने पद का रुतबा नहीं बल्कि नम्र व नींवाँ होकर जनता का सेवक चा कर समझकर जनता की सेवा करें तो यह पृथ्वी किसी स्वर्ग से काम नहीं होगी।
चूँकि महाराष्ट्र सरकार ने तीन माह में संशोधन का प्रण लिया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जान कारी के सहयोग से आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, सभी राज्यों को अपने सिविल सेवा आचरण नियमों में तात्कालिक संशोधन करना समय की मांग है। साथियों बात अगर हम महाराष्ट्र में सिविल सेवा आच रण नियम 2025 लागू करने की करें तो, सरकारी पद मिल ते ही कुछ लोग देश सेवा कम और कैमरा प्रेम ज्यादा करने लगते हैं। कभी कुर्सी पर बैठ कर स्लो मोशन एंट्री, तो कभी हथियार के साथ डायलाग बाजी, अब ये सब आम बात हो गई है। सैलरी सरकारी है, लेकिन शौक पूरे फुल-टाइम रील स्टार वाले। ऐसे सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर महाराष्ट्र सरकार अब सख्त प्रतिबंध लगाने वाली है, इसके लिए सरकार सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में संशो द्दन कर नए नियम लागू करेगी, ताकि सरकारी कर्मचारियों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित किया जा सके। महाराष्ट्र के सीएम ने बुधवार, 19 मार्च को विधानसभा में इस बारे में एलान किया।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में संशोधन कर नए नियम लागू किए जाएंगे, इस से सरकारी कर्मचारियों के सोशल मीडिया उपयोग को नियंत्रित किया जा सकेगा। इस दौरान उन्होंने कहा कि इस संबंध में जल्द ही एक सरकारी निर्णय (जीआर) जारी किया जाएगा।
उन्होंने उन अधिकारियों को भी फटकार लगाई जो सरकार विरोधी समूहों में सक्रिय रहते हैं। सरकारी नीतियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं। दो सदस्यों ने विधान परिषद में अधिका रियों के सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने का मुद्दा उठाया था, उन्होंने कहा कि अधिकारी रील बनाकर यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि पूरा सिस्टम वही चला रहे हैं।
पुलिस अधिकारी ‘सिंघम’ जैसी फिल्मों से प्रेरित होकर रील बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों पर सख्त प्रति बंध लगाने की जरूरत है, इस के बाद उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार इस पर कानून में संशोधन करेगी?
इस सवाल पर सीएम ने जवाब देते हुए कहा कि महा राष्ट्र सिविल सेवा आचरण नियम 1979 में बनाए गए थे, चूंकि 1989 में सोशल मीडिया नहीं था, इसलिए उस समय के नियम केवल तब उप लब्द्द मीडिया पर लागू होते थे।
उन्होंने कहा, अभी सोशल मीडिया को लेकर कोई सख्त प्रावधान नहीं है, लेकिन आज कुछ अधिकारी सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर रहे हैं, कुछ सरकारी नीतियों के खिलाफ पोस्ट कर रहे हैं,कुछ अपने आधिकारिक पद का इस्तेमाल खुद की महिमा बढ़ाने के लिए कर रहे हैं, ऐसे मामलों को रोकने के लिए नियमों में संशोधन अनिवार्य है। आगे कहा कि सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना चाहिए, लेकिन उनके आचरण को लेकर कुछ अपेक्षाएं भी हैं, उन्होंने जोर देकर कहा कि सोशल मीडिया का उप योग नागरिकों से संवाद के लिए किया जाना चाहिए, न कि रील्स बनाकर फेम कमाने के लिए। इस दौरान उन्होंने साफ कहा कि सरकारी सेवा ओं में अनुशासनहीनता किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। बता दें जम्मू- कश्मीर और गुजरात सरकार पहले ही ऐसे कानून लागू कर चुकी हैं, अब महाराष्ट्र सरकार भी सिविल सेवा आच रण नियमों में संशोधन कर सोशल मीडिया उपयोग, व्यव हार और सहभागिता पर कानून बनाने जा रही है।
साथियों बात अगर हम जनता के कर्मचारियों अधि कारियों की सोच कर्मचारीयों की सरकारी दामाद वाली छवि से परेशान होने की करें तो, हर देश को चलाने के लिये एक सरकार की जरूरत होती है और उस सरकार को चलाने के लिये सरकारी नौकरों की, जो जनता की सेवा करें। लेकिन हमारे देश में सरकार जिन लोगों को सरकारी कर्मचारी बोलकर भर्ती करती है वो नौकर कम मालिक जैसा व्यवहार ज्यादा करते हैं। नौकर का काम मालिक की सेवा करना होता है और अगर वो ऐसा न करे तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। लेकिन हमारे लोकतान्त्रिक देश में सरकारी नौकर कहीं से भी नौकर नहीं लगता है। वो काम करे न करे उसे पूरा वेतन चाहिये, क्योंकि ये उसका हक है।
सरकारी नौकर एक ऐसा नौकर होता है जिसे एक बार मालिक नौकरी पर रख लें तो मालिक ही उसका नौकर बन जाता है। बात-बात पर यह नौकर हड़ताल की द्दमकी देता है और धरना- प्रदर्शन करता है। वेतन के अलावा इसे विभिन्न प्रकार की सुविधायें भी चाहिये। उस की और उसके परिवार की सारी जिम्मेदारी सरकार की होती है। उसके मरने के बाद तक सरकार उसके परिवार का पालन पोषण करती रहती है। कहने को हमारा देश बहुत गरीब देश है, लेकिन हमारे राजनीतिक नौकरो को देखो तो उनकी सात पीढ़ीयों की बात छोड़ो उन्होंने इतना धन इकठ्ठा कर लिया है कि जब तक उसकी संताने इस धरती पर रहेगी। उनको ऐश्व र्यपूर्ण जीवन जीने के लिये हाथ-पैर हिलाने कि जरूरत नहीं होगी। राजनीतिक सेवक ही जनता के असली मालिक है और धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करके धन कमाना ही उनका एकमात्र द्दर्म है। मेरा मानना है कि राजनीतिज्ञों का कोई धर्म नहीं होता और न ही जाति होती है, जिस तरफ उन्हें फायदा दिखता हो वो उसी तरफ चल देते है।
साथियों बात अगर हम सरकारी दामाद का सबसे बड़ा सटीक उदाहरण रेलवे विभाग की करें तो…रेल विभाग में सबसे ज्यादा सरकारी नौकर है, जो रेलों पर अपना पहला अधिकार समझते है।ये और इनका परिवार सारी जिन्दगी रेलों में मुफ्त सफर का आनन्द लेने को अपना अधिकार मानता है, ऐसे ही सभी विभागो के कर्मचारी अपने विभागों द्वारा जनता को दी जाने वाली सुविधाओं पर जनता से पहले अपना अधिकार मानते हैं, मेरा अनु मान है कि अगर सर्वेक्षण किया जाये तो पता लगेगा कि सर कारी विभागांे ने जनता की सेवा कम अपने कर्मचारियों की सेवा ज्यादा की होगी, शायद सरकारी कर्मचारी काम नहीं करते ऐसा सरकार भी मानती है, तभी वो धीरे-धीरे नियमित पदों को समाप्त कर के अस्थायी कर्मचारियो से काम चला रही है, जनता को अपने अधिकारों के लिये जाग रूक होने की जरूरत है, क्यों कि जनता ही असली मालिक है, लेकिन उसे पता ही नहीं है कि नौकरों से काम कैसे लिया जाता है,जो नौकर काम न करे उसे नौकरी पर रहने का अधिकार कैसे हो सकता है और बिना काम के उसे वेतन किस बात का दिया जा रहा है।अगर हम किसी को किसी काम के लिये रखते है और वो काम नहीं होता है तो क्या उसको हम उसके पैसे देते है, लेकिन हमारे देश में ऐसा ही होता है?
अब वो वक्त आ चुका है जब हमें सरकारी नेताओं, अफ सरों और कर्मचारियों को दिये जाने वाले वेतन और भत्तों के एवज में पूरा काम करने की बाध्यता पैदा करनी होगी। अगर कोई नेता अपना काम नहीं करता तो उसे वापिस बुलाने का अधिकार जनता के पास होना चाहिये। इस बात का कोई तुक नहीं है कि अगर जनता से झूठे वादे करके कोई नेता चुन लिया जाता है तो जनता नेता के झाँसे में आकर की गई गलती के लिये पूरे पाँच साल तक सजा भुगते, ऐसे ही अगर कोई भष्ट्र और कामचोर व्यक्ति सर कार में अफसर या कर्मचारी नियुक्त हो जाता है तो सारी उम्र उसे झेला जाये, किसी भी वक्त ऐसा लगता है कि ये व्यक्ति सरकारी नौकरी के योग्य नहीं है या वो काम नहीं करना चाहता या वो भष्ट्र है तो उसे तुरन्त नौकरी से निकाल देना चाहिये।
कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा करना से उसका परिवार मुश्किल में आ जाता है, लेकिन ये सोचना हमारा काम नहीं है ये सोचने का काम उस व्यक्ति का है जो ऐसा करता है। जब उसे अपने परिवार की चिन्ता नहीं तो हम उसके परिवार की चिन्ता क्यों करें। अब ये जरूरी हो गया है कि सरकारी सेवाओं के नियमों में बदलाव किया जाये, ताकि जो सही काम न करे उसे बाहर का रास्ता दिखाया जा सके।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सभी राज्य सरकारों को अपने सिविल सेवा आच रण नियमों में तत्काल संशो धन करना समय की मांग। शासकीय अधिकारियों कर्मचा रियों द्वारा अपने पद का रुतबा रील्स बनाकर या पोस्ट कमें ट्स में लिखना अनु शासन हीनता के दायरे में लाना जरूरी। शासकीय कर्मचारीयों अधिकारीयों को सरकार का दामाद वाली छवि से निकालनें सख्त आचरण नियम 2025 लागू करना जरूरी है।

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