राष्ट्रहित सर्वोपरि होगा, तो राष्ट्र सुरक्षित होगा

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर सबसे युवा देश जिसकी 65 फीसदी आबादी उसकी सबसे मूल्यवान संपत्ति है वह है भारत! जहां दुनियाँ की युवा आबादी का पांचवा हिस्सा है जो एक जनसांख्यिकीय लाभांश पैदा करने की ताकत रखता है, इतिहास गवाह है कि आज तक दुनियाँ में जितने भी क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, चाहे वे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक,सांस्कृतिक और वैज्ञा निक रहे हों, उनके मुख्य आधार युवा ही रहे हैं। भारत में भी युवाओं का एक समृद्ध इतिहास है। प्राचीनकाल में आदिगुरु शंकराचार्य से लेकर गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी ने अपनी युवावस्था में ही धर्म और समाज सुधार का बीड़ा उठाया था। पुनर्जागरण काल में राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ विवे कानंद जैसे युवा विचारक ने धर्म और समाज सुधार आंदो लन का नेतृत्व किया।
इतिहास ने युवाओं की शक्ति का प्रभाव देखा है। उदाहरण के तौर पर भारत की आजादी में अनेक युवाओं ने अपना योगदान दिया और कई युवाओं ने बलिदान तक दिया। इसके परिणामस्वरूप हमारा देश ब्रिटिश सरकार को भागने में कामयाब हुआ। युवाओं ने इस प्रकार अनेक ऐतिहासिक बदलाव किए हैं। इसलिए आज का युवा भी विजन 2047, विजन 5 ट्रिलि यन अमेरिकी डालर की देश की अर्थव्यवस्था के महत्व कांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जो कार्यबल के साथ साथ बाजार की उपलब्धि करा सकता है।
नवाचार, नवोन्मेष, स्टार्ट अप,उद्यमशीलता, विविधता की संस्कृति को चला रहे हैं ऐसी मुल्यवान ताकत युवाओं में हमें राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों की समझ विकसित करने, उनकी चिंताओं जिज्ञासाओं को समझकर उनको उत्साह वर्धन करने की तात्कालिक खास जरूरत है जो सर्वोपरि राष्ट्र सेवा है, क्योंकि यदि राष्ट्रहित सर्वोपरि होगा तो हमारा राष्ट्र आर्थिक, सामा जिक, राजनैतिक, अन्तर्राष्ट्रीय बाधाओं सहित अनेक मुद्दों और विषयों में सुरक्षित होगा।
साथियों बात अगर हम युवाओं को उत्साहवर्धन की करें तो आज अभिभावकों शिक्ष कों बुद्धिजीवियों, राजनीतिक नेताओं से लेकर हर उस जान कार व्यक्तित्व का कर्तव्य है कि युवाओं में राष्ट्रहित की भावना को तेजी से विकसित करें युवाओं में यह भाव पैदा करना होगा कि घर से महत्व पूर्ण समाज, उस से महत्वपूर्ण गांव, शहर, राष्ट्र है। इसलिए राष्ट्र हित की भावना सबसे पहले युवाओं में जागृत कराना जरूरी हैं।
क्योंकि, युवा राष्ट्र का संर चनात्मक और कार्यात्मक ढांचा है। हर राष्ट्र की सफलता का आधार उसकी युवापीढ़ी और उनकीउपलब्धियाँ होती हैं। राष्ट्र का भविष्य युवाओं के सर्वांगीण विकास में निहित है। इसलिए युवा राष्ट्र निर्माण में सर्वोच्च भूमिका निभाते हैं, इसके साथ ही देश का प्रत्येक नागरिक अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट और सर्वोच्च विकास के लिए प्रयासरत रहे। वास्तव में यही राष्ट्रहित है। जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की संकीर्ण मानसिकता से उपर उठकर देश के प्रति गर्व की एक गहरी भावना महसूस करना ही राष्ट्रवाद है।
साथियो बात अगर हम भारत के सबसे कम उम्र वाली आबादी होने की करें तो, भारत के 1.35 बिलियन लोग इसे दुनियाँ का दूसरा सबसे अद्दिक आबादी वाला देश बनाते हैं, लेकिन औसतन 29 वर्ष की आयु के साथ, यह विश्वस्तर पर सबसे कम उम्र की आबा दी में से एक है। जैसे ही युवा नागरिकों का यह विशाल संसाधन कार्यबल में प्रवेश करता है, यह एक जनसांख् ियकीय लाभांश बना सकता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा जनसांख्यिकीय लाभांश को जनसंख्या की आयु संरच ना में बदलाव के परिणामस्व रूप आर्थिक विकास के रूप में परिभाषित किया जाता है, मुख्यतः जब कामकाजी उम्र की आबादी आश्रितों की संख्या से बड़ी होती है।
साथियों बात अगर हम युवाओं में राष्ट्रहित, राष्ट्रीयता भावना जगाने की करें तो, पहला कार्य व्यक्ति निर्माण का है और राष्ट्रीय संस्कार व्यक्ति में बनेंगे तो निश्चित तौर से वह निज हित से ऊपर राष्ट्र हित को प्राथमिकता देगा। देश के हर वर्ग के युवा राष्ट्र हित को सर्वोपरि समझे तभी हम एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे। युवाओं को हमरे पूर्वजों से प्रेरणा लेनी चाहिए संस्कृति को समझना होगा। युवा संगठन से आनला इन जुड़कर भी देश को मज बूती दे सकते हैं। राष्ट्र से बड़ा कोई संगठन नहीं है और राष्ट्रीय भाव से बड़ी विचार द्दारा नहीं हो सकती। इसलिए आज नौजवानों में राष्ट्रीयता की भावना को जगाने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम बच्चों, युवाओं में राष्ट्रहित राष्ट्र वाद को गहराई से समझाने की करें तो, प्रत्येक नागरिक के लिए अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शन करना अनि वार्य है क्योंकि हमारा देश अर्थात हमारी जन्मभूमि हमा री मां ही तो होती है। जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अनेक कष्टों को सहते हुए भी अपने बच्चों की खुशी के लिए अपने सुखों का परित्याग करने में भी पीछे नहीं हटती है उसी प्रकार अपने सीने पर हल चलवाकर हमारे राष्ट्र की भूमि हमारे लिए अनाज उत्पन्न करती है, उस अनाज से हमारा पोषण होता है। साथियों बात अगर हम माननीय पीएम द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार, पीएम ने कहा, एक बात जिसने हमारे लोकतंत्र व्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचाया वह है राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमि कता अपनी विचारधारा को देना।अगर कोई विचारधारा यह कहती है कि देशहित के मामलों में भी मैं इसी दायरे में काम करूंगा तो यह रास्ता सही नहीं है। दोस्तों यह गलत है। आज हर कोई अप नी विचारधारा पर गर्व करता है। यह स्वाभाविक भी है, लेकिन फिर भी हमारी विचार धारा राष्ट्रहित के विषयों में राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए। राष्ट्र के खिलाफ कतई नहीं। आप देश के इतिहास में देखिए जब -जब देश के सामने कोई कठिन समस्या आई है हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एक साथ आए हैं। आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हर विचारधारा के लोग एक साथ आए थे। उन्होंने देश के लिए एक साथ संघर्ष किया था। उन्होंने कहा, आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में कई राजनीतिक दलों के नेता, कार्य कर्ता और संगठन के लोग भी थे। समाजवादी लोग भी थे, कम्युनिस्ट भी थे, जेएनयू से जुड़े कितने ही लोग थे जिन्हों ने एक साथ आकर इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष किया था। इस लड़ाई में किसी को अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था। पर सब सब से ऊपर राष्ट्रहित का उद्देश्य था। इसलिए जब राष्ट्र की एकता, अखंडता का प्रश्न हो तो एक साथ आना चाहिए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देना, हमारे देशव लोकतां त्रिक व्यवस्था का बहुत बड़ा नुकसान राष्ट्रहित सर्वोपरि होगा, तो राष्ट्र सुरक्षित होगा। युवाओं में राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों की समझ विकसित करने, उनकी चिंताओं, जिज्ञासाओं को समझकर उत्साह वर्धन करना सर्वोपरि राष्ट्रसेवा है।

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