एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया – भारतीय संस्कृति, सभ्यता के बारे में हमने साहित्य और इतिहास के माध्यम से और भारत माता की गोद में रहकर पारिवारिक संस्कृति, मान सम्मान, रीति- रिवाजों से इसे प्रत्यक्ष महसूस भी कर रहे हैं। परंतु हमारे बड़े बुजुर्गों के माध्यम से हमने कई बार सतयुग का नाम सुने हैं, जिसका वर्णन वेस्वर्गलोक के तुल्य करते हैं। याने इतनी सुखशांति, अपराध मुक्ति, इमानदारी, शांति सरोवर तुल्य, कोई चालाकी चतुराई गलत फहमी या कुटिलता या भ्रष्टा चार नहीं, बस एक ऐसा युग कि कोई अगर कुछ दिन, माह के लिए बाहर गांव जाए तो अपने घरों को ताला तक लगा ने की जरूरत नहीं! अब कल्पना कीजिए कि अपराध बोध मुक्त युग!मेरा मानना है कि हमारी पूर्व की पीढ़ियों ने ऐसा युग जिए होंगे तब यह बोध आगे की पीढ़ियों में आया, जिसे सतयुग के नाम से जरूर जाना जाता है।
साथियों बात अगर हम वर्तमान युग पर बड़े बुजुर्गों में चर्चा की करें तो इस इसे कलयुग नाम देते हैं, याने सभी प्रकार के अपराध बोध से युक्त संसार। हर तरह की बेईमानी, भ्रष्टाचार कुटिलता से भरा हुआ युग! आज भी बुजुर्गों का मानना है कि वह सतयुग फिर आएगा,याने आज की तकनीकी भाषा में अपराद्द मुक्त, भ्रष्टाचार बेईमानी कुटि लता मुक्त पारदर्शिता और अने कता में एकता वाले भारत की परिकल्पना का युग।
साथियों बात अगर हम अपराध, भ्रष्टाचार, बेईमानी, तो मेरा मानना है कि इसका मुख्य प्रवेश द्वार क्रोध, उत्तेजित स्वभाव व लालच है जिसमें आपराधिक बोध प्रवृत्ति का जन्म होता है और व्यक्ति क्रोध में हिंसा, अपराध, लालच, भ्रष्टाचार, बेईमानी और कुटि लता के अमानवीय कृति और अन्य गलत कार्यों की ओर मुड़ जाता है और आगे बढ़ते ही चले जाता है जब जीवन के असली महत्व का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। क्रोध की अभिव्यक्ति हमारे अंदर की कुंठा, हिंसा व द्वेष के कारण भी हो सकती है। वर्तमान काल में अपराधों के बढ़ने का एक प्रमुख कारण भीषण क्रोध ही है। क्रोध से उत्पन्न हुए अपराधों के औचित्य को सिद्ध करने के लिए क्रोद्दी व्यक्ति कुतर्क कर दूसरे को ही दोषी सिद्ध करता है। एक दोष को दूर करने के लिए अनेक कुतर्क पेश करता है। क्रोध में व्यक्ति आपा खो देता है। क्रोध में अंततः बुद्धि निस्तेज हो जाती है और विवेक नष्ट हो जाता है। क्रोध का विकराल रूप जुनून है। आदमी पर जुनून सवार होने पर वह जघन्य से जघन्य अपराध कर बैठता है। जुनून की हालत में उसे मान वीय गुणों का न बोद्द रह पाता है और न ही ज्ञान। क्रोध मानव का सबसे बड़ा शत्रु है, बहुत बड़ा अभिशाप है। साथि यों बात अगर हम शांत, परोप कारी स्वभाव ही जीवन का मूल मंत्र की करें तो अभि भावकों, शिक्षकों को बच्चों को यह शिक्षा देना है और हम बड़ों को यह स्वतः संज्ञान लेना है कि माचिस की तीली बनने की बजाय शांत सरोवर बनना होगा, जिसमें कोई अंगारा भी फेंके तो स्वयं ही बुझ जाए, बस! यह भाव अगर हम मनीषियों के हृदय में समाहित हो जाए तो यह विश्व फिर सतयुग का रूप द्दारण करेगा जहां किसी तरह का कोई अपराध बोध या गलत काम का भाव नहीं होगा। सभी मनीषी जीव परो पकारी भाव से युक्त होंगे भाई चारा, प्रेम, सद्भाव की बारिश होगी जहां बिना ताले घरबार छोड़ कहीं भी जाने के भाव जागृत होंगे और हमारे बुजुर्गों का सतयुग रूपी सपना साकार होगा।
साथियों बात अगर हम स्वयं को माचिस की तीली याने क्रोधित होने पर विपरीत परिणामों की करें तो, क्रोध मनुष्य को बर्बाद कर देता है और उसे अच्छे बुरे का पता नही चलने देता, जिस कारण मनुष्य का इससे नुक्सान होता है। क्रोध मनुष्य का प्रथम शत्रु होता है। क्रोधी व्यक्ति आवेश में दूसरे का इतना बुरा नहीं जितना स्वयं का करता है। क्रोध व्यक्ति की बुद्धि को समाप्त करके मन को काला बना देता है।
साथियों बात अगर हम क्रोध को नियंत्रित कर समाप्त करने की तकनीकी की करें तो इलेक्ट्रानिक मीडिया के अनुसार क्रोध के नकारात्मक प्रभाव पूरे इतिहास में देखे गए हैं। प्राचीन दार्शनिकों, द्दर्म परायण व्यक्तियों और आद्दु निक मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतीत होने वाले अनियंत्रित क्रोध का मुकाबला करने की सलाह दी गई है। आधुनिक समय में, क्रोध को नियंत्रित करने की अवधारणा को मनो वैज्ञानिकों के शोध के आद्दार पर क्रोध प्रबंधन कार्यक्रमों में अनुवादित किया गया है। क्रोध प्रबंधन क्रोध की रोक थाम और नियंत्रण के लिए एक मनो-चिकित्सीय कार्यक्रम है। इसे क्रोध को सफलता पूर्वक तैनात करने के रूप में वर्णित किया गया है। क्रोध अक्सर हताशा का परिणाम होता है,या किसी ऐसी चीज से अवरुद्ध या विफल होने का अनुभव होता है जिसे विषय महत्वपूर्ण लगता है। अपनी भावनाओं को समझना क्रोध से निपटने का तरीका सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस् सा हो सकता है। जिन बच्चों ने अपनी नकारात्मक भावना ओं को क्रोध डायरी में लिखा था, उन्होंने वास्तव में अपनी भावनात्मक समझ में सुधार किया, जिससे बदले में कम आक्रामकता हुई। जब अपनी भावनाओं से निपटने की बात आती है, तो बच्चे ऐसे उदाहर णों के प्रत्यक्ष उदाहरण देख कर सबसे अच्छा सीखने की क्षमता दिखाते हैं, जिनके कारण कुछ निश्चित स्तर पर गुस्सा आया। उनके क्रोधित होने के कारणों को देखकर, वे भविष्य में उन कार्यों से बचने की कोशिश कर सकते हैं या उस भावना के लिए तैयार हो सकते हैं जो वे अनुभव करते हैं यदि वे खुद को कुछ ऐसा करते हुए पाते हैं जिसके परिणामस्वरूप आम तौर पर उन्हें गुस्सा आता है, इसके साथ ही एकांत में जा कर ध्यान के माध्यम से क्रोद्द के विकारों को नष्ट करने का प्रयास करें तो ऋणात्मक ऊर्जा को मोड़कर हम सकारा त्मक ऊर्जा से विवेक सम्मत निर्णय लेने में सक्षम हो सकते हैं। अगर हम उपरोक्त पूरे विव रण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि शांत, परोपकारी स्वभाव सुखी जीवन का मूल मंत्र है! स्वयं को माचिस की तीली बनने की बजाए शांति सरोवर बनाएं, जिसमें कोई अंगारा भी फेंके तो स्वयं ही बुझ जाए।
क्रोध, उत्तेजित स्वभाव, अप राधिक बोध प्रवृत्ति का मुख्य प्रवेशद्वार है अपराद्द मुक्त भार त के लिए मनीषियों को क्रोद्द त्यागना प्राथमिक उपाय है।
स्वयं को माचिस की तीली बनाने की बजाय, शांत सरोवर बनाएं जिसमें कोई अंगारा भी फेंके तो स्वयं ही बुझ जाए

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