एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया – मानवीय जीव इस सृष्टि में अनमोल हीरा है।मनुष्य में अनमोल गुणों का भंडार समाया हुआ है, परंतु हम अपने आप की शक्ति को पहचानने की कोशिश नहीं करते बल्कि हमेशा दूसरों की ताकझांक करते रहते हैं। हर क्षेत्र में दूसरों से प्रतियोगिता करने पर उतारू हो जाते हैं,कुछ नया करने की नहीं सोचते।अपनी बुद्धि का सकारात्मक उपयोग लेने पर अगर हम उतारू हो गए!तो हम सफलताओं का हर दिन एक नया इतिहास रच सकते हैं क्योंकि इतनीं बुद्धि कौशलता हर एक भारतीय में समाई हुई है। बस!जरूरत है उसे पहचान कर निखारने की परंतु हम अपने ही बढ़ बोलेपन से घिरे रहते हैं, दूसरों की टांग खींचने में हमको मजा आता है। किसी भी नकारात्मक विस्तार वादी बात को समाधान कर समाप्त करना जैसे हमने सीखे ही नहीं? जबकि भारत माता की मिट्टी में ही मानवीय गुणों की खान समाई हुई है जिसे हमें चुनकर अपनाना है। आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से गुणों की खान के दो हीरे चुप रहना और माफ करना पर चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम मानवीय अनमोल गुण चुप रह ने की करें तो, बड़े बुजुर्गों की इस पर दो कहावतें हैं (1) बोलत बोलत बड़े बिखात, पहली कहावत का भावार्थ है, अति बोलने से ही बातें बिगड़ती है झगड़े दंगे फसाद मारपीट हत्याएं तक हो जाती है इसलिए चुप भली,(2) अति का भला ना बोलना अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना अति की भली न धूप, याने दूसरी कहावत का भावार्थ अति चुप रहने को भी नकारा गया है याने अन्या य के खिलाफ चुप रहना हानि कारक है। परंतु हमें इसका निर्णय अपने समाज और राष्ट्र के फायदे को देखकर ही लेना है परंतु मेरा मानना है चुप रहने से कई फायदे हैं और सामने वाले को सटीक जवाब भी मिल जाता है।
बोलने से पहले हमें याद रखना होगा के (1) बिना तथ्य के ना बोले (2) शब्दों से ठेस ना पहुंचे (3) पवित्र वस्तुओं सेवाओं का अपमान ना करें (4) क्रोध में चुप रहे (5) मुद्दे से संबंध ना होने पर चुप रहें (6) शब्दों से किसी को ठेस ना पहुंचे (7) चिल्लाने से चुप भली(8)अपमान से ना बोलें (9) जरूरत पड़ने पर सकारा त्मक बोलें (10) निंदा से बचें।
साथियों बात अगर हम चुप रहकर भी अपनी दिमागी ताकत से जवाब देने की करें तो, चुप रहना और कुछ समय तक खुद को स्थिर रखना हमको एक अच्छा श्रोता और समीक्षक बनाता है। ऐसा इस लिए क्योंकि जब हम चुप रह ते हैं तो हम बोलने की बजाय अधिक से अधिक सुनते हैं और उसका विश्लेषण कर पाते हैं। इससे हम पूरे तर्क और वितर्कों को जानने के बाद सही फैसला ले पाते हैं। हम सभी पक्षों को सुनते,समझते और डिसिजन ले पाते हैं। चुप रहना हमारे दिमाग को शांत करता है और हमको लाॅजिकल समीक्षक बनाता है हमारे चुप रहने से अनेक बार सामने वाले को जवाब भी मिल जाता है।
साथियों हमारे शरीर का सबसे जटिल हिस्सा दिमाग होता है। ये पूरे शरीर को चलाता है और ये हमारे सभी इमोशंस को कंट्रोल करता है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने दिमाग को भी व्यायाम करवाएं। जिस तरह शरीर को मजबूत बनाने के लिए शारीरिक व्यायाम जरूरी है, उसी तरह दिमाग को मजबूत बनाने के लिए उनकी ताकत बढ़ाना जरूरी है। मौन रहना दिमाग के लिए एक व्यायाम जैसा ही है और इससे दिमाग की मांसपेशियां तंदरुस्त रहती हैं।चुप रहने के अपने शारीरिक और मानसिक फायदे भी हैं? विशेषज्ञ मानते हैं कि चुप रहने से व्यक्ति दिमागदार और उत्पादक बनने की और अग्र सर होता है जिससे उनके मान सिक और शारीरिक स्वा ध्याय स्वास्थ्य सुधार होने की संभावना बनी रहती है। व्यर्थ का बोलना ऊर्जा को नष्ट कर ना है, और यह बोलना ही हमें कभी अपने भीतर की ओर लौट ने नहीं देता , क्योंकि यह हमें बाहर की ओर झुकाए रखता है और जिन्हें भीतर की यात्रा करनी है उन्हें अपने मुंह को बंद ही रखना चाहिए। चुप रहने में अद्भुत शक्ति है।
साथियों बात अगर हम किसी को माफ करने की करें तो, खुद को दुख पहुँचाने या धोखा देने वाले व्यक्ति को माफ करना सबसे कठिन काम है। हालाँकि, यदि हम किसी के साथ अपने संबंधों को सु धारना चाहते हैं, तो उस के लिए हमको माफ करना सीख ना भी जरूरी है या फिर सीधे तौर पर बीते हुए पलों को भुलाकर, आगे बढ़ने की कोशिश करें। नकारात्मक भावनाओं से निपटना सीखें, हमको दुख पहुँचाने वाले व्यक्ति का सामना करें और अपने जीवन में आगे बढ़ते जाएँ। क्षमा करना पसंद करें, क्योंकि बड़े बुजुर्गों की कहावत भीहै क्षमादान महादान, क्षमा करके भी हम सामने वाले को एक यादगार सजा के रूप में दे सकते हैं। क्षमा की भावना लेकर, हमको नकारात्मकता को अपने से दूर करने और जीवन में आगे बढ़ने के लिए एकदम सचेत और सक्रिय निर्णय करने की जरूरत है। यह भावना आसानी से नहीं पनपती। खुद के अंदर क्षमा की भावना उत्पन्न करने के लिए हमको ही इस दिशा में कार्य करने की जरूरत है।
साथियों लोग अक्सर इस तरह की बातें करते हैं, कि वे उस इंसान को नहीं भुला सकते, जिसने उन के साथ कुछ गलत किया है। वे ऐसा मानते हैं, कि अपने अंदर मौजूद दर्द और धोखा मिलने की भावना को भूलना उन के लिए असंभव है।
लेकिन लोग इस बात को महसूस करने में नाकाम रह जाते हैं, कि क्षमा करना भले ही हमारी पसंद है, लेकिन अगर हम उस व्यक्ति को क्षमा करने का निर्णय लेते हैं, जिसने हमको कष्ट दिया हैं, तो यदि इस निर्णय से किसी को लाभ होता है, तो वो सिर्फ हम हैं और सामने वाले को हमेशा के लिए उस माफी के रूप में एक सजा और हमारा बड़प्पन। जीवन में माफी मांगने की कला बहुत लोगों को बहुत अच्छे से आती है तो वहीं कुछ लोगों को माफी मांगना उतना ही कठिन लगता है। दरअसल माफी मांगना या फिर किसी को क्षमा करना उतना भी सीधी -सादी बात नहीं है, लेकिन ऐसा करने के बाद व्यक्ति बड़ा सुकून मिलता है। हमारे यहां क्षमा को वीरों का आभू षण कहा गया है।
जिससे व्यक्ति के जीवन में अहंकार दूर होता है और वह स्वस्थ मन से जीवन जीता है इसलिए भूल करना मनुष्य का स्वभाव है लेकिन क्षमा करना देवताओं का गुण है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मनुष्य में अनमोल गुणों का भंडार है। हम सफल ताओं का हर दिन एक नया इतिहास रच सकते हैं।उनमें चुप रहना और माफ करना दो अनमोल हीरे हैं। चुप रहने से बड़ा कोई जवाब नहीं और माफ कर देने से बड़ी कोई सजा नहीं। मानवीय जीव में जन्म से ही भरपूर कौशलताएं समाई हुई है बस पहचान कर निखारनें की जरूरत है।
चुप रहना और माफ करना दो अनमोल हीरे – चुप रहने से बड़ा कोई जवाब नहीं, माफ कर देने से बड़ी कोई सजा नहीं!

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