किसी भी विषय वस्तु पर अपनी राय बनाते, शब्दों का चयन करते समय विवेकपूर्ण हाजिर मंथन जरूरी

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया – विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत पूरी दुनियाँ में बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाना जाता है, क्योंकि यह आवाज 142.6 करोड़ जनसांख्यिकी तंत्र की आवाज होती है इस लिए पूरी दुनियाँ के प्रमुख व्यक्तित्व गंभीरता से भारत के बयानों पर ध्यान देकर उसका उचित विवेकपूर्ण मंथन कर सकारात्मक समझ निका लते हैं।
हालांकि अपवाद स्वरूप कुछ देश ऐसे भी हैं जो भारत की बातों को विवादों में भी ले जाने की कोशिश करते हैं। हम भारत माता के वंशज हैं। संस्कृति, सभ्यता हमारे लहू में समाई हुई है। हम दैनिक जीवन में भी अपनी राय बेबाकी से रखने में विश् वास रखते हैं क्योंकि हम लोकतंत्र की छत्रछाया में रहने के आदी हैं, परंतु हम में से कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी राय बनाने में गंभीर नहीं हैं बिना सोचे समझे बया न बाजी, राय देना सलाह देना, किसी भी बात का नकारा त्मक मतलब निकालना, बिना बात के झगड़ा बढ़ाना, सहन शीलता संवेदनशीलता और सहिष्णुता की कमी के कारण जीवन में छोटी-छोटी बातों का परिणाम विभित्सक रूप धारण कर लेता है जिससे हमारी जान के लाले भी पड़ जाते हैं इसलिए हमें चाहिए कि किसी भी विषय वस्तु, बात,स्थिति पर अपनी राय बनाते, शब्दों का चयन करते समय विवेकपूर्ण हाजर मंथन कर उस बात को रखना अपेक्षा कृत सटीक होगा, उस राय की सटीकता का विचार भी कुछ पलों में कर नपी तुली समझ का परिचय देना जरूरी है। चूंकि हम वैश्विक स्तरपर भारत की राय और भारत माता के सपूतों की राय प्रकट करने की बात कर रहे हैं, इसीलिए आज हम इस आर्टि कल के माध्यम से चर्चा करेंगे आओ सोच समझकर अपनी राय बनाए, वाणी बोले।
साथियों बात अगर हम अनेक मुद्दों पर मनीषियों की राय की करें तो दरअसल, हर मुद्दे को लेकर सबकी राय अलग अलग होती है, ऐसे में कई लोग सही तरह से राय व्यक्त न कर पाने के कारण भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, तो कुछ लोग दिलचस्प तरीके से अपनी बात रखकर भीड़ से अलग पहचान बनाने में कामयाब हो जाते हैं,आमतौर पर हर चीज को लेकर सभी लोगों कि अपनी अपनी राय होती हैं, ऐसे में ज्यादातर लोग नुक्कड़ पर राजनीतिक चर्चा से लेकर सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और घरेलू मामलों में अपनी राय देने से पीछे नहीं हटते हैं। हालांकि, इस दौरान कुछ लोगों की राय भीड़ से बिल्कुल अलग होती है. वहीं अगर हम चाहें तो कुछ इंप्रेसिव तरीकों से अपनी राय को सबसे अलग बना सकते हैं।
साथियों कई बार जल्दी जल्दी में राय देने के चक्कर में हम अपनी बात को सही तरीके से पेश नहीं कर पाते हैं, ऐसे में न सिर्फ हम सामने वाले को अपनी बात समझाने में असफल हो जाते हैं बल्कि सामने बैठे लोग हमारी बात का गलत मतलब भी निकाल सकते हैं, इसलिए हमें अपनी राय रखने से पहले शब्दों का चुनाव काफी सोच-समझ कर ही करना है। वैसे तो हर मुद्दे पर सभी का अलग राय होती है, वहीं राय सही या गलत भी हो सकती है, मगर राय रखते समय कई लोग अपनी बात को इतने खास अंदाज में बयां करते हैं कि हम चाहकर भी उनकी बात का विरोध नहीं कर पाते हैं। हालांकि, अगर हम चाहें तो राय देने के इस दिलचस्प तरीके को अपनी व्यक्त्तित्व में भी शामिल कर सकते हैं।
साथियों बात अगर हम राय देने में शब्दों के चयन की करें तो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी हमें शब्दों का चयन सोच समझ कर करना चाहिए, चाहे किसी से बात करने के क्रम में हो या किसी समारोह में या किसी वाद विवाद में। ऐसा माना जाता है कि हथियार या चोट के घाव तो भर जाते हैं पर शब्दों के घाव हमेशा ताजा रहते हैं। किसी मित्र की टांग खिंचाई में बड़ा मजा आता है पर ऐसा करने में हम इतने मशगूल हो जाते हैं कि कुछ अनचाहा कह जाते हैं। कुछ ऐसा ही क्रोध के समय भी होता है। इसीलिए क्रोध के समय अप्रिय बातें करने से बचना चाहिए। इसके अलावा यदि किसी को सलाह दी जाए तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि हमारे शब्दों से उसके आत्मसम्मान को ठेस ना पहुंचे। यदि सही शब्दों का चयन किया जाए तो आदेश भी निवेदन लगेगा और बिना किसी के अहम को ठेस पहुंचे सब का काम हो जाएगा।
साथियों इसके साथ ही हमें अपने कहे गए शब्दों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। चाहे अनचाहे यदि आपकी बातों से किसी की भावनाएं आहत हो तो हमें उन बातों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, ना कि तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी बातों को सिद्ध करना चाहिए। ऐसा करके हम अनावश्यक बहस से निजात पा सकेंगे और सामने वाले के मन में भी सम्मान के पात्र बनेंगे। वास्तव में हमारे शब्द हमारे हृदय की प्रेम की अभिव्य क्ति हैं। अब यह हमारे ऊपर है कि हम इस प्रेम को संसार में लुटाएं या प्रेम की जगह घृणा फैलाएं। प्रेम पूर्वक की गई आलोचना किसी को सही मार्ग पर ला सकती है या अप्रिय शब्दों से युक्त अच्छी सलाह उसे गलत रास्ते को चुनने की ओर प्रेरित कर सक ती है। इसलिए हमें शब्दों के खजाने को निरंतर बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि इनका प्रयोग संसार में खुशियां बांटने में किया जा सके।अतएव सोच समझकर शब्दों का चयन करें।
साथियों बात अगर हम अपनी राय शाब्दिक अभिव्य क्ति के बाद तीसरे सबसे कीमती सोने पर सुहागा वाणी की करें तो, कबीर दास जी का यह दोहा और उसका अर्थ सबने सुना होगा, ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय, हम सब इसका अर्थ भी जानते हैं पर हम में से ऐसे कितने हैं जो इन पर अपनी मौजूदा जिंदगी में अमल करते हैं। यह सिर्फ एक दोहा नहीं है,एक फिलॉसफी है कि हम अपने शब्द का चुनाव सोच समझकर करें। आखिर शब्द ही हैं जो दोस्त को दुश्मन और दुश्मन को दोस्त बनाने की काबिलियत रखते हैं। द्रौपदी के कहे तीखे शब्द, जो उसने दुर्योधन को कहे, महाभारत के युद्ध का एक कारण बने। दूसरी तरफ दुर्योधन के शब्दों ने कर्ण को अपना मित्र बना लिया। यह दिखाता है कि किस प्रकार शब्द अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हम बिना सोचे-समझे किसी की बात को गलत कह देते हैं, क्या यह कहना इतना आसान होता है, बिना यह जाने कि पूरी बात क्या है?
साथियों एक प्रख्यात कहा वत के कुछ इस तरह बोल हैं-शब्द तीर की तरह होते हैं, एक बार जुबान की कमान से निकल गए तो आप उन्हें दोबारा वापिस नहीं ले सकतें। हम बिना सोचे समझे किसी की बात को गलत कह देते हैं- आखिर क्यों ? क्योंकि हम समझने के लिए नहीं बल्कि प्रतिक्रिया देने के लिए सुनते हैं। हम मन ही मन धारणाएं बना लेते हैं और हमारी प्रति क्रियाओं के साथ तैयार होते हैं। हम सामने वाले की बातों को समझकर नहीं सुनते। और इसकी कई वजहें हैं जिनके बारे में मैं इस उत्तर में नहीं समझा सकतीं। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आओ सोच समझ कर अपनी राय बनाएं, वाणी बोले। किसी भी विषय वस्तु पर अपनी राय बनाते, शब्दों का चयन करते समय विवेक पूर्ण हाजिर मंथन जरूरी है। जीवन में छोटी -छोटी बातें विभित्सक रूप धारण कर सक ती है इसलिए निर्णय से पहले सटीकता परखना जरूरी है।

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