लोकसभा व राज्यसभा में सरकार को वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पास करने के आंकड़े ना होना सबसे बड़ी चुनौती

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि चुनाव सुधारो संबंधी विधेयक (संविधान संशोधन) बिल को संसद की अनुमति देकर जेपीसी बनाकर पूर्ण रूप में अध्ययन कर, पूरे राजनी तिक दलों, आम जनता, वि शेषज्ञों हित धारकों के विचा र जेपीसी द्वारा कलमबंद कर पूर्ण रूपेण रिपोर्ट पेश करने की पूरी प्रक्रिया की जाती है।कोई इस कानून पसंद करता है तो कोई विरोध दर्ज करने को भी शामिल किया जाता है, इसका सटीक उ दाहरण भारत में गठित वन नेशन वन इलेक्शन की जेपी सी जिसमें 31 सदस्य बनाए गए हैं, जिसमें 12 सदस्य उच्च सदन यानें राज्यसभा के भी शामिल है जिसको सांसद ने बहुमत से मंजूरी दी, अब यह जेपीसी अपनी रिपोर्ट संसद में बजट सत्र 2025 के सप्ताह में पेश करेगी। परंतु मेरा मा नना है कि इस लोकसभा व राज्यसभा में टू थर्ड मेजोरिटी से इस बिल को पारित करना चुनौती पूर्ण है, क्योंकि इसे पारित टू थर्ड मेजोरिटी से पारित करने से संबंधित आंक ड़े एनडीए के पास दोनों सद नों में नहीं है जिसकी चर्चा हम नीचे पैराग्राफ में करेंगे। चूँकि एक देश एक चुनाव देश के लिए गेम चेंजर साबित होगा, विजन 2047 का मज बूत स्तंभ बनेगा, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जान कारी के सहयोग से इस आ र्टिकल के माध्यम से चर्चा क रेंगे, लोकसभा व राज्यसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बि ल को पास करने के आंकड़ों का न होना सबसे बड़ी चुनौती है, बजट सत्र 2025 में कमेटी रिपोर्ट पेश करेगी। साथियों बात अगर हम संविधान (129 वां संशोधन) बिल को संसद में पास कर जेपीसी को प्रेषित करने की करें तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वां संशोधन) बिल 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशो धन) बिल 2024 को लोकस भा के पटल पर पास करवाया गया। बिल को लेकर विपक्ष का कहना था कि ये सरकार का तानाशाही वाला कदम है।
देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से जुड़े दो विधे यक केंद्र सरकार ने लोकसभा में दिए थे, इस बीच, विपक्ष का तीखी बहस और विरोध देखने को मिला, जिसके बाद सरकार ने इस विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने की सिफारिश की, स्पीकर ने 31 सदस्यों वाली कमेटी गठित कर दी है. पीपी चैधरी चेयरमैन बनाए गए हैं। एक देश-एक चुनाव से संबं धित आठ पेज के इस बिल में जेपीसी को अच्घ्छा खासा होमवर्क करना होगा। संविधा न के तीन अनुच्छेदों में परिव र्तन करने और एक नया प्राव धान जोड़ने की पेशकश की गई है। दरअसल, अनुच्छेद 82 में नया प्रावधान जोड़कर राष्ट्र पति द्वारा अपॉइंटेड तारीख पर फैसले की बात कही गई है। बता दें कि अनुच्छेद 82 जनगणना के बाद परिसीमन के बारे में है।
साथियों बात अगर हम वन नेशन वन इलेक्शन बिल की चुनौतियों की करें तो, जहां इस बिल पास कराने के लिए सरकार को 362 वोट चाहिए होंगे, लेकिन यहां एनडीए सां सदों की संख्या 293 है, राज्य सभा में भी नरेंद्र मोदी सरकार को यही चैलेंज मिलने वा ला है, जहां एनडीए के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है। वन नेशन वन इलेक्शन बिल को लोकसभा में स्वीकार कर लिया गया है। अब इसे संयु क्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है जेपीसी की सिफारिशें मिलने के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार की अगली चुनौती इसे संसद से पास कराने की होगी। चूंकि वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा बिल संविधान संशोधन विधे यक है इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहमत की आवश्यकता होगी। अनुच्छेद 368 (2) के तहत संविधान संशोधनों के लिए विशेष बहुमत की आवश्यक ता होती है इसका अर्थ है कि प्रत्येक सदन में यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देनी होगी। इस वि धेयक को दोनों सदनों के सा मने प्रस्तुत किया जाना होगा और दो-तिहाई सदस्यों को मतदान करना होगा ताकि यह पारित हो सके। एक संवि धान संशोधन बिल होने के नाते इस बिल को इस संवै धानिक प्रक्रिया को पूरा करना होगा। लोकसभा और राज्य सभा में इस बिल को पास कराना ही सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
दरअसल लोकसभा में एनडीए के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है। हां एनडीए के पास सामान्य बहुमत जरूर है, लोकसभा में अगर सभी 5 43 सांसद इस बिल पर वो टिंग में शामिल होंगे, तो बिल पास कराने के लिए सरकार को 362 वोट चाहिए होंगे, इस वक्त बीजेपी लोकसभा में बीजेपी के 240 सांसद हैं, अगर एनडीए का आंकड़ा देखें तो यहां इनकी सांसदों की संख्या 293 है। इस तरह से लोकसभा में सरकार को 69 सांसदों की कमी पड़ती दिख रही है, इस वक्त बीजेपी सर कार के लिए राहत की बात ये है कि गैर इंडिया ब्लाॅक की कुछ पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन बिल के लिए समर्थन जताया है, अगर इंडिया ब्लाॅक अपने कुनबे को छिट कने से बचाने में सफल रही तो वन नेशन वन इलेक्शन बिल को लोकसभा से पास कराने में सरकार को इस बिल को लेकर काफी चुनौतियां मिलने वाली हैं। राज्यसभा का नंबरगेम वन नेशन वन इलेक्श न बिल को राज्यसभा में पास कराने के लिए 164 वोटों की जरूरत होगी राज्यसभा में इस वक्त 245 में से 112 सीटें एनडीए के साथ है, इसमें 6 मनोनीत सांसद भी शामिल हैं, यानी कि उच्च सदन में भी सरकार के पास बिल को पास कराने के लिए जरूरी संख्याबल नहीं है। राज्यसभा में एनडीए के पास 52 वोटों की कमी पड़ रही है। अगर एनडीए जगनमोहन का साथ लेने में सफल होती है तो इन्हें 11 और और सांसदों का समर्थन हासिल हो जाएगा। लोकसभा में भले ही बीजेडी के एक भी सांसद न हो लेकि न राज्यसभा में पार्टी के 7 सांसद है, अगर बीजेपी, बीजे डी का समर्थन राज्यसभा में हासिल करने में सफल रहती है तो एनडीए को 7 और सांसदों का समर्थन हासिल हो जाएगा, के चंद्रशेखर राव की के भी राज्यसभा में 4 सां सद हैं, इसके अलावा राज्य सभा में बीएसपी के 1 सांसद, एआईएडीएमके के 3 सांसद हैं. इनके अलावा पूर्वोत्तर के कुछ सांसद भी राज्यसभा में हैं जो सरकार के साथ आ सकते हैं। एआईएडीएमके ने अपना रुख अभी स्पष्ट नहीं किया है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इस समर्थन के बाव जूद एनडीए बहुमत के लिए जरूरी 164 सांसदों के आंक ड़े तक नहीं पहुंच पा रही है। लोकसभा – राज्यसभा से पास कराने के बाद इस बिल को देश की आधी से अधिक वि धानसभाओं में पास कराना होगा हालांकि इस मुद्दे पर कानून के जानकारों की राय अलग अलग है, अनुच्छेद 368 (2) के दूसरे प्रावधान के तहत, कुछ संशोधनों को विशेष रूप से राज्यों के कम से कम आधे विधानसभाओं द्वारा अनु मोदित करना होता है, विशेष रूप से उन संशोधनों के लिए जो संघीय संरचना, संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व या सातवीं अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावित करते हैं। वन नेशन, वन इलेक्शन बिल का विरोध करने वाली पार्टियों के पास लोकसभा में 205 और राज्यसभा में 85 सीटें हैं, कुल मिलाकर, सरकार को इस बिल को पास कराने के लिए विपक्ष की सहमति हासिल करनी पड़ेगी हालांकि इस बिल पर विपक्ष के तेवर ऐसे लगते नहीं हैं। 1960 के दशक में, एक साथ चुनाव कराने की कोई पूर्व-नियोजित यो जना नहीं थी। 1951 से शुरू होने वाले सभी चुनावों के साथ, यह संयोग से हुआ और राज्यों में भी स्थिरता थी। इसलिए, राज्य विधानसभाएं और लोकसभा, दोनों ही अप ना पूरा पांच साल का कार्य काल पूरा करती रहीं। इसके परिणामस्वरूप 1951, 1952, 1957, 1962 और अंततः 1967 में तथाकथित एक साथ चुना व हुए। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस समय हमारे 1960 के दशक में वापस जाने का सवाल नहीं है। ऐसा इस लिए क्योंकि राजनीति हमें 19 60 के दशक से दूर ले जा रही है।
अतः अगर हम उप रोक्त पुरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संविधान (129 वां संशोधन) बिल 2024- जेपीसी गठित-वन नेशन वन इलेक्शन बिल एक चुनौतियां अनेक। एक देश एक चुनाव, देश के लिए गेम चेंजर साबित होगा-विजन 2047 का मज बूत स्तंभ लोकसभा व राज्य सभा में सर कार को वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पास करने के आंकड़े ना होना सबसे बड़ी चुनौती है।

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