माता-पिता व बुजुर्गों के सम्मान सुरक्षा, गरिमा भरे जीवन को सुरक्षित करने, वर्तमान कानून व नियम अपर्याप्त हैं, इसको रेखांकित करना जरूरी

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्राॅनिक व प्रिंट मीडिया के सहयोग से देख पढ़ सुन रहे हैं कि दुनियाँ में असंख्य माता पिता वह सीनियर सिटीजन बुजुर्ग व्यक्ति हैं जो अपनी संतान की दुत्कार सह रहे होंगे। आज माॅडर्न सोसाइटी का तर्क देकर माता पिता, बुजुर्गों से दुव्र्यवहार किया जाता है। आज थोड़ी-थोड़ी बात पर माता-पिता बुजुर्गों को कहा जाता है कि चुपचाप बैठो, तुमको क्या समझता है, तुम सठिया गए हो। हालांकि भारत एक आध्यात्मिक माता-पिता का संबंध, बुजुर्गों की सेवा करने के विचारों महान मानवों का देश है। परंतु आज वह केवल उदाहरण बनकर रह गए हैं। प्रैक्टिकली अगर माता-पिता बुजुर्गों के जीवन में झांककर देखा जाए तो आज की तारीख में उन्हें दुत्कार ही मिलती रहती है। मैंने अपनी गोंदिया राइस सिटी में इसे रिसर्च के तौर पर माता-पिता द्वारा 1 साल के बच्चों की परवरिश पर पूरा एक महीना ध्यान रखा तो देखा वह अपने बच्चों को, माता पिता अपने पलकों पर बैठा कर प्यार करते हुए ए ग्रेड का पालन पोषण कर रहे थे, तो दूसरी तरफ एक परिवार को देखा जिसमें जिसके दोनों बच्चे मुंबई पुणे और विदेश में रह रहे थे और मां लाचार होकर किचन में तो पिता छोटी सी दुकान पर अपनी बुजुर्ग दौर के दिन मेहनत करके काट रहा था। तीसरी जगह देखा तो बच्चे अपने माता-पिता को दुत्कार कर रौब से बात कर रहे थे कि मानो वह उसके माता पिता नहीं उसके घर के नौकर है। यह तीनों ग्राउंड रिपोर्टिंग किस्से देख कर मैं दंग रह गया। यानें बच्चों को हम कितना लाड से पालते पोछते पढ़ाते और लाखों के पैकेज की नौकरी योग्य बनाते हैं कई बार तो उन्हें ढूंढ कर नौकरी भी दिला ते हैं, तो दूसरी ओर वह जाब करने बड़ी सिटियों या विदेश जाकर बस जाते हैं और माता-पिता बुजुर्गों को भूल जाते हैं। अगर बच्चे माता-पिता के साथ भी रहते हैं तो माता पिता बुजुर्गों को नौकर बना कर रखते हैं, जो भारतीय सभ्यता संस्कृति के लिए शर्म की बात है, यह देखकर मुझसे रहा नहीं गया और उस रिसर्च के आधार पर इस आर्टिकल में अपनी भावनाएं व्यक्त कर रहा हूं, जिसमें प्रिंट और इले क्ट्राॅनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी का सहयोग भी लिया हूं। माता-पिता बुजुर्गों के सम्मान को रखना, वर्तमान मेंटेनेंस एंड वेलफेयर आफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटी जंस (अमेंडेड) एक्ट 2019 ना काफी व अपर्याप्त है। अब वह समय आ गया है कि माता- पिता बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार, बुरा व्यवहार अपमान व प्रताड़ित करने वालों पर एस्ट्रासिटी के समकक्ष कानून बनाने की जरूरत आन पड़ी है, जो संभवतः शीतकालीन सत्र में लाने की जरूरत है।
साथियों बात अगर हम सूचीगत जातियों की सुरक्षा के लिए बनाए गए अनुसूचित जाति व जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 2019 के समक्ष माता-पिता बुजुर्गों के सम्मान के लिए कानून बनाने की करें तो जिस तरह सामा जिक सौहार्दपूर्णता समानता को कायम रखने के लिए एस्ट्रासिटी (अमेंडेड) कानून 2019 बनाया गया है जिसका डर हमेशा उपद्रवी लोगों में बना रहता है या फिर कभी नए फौजदारी अधिनियम 2023 में क्राइम को रोकने अनेक धाराओं का डर लोगों में बना हुआ है उसी तर्ज पर मेरा सुझाव है कि आने वाले 17 वीं लोकसभा के शीतकालीन सत्र में माता-पिता बुजुर्गों के साथ होने वाली क्रूरता दुष्टपरिणाम द्रुव्यवहार अपमान व दुत्कार पर लगाम लगाने के लिए माता-पिता वह वरिष्ठ नागरिक (अत्याचार अपमान दुर्व्यवहार व्यवहार व दुराचार) विधेयक 2024 बनाकर पेश किया जाए जिसे सभी पार्टियों एक मत होकर 544/0 मतदान से पारित करेंगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
साथियों बात अगर हम माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण व कल्याण अधिनियम 2019 की करें तो, प्रावधान-धारा 2 डी के तहत इन्हें मिलेगा फायदा, जन्मदाता माता पिता, दत्तक संतान ग्रहण करने वाले, सौ तेले माता और पिता धारा 2 (जी) उनके लिए जिनके बच्चे नहीं-अधिनियम की ये धारा उनके लिए हैं, ऐसे में उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी वे संबंधी उठाएंगे जो उनकी संपत्ति के हकदार हैं। धारा 5 के ये हैं लाभ, वे वरिष्ठ नाग रिक जिनकी देखरेख उनके बच्चे या संबंधी नहीं कर रहे है वे एसडीएम कोर्ट (ट्रिब्यूनल) में शिकायत कर सकते हैं।
-प्रार्थना पत्र चाहे स्वयं दें या फिर किसी एनजीओ के माध्यम से दे सकते हैं। ऐसे मामलों का ट्रिब्यूनल खुद भी संज्ञान ले सकता है।
-बच्चों अथवा संबंधियों को नोटिस मिल जाने के बाद 90 दिन के अंदर फैसला हो जाता है। अपवाद की स्थिति में 30 दिन समय बढ़ाया जा सकता है।
-माता-पिता चाहें तो अप ने सभी पुत्र-पुत्रियों अथवा किसी एक के खिलाफ भी प्रार्थना पत्र दे सकते हैं। अंत रिम गुजारा भत्ता की राशि ट्रिब्यूनल दस हजार रुपये तक तय कर सकता है। न देने पर जेल भी हो सकती है। ट्रिब्यूनल प्रार्थना पत्र को समझौते के लिए नामित अधिकारी के पास भी भेज सकते हैं। देखभाल नहीं की तो नहीं मिलेगी संपत्तिधारा -14- सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का वाद न्यायालय में लंबित है तो वापस लेकर ट्रिब्यूनल में लगाया जा सकता है।
धारा-19-राज्य सरकार प्रत्येक जिले में कम से कम एक ओल्ड एज बनाएगी। इस मे 150 लोग रखे जा सकेंगे। वरिष्ठ नागरिकों के रहने खाने, चिकित्सा, मनोरंजन की जिम्मे दारी राज्य सरकार की होगी। धारा-20 – जिले के सरकारी चिकित्सालयों में बेड आरक्षित करने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की होगी। धारा-23 माता-पिता ने अपनी संपत्ति बच्चों को दे दी है और बच्चे उनकी सेवा नहीं कर रहे तो संपत्ति पुनरू माता पिता के नाम पर आ जाएगी। सुरक्षा के लिए ध्यान रखें प्रदेश सरकार के निर्देश पर पुलिस ने बुजुर्गों के लिए पाॅकेट गाइड जारी की गई है। इसमें बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए कई दिशा निर्देश हैं। – घर में नए कर्मचारी की नियुक्ति से पहले पुलिस वेरी फिकेशन कराएं – घर की कुछ अतिरिक्त चाबियां गुप्त जगह पर रखें।
साथियों बात अगर हम प्रस्तावित कानून में माता- पिता व वरिष्ठ नागरिक (अत्या चार अपमान दुव्र्यवहार निवा रण) विधायक 2024 की जरू रत की करें तो, हमारा देश महान संतानों की भूमि है,यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन पीड़ादायक है कि नैतिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आ गई है कि अपना सुख-चैन जिन बच्चों के लिए माता-पिता त्याग कर जीवन खत्म कर देते हैं,वही बच्चे उन्हें बुढ़ापे में दो जून की रोटी और मोहब्बत के लिए तरसा रहे हैं। आजकल कई मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें छोड़ देते हैं। जो न सिर्फ दुखद है, ब ल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों में निरंतर आ रही गिरावट का प्रतीक भी है। हमारे सामाजिक मूल्यों में तेजी से आ रहे बदलाव की वजह से आज बुजुर्गों को अपनी ही संपत्ति में सुरक्षित रहने और संतानों की प्रताड़ना से बचने के लिये उन्हें अपने स्व अर्जित घर से बेदखल करने के लिए अदालतों की शरण में आना पड़ रहा है, इस तरह की उद्दंड संतानों को माता पिता के घर से बेदखल करने के आदेश भी अदालत दे रही हैं लेकिन यह सिलसिला बद स्तूर जारी हैसामाजिक मूल्यों में आ रहे ह्रास का ही नतीजा है कि संपत्ति के लालच में मौजूदा दौर में बेटा-बहू और बेटी द्वारा अपने माता-पिता को बेआबरू करने की घटना एं और इससे मजबूर होकर बुजुर्गो द्वारा कानूनी रास्ता अपनाने के मामले बढ़ रहे हैं। परिवारों में बुजुर्ग माता पिता और दूसरे वृद्ध सदस्यों को बोझ समझा जाने लगा है कई बार तो उन्हें उनके ही स्वअर्जित घर से बेदखल करके दर बदर की ठोकरें खाने के लिये छोड़ दिया जा रहा है या फिर सुशिक्षित बेटे बहू उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा रहे हैं। हमारा देश महान संतान श्रवण कुमार की भूमि है, यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता- पिता की उचित देखभाल कर ने की अपेक्षा की जाती है, ले किन पीड़ादायक है कि नैतिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आ गई है कि अपना सुख-चैन जिन बच्चों के लिए माता-पिता त्याग कर जीवन खत्म कर देते हैं, वही बच्चे उन्हें बुढ़ापे में दो जून की रोटी और मोहब्बत के लिए तरसा रहे हैं। आजकल कई मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें छोड़ देते हैं जो न सिर्फ दुखद है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों में निरंतर आ रही गिरावट का प्रतीक भी है।
साथियों बात अगर हम माता पिता वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण (संशोधित) अधिनियम 2019 को बनाने की जरूरत की करें तो, अपने ही देश, समाज और घर परिवार में बेगाने होते जा रहे बुजुर्गों की स्थिति पर उच्चतम न्याया लय ने भी चिंता व्यक्त की है शीर्ष अदालत ने दिसंबर, 2018 में केंद्र और राज्य सरका रों को निर्देश दिया था कि बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए 2007 में बनाये गये माता पिता और वरिष्ठ नागरिक भ रण पोषण कानून के प्रावधानों का सख्ती से पालन किया जाए। शीर्ष अदालत ने डाॅ0 अश्विनी कुमार वर्सेस यूनियन आफ इंडिया में स्वीकार किया था कि संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार को व्याप क अर्थ दिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा था कि हम कई अधिकारों से सहमत हैं लेकिन फिलहाल हमारा सरोकार तीन महत्वपूर्ण संवै धानिक मौलिक अधिकारों से है। संपन्नता की सीढ़ियों में आगे बढ़ रहे पुत्र पुत्रियों और बहू तथा दामादों के दुव्र्यव हार के कारण घर की चार दीवारी के भीतर रहने वाले विवाद अदालतों में पहुंचने लगे हैं। अपनी संतानों के आचरण से आहत बुजुर्ग माता पिता अब उन्हें अपने मकान से बेद खल कराने जैसे कठोर कद म उठाने लगे हैं। स्थिति की गंभीरता और बुजुर्गों को इस दयनीय स्थिति से संरक्षण प्रदान करने के इरादे से 2007 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण कानून बनाया बुजुर्गों के हितों की रक्षा के मामले में न्यायपालिका ने भी सख्त रुख अपनाया। यह कानून ब नने के बाद महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, और पंजाब सहित कई राज्यों में संतानों के दुव्र्यवहार से पीड़ित बुजुर्ग माता-पिता अथवा एकाकी जीवन बिताने वाले बुजुर्गो ने अदालतों और न्यायाधिकर णों की शरण ली। अदालतों ने ऐसे मामलों में सारे तथ्यों की विवेचना के बाद ऐसी उद्दंड और गैर जिम्मेदार संतानों, उनकी पत्नियों तथा ऐसे ही दूसरे परिजनों को घरों से बेदखल करने का आदेश भी दे दिया गया है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जीवन के अंतिम पड़ाव में बुजुर्गों के साथ दुव्र्य वहार माता-पिता व बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार अपमान व प्रताड़ित करने वालों पर एस्ट्रोसिटी के समकक्ष कानून बनाने की जरूरत। चुपचाप बैठो, तुमको क्या समझता है, तुम सठिया गए हो माता पिता सीनियर सिटीजन (अत्याचार अपमान व दुव्र्यवहार निवारण) विधेयक 2024 बना ने की जरूरत माता-पिता व बुजुर्गों के सम्मान, सुरक्षा, गरिमा भरे जीवन को सुरक्षि त करने, वर्तमान कानून व नियम अपर्याप्त हैं, इसको रेखांकित करने करना जरूरी है।

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