एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर भारत को सबसे बड़ा कृषक देश माना जाता है, क्योंकि यहां की अधिकतम आबादी ग्रामीण क्षेत्र से व कृषि व्यवसा य से जुड़ी है। यह दुनियां का दस्तूर है कि दुनियां का हर देश का शासन प्रशासन अपने नागरिकों के सबसे बड़े वर्ग को नाराज करना नहीं चाहे गा क्योंकि उन्हें फिर सत्ता में आना है। ठीक उसी तरह भारत में भी एक सबसे बड़ा वर्ग किसान व उपभोक्ता है इसे भी नाराज नहीं किया जा सकता इसलिए ही हम अनेक देशों में भी देखते हैं की एमआ रपी केचक्कर में किसान व महंगाई के चक्कर में उपभोक्ता अनेकों आंदोलन करते रहते हैं जो हम वर्तमान में भी कई देशों में देख सकते हैं, इस लिए सरकार दूरदर्शिता को देखते हुए उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को हितों को संतुलित करने का प्रयास करते रहती हैं। आज हम इस विषय पर बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम जान ते हैं खासकर तेल परआयात शुल्क अति काम था तो प्याज पर निर्यात शुल्क 40 प्रतिशत था जिसपर किसान सहज मह सूस कर रहे थे, परंतु दिनांक 14 सितंबर 2024 से भारत सरकार ने ईडेबल आॅयल पर 20 प्रतिशत आयात शुल्क ब ढ़ाया तो 13 सितंबर 2024 को प्याज पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क घटा दिया। यानें दोनों तरफ से उपभोक्ता हलकान हो गए, जो रेखांकित करने वाली बात है, जिस पर दोनों के रेट एकदम बढ़ गए। मैं खुद अपनी छोटी सी राइस सिटी गोंदिया में इस बात की तस्दी ग करने मार्केट पहुंचा तो मुझे इसका सटीक प्रमाण मिल गया, प्याज 60 से 80 रुपए तथा फाॅर्चून सनफ्लावर 15 लीटर वाला डब्बा जो मैंने 12 सितंबर 2024 को 1680 रुपए में प्रति लीटर खरीदा था, वह दिनांक 19 सितंबर 2024 को 2180 रुपए बताया गया। 15 रूपए वाली प्याज 70 रुपए यानी किचन का जायका पूरी तरह से बिगड़ने की कगार पर आ गया है इधर उपभोक्ता मंत्रा लय द्वारा बयान दिया गया कि ट्रेडरों को कीमत नहीं बढ़ाने की सख्त हिदायत दी गई है, परंतु मैं तो प्रत्यक्ष रूप से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर भाव बढ़ने की तसदीग कर ली है दूसरी ओर जारी आंकड़ों के अनुसार रोजाना की जरूरत वाला सामान सस्ता होने से अगस्त महीने में थोक महंगाई घटकर 1.31 प्रतिशत पर आ गई है। ये इसके 4 महीने का निचला स्तर है। अप्रैल में ये 1.26 प्रतिशत पर थी। वहीं एक महीने पहले जुलाई में थोक महंगाई घटकर 2.04 प्रतिशत पर आ गई थी। इससे पहले 12 सितंबर को सरकार ने रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए गए थे। अगस्त महीने में रिटेल महंगाई बढ़ कर 3.65 प्रतिशत हो गई है। जुलाई महीने में ये 3.54 प्रतिशत पर थी। सब्जियों के महंगे होने से अगस्त महीने में रिटेल महंगाई बढ़ी है। चुंकि भारत सरकार ने तेलों का आयात शुल्क बढ़ाया, प्याज का आयात शुल्क घटाया, त्योहारों की सीजन में महंगाई को कृत्रिम रूप से बढ़ाया?
तथा क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जान कारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत सरकार का उप भोक्ताओं को झटका तगड़ा, तेल का आयात शुल्क अगड़ा प्याज का निर्यात शुल्क पिछ ड़ा, जनता का किचन बजट बिगड़!
साथियों बात अगर हम केंद्र सरकार नें तेल पर 14 सितंबर 2024 से आयात शुल्क को बढ़ाने की करें तोकेंद्र स रकार ने कच्चे और रिफाइडं खाद्य तेलों पर लगने वाले आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की वृद्धि की है। पाम आॅयल, सोया आॅयल और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क बढ़ा देने से सभी खाद्य तेलों के दामों बढ़ोतरी हो गई है। जिसका असर सीधे आम जनता पर पड़ गया है। जल्द ही त्यो हारी सीजन शुरू होने वाला जिसमें लोगों को खाद्य तेल के बढ़े दाम लोगों को परेशान कर सकते हैं। इस फैसले से किसानों को राहत मिल सकती है और उनकी कमाई भी बढ़ सकती है, लेकिन दूसरी ओर आम जनता पर इसका बोझ बढ़ेगा। इससे पहले भी सरकार ने किसानों को राह त देने के लिए सोयाबीन की खरीदारी समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्देश दिया था। अब 20 प्रतिशत तक आयात शुल्क बढ़ाने की कोई आवश्य कता यहां नजर नहीं आती है। इसके असर से खाद्य तेलों के भाव 15 से 22 प्रतिशत प्रति किलो तक बढ़ गए हैं। इस फैसले से छोटे किसान तो नहीं बल्कि स्टाॅक करने वाले बड़े व्यापारियों को अधिक फायदा होसकता है। पिछले एक से दो हफ्ते पहले खाद्य तेलों के दामों 10 से 12 प्रति शत की वृद्धि पहले ही देखी जा चुकी है। जिसमें रिफाइंड आॅयल के दाम 10 प्रतिशत और सरसों का तेल 12 प्रति शत तक बढ़ चुके हैं। इस साल देश भर में अच्छे माॅन सून की वजह से चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और तेलगांना में सोयाबीन की अच्छी फसल होने की उम्मीद है। वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक देश अर्जेंटीना और ब्राजील तथा अमेरिका में भी फसल अच्छी आने की संभावना है। रूस और यूक्रेन द्धारा सूरजमुखी के तेल बेचने की होड़ के चलते खाद्य तेलों के दाम नीचे आ गए थे। इस वजह से सोयाबीन के दाम भी समर्थन मूल्य के नीचे चले गए थे। महाराष्ट्र में वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव और अन्य राज्यों के किसान संगठ नों द्वारा सरकार पर बनाए गए दबाव के कारण कुछ दिन पहले ही इन चार राज्यों में समर्थन मूल्य पर सोयाबीन खरदीने के आदेश सरकार ने जारी किय थे। गत दो महीनों से खाद्य तेलों का भारत का आयात कम रहा है। आगामी त्योहारों को देखते हुए मांग को पूरा करने के लिए भी व्यापारियों ने स्टाॅक कर लिया है। वहीं दूसरी ओर सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी गई सरसों की बिक्री का आदेश दिया गया, तब पता चला कि सरसों की गुणवत्ता एवं उप लब्धता दोनों की मात्रा में अंतर पाया गया। जिसकी वजह से खाद्य तेलों के दामों पिछ ले कुछ सप्ताह में 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं और अब 20 प्रतिशत की ड्यूटी की वृद्धि महंगाई को बढ़ाएगी।
साथियों बात अगर हम तेल आयात पर सीमा शुल्क की वृद्धि को जानने की करें तो, सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि कच्चे पाम तेल, कच्चे सोया तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर 20 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क लगाया गया है। इसमें तीनों तेलों पर कुल आयात शुल्क 5.50 प्रतिशत से बढ़कर 27.5 प्रतिशत हो जाएगा। रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सोया तेल और रिफाइंड सूरज मुखी तेल के आयात पर 13.75 आयात शुल्क के मुकाबले अब 35.75 प्रतिशत आयात शुल्क लगेगा। घरेलू सोया बीन की कीमतें लगभग 4,600 रुपये (54.84 डाॅलर) प्रति 100 किलोग्राम है जो राज्य द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य 4,8 92 रुपये से कम है। घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की मांग 65 से 70 प्रतिशत है, जिसको आयात द्वारा पूरा किया जाता है। क्रूड पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 0-20 प्रतिशत, जबकि रिफाइंड आॅयल पर अब ये 12.5 -32.5 प्रतिशत की गई है। बेसिक कस्टम ड्यूटी में इजाफे के बाद अब क्रूड आॅयल और रिफाइंड तेलों पर प्रभावी शुल्क क्रमशः 5.5 फीसदी से बढ़कर 27.5 फीसदी और 13.75 फीसदी से बढ़कर 35.75 फीसदी हो गए। फाइनेंस मि निस्ट्री की ओर से जारी नोटि फि केशन में कस्टम ड्यूटी की बदलाव में बाद नई दरें, बीती 14 सितंबर 2024 से लागू कर दी गई हैं।
साथियों बात अगर हम प्याज की निर्यात शुल्क 20 प्रतिशत घटाने की करें तो, प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के करीब दस महीने बाद, केंद्र ने बीती 13 सितंबर, 2024) को 550 डाॅलर प्रति मीट्रिक टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) के आदेश को खत्म कर दिया और मई में प्याज की खेप पर लगाए गए 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क को आधा कर दिया। देश के सब से बड़े प्याज उत्पादक महा राष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले रुख में यह बदलाव आ या है। सरकार ने पिछले साल दिसंबर में कमजोर मानसून के बाद घरेलू कमी की आशंका के चलते राजनीतिक रूप से संवेदनशील रसोई के इस प्रमुख उत्पाद के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दियाथा।
मार्च में प्रतिबंध को अगले आदेश तक बढ़ा दिया गया था, हालांकि कुछ देशों के राजनयिक अनुरोधों के आधार पर कुछ शिपमेंट की अनुमति दी गई थी। सरकार ने हाल ही में प्याज से निर्यात शुल्क 20 फीसदी घटा दियाइसकी वजह से सब्जी मंडी में प्याज के थोक दाम बढ़ गए हैं। दावा है कि आने वाले दिनों में प्याज का रेट और बढ़ सक ता है। दिल्ली की गाजीपुर, ओखला औरआजादपुर सब्जी मंडी समेत सभी सब्जी मंडि यों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक से प्याज की सप्लाई होती है।
एक जानकार ने कहा कि तीन दिन पहले मंडी में प्याज का थोक दाम 35 से 45 रूपये प्रति किलो था। लेकिन सर कार की ओर से प्याज निर्यात शुल्क 20 फीसदी घटा दिया गया। इसकी वजह से मंडी में प्याज के थोक रेट में प्रति किलो 5 रुपये की बढ़ोतरी हो गई।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत सरकार का उपभोक्ताओं को झटका तगड़ा -तेल का आयात शुल्क अग ड़ा-प्याज का निर्यात शुल्क पि छड़ा-जनता का किचन बजट बिगड़ा! भारत सरकार ने तेलों का आयात शुल्क ब ढ़ाया, प्याज का निर्यात शुल्क घटाया-त्योहारों की सीजन में महंगाई को कृत्रिम रूप से बढ़ाया? क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी है।
क्या भारत सरकार उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हितों को संतुलित करने का प्रयास कर रही है? बिगड़े किचन बजट को रेखांकित करना जरूरी
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