एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक रूप से भारत अनेक क्षेत्रों में अनेक उपलब्धियों का एक गढ़ रहा है,जिसके मूल्यों का कद्र वैश्विक रूप से बहुत अधिक है। अनेक देशों केसैलानी भारत सिर्फ यह अनमोल क्षण महसूस करने और देखने आते हैं। इन खूबसूरत उपलब्धियों में से एक भारत में सदियों पुरानी संयुक्त परिवार व्यवस्था और प्रथा को देखकर बड़े- बड़े देश हैरान रह जाते हैं।
संयुक्त परिवार तथा भारत में सदियों से है। पहले हर परिवार इसी व्यवस्था में ऐसे ही चलता था, परंतु समय का चक्र चलता गया और स्वस्थ, हरे भरे परिवार टूटते चले गए और आज पाश्चात्य संस्कृति के जकड़न ने युवाओं को अपने रंग में रंगने का बीड़ा उठा रखा है, परंतु उसके बा वजूद आज भी भारत में लाखों परिवार हैं जो सदियों पुरानी इस प्रथा और व्यवस्था को बनाए रखने में कामयाब हुए हैं। अनेक परिवार तो आज भी 50 से 100 सदस्यों के रूप में एक साथ एक छत के नीचे आपसी तालमेल बनाकर रहते हैं और व्यवस्थाओं की चाबी आज भी उनके बड़े बुजुर्गों के पास है! वाह क्या बात है! हमें जीवन जीने का सही लुत्फ उठाना है तो संयुक्त परिवार में मिलजुल कर प्रेम मोहब्बत से रहें, फिर देखेंगे जिंदगी जीने का मजा!
साथियों बात अगर हम वर्तमान एक दशक की करें तो परिवार टूटने की संख्या अधिक हुई है। आज अधिक तम युवाओं की अभिलाषाएं बढ़ गई है। अधिकतम युवा बाहर रहकर अपने अवसरों को खोजना, अपनी जिंदगी अके ले जीना अधिक पसंद कर रहे है। हालांकि आज की व्यव स्था में जाॅब भी बड़ी-बड़ी सिटीयों में ही मिलता है, इस लिए भी आज का माहौल सं युक्त परिवार व्यवस्था बनाए रखने में ढीला होते जा रहा है, परंतु यह हमारी सदियों पुरानी धरोहर है इसे बनाए रखना आज के डिजिटल इंडिया युग मेंयुवाओं की जवाबदारी बढ़ गई है। आज 68 प्रतिशत देश की जनसंख्या युवा है। अब समय आ गया है कि युवाओं को संयुक्त परिवार व्यवस्था को संभालना होगा। उन्हें संयुक्त परिवार प्रथा की मिठास, गुणों, फायदों को अप ने जीवन में उतारना होगा और आने वाली पीढ़ी के लिए एक अच्छा उदाहरण पेश कर ना होगा संयुक्त परिवार प्रथा में माता-पिता बड़े बुजुर्गों की सेवा करने का जो अवसर प्राप्त होता है, वह किसी अन्य व्यवस्था में नहीं।
साथियों मेरा मानना है कि जितने पुण्य हमें अपने माता पिता बड़े बुजुर्गों की सेवा करने से प्राप्त होते हैं उतने शायद सव, हजार ती रथ धाम की यात्राएं करने पर भी प्राप्त नहीं होंगे,क्योंकि मेरी नजर में माता-पिता बड़े बुजुर्गों के तुल्य आध्यात्मिक व्यक्ति कोई नहीं, इतना बड़ा स्थान और शक्ति रखते हैं माता-पिता बड़े बुजुर्ग और उनके साथ रहने का सौभाग्य हमें संयुक्त परिवार प्रथा में ही मिलता है। आज हम अगर संयुक्त परिवार में रहकर माता पिता बड़े बुजुर्गों का ध्यान करेंगे तो हमारी अगली पीढ़ी भी इसी लाइन पर चलकर हमारा सम्मान करेगी। इस लिए जरूरी है कि आज के युवाओं को इस दिशा में अ धिक ध्यान देना होगा और इन व्यवस्थाओं को टूटने से बचाना होगा तथा समायोजन की भावना सामूहिक लोका चार, अपनापन, प्रेम भाव बढ़ा कर रिश्तो में मजबूती लानी होगी, आपस में सदाचार का समायोजन कर परिवार रूपी बाग का माली बनना होगा। हर सदस्य को व्यवस्थित कर इस बाग की रक्षा करना आज युवाओं का परम धर्म हो गया है। आज युवाओं को अपने भी तर भरपूर सहिष्णुता विनर्मता, संवेदनशीलता कल्पनाशीलता, सहनशीलता जैसे गुणों की अति तात्कालिक जरूरत है क्योंकि यह संयुक्त परिवार प्रथा के मूल मंत्र हैं।
साथियों बात अगर हम एक कार्यक्रम में माननीय पी एम के संबोधन की करें तो पी आईबी के अनुसार, व्यक्तिगत तौर पर पीएम ने छात्रों को अपने भीतर संवेदनशीलता, जिज्ञासा, कल्पनाशीलता और रचनात्मकता को जिंदा बचा ए रखने की सलाह दी और उन्हें जीवन के गैर -तकनीकी पहलुओं के प्रति संवेदनशील होने के लिए कहा। उन्होंने कहा, जब खुशी और दयालुता साझा करने की बात आए, तो कोई पासवर्ड न रखें और खुले दिल से जीवन का आनंद लें।
साथियों बात अगर हम संयुक्त परिवार में भावी पीढ़ी के विकास की करें तो, संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वा धिक सुरक्षित और उचित शा रीरिक एवं चारित्रिक विकास का अवसर प्राप्त होता है।
बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है, उसे अन्य बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है, माता पिता के साथ साथ अन्य परिजनों विशेष तौर पर दादा, दादी का प्यार भी मिलता है, जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी तो माता पिता का प्यार भी कम ही मिल पता है। यदि दोनों ही कामकाजी हैं। दादा, दादी से प्यार के साथ ज्ञान, अनुभव बहर्पूर मिलता है, उनके साथ खेलने, समय बिताने से मनोरंजन भी होता है उन्हें संस्कारवान बनाना, चरित्रवान बनाना, एवं हिर्ष्ट पुष्ट बनाने में अनेक परिजनों का सहयोग प्राप्त होता है। एकाकी परिवार में संभव नहीं हो।
साथियों बातें कर हम संयुक्त परिवार से भावी पीढ़ी का समुचित विकास वह भाव नात्मक सहयोग होने की करें तो संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित शारीरिक एवं चारित्रि क विकास का अवसर प्राप्त होता है। बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अ धिक ध्यान रखा जा सकता है, उसे अन्य बच्चों के साथ खेलने का मौका मिलता है, माता पिता के साथ साथ अन्य परिजनों विशेष तौर पर दादा दादी का प्यार भी मिल ता है जबकि एकाकी परिवार में कभी कभी तो माता पिता का प्यार भी कम ही मिल पता है यदि दोनों ही कामका जी हैं। दादा, दादी से प्यार के साथ ज्ञान, अनुभव बहर्पूर मिलता है, उनके साथ खेल ने, समय बिताने से मनोरंजन भी होता है उन्हें संस्कारवान बनाना, चरित्रवान बनाना,एवं हिर्ष्ट पुष्ट बनाने में अनेक परिजनों का सहयोग प्राप्त होता हैजो एकाकी परिवार में संभव नहीं हो पाता।किसी विपत्ति के समय, परिवार के किसी सदस्य के गंभीर रूप से बीमार होने पर, पूरे परिवार के सहयोग से आसानी से पार पाया जा सकता है। जीवन के सभी कष्ट सब के सहयोग से बिना किसी को विचलित किये दूर हो जाते हैं। कभी भी आर्थिक समस्या या रोजगार चले जाने की स मस्या उत्पन्न नहीं होती क्यों कि एक सदस्य की अनुपस्थि ति में अन्य परिजन कारोबा र को देख लेते हैं।
संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यव्हार पर निरंतर निगरानी बनाय रखते हैं, किसी की अवांछनीय गति विधि पर अंकुश लगा रहता है, अर्थात प्रत्येक सदस्य चरि त्रवान बना रहता है किसी समस्या के समय सभी परिजन उसका साथ देते हैं और सामूहिक दबाव भी पड़ता है कोई भी सदस्य असामाजिक कार्य नहीं कर पता, बुजुर्गों के भय के कारण शराब जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराइयों से बचा रहता है और आपको यह भी बता दें कि कुछ भी हो हर बड़े ओर छोटे का पूरा प्यार और दुलार मिलता हैं।
संयुक्त परिवार एक खुशियों से महकता हुआ बाग है – युवाओं को इस बाग का माली बनने की जरूरत
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