एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर दुनियां के करीब हर देश में एक ट्रेंड सी चल पड़ी है कि, अगर मैं यह सेवा करूंगा तो मुझे क्या मिलेगा?आज व्यक्ति विशेष से लेकर अनेकों समा जों की पंचायतें, संस्थाएं, संग ठन, राजनीतिक विचारधारा ओं में बट सी गई है, उनमें हर पंचायत संगठन संस्था स मिति की कोशिश रहती है कि समाज को उस राजनी तिक संगठन पार्टी की विचार धारा से जोड़कर उनका मुख अध्यक्ष पार्षद विधायक या सांसद बने। परंतु अगर हम कुछ दशक पीछे जाएं तो हमें ऐसे कई कर्मठ जीवन पर्यंत मानवीय या सामाजिक सेवाओं में समर्पित मनीषी जीव मिलेंगे जिनके राजनीतिक पार्टी या विचारधारा तो क्या अपने परिवार से भी अधिक प्यारी अपनी मानवीय या सा माजिक सेवा सर्वोपर थी, वह अपने दम पर पहचाने जाते थे किसी राजनीतिक पार्टी के विचारधारा के दम पर नहीं! ऐसे महामानव तो राष्ट्रीय स्तर पर बहुत हैं, परंतु हमारी छोटी राइस सिटी गोंदिया नगरी में भी ऐसे अनेकों समर्पित सेवादारी सेवक हैं जिनमें काका चोइथराम की गला नी सनमुखदास जी भावनानी घुमणमल जी संतानी इत्यादि अनेक सेवक जिनमें किसी को किसी राजनीतिक पार्टी से कोई मतलब नहीं था केवल अपने समाज की सेवा में सम र्पित थे। आज हम यह चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ऐसे ही एक पूर्ण समाज सेवक, सेवा में समर्पित सिंधी सेवा दारी मंडल के संस्थापक प्रणेता रहे स्वर्गीय सनमुखदास ईंधनदास जी भावनानी जिन्हें उस्ताद के नाम से भी जाना जाता था, की 22वीं पुण्यतिथि बीती 07 अगस्त 2024 को थी, जब उन्हें परिवार समाज मंडल सहित सभी बहुत याद करते हैं इस उपलक्ष में आज हम समाज सेवा, सेवाओं की क्वालिटी पर बारीकी से चर्चा करेंगे, चूंकि मैं अपनी पैनी निगाहों की नजरों से अपनी राइस सिटी गोंदिया की एक सामाजिक संस्थाओं में देखा हूं कि, एक ही व्यक्ति अनेक पंचायतों समितियों संस्था ओं संगठनों की कार्यकारिणी में है। अभी-अभी गठित एक शीर्ष संस्था व मंडल में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अनेक संगठनों पंचायत से जुड़े हैं। यानें मेरा मानना है कि वह व्यक्ति शायद एक संगठन पंचा यत का काम ठीक से कर नहीं पा रहा है पर दूसरी पंचायत मंडलों समितियों में भी कार्यकारणी में देखा जा रहा है कुछ एक राजनीतिक पार्टी से जुड़े हैं, तो एक राज नीतिक पार्टी पदाधिकारी भी है, जो रेखांकित करने वाली बात है। ऐसा लगता है अपनी वाहवाही के लिए सिर्फ नंबर गेम करना है कि, मैं इतनी संस्थाओं में पदों पर हूं। अन्य दो-तीन युवाओं साथियों को जो छोड़ा गया है उनको नगर परिषद चुनाव में उतारने की अंदरखाने तैयारी भी शायद चल रही है जो रेखांकित क रने वाली बात है। यानें देखा जाए तो आजकल की आधु निक समाज सेवा में कुछ व्य क्तियों का एक समूह ही है, जो सभी सामाजिक संस्थाओं सेवा समितियों में है बस अपने -अपने आदमी घुमा फिरा कर अलग अलग संस्थाओं समिति यों मंडलों की कार्यकारिणी में बिठाकर अपनी कालर टाइट करने में लगे हुए हैं, उनके बिग बाॅस का शायद नाम सबको पता होगा जो पर्दे के पीछे सभी संगठनो और संस्थाओं पर नियंत्रण रखते हैं,जो सो चनीय बात है। इसलिए हमें आज जरूरत है, दशकों पुरा ने सच्चे सेवादारियों से कुछ प्रेरणा लेने की, उनसे सीखने की, उनके विचारों से प्रेरणा लेने की,जो बिना किसी पद लालच या राजनीति के स्व च्छ विचारधारा से केवल सा माजिक सेवा तक अपनी सोच सीमित रखते थे, उन्हें राजनी तिक लाभ या पद नाम शोह रत की कोई सोच नहीं थी।
आज किसी ग्रुप में कोई अच्छी जानकारी वाला आर्टि कल पोस्ट करता है, तो गरिमां की बात करने वालों को अपने अंदरझांकने की जरूरत है, क्योंकि वह जब एक उंगली उठाकर अन्य को गरिमां की बात सिखाते हैं तो उनको दे खना चाहिए कि तीन उंगलि यां उनके ही तरफ उठ रही है। चूंकि राजनीति या स्वार्थ के बिना सच्ची समाज सेवा का दीप जलाने वाले सिंधी सेवा दारी मंडल के प्रणेता श्री सन मुखदास जी भावनानी जिन्हें उस्ताद के नाम से भी जाना जाता था की 22वीं पुण्यतिथि बीती 07 अगस्त 2024 को थी, इसलिए आज हम इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, एक जमाना था जब बिना किसी स्वार्थ या राज नीतिक विचारधारा के सेवा एं होती थी… लेकिन आज.? वैश्विक स्तरपर निस्वार्थ बिना राजनीतिक लाभों के, शुद्ध समाज सेवा में समर्पित सा माजिक संस्थाओं समितियों, मंडलों की आज के युग में सख्त जरूरत है।
साथियों बात अगर हम किसी भी क्षेत्र में निस्वार्थ सेवा के गुणों की शुरुआत की करें तो, मेरा मानना है कि वह बड़े बुजुर्गों से फ्लो होती है। स्वर्गीय सनमुखदास जी को भी इनकी प्रेरणा प्रख्यात स माजसेवी काका चोइथराम जी गलानी से मिली और फिर उनके ही सानिध्य में उन्होंने एकअनोखा सेवा कार्य शुरू किया जिसमें समाज के कि सी जीव की अगर मृत्यु हो जाती है तो उनकी जानकारी सभी समाज बंधुओं को उनके घर घर में जाकर देना कि उनकी मृत्यु हुई है एवं उनका अंतिम संस्कार इतने बजे है। दूर दृष्टि से दूर के लोगों को टेलीफोन द्वारा इसकी सूचना भी दी जाती थी, प्राथमिक स्तरपर उन्होंने अकेले कार्य शुरू किया फिर काका चोइथ राम जी से मिलकर कुछ समा जसेवियों को साथ लेकर पूरे शहर के समाज में शुरुआत की सूचना निशुल्क सेवा भाव से पहुंचाते थे। स्वाभाविक रूप से यदि हम कोई सेवा इतनी विशालता से करते हैं, तो हमारे खिलाफ चार विरो धी भी खड़े हो जाते हैं, जिसमें हमें अपनी सेवाओं का दायरा बढ़ाने में प्रोत्साहन मिलता है, इसी वाक्यात के साथ उन्होंने सिंधी सेंट्रल पंचायत के अध्यक्ष पद का नामांकन भरा तो स्वाभाविक रूप से कुछ लोगों के रोंगटे खड़े हो गए क्योंकि एक गरीब जो अगर तन मन से सेवा करता है तो अच्छे अच्छे उसके साथ खड़े हो जाते हैं परंतु यहां कुछ विपरीत हुआ कि वह सिर्फ 66 वोटों से चुनाव हार गए थे क्योंकि एक विशेष स मूह जो आज भी सक्रिय है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ खड़ा हो गया जो 25 वर्षों के बाद गोंदिया वापस लौटा था स्वा भाविक रूप से उसके वर्तमा न सेवा कार्य नगण्य रूप थे, परंतु सनमुखदास जी ने सेवा कार्य नहीं छोड़ा बल्कि एक संगठन सिंधी सेवादारी मंडल की स्थापना की जिसका काम किसी की मृत्यु हो जाने पर उसकी सूचनाएं पूरे समाज तक पहुंचाना और उसका पूरा क्रियाकर्म उसके परिवार के साथ मिलकर कराना इस सं स्था का मुख्य उद्देश्य था, जिसमें स्व काका चोइथराम गलानी, स्व भी बुधरमल चुग वानी, स्व गामनदास पर्यानी स्व गुलाबराय छतानी स्व आर के साइकिल, धर्मदास चावला, कमल लालवानी इत्यादि अ नेक सेवादारों से मिलकर उत्साह पूर्वक सफलताओं की बुलंदियों तक पहुंचाया पर, होनी को कौन टाल सकता है, 07 अगस्त 2002 को वह काल के ग्रास में समा गए। उसके कुछ वर्षों बाद उनके अनेक सेवादारी सहयोगी भी काल के ग्रास में समा गए। परंतु सिंधी सेवादारी मंडल आज भी उसी जोश और सेवाओं के साथ अपनी सेवाएं युवा सेवादारियों के साथ उसी सेवा समर्पित भाव के साथ जारी रखे हुए है जिसकी चर्चा हम एक आर्टिकल में कर चुके हैं,जो समाज के सामने एक मिसाल है, इसका संचा लन आज के युवा साथी कर रहे हैं।
साथियों उस्ताद के भजन कीर्तन के भाव की करें तो कुछ मंदिरों आश्रम विशेष रूप से भाई किशनचंद् जी के टिकाणे में भजन कीर्तन करते थे परंतु विशेषता यह थी कि उन्होंने वहां से कभी भी एक रुपया भी नहीं उठाया। की र्तन के दौरान उनके साजों पर जो भी पैसे आते थे वह आश्रम या मंदिर की दान पेटी में डाल देते थे। विशेष यह कि अपनी कोई भेटा भी नहीं लेते थे उनके साथ साज भी निशुल्क बजाते थे। बड़े बुजुर्गों का कहना है कि किसी भी परिवार खानदान की जो अच्छाई या बुराई है होती है वह आगे की पीढ़ियों में भी झलकती है, यह हम अप नी आंखों से देख रहे हैं कि उनके भजन और कीर्तन की स्तुति उनके पोते निखिल भा वनानी में समाई है जो मात्र 4 वर्ष की उम्र से ही बिना किसी तकनीकी रूप से सी खने के गाॅड गिफ्टेड के रूप में उनको मिली है। हारमोनि यम से लेकर ढोलक तक अच्छे से से बजा लेते हैं। शब्द की र्तन भजन करते हुए देखा जा सकता है जो आज भी अपनी सेवाएं देते हैं। उनके अपने पैतृक गुरु के सत्संग घर हरे माधव दरबार में उनकी सेवाएं को देखा जा सकता है।
वहां अपने पैतृक धरोहर कि, एक रुपया भी नहीं उठा ना है सभी दान पेटी में डालना है वाली प्रथा को कायम रखे हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि एक जमाना था जब बिना किसी स्वार्थ या रा जनीतिक विचारधारा के से वाएं होती थी…लेकिन आज….? राजनीति या स्वार्थ के बिना सच्ची समाज सेवा का दीप जलाने वाले सिंधी सेवा दारी मंडल के संस्थापक प्र णेता को प्रणाम। वैश्विक स्तर पर निस्वार्थ बिना राजनीतिक लाभ के,शुद्ध समाज सेवा में समर्पित सामाजिक संस्था ओं मंडलों समितियों की आज के युग में सख्त जरूरत है।
वैश्विक स्तरपर निःस्वार्थ, बिना राजनीतिक लाभ के, शुद्व समाज सेवा में समर्पित सामाजिक संस्थाओं, मंडलों समितियों की आज के युग में सख्त जरूरत है
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