मतदाता राजनीतिज्ञों के भाग्य विधाता हैं – हर मतदाता को अपने वोट का इस्तेमाल हाई अलर्ट पर रहकर पूर्ण विश्वास के साथ करना जरूरी

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तर पर आज मतदाताओं का रुतबा पूरी दुनियां में तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि बढ़ाते लोकतंत्र की ट्रेंड में मतदाताओं की ताकत इतनी विस्तृत हो गई है कि वह किसी भी नेता, राजनेता, राजनीतिज्ञको सर पर बिठा सकते हैं तो, जमींदर रोज भी कर सकते हैं, राजा से रंग बना सकती हैं, आज इस विषय पर हम इसलिए बात कर रहे हैं,क्योंकि अभी हमने भारत में हुए चुनावी महापर्व में 04 जून 2024 को आए परिणामों में देख कि अबकी बार 400 पार को मत दाताओं ने, न केवल नकार दिया बल्कि उस पार्टी को अकेले बहुमत न देकर बैसा खियों के सहारे खड़ा कर दिया है। ऐसा ही कुछ नजरा अभी दुनियां के अन्य विकसित बड़े-बड़े देशों में भी देखने को मिल रहा है। अभी ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में 50 प्रति शत बहुमत किसी पार्टी को ना आने से अगले दौर का चुनाव 05 जुलाई 2024 को निश्चित किया गया है। वहीं फ्रांस में राष्ट्रपति मैक्रो की पार्टी भी पिछड़कर तीसरे नंबर पर आ गई है, जिसमें दूसरे दौर का चुनाव 7 जुलाई 2024 को होगा। इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में भी नेल्सन मंडेला की पार्टी 30 वर्षों में पहली बार अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस को संसदीय चुनाव में बहुम त नहीं मिला है। सिर्फ 40 प्रतिशत वोट मिले हैं, इसलिए 01 जुलाई 2024को नेता रामाफोसा ने दोबारा चुने जाने के लिए गठबंधन का सहारा लिया है। उधर ब्रिटेन में भी भारतीय मूल के पीएम ऋषि सुनक ने मतदान की तारीख 4 जुलाई की तय की है, तो दुनियां के सबसे पुराने लोक तंत्र अमेरिका में भी 5 नवंबर 2024 को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की प्रथम डिबेट 27 जून 2024 कोहुई थी जिसमें डोनाल्ड ट्रंप डिबेट में आगे निकलते दिखे उसपर भी सोने पर सुहागा दिनांक 1 जुलाई 2024 को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 6-3 के बहु मत से एक मामले में डोनाल्ड ट्रंप के पक्ष में फैसला पलट दिया जिससे जो बाईडेन को चुनाव से पहले बड़ा झटका लगा है, बता दें अगली दूसरी डिबेट 10 सितंबर 2024 को होगी, उपरोक्त सभी देशों की विस्तृत चर्चा हम नीचे पैरा ग्राफ में करेंगे। चूंकि भारत के बाद अमेरिका फ्रांस ब्रिटेन ईरान दक्षिण अफ्रीका में भी चुनाव का दौर शुरू हो गया है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, दुनियां के मतदाताओं की ताकत का दम, भारत के प्रमुख रणनीति क साझेदारों की सत्ता बदलने के आसार? मतदाता राजनी तिज्ञों के भाग्य विधाता हैं, हर मतदाता को अपने वोट का इस्तेमाल हाई अलर्ट में रहकर पूर्ण विश्वास से करना जरूरी है। साथियों बात अगर हम फ्रांस के मौजूदा संसदीय चुनाव की करें तो, इसमें तीन गुट लड़ रहे हैं, पहला, प्रधा नमंत्री गैब्रिएल अताल का सेंट्रिस्ट गुट, एन्सेंबल, दूसरा मरीनाॅल पेन की पार्टी नेशनल रैली की अगुवाई वाला धुर दक्षिणपंथी गुट और तीसरा, वामपंथी गठबंधन न्यू पाॅपुलर फ्रंट संसदीय चुनावों के पह ले चरण में आरएन ने मजबूत जीत हासिल की है।फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने 20 दिन पहले जब देश की संसद भंग करते हुए स्नैप इलेक्शन का ऐलान किया था तब उन्होंने यह नहीं सोचा होगा कि यह दांव उनपर उल्टा पड़ जाएगा। यूरोपीय यूनियन चुनाव में धुर-दक्षिण पंथी पार्टियों के हाथों हारने के बाद मैक्रों ने संसदीय चुना वों की घोषणा यह सोचकर की थी कि इन पार्टियों की प्रवासन-विरोधी विचारधारा और यहूदी-विरोधी भावना का इतिहास मैक्रों की पार्टी के पक्ष में होगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं पहले चरण के चुनाव के बाद उनकी पार्टी हार के बेहद करीब दिख रही है।मैक्रों इस समय फ्रांस के राष्ट्रपति हैं और 2027 तक इसी पद पर बने रहेंगे। हालांकि देश के संविधान के तहत वह तीसरी बार इस पद के लिए नहीं लड़ सकते और बतौर राष्ट्रपति उनका कार्यकाल इसी के साथ खत्म हो जाएगा। लेकिन संसदीय चुनावों में हार उनकी पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकती है। दूसरे चरण के चुनाव सात जुलाई को होने हैं। फ्रांस में हुए नेशनल असें बली के चुनाव में राष्ट्रपति मैक्रों की पार्टी पिछड़ गई है। फ्रांस के गृह मंत्रालय ने वो टिंग के रिजल्ट जारी किए।
रिजल्ट के मुताबिक, द क्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली को सबसे ज्यादा 35.15 प्रति शत वोट मिले। दूसरे नंबर पर वामपंथी न्यू पाॅपुलर फ्रंट गठबंधन रहा। इसे 27.99 प्रतिशत वोट मिले। वहीं, मैक्रों की रेनेसां पार्टी सिर्फ 20.76 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही। बीतेें रविवार को नेशनल असेंबली के 57 7 सीटों के लिए पहले चरण की वोटिंग हुई थी। दूसरे च रण की वोटिंग 7 जुलाई को होगी। 7 जुलाई के चुनाव में केवल वे ही उम्मीदवार खड़े हो सकते हैं, जिन्हें पहले चरण में 12.5 प्रतिशत से ज्या दा वोट मिला हो। नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए किसी भी पार्टी को 289 सीटें जीतना जरूरी है। फ्रांस की संसद का कार्यकाल 2027 में खत्म होना था, लेकिन यूरोपीय संघ में बड़ी हार के कारण राष्ट्रपति मैक्रों ने समय से पहले इसी महीने संसद भंग कर दी थी। दरअसल, मैक्रों सरकार गठबंधन के सहारे चल रही थी। उनके गठबंध न के पास सिर्फ 250 सीटें थीं और हर बार कानून पारित करने के लिए उन्हें अन्य दलों से समर्थन जुटाना पड़ता था। फिलहाल संसद में दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली के पास 88 सीटें हैं।
साथियों बात अगर हम ब्रिटेन में 4 जुलाई 2024 को होने वाले मतदान की करें तो, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने आम चुनाव का ऐला न कर दिया है। उन्होंने मत दान के लिए 4 जुलाई की तारीख तय की है। कई महीनों की अटकलों को खत्म करते हुए अपनी आॅफिस के बाहर एक प्रेस काॅन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि वह कुछ लोगों की उम्मीदों से पहले चुनाव का ऐलान कर रहे हैं। माना जा रहा है कि उन्हें इस चुनाव में नुकसान ही सामना करना पड़ सकता है और 14 साल से सत्ता पर काबिज उनकी अगुवाई वाली कंजर्वे टिव पार्टी को सत्ता गंवानी पड़ सकती है। उन्होंने कहा, अब ब्रिटेन के लिए अपना भविष्य चुनने और यह तय करने का समय आ गया है कि क्या वह हमारे द्वारा की गई प्रगति को आगे बढ़ाना चाहता है या फिर उसी स्तर पर वापस जाने का जोखिम उठाना चाहता है, जिसकी कोई निश्चितता नहीं है। चुनाव का सामना करने जा रहे सुनक न सिर्फ लेबर पार्टी से पीछे हैं, बल्कि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वह अपनी कंजर्वेटिव पार्टी पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सुनक ने आठ साल में पांचवें प्रधा नमंत्री के रूप में लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद अक्टूबर 2022 में शपथ ली थी, जो सिर्फ 44 दिनों तक ही सत्ता में रही थीं। कहा जाता हैकि ऋषि सुनक के पीएम बनने के बाद ब्रिटेन में कुछ बड़े आर्थिक सुधार किए गए हैं। यही वजह है कि उन्होंने आश् चर्यजनक रूप से चुनाव का ऐलान कर दिया। मसलन, सुनक की अगुवाई में महंगाई में कमी आई है और लगभग तीन सालों में सबसे तेज आ र्थिक विकास दर्ज किया गया है। साथीयों बात अगर हम 5 नवंबर 2024 को अमेरिका में होने वाले राष्ट्रपति चुना व की करें तो, सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्णय 6-3 के बहुमत से दिया है। यानी 6 जजों ने ट्रम्प के पक्ष में वोट किया और 3 ने उनके खिलाफ अपना पक्ष रखा। जिन तीन जजों ने ट्रम्प के खिलाफ वोट किया है उन्हें बाइडेन प्रशासन के दौरान नियुक्त किया गया था। समर्थकों ने ट्रंप को कानून से ऊपर राजा बना दिया है। कोर्ट के फैसले को ट्रंप की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि चुनाव से ठीक पहले मीडिया का सारा ध्यान ट्रंप की तरफ जा सकता है। न्यूयाॅर्क टाइम्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का फैसला बाइडेन और उनकी पार्टी के लिए बड़ा झटका है। सुप्रीम कोर्ट ने केस को वापस ट्रायल कोर्ट भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सीधे ट्रम्प को राहत देने के बजाय मामले को ट्रायल कोर्ट को सौंप दिया है। माना जा रहा कि ट्रायल कोर्ट इस मामले में अब सुनवाई राष्ट्रपति चुना व के बाद ही करेगा। इसका मतलब है कि अगर ट्रम्प जी तते है तो वो इस मामले को अपनी शक्तियों का इस्तेमा ल करते हुए खारिज भी कर सकते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद उन्हें राहत मिलना लगभग तय है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला प्रेसिडेंशियल डिबेट के 2 दिन बाद आया है। डिबेट में भी ट्रम्प ने बाइडेन को मंचुरियन कैंडिडेट कहा था। कई मीडि या घरानों ने ट्रम्प को बहस का विजेता घोषित किया था।
इसके बाद से डेमोक्रेटिक पार्टी में मांग उठने लगी थी कि बाइडेन कोउम्मीदवार न बनाया जाए। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उस वक्त आया है जब डोनाल्ड ट्रम्प को 11 जुलाई को पोर्न स्टार को पैसे देकर चुप कराने के माम ले में सजा सुनाई जानी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि ट्रम्प को आपरा धिक केस में छूट उसी माम ले में मिलेगी जिनपर उन्होंने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए निर्णय लिए। साथ ही उन्हें निजी आपराधिक मामलों में छूट नहीं मिलेगी। ट्रम्प ने पोर्न स्टार को 2016 में पैसे उस वक्त दिए थे जब वे राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर 11 जुलाई की सुनवाई पर नहीं होगा।
साथियों बात अगर हम ईरान में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में बहुमत नहीं मिलने के कारण 5 जुलाई को फिर से वोटिंग की करें तो, ईरान में रिकॉर्ड कम वोटिंग होने के कारण राष्ट्रपति के लिए अब अगले हफ्ते फिर से राष्ट्र पति पद के लिए चुनाव होगा। शुक्रवार को हुए मतदान के बाद किसी को भी स्पष्ट बहु मत नहीं मिली थी। ईरान में समाज सुधारक मसूद पेजेश कियान और कट्टरपंथी सईद जलीली को चुनाव में जीत मिली लेकिन किसी को भी बहुमत नहीं मिली है। जिसके कारण ईरान में अगले हफ्ते 5 जुलाई फिर से राष्ट्रपति का चुनाव होगा। अल जजीरा ने इसकी जानकारी दी है।

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