आओ अपने एक वोट की ताकत को पहचाने- इतिहास एक वोट से हार जीत उदाहरणों से भरा पड़ा है

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे बड़ी 142 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले भारत देश में लोक तंत्र का महापर्व का प्रथम चरण 19 अप्रैल 2024 से शुरू हो रहा है। इसके प्रचार प्रसार में उम्मीदवार बड़े जोर शोर से भिड़े हुए प्रचार कर रहे हैं। हर उम्मीदवार अपने-अपने विकास के काम गिनाकर वोटरों का उज्जवल भविष्य की बातें कर रहे हैं। जिनके उत्तर में मतदाता का रुझान अपेक्षाकृत कम दिखाई दे रहा है वैसे भी हम पिछले चुनावों का विश्लेषण करें तो पहले ओवरआल मतदान 50 प्रति शत के आसपास होता था जो अभी हाल के पांच राज्यों के चुनाव में प्रतिशत तेजी से बढ़ाते दिखाई दिया है मेरा मानना है कि यह चुनाव का मतदान प्रतिशत 90 प्रतिशत से पार करने की जरूरत है, जिस पर हर मतदाता ने विचार कर इसे रेखांकित करना समय की मांग है, क्योंकि अगर हम पिछले इतिहास पर गहराई से नजर डालें तो, आम तौर एक वोट की ताकत को बड़े चुनावों में कम करके आंका जाता है। लोग अक्सर यह कहते सुने जा सकते हैं कि एक वोट से क्या होगा। लेकिन इतिहास खंगालने पर एक वोट की ताकत क्या होती है यह पता चलता है। देश और दुनिया का इतिहास गवाह है कि एक वोट की ताकत कभी कम नहीं रही। एक वोट ने सरकार तक को गिरा दिया तो किसी के मुख्यमंत्री बनने के सपने पर पानी फेर दिया। कहीं एक वोट हिम्मत, साहस और मजबूत इरादे के प्रतीक के तौर पर सामने आया। चूंकि अभी 19 अप्रैल से 4 जून तक हमें लोकसभा चुनाव 2024 के विभिन्न चरणों में वोट करना है,जो हमारेअभूतपूर्व एक वोट की महत्वपूर्ण ताकत है,क्योंकि इतिहास गवाह है जब एक वोट से भारतीय केंद्र सरकार गिरी, सांसद विधायक चुनाव हारे, अमेरिकी राष्ट्रपति और हिटलर भी एक वोट से जीते थे, इसलिए आज मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, आओ अपने एक वोट की ताकत को पह चाने इतिहास एक वोट से हार जीत के उदाहरण से भरा पड़ा है। साथियों बात अगर हम अपने एक वोट की ताकघ्त का आंकलन भारतीय इतिहास में एक वोट से हारने वाले नेताओं की करें तो, आम तौर पर मतदाता एक वोट की ताकत कम करके आंकते हैं और कई बार मतदान करने नहीं जाते हैं। हालांकि इतिहास में चुनावी पर्व में कई बार ऐसे मौके देखे गए, जब एक वोट ने उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला किया। अटल सरकार का गिरना, अप्रैल 1999 भारतीय इतिहास में एक अहम घटना के लिए दर्ज है। इसी दिन 13 महीने पुरानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ एक वोट से पास हुआ था। प्रस्ताव के पक्ष में 270 वोट पड़े थे और खिलाफ 269 वोट। इसके नतीजे में वाजपेयी सरकार गिर गई थी। सी.पी.जोशी की हार, 2008 के राजस्थान विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के सीनियर लीडर सी.पी.जोशी सिर्फ एक वोट से हार गए थे।
उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के कल्याण सिंह चैहान को 62,216 वोट पड़े थे जबकि उनको 62,215। वह उस समय मुख्यमंत्री पद के मजबूत उम्मीदवार थे लेकिन एक वोट ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। जैसा कि सौभाग्य से हुआ, टाइम्स आफ इंडिया की 2013 की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि कथित तौर पर सीपी जोशी की मां, बहन और ड्राइ वर मतदान के दिन उनके लिए वोट करने नहीं आ सके। संयोगवश, कर्नाटक में भी कृष्ण मूर्ति का ड्राइवर मतदान करना चाहता था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका क्योंकि कृष्ण मूर्ति ने ही उसे मतदान के दिन अपनी ड्यूटी से छुट्टी नहीं दी थी ए.आर. कृष्णमूर्ति कर्नाटक विधानसभा के 2004 के चुनाव में ए.आर. कृष्णमूर्ति जनता दल सेक्युलर के टिकट पर लड़े थे। उनके प्रतिद्वंद्वी ध्रुवनारायण को 40752 वोट मिले जबकि उनको 40751। वह विधानसभा चुनाव में एक वोट से हारने वाले पहले शख्स बन गए थे। अहमद पटेल 2017 में गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ था। एक सीट पर कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल लड़ रहे थे। कांग्रेस के ही दो विधायकों ने क्रास वोटिंग कर दी थी जिससे अहमद पटेल की जीत मुश् िकल हो गई थी। क्रास वोटिंग करने वाले दो एमएलए यह भूल गए थे कि वे वोट करते वक्त भी कांग्रेस के सदस्य थे और वे पोलिंग बूथ पर खड़े होकर अपनी बदली हुई वफा दारी का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकते। इससे उनके वोट रद्द हो गए जिससे जीतने के लिए वोटों की संख्या 43.5 हो गई। अहमद पटेल को 44 वोट मिले थे, इस तरह वह आधे वोट से जीत गए। एआर कृष्णमूर्ति ने 2013 के एक प्रेस साक्षात्कार में इसे अच्छी तरह से समझाते हुए कहा कि वह नहीं चाहेंगे कि उनका कट्टर दुश्मन भी इस तरह से यानी सिर्फ एक वोट से चुनाव हार जाए। उम्मीद वार को शून्य वोटउत्तर प्रदेश का मैनपुरी संसदीय क्षेत्र ढाई दशक से भी अधिक समय से समाजवादी पार्टी का गढ़ है। इसके चलते यह हर चुनाव में सुर्खियों में रहता है। हालां कि यह क्षेत्र एक दिलचस्प किस्से का भी गवाह रहा है। यहां एक उम्मीदवार को शून्य वोट मिले थे। शंकर लाल 1957 के लोकसभा चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़े थे। उन्हें अपना वोट भी नहीं मिला क्योंकि गिनती के दौरान उसे भी अमान्य करार दे दिया गया था।
साथियों बात अगर हम 10 से कम वोटो पर जीत के निर्णय की करें तो, 10 से कम वोटों से जीत और हार का निर्णय आंकड़े बताते हैं कि भारतीय चुनाव के इति हास में कई बार ऐसे मौके आए जब जीत और हार का निर्णय 10 से कम वोटों से हुआ। ताजा उदाहरण 2018 में हुए मिजोरम विधानसभा चुनाव का है। तुइवावल विद्दा नसभा सीट पर मिजोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के लाल चंदामा राल्ते ने मौजूदा कांग्रेस विधायक आरएल पियानमा विया को सिर्फ तीन वोटों से हराया। चुनाव में राल्ते को 5,207 वोट मिले जबकि पिया नमाविया को 5,204 वोट मिले। 1989 में कांग्रेस के कोनाथला रामकृष्ण ने आंध्र प्रदेश की अनाकापल्ली सीट से उपवि जेता से सिर्फ नौ अतिरिक्त वोट हासिल करके लोकसभा चुनाव जीता था। 1998 में जब भाजपा के सोम मरांडी ने बिहार की राजमहल लोक सभा सीट से जीत हासिल की थी। इस बार भी अंतर महज नौ वोटों का रहा।
साथियों बात अगर हम पूरी दुनियां के लोकतांत्रिक देशों में एक वोट से हार जीत के फैसले की करें तो रदरफाॅर्ड बी हेज 1876 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में रदरफाॅर्ड बी.हेज और टिलडन के बीच मुकाबला था। टिल्डन 2,50,000 के अंतर से पॉप्युलर वोट जीत गए थे। लेकिन जब इलेक्टो रल वोट की बारी आई तो उनको सिर्फ 184 वोट मिले थे जबकि रदरफॉर्ड 185 वोट जिससे उनकी जीत सुनिश् िचत हुई। मजबूत लीडर के तौर पर उभरीं मारग्रेट थैचर एक वोट ने इंग्लैंड की प्रधान मंत्री रहीं मारग्रेट थैचर की जिंदगी में अहम भूमिका निभाई। साल 1979 की बात है। उन दिनों थैचर विपक्ष की नेता थीं। लेबर पार्टी सत्ता में थी और प्रधानमंत्री जेम्स कैलहैन थे। थैचर ने पीएम जेम्स कैल हैन केखिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। प्रस्ताव के पक्ष में 311 और खिलाफ 310 वोट पड़े। यानी एक वोट से प्रस्ताव पास हुआ। उसके बाद चुनाव में जीत के साथ मारग्रेट थैचर मजबूत नेता के तौर पर उभरीं। हिटलर के खिलाफ एक वोट1919 में नाजी पार्टी की स्थापना हुई थी। 1921 में हिटलर ने नाजी पार्टी की कमान संभाली थी। नाजी पार्टी की कमान संभा लने से पहले पार्टी के कई सदस्य हिटलर के खिलाफ थे। उनका मानना था कि वह बहुत महत्वाकांक्षी है और इस वजह से उनलोगों ने हिटलर की शक्तियों को सीमित करने की कोशिश की। इससे नाराज होकर हिटलर पार्टी छोड़कर चला गया। फिर उन लोगों को अहसास हुआ कि हिटलर जैसे प्रभावशाली इंसान के जाने से पार्टी पर असर पड़ेगा। इसके नतीजे में हिटलर पार्टी में लौटा तो सही लेकिन अपनी शर्तों पर। 29 जुलाई को हिटलर को पार्टी का चेयरमैन चुनने के लिए वोटिंग हुई। कुल 554 सदस्यों में से सिर्फ एक सदस्य ने हिटलर के खिलाफ वोट दिया। ऐसे समय में जब सारे सदस्य हिट लर के साथ खड़े थे, एक का उसके खिलाफ जाना वाकई में ऐताहिसक और साहसिक कदम था। फ्रांस में राजशाही खत्म और लोकतंत्र शुरू हुआ। 1875- फ्रांस में तो सत्ता का पूरा रूप ही बदल गया था। एक वोट की जीत से ही फ्रांस में राजशाही खत्म हुई और लोकतंत्र का आगाज हुआ। वरना वहां के लोग अब तक राजशाही ही ढो रहे होते। अमेरिका की भाषा बदली वरना मातृभाषा जर्मन होती। 1776- अमेरिका को एक वोट की बदौलत ही जर्मन की जगह अंग्रेजी के रूप में उनकी मातृभाषा मिली थी। यहां 1910 में रिपब्लिक उम्मी दवार एक वोट से हार गया था और पार्टी मानो शोक में डूब गई थी। एडोल्फ हिटलर, जर्मनी में नाजी दल का मुखिया बना। 1923- जर्मनी के लोगों से पूछिए एक वोट की ताकत क्या होती है, क्योंकि साल 1923 में एडोल्फ हिटलर एक वोट के अंतर की जीत से ही नाजी दल का मुखिया बना था रदरफोर्ड बी हायेस अमे रिका के राष्ट्रपति बने।
अतः अगर हम उपरोक्तपूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि लोकसभा चुनाव 2024 हमारे अभूतपूर्व एक वोट में सरकार बनाने गिराने की ताकत। आओ अपने एक वोट की ताकत को पहचाने इतिहास एक वोट से हार जीत उदाह रणों से भरा पड़ा है इतिहास गवाह है, जब एक वोट से भारतीय केंद्र सरकार गिरी, सांसद विधा यक चुनाव हारे, अमेरिकी राष्ट्रपति और हिट लर भी एक वोट से ही जीते थे।

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