एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तरपर भारतीय संवैधानिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली की तारीफ अनेक देशों में की जाती है। विशेष रूप से भारतीय चुनाव आयोग,भारतीय न्याय प्रणाली जैसे कुछ संवैधानिक संस्थाएं दुनियां में ख्याति प्राप्त है। दिनांक 11 मार्च 2024 को इन्हीं दो संवैधानिक संस्थाओं की चर्चा पूरी दुनियां में हो पड़ी, जब माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय स्टेट बैंक की 6 मार्च की याचिका जिसमें चुनाव चुनावी बान्ड की विस्तृत जानकारी के लिए 30 जून 2024 तक समय बढ़ाने की विनंती थी, इसको सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए, डाटा 24 घंटे के भीतर 12 मार्च 2024 को चुनाव आयोग को सौंपने के आदेश दिए और चुनाव आयोग को 15 मार्च 2024 को शाम 5 बजे तक डाटा को अपने वेबसाइट पर पब्लिश करने के आदेश दिए तो पूरी दुनिया की निगाहें भारतीय न्याय प्रणाली के अचूक निष्पक्ष निर्णय की ओर पड़ी और विश्वास का एक और अध्याय जुड़ गया, चूंकि एसबीआई द्वारा चुनावी बान्ड की पूरी जानकारी व डाटा चुनाव आयोग को आज 12 मार्च 2024 को सौंप दिया गया है, इसलिए आज हम मीडिया मेंउपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, चुनाव आयोग की चुनावी बान्ड के डाटा 15 मार्च 2024 को शाम 5 बजे तक अपनी वेबसाइट पर पब्लिक करने की जिम्मेदारी पर दुनियां की नजर है।
साथियों बात अगर हम एसबीआई द्वारा 12 मार्च 2024 कोमाननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन की करें तो, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए स्टेट बैंक आफ इंडिया ने मंगलवार शाम को वर्किंग आवर खत्म होने से पहले भारतीय चुनाव आयोग को चुनावी बान्ड की तमाम डिटेल्स सौंप दी। अब आयोग को 15 मार्च की शाम पांच बजे तक बैंक द्वारा दी गई इलेक्टोरल बान्ड की जानकारी को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। ताकि यह जानकारी आम हो सके। मामले में आयोग के एकअधिकारी ने मिडिया में बताया कि अभी इस पर काम किया जा रहा है। मीडिया में सूत्रों का कहना है कि एसबीआई की ओर से चुनावी बान्ड का जो विवरण आयोग को दिया गया है। वह काफी है। इसे वेबसाइट पर अपलोड करने के लायक बनाया जाएगा। तभी इसे अपलोड किया जाएगा। हालांकि, आयोग की तरफ से केवल यही जानकारी दी गई कि एसबीआई ने चुनावी बाण्ड का डेटा उन्हें सौंप दिया है। इसके अलावा आयोग की तरफ से आधिकारिक रूप से इस संबंध में कोई जानकारी शेयर नहीं की गई कि क्या आयोग इस डेटा को 15 मार्च की शाम पांच बजे तक ही अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगा या इससे पहले भी? इस मामले में 15 फरवरी और 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एस बीआई को चुनावी बान्ड की जानकारी 12 मार्च तक आयोग को सौंपने के आदेश दिए थे। आदेशों की ना फर मानी करने पर बैंक के उपर कोर्ट की अवहेलना का मामला बन सकता था। इस बात को देखते हुए बैंक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार ही 12 मार्च की शाम काम काजी समय समाप्त होने से पहले यह सारा डेटा आयोग को सौंप दिया। अब आगे आयोग का काम है कि वह 15 मार्च तक बैंक द्वारा दिए गए डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दे।
साथियों बात अगर हम कानून के हाथ लंबे होने की कहावत की करें तो, इसकी पकड़ से कोई बच नहीं सकता, बालीवुड की हर कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म में ये डाय लाग एक ना एक बार तो इस्ते माल होता ही है, लेकिन इलेक्टोरल बान्ड के मामले में ये लोगों को लाइव देखने को मिला। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की ना- नुकुर के बावजूद अब उसने इलेक्टोरल बान्ड से जुड़ा सारा डेटा चुनाव आयोग को सौंप दिया है। इलेक्टोरल बान्ड के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को इसे असंवैधानिक करार दिया था। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत दिए गए सूचना के अद्दि कार का उल्लंघन माना गया, इसके बाद एसबीआई को इससे जुड़ा सारा डेटा 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपने के लिए कहा था, लेकिन इस काम मेंएसबीआई ने असम र्थता जाहिर की और सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का एक्स टेंशन मांगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यहीं पर कड़ा रुख अपनाया। सुप्रीम कोर्ट ने एस बीआई की एक्सटेंशन याचिका पर 11 मार्च को सुनवाई की, मामले में कड़ा रुख अख्तियार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि एसबीआई ने इस मामले में 11 मार्च तक क्या प्रोग्रेस की? इस पर कोई जवाब एस बीआई की ओर से नहीं दिया गया। डेटा के मिलान की बात एसबीआई ने की तो इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने डेटा के मिलान का आदेश तो दिया ही नहीं, बल्कि सिर्फ डेटा उपलब्ध कराने को कहा, इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को 12 मार्च की शाम तक का वक्त दिया, जिसके अनुरूप अब एस बीआई ने सारा डेटा चुनाव आयोग को सौंप दिया है। अगर एसबीआई ऐसा करने में विफल रहता तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार उसे अवमानना की कार्रवाई का सामना करना पड़ता। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में चुनाव आयोग के लिए भी कोई ढील नहीं छोड़ी है, उसे भी ये डेटा 15 मार्च 2024 की शाम 5 बजे तक सार्वजनिक करने के लिए कहा गया है।
साथियों बात अगर हम चुनावी बान्ड को गहराई समझने की करें तो चुनावी बाण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था। इसे वर्ष 2018 में लागू किया गय। वे दाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिये व्यक्तियों और संस्थाओं हेतु एक साधन के रूप में काम करते हैं।केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विद्दान सभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1 प्रतिशत वोट हासिल किये हों, वे ही चुनावी बांड हासिल करने के पात्र हैं। वर्ष 2018 में इसके शुरू होने के बाद हर साल करीब दो बार इसको जारी किया जाता है। अक्टू बर माह के शुरू में 11वें इले क्टोरल बान्ड (चुनावी बॉन्ड) जारी किए गए। शुरू में उन्हें लेकर जहां ठंडा रुख दिखा था, वहीं इस साल चुनावों से पहले तक उनकी अच्छी खरीद हुई। इलेक्टोरल बांड के जरिए अब तक 5851 करोड़ रुपये जुटाए जा चुके हैं। पिछले साल मई माह में 822 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बांड खरीदे गए। जनवरी से लेकर मई 2019 तक भारतीय स्टेट बैंक की विभिन्न शाखाओं के जरिये 4794 रुपये के बांड खरीदे गए, जबकि इससे पहले 2018 में 1000 रुपये की बांड खरीदी हुई थीं। चुनावी बांड योजना को अंग्रेजी में इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम नाम से जाना जाता है, ये भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से मिलते हैं। जिन 29 शाखाओं से बान्ड्स खरीदे जा सकते हैं, वे नई दिल्ली, गांधीनगर, चंडी गढ़, बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवने श्वर, भोपाल, मुंबई, जयपुर, लखनऊ, चेन्नई, कलकत्ता और गुवाहाटी समेत कई शहर में है। इसे कोई भी खरीद सकता है, इन बांड्स को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था चुनावी चंदे के लिए खरीद सकती है। ये बांड एक हजार, दस हजार, एक लाख और एक करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं। देश का कोई भी नागरिक किसी भी राजनैतिक पार्टी को चंदा देना चाहता है तो उसे एस बीआई से चुनावी बान्ड खरी दने होंगे। वो बान्ड खरीदकर किसी भी पार्टी को दे सकेगा। सरकार की ओर से आरबीआई ये बांड्स जारी करता है। दान देने वाला बैंक से बांड खरीदकर किसी भी पार्टी को दे सकता है।
फिर राजनीतिक पार्टी अपने खाते में बान्ड भुना सकेगी। बान्ड से पता नहीं चलेगा कि चंदा किसने दिया। ये बांड जब बैंक जारी करता है तो इसको लेने की अवद्दि 15 दिनों की होती है। चुनावी बांड खरीदकर किसी पार्टी को देने से बांड खरीदने वाले को कोई फायदा नहीं होगा, न ही इस पैसे का कोई रिटर्न है, ये अमाउंट पालिटिकल पार्टियों को दिए जाने वाले दान की तरह है। इससे 80 जीजी 80जीजीबी के तहत इनकमटैक्स में छूट मिलती है। चुनावी बांड एक तरह की रसीद होती है। इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता, इस बांड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिखते हैं। इस बांड का पैसा संबंद्दित राजनीतिक दल को मिल जाता है। इस बांड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता।
अलबत्ता हम इस बांड को बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं लेकिन उसकी एक अवधि तय होती है।
साथियों बात अगर हम चुनावी बान्ड की चुनौतियों की करें तो चुनावी बांड राज नीतिक दलों को दी जाने वाली दान राशि है जो दान दाताओं और प्राप्तकर्ताओं की पहचान को गुमनाम रखती है। वे जानने के अधिकार से समझौता कर सकते हैं, जो संवि धान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतं त्रता के अधिकार का हिस्सा है, दान दाता के डेटा तक सरकारी पहुँच के चलते गुम नामी से समझौता किया जा सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकता है, घोर पूंजीवाद और काले धन के उपयोग का खतरा, घोर पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापा रियों और सरकारी अधिका रियों के बीच घनिष्ठ, पारस्प रिक रूप से लाभप्रद संबंधों की ओर बढ़ाती है, कारपोरेट संस्थाओं के लिये पारदर्शिता और दान सीमा के संबंध में कई खामियां हैं, कंपनी अद्दि नियम 2013 के अनुसार, कोई कंपनी तभी राजनीतिक योग दान दे सकती है जब उसका पिछले तीन वित्तीय वर्षों का शुद्ध औसत लाभ 7.5प्रतिशत हो, लेकिन ये धारा हटा दी गई है, जिससे शेल कंपनियों के जरिये राजनीतिक फंडिंग में काले धन के योगदान को लेकर चिंता बढ़ गई है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि न्याय की जीत- भारतीय स्टेट बैंक नें चुनावी बान्ड का डाटा चुनाव आयोग को सौंपा सुप्रीम कोर्ट के एस बीआई को 24 घंटे के भीतर, चुनावी चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने के आदेश का पालन हुआ। चुनाव आयोग की चुनावी बान्ड के डाटा 15 मार्च 2024 को शाम 5 बजे तक अपनी वेबसाइट पर पब्लिश करने की जिम्मेदारी पर दुनियां की नजर।
सुप्रीम कोर्ट के एसबीआई को 24 घंटे के भीतर, चुनावी चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने के आदेश का पालन हुआ
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