राम मंदिर निर्माण के जोश से लफरेज पार्टी पर किसान आंदोलन की चुनौती का पेंच फंसा?

RAJNITIK BULLET
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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तरपर दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र की प्रतिष्ठा का ग्राफ वर्तमान समय में जिस तेजी से ऊंचा उठ रहा है, जिस तरह भारत विश्व का जनबंधु होकर उभर रहा है और अपने लक्ष्य 2047 विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है,यह देखकर दुनियां हैरान है।
उसी भारत में चुनावी महापर्व मुहाने पर खड़ा है। यानें संभावित अप्रैल 2024 माह से चुनाव शुरू हो सकता है जिसकी अधिसूचना शायद मार्च की शुरुआत में निकाल सकती है। परंतु जैसे कि अनेक मुद्दों को देखते हुए किसी खास पार्टी की जीत पक्की मानी जा रही है और अबकी बार 50 पर्सेंट वोटिंग शेयर पार सहित 400 पार का नारा दिया जा रहा है, उसमें पेंच फंसता हुआ नजर आ रहा है।
यदि तुरंत इससे सुलझाया नहीं गया तो 50 पर्सेंट वोटिंग शेयर सहित 400 पर्सेंट पार लक्ष्य पर ग्रहण लग सकता है, क्योंकि पंजाब हरियाणा साहित कुछ राज्यों की लोकसभा सीटों पर सीद्दा असर पड़ सकता है दक्षिण से तो वैसे भी बेहद कम उम्मीद है और केवल उत्तर के भरोसे 50 पर्सेंट वोट शेयरिंग और 400 पार मुमकिन नहीं लगता। एक इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि किसान 72 करोड़ से अद्दिक हैं यदि ऐसा है तो विपक्ष के जबरदस्त टेके से हो सकता है गेम पलट जाए क्योंकि यह राजनीति है, कुछ स्थाई नहीं होता कुछ भी हो सकता है, जैसे बिहार की पलटी 13 फरवरी 2024 को महाराष्ट्र के पूर्व सीएम की पलटी को रेखांकित करना जरूरी है। चूंकि 13 फरवरी 2024 को हमने किसान आंदोलन को टीवी चैनल के माध्यम से जबरदस्त रार के रूप में देखें जिससे 400 पार का लक्ष्य या तार तार हो सकता है इसलिए आज हम मीडिया उपलब्ध जानकारी के सह योग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, लोक सभा चुनाव 2024 की दह लीज पर किसान आंदोलन को सुलझाए बिना लक्ष्य 50 पर्सेंट वोट शेयर और 40 पार पर संकट को रेखांकित करना होगा। साथियों बात अगर हम लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर किसान आंदो लन की करें तो, लोकसभा चुनाव 2024 के ठीक पहले किसान एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर आंदोलन की राह पर उतर आए हैं। जिस समय राम मंदिर निर्माण के जोश से लबरेज पार्टी अपने पूरे वेग में आगे बढ़ रही थी और पीएम 400 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा कर रहे थे, किसान उसके रास्ते में आकर खड़े हो गए हैं। यह माना जा रहा है कि यदि यह मामला नहीं सुलझा, तो पार्टी को इससे नुकसान हो सकता है। तीन-तीन बड़े केंद्रीय मंत्री जिस तरह इस मामले को सुलझाने के लिए लगा तार प्रयास कर रहे हैं, उससे भी यह समझ आ रहा है कि पार्टी को भी इससे नुकसान होने की आशंका है।
लेकिन बड़ा प्रश्न यही है कि यदि किसानों का आंदो लन पहली बार की तरह ज्यादा आक्रा मक हुआ तो इससे भाजपा को कितना नुकसान हो सकता है? राजनीति के कुछ लोगों का मानना है कि अपनी खोई सियासी जमीन दोबारा हासिल करने के लिए अकाली दल पंजाब के किसान संगठ नों को पैसा और संसाधन देकर इस आंदोलन को हवा दे रही है। यानी किसानों की आड़ में राजनीति ज्यादा हो रही है और किसानों का हित करने का इरादा कम है। इधर उधर अध्यक्ष ने भी भारत जोड़ो न्याय यात्रा के एक कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ में एलान कर दिया है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है, तो किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाएगी। राहुल गांधी ने इसे कांग्रेस की पहली गारंटी करार दे दिया है। लेकिन यदि इस मामले पर राजनीति होती है, तो किसानों के आंदोलन में नैतिक बल कम जोर पड़ सकता है। इससे आंदोलन का जनता पर असर कम हो सकता है। पिछली बार जब 2020-21 में किसान आंदोलन हुआ था, तब संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 40 से ज्यादा किसान संगठनों ने उसमें हिस्सा लिया था। लगभग डेढ़ साल चले आंदो लन में किसानों ने कई परे शानियों के बाद भी अपना आंदोलन जारी रखा और अंततः पीएम को 19 नवंबर 2021 को तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी थी।
साथियों बात अगर हम किसानों की मुख्य मांगों की करें तो, (1) किसानों की सबसे खास मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून बनना है। (2) किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। (3) आंदोलन में शामिल किसान कृषि ऋण माफ करने की मांग भी कर रहे हैं। (4) किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं। (5) भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाला जाए।(6) कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए। (7) किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पेंशन योजना लागू करके 10 हजार रुपए प्रति माह पेंशन दी जाए। (8) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आकलन करते समय खेत एकड़ को एक इकाई के रूप में मानकर नुकसान का आकलन करना (9) भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए। (10) कीट नाशक बीज और उर्वरक अद्दि नियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।
साथियों बात अगर हम किसान पुलिस के बीच झड़प की करें तो, पंजाब और हरि याणा के किसान अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए तेजी से दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। केंद्र की क्यू सरकार जहां इस आंदोलन को शांत कराना चाहती है, वहीं विपक्ष इसे हवा देने में जुट गई है। यही कारण है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत कई राज नीतिक दलों ने किसान आंदो लन का समर्थन किया है। पंजाब और हरियाणा कांग्रेस के कई नेताओं ने तो यहां तक स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसानों को हमारी जरूरत पड़ी, तो हम भी सड़कों पर उतरकर दिल्ली कूच करेंगे। चूंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, लिहाजा सवाल उठता है कि हरियाणा और पंजाब में किस दल को किसानों का साथ मिलेगा। यह बताने से पहले बताते हैं कि हरियाणा और पंजाब के बड़े नेताओं ने किसान आंदोलन को लेकर क्या प्रतिक्रिया दी है। दिनांक 13 फरवरी 2024 को भी पुलिस और किसानों के बीच झड़प जारी थी।
बताते चलें कि शंभू बार्डर के बाद जींद बार्डर पर पंजाब के किसानों की हरियाणा पुलिस से झड़प हुई है यहां आंसू गैस के गोले भी दागे गए हैं। सामने आया है कि, पुलिस ड्रोन द्वारा आंसू गैस के गोले दाग रही है। वहीं दिल्ली कूच को अड़े किसानों के ऊपर शंभू बार्डर पर लगा तार आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं, वहीं किसान भी उग्र हो चुके हैं, उन्होंने बार्डर पर बने एक ओवरब्रिज की रेलिंग भी तोड़ दी। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्ले षण करें तो हम पाएंगे कि किसान आंदोलन की रार क्या 400 पार का लक्ष्य होगा तार तार। राम मंदिर निर्माण के जोश से लफरेज पार्टी पर किसान आंदोलन की चुनौती का पेंच फंसा? लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर, किसान आंदोलन को सुल झाए बिना लक्ष्य 50 पर्सेंट वोट शेय रिंग और 400 पार पर संकट को रेखांकित करना होगा।

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