अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तीन कानूनों का युग समाप्त हुआ

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया। वैश्विक स्तरपर भारत की बदलती तस्वीर नए भारत के विजन 2047 को बल देने के लिए माननीय पीएम ने 15 अगस्त को लाल किले से देश के सामने पांच प्रणों में से एक प्राण था गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करनाजिसको साकार रूप देने के लिए अनेकों अंग्रेजों के शासनकाल के कानून रद्द कर दिए गए हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं रह गया था।
अब अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम 1860-2023 तक के युग की समाप्ति करने की पहल कर डिजिटल इंडिया को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं, सीआरपीसी आईपीसी और एविडेंस एक्ट क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की बुनियाद है और इन्हें रिप्लेस किया गया है। चूंकि संसद के दोनों सदनों में इन विधेयकों को पास किया गया था और अब माननीय राष्ट्र पति महोदया ने तीनों विद्देयकों पर दिनांक 25 दिसंबर 2023 को देर रात हस्ताक्षर कर दिए हैं, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही अब ये तीनों बिल कानून बन गए हैं।
इसके बाद 1860 में बनी आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बनी सीआर पीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट को भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा।
इसलिए आज हम मीडिया पीआईबी में उपलब्ध जान कारी के सहयोग से इस आर्टि कल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारतीय आपराधिक न्याय के तीन कानून से नए युग की शुरुआत। अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तीन कानूनों का का युग समाप्त हुआ। तीनों नए भारतीय आपराद्दिक कानून से दंड नहीं बल्कि न्याय मुहैया कराने पर जोर। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नाग रिक सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य संहिता कानून मील का पत्थर साबित होंगे।
साथियों बात अगर हम क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में कानूनों को रिप्लेस करने की करें तो इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित हुआ, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 स्थापित हुआ है। समाप्त होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेजी शासन को मजबूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी, में अब 533 द्दाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो आईपीएस को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 द्दाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय साक्ष्य विधेयक, जो एविडेंस एक्ट को रिप्लेसकिया है, इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 द्दाराओं में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं। भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाईकोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधिविश्व विद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए थे गृह मंत्री ने कहा था कि 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है भारतीय न्याय संहिता, जो आईपीसी को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है।
साथियों बात अगर हम इन तीनों पुराने कानूनों के बारे में जानने की करें तो ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, कुल 475 जगह गुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर आज हम नए कानून आए हैं। कानून में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रानिक या डिजिटल रिकार्ड्स, ई- मेल, सर्वर लाग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटाप्स, एसएम एस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्ज शीट और चार्जशीट से जज मेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज करने का प्राव धान इस कानून में किया गया है सर्च और जब्ती के वक्त वीडियोग्राफी को कंपल् सरी कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा, पुलिस द्वारा ऐसी रिकाॅर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी। तीन साल बाद हर साल 33 हजार फाॅरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे, कानून में लक्ष्य रखा गया है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है 7 वर्ष या इससे अद्दिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फाॅरेंसिक टीम की विजिट को कंपल्सरी किया जा रहा है, इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए आजादी के 75 सालों के बाद पहली बार जीरोएफआईआर को शुरू करने जा रही है, अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा पहली बार ई-थ्प्त् का प्राव धान जोड़ा जा रहा है, हर जिले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में आनलाइन और व्यक्ति गत रूप से सूचना करेगा यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकार्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिका यत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है, अब 3 साल तक की सजा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे, इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे।
साथियों बात अगर हम इन तीनों नए कानूनों की विशेषताओं की करें तो आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन और दे सकेंगी, इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे, बहस पूरी होने के 30 दिनों के अंदर माननीय न्यायाधीश को फैसला देना होगा, इससे सालों तक निर्णय पेंडिंग नहीं रहेगा और फैसला 7 दिनों के अंदर आनलाइन उपलब्ध कराना होगासिविल सर्वेंट या पुलिस अधिकारी के विरूद्ध ट्रायल के लिए सर कार को 120 दिनों के अंदर अनुमति पर फैसला करना होगा वरना इसे डीम्ड परमीशन माना जाएगा और ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा।
घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की का भी प्राव धान लेकर आए हैं, अंतर राज्यीय गिरोह और संगठित अपराधो के विरूद्ध अलग प्रकार की कठोर सजा का नया प्रावधान भी इस कानून में जोड़ागया है शादी, रोजगार और पदोन्नति के झूठे वादे और गलत पहचान के आद्दार पर यौन संबंध बनाने को पहली बार अपराध की श्रेणी में लाया गया है, गैंग रेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजी वन कारावास का प्रावद्दान किया गया है।
18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के साथ अपराध के मामले में मृत्यु दंड का भी प्रावधान रखा गया है, माब लिंचिग के लिए 7 साल, आजी वन कारावास और मृत्यु दंड के तीनों प्रावधान रखे गए हैं। मोबाइल फोन या महि लाओं की चेन की स्नेचिंग के लिए कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब इसके लिए भी प्रावधान रखा गया है। हमेशा के लिए अपंगता आने या ब्रेन डेड होने की स्थिति में 10 साल या आजीवन कारा वास की सजा का प्राव धान किया गया है।
बच्चों के साथ अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए सजा को 7 साल से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है, अनेक अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रावधान किया गया हैसजा माफी को राजनीतिक फायदे के लिए उपयोग करने के कई मामले देखे जाते थे, अब मृत्यु दंड को आजीवन कारा वास, आजीवन कारावास को कम से कम 7 साल की सजा और 7 साल के कारावास को कम से कम 3 साल तक की सजा में ही बदला जा सकेगा और किसी भी गुनह गार को छोड़ा नहीं जाएगा।
साथियों बात अगर हम पिछले इन कानूनों में अक्सर राजद्रोह धारा के दुरुपयोग के बारे में जानने की करें तो राजद्रोह को पूरी तरह से समाप्तकिया गया है क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और सबको बोलने का अधिकार है। पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, अब सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववाद, भारत की एकता, संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गई है अनुपस्थिति में ट्रायल के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला किया है, सेशन्स कोर्ट के जज द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए व्यक्ति की अनुपस्थिति में ट्रायल होगा और उसे सजा भी सुनाई जाएगी, चाहे वो दुनिया में कहीं भी छिपा हो, उसे सजा के खिलाफ अपील करने के लिए भारतीय कानून और अदालत की शरण में आना होगा।
कानून में कुल 313 बदलाव किए गए हैं जो हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक आमूलचूल परिवर्तन लाएंगे और किसी को भी अधिकतम 3 वर्षों में न्याय मिल सकेगा। इस कानून में महिलाओं और बच्चो का विशेष ध्यान रखा गया है, अपराधियों को सजा मिले ये सुनिश्चित किया गया है और पुलिस अपने अधिकारों का दुरुपयोग ना कर सके, ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं एक तरफ राजद्रोह जैसे कानूनों को निरस्त किया गया है, दूसरी ओर धोखा देकर महिला का शोषण करने और माॅब लिंचिग जैसे जघन्य अपराद्दों के लिए दंड का प्राव धान और संगठित अपराधों और आतंक वाद पर नकेल कसने का काम भी किया है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय आपराद्दिक न्याय के तीन कानूनों से नए युग की शुरुआत।
अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के तीन कानूनों का युग समाप्त हुआ। तीनों नए भारतीय आप राधिक कानूनों से दंड नहीं बल्कि न्याय मुहैया कराने पर जोर। भारतीय न्याय संहिता, भार तीय नागरिक सुरक्षा संहिता व भारतीय साक्ष्य संहिता कानून मील का पत्थर साबित होंगे।

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