एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी – गोंदिया। वैश्विक स्तरपर दुनियां का हर देश जलवायु परिवर्तन के भीषण परिणाम से पीड़ित है, जिसका निदान करना और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन रोकना, पर्यावरण की रक्षा करना हर देश ही नहीं बल्कि हर मानवीय जीव का कर्तव्य है। पिछले कुछ दिनों से हम देख रहे हैं ठंड का मौसम होने के बावजूद झमा झम बारिश हो रही है जो जलवायु परिवर्तन के दुष्टप रिणामों का ही असर है। पर्यावरण की रक्षा, जल वायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए ही वैश्विक 28वां काॅप वैश्विक शिखर सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक विचार विमर्श, मंथन कर सर्वसम्मति अनुमति से योजनाएं बनाकर वैश्विक स्तरपर क्रियान्वयन करने के लिए प्रस्ताव पारित किया जाएगा, जिसमें भारतीय पी एम भी शरीक होंगे। चूंकि जल वायु परिवर्तन के दुष्परिणा म से आज पूरी मानव जाति पीड़ित है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, जल वायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है, इसके खतरों से निपटने नि र्धारित योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन जरूरी है।
साथियों बात अगर हम 30 नवंबर से 12 दिसंबर 20 23 तक चल रहे 28 वें काॅप शिखर सम्मेलन की करें तो, काॅप (सीओपी) का मतलब पार्टियों का सम्मेलन है। अभी तक इसकी कुल 27 बैठकें हो चुकीं हैं, बता दें कि पिछले काॅप 27 का आयोजन नवंबर 2022 में मिस्त्र के श्रम अल शेख में किया गया था। काॅप के तहत हर साल एक बैठक आयोजित की जाती है, जिस में दुनियां भर के राष्ट्राध्यक्ष ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपट ने के लिए योजनाएं बनाते हैं इसके अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने में कारगर उपाय का आकलन करने और यूए नएफसीसीसी के दिशा निर्दे श के तहत जलवायु परिवर्तन कार्रवाई करते हैं। बैठक का औपचारिक नाम जलवायु परि वर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन या संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के दलों का काॅन्फ्रेंस है। पहला काॅप 1995 में बर्लिन में आ योजित किया गया था। जल वायु कार्रवाई की गंभीरता को देखते हुए, वैश्विक उपभोग पैटर्न को सही करने की आह्वान किया गया है। बता दें 2021 में ग्लासगो में आयो जित जलवायु वार्ता में भीह मारे पीएम ने शिरकत की थी, जहां उन्होंने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की रणनीति तो उजा गर किया था। पीएम ने पर्या वरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने के लिए जोर दिया था। 30 नवंबर से दो दिसंबर को विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में तमाम देशों के नेता और प्रमुख संस्थानों के अध्यक्ष शामिल होंगे। इस बैठक में जलवायु कार्रवाई को सुदृढ़ रूप से लागू करने के लिए उद्देश्य से कार्यों और योजनाओं पर चर्चा की जाएगी। इसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग मीथेन उत्स र्जन समेत विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की उम्मीद है। जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए अमीर देशों की तरफ से विकास शील देशों को मुआवजे के तौर पर वित्तीय सहायता दिए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है। इसमें जीवाश्म ईंधन के उपयोग, मीथेन उत्स र्जन, और ग्लोबल वार्मिंग उत्स र्जन को कम करने समेत वि भिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा की उम्मीद है।जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए अमीर देशों की तरफ से वि कासशील देशों को मुआवजे के तौर पर वित्तीय सहायता दिए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा हो सकती है।
साथियों बात अगर हम जलवायु परिवर्तन में कृषि क्षेत्र को देखें तो, केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन किया जाना चाहिए ताकि कृषक समुदाय इससे लाभान्घ्वित हो सके। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसा अत्य धिक आबादी वाला देश शमन व लक्षित मीथेन कटौती की आड़ में खाद्य सुरक्षा पर समझौता नहीं कर सकता है। संयुक्त सचिव (एनआरएम) ने कार्बन क्रेडिट के महत्व को भी प्रस्तुत किया, जो जलवायु अनुकूल टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से कृषि में उत्पन्न किया जा सकता है।
राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (एनएमएसए) के अंतर्गत कृषि वानिकी, सूक्ष्म सिंचाई, फसल विविधीकरण, राष्ट्रीय बांस मिशन, प्राकृतिक/जैविक खेती, एकीकृत कृषि प्रणाली आदि जैसे अनेक उपायों का आयोजन किया गया है। मिट्टी में कार्बन को अनुक्रमित करने की क्षमता है जिससे जीएच जी व ग्लोबल वार्मिंग में योग दान कम हो जाता है। श्री तोमर ने सुझाव दिया कि कार्बन क्रेडिट का लाभ कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय बीज निगम के बीज फार्मों और आईसीएआर संस्थानों में माॅडल फार्मों की स्थापना के माध्यम से किसानों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवीके को कृषक समुदाय के बीच जागरूकता पैदा कर ने में भी शामिल होना चाहिए, ताकि किसानों की आय बढ़ा ई जा सकें। कार्बन क्रेडिट, किसानों को सतत् कृषि का अभ्यास करने में प्रोत्साहन के लिए एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिए कार्बन क्रेडिट के ज्ञान वाले किसानों को साथ लिया जा सकता है।
साथियों बात अगर हम शिखर सम्मेलन के संबंध में ओईसीडी की रिपोर्ट की करें तो, हालांकि इस समिट से पहले आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है, इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते सालों में हुए इन शिखर सम्मेलन में किए गये वादे पूरे नहीं हुए हैं, इस में सबसे अहम वादा यह कि सभी विकसित देश पर्यावरण को बचाने के लिए सभी वि कासशील देशों को 100 बि लियन डाॅलर देने का वादा किया था जोकि पूरा नहीं हु आ।
विकसित देशों ने विकास शील देशों को देने के लिए सिर्फ 89.6 बिलियन डॉलर जुटाए। ओईसीडी इसलिए भी अहम है क्योंकि मुख्य रूप से यह अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस,स्विट्जरलैंड, कनाडा और अन्य समृद्ध देशों का एक समूह है। इस रिपोर्ट के बाद ऐसा माना जा रहा है कि दुबई में होने वाली इस बैठक का अहम विषय इस वादे को पूरा नहीं किए जाने को लेकर होगा। यह रिपोर्ट 2020 में ग्लासगो समिट के बारे में भी बताती है जहां पर इन विकसित देशों ने विका सशील देशों को 100 अरब डाॅलर दिए थे। जलवायु परि वर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन यूएनएफसीसीसी के दलों ने भी ग्लासगो में गहरे अफसोस के साथ कहा था कि विकसित देशों का समूह 2020 में तय समय में 100 अरब डाॅलर के जलवायु परि वर्तन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया था। ओईसीडी रि पोर्ट के मुताबिक 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय चैनलों के माध्यम से जुटाए गए 73.1 बिलियन डाॅलर में से 49.6 बिलियन डाॅलर कर्ज के रूप में दिए गए थे। हालांकि रिपो र्ट के आधार पर साझा की जाने वाली रिपोर्ट की मानें तो पर्यावरण की सारी चितांए जलवायु बचाए जाने के ऊपर निर्भर हैं।
एक एनजीओ द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, दुनियां के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग 2015 में लगभग आधे वैश्विक उत्सर्जन के लि ए जिम्मेदार थे। पिछले वर्ष अगस्त माह में भारत ने 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राष्ट्र कार्य योजना को अपडेट किया। भारत के अद्य तन एनडीसी के लक्ष्य 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना, 2030 तक गैर- जीवाश्म ईंधन आधारित ऊ र्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत स्थापित क्षमता हासिल करना है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्ले षण करें तो हम पाएंगे कि काॅप शिखर सम्मेलन 2023 – जलवायु परिवर्तन पर प्रा थमिकता से वैश्विक मंथन।
जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाला क्षेत्र है इसके खतरों से निपटने, निर्धारित योजनाओं का सटीक क्रियान्वयन जरूरी
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