संचारी रोग नियंत्रण अभियान के अंतर्गत चूहा/ छंछूदर नियंत्रण अभियान 03 से 31 अक्टूबर तक

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(राममिलन शर्मा)
रायबरेली। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने कहा कि विगत वर्षों के भाँति वर्ष 2023 में भी संचारी रोग की रोक थाम के हेतु प्रभावी उपाय अपनाते हुए व्यापक अभियान को वर्ष 2023 में 03 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2023 तक विशेष संचारी रोग नियंत्रण अभियान मनाया जाना प्रस्ता वित है।
विशेष संचारी रोग अभियान के (तृतीय चरण) के अर्न्तर्गत कृषि विभाग द्वारा जन सहभागिता के माध्यम से क्षेत्रीय कर्मचारियों एवं जन सामान्य का सहयोग लेकर ग्राम पंचायत में प्रचार-प्रसार और इससे होने वाली हानियों तथा मानवीय जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों एव खेतों में कृतक नियंत्रण के प्रभावी एवं सुरक्षित उपायों से जन समु दाय को अवगत कराते हुए आवासीय घरों एवं उनके आस-पास चूहा एंव छछूंदर नियन्त्रण अभियान चलाया जाना है। चूँकि संचारी रोगों के प्रसार के लिए अन्य कारकों के साथ-साथ चूहा एवं छछूंदर भी उत्तरदायी है, विगत वर्ष में तथा पुनः इस वर्ष प्रदेश के अनेक जनपदों में लेप्टोस्पायरोसिस तथा स्क्रब टाईफस के रोगी संसूचित हुए है जिसको देखते हुए अभियान में कृतक नियंत्रण की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए इन रोगों के रोकथाम के लिए चूहे और छछूंदर का प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है।
जिला कृषि रक्षा अधि कारी ने कहा कि यह कार्य क्रम जनपद के समस्त ग्राम पंचायतों में उक्त अवधि में क्रियान्वित किया जायेगा। उन्होंने नियंत्रण विधियां के बारे में बताया कि चूहे मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते है- घरेलू एवं खेत के चूहे घरेलू चूहा घर में पाया जाता है जिसे चुहिया या मूषक कहा जाता है खेत के चूहों में फील्ड रेट, साफ्ट फर्ड फील्ड रेट एवं फील्ड माउस प्रमुख है। इसके अतिरिक्त भूरा चूहा खेत व घर दोनो जगह पाया जाता है, जंगली चूहा जंगलों, रेगिस्तानों निर्जन स्थानों झाडियों में पाया जाता है।
चूहों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए अन्न भण्डारण पक्का, ककरीट तथा धातु से बने पात्रों में करना चाहिए ताकि उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध न हो सकें। इसी क्रम में चूहा अपना बिल, झाड़ियों, कूड़ों एंव मेडों आदि में स्थायी रूप से बनाते है। खेतों का समय-समय पर निरीक्षण एंव साफ सफाई करके इनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है। चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं -बिल्ली, सांप, उल्लू, लोमडी, बाज एवं चमगादड़ आदि द्वारा चूहों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनको संरक्षण देने से चूहों की संख्या नियंत्रित हो सकती है। चूहे दानी का प्रयोग करके उसमें आकर्षक चारा जैसे रोटी, डबलरोटी, बिस्कुट आदि रखकर चूहों को फसा कर मार देने से उनकी संख्या नियंत्रित की जा सकती हैं। घरों में ब्रोमोडियोलान 0.005 प्रतिशत के बने चारे की 10 ग्राम मात्रा प्रत्येक जिन्दा बिल में रखने से चूहे खा कर मर जाते है। जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 1.0 ग्राम मात्रा को 1.0 ग्राम सरसों का तेल एवं 48.0 ग्राम भुने दाने में बनाये गये चारे को बिल में रखे। एल्यूमिनियम फास्फाइड दवा की 3-4 ग्राम मात्रा प्रति जिन्दा बिल में डालकर बिल बन्द कर देने से उससे निकलने वाली फास्फीन गैस से चूहे मर जाते हैं।
चूहा बहुत चालाक प्राणी हैं। इसको ध्यान में रखते हुए छः दिवसीय योजना बनाकर इनको आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है प्रथम दिन- आवासीय घरों एवं आस-पास के क्षेत्रों का निरीक्षण एवं बिलों को बंद करते हुए चिन्हित करें। दूसरा दिन – निरीक्षण कर जो बिल बंद हो यहाँ चिन्हें मिटा दें, जहाँ पर बिल खुले पायें वहाँ चिन्ह रहने दे खुले बिल में एक भाग सरसों का तेल एवं 48 भाग भुने दाने का चारा बिना जहर मिलाएं बिल में रखें। तीसरा दिन- बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा पुनः रखें। चैथे दिन जिंक फास्फाइड 80 प्रतिशत की 10 ग्राम मात्रा को 10 ग्राम सरसों का तेल एवं 48.0 ग्राम भुने दाने में बनाए गए चारे को बिल में रखें। पांचवे दिन- बिलों का निरीक्षण करें एवं मरे हुये चूहों को एकत्र कर जमीन में गाड़ दें। छठे दिन- बिलों को पुनः बन्द करें तथा अगले दिन यदि बिल खुले पाये जाये तो उपरोक्त कार्यक्रम पुनः अपनायें।
जिला कृषि रक्षा अधि कारी ने चूहा नियंत्रण के दौरान बरती जाने वाली साव धानियों के बारे में बताया कि चूहा नियंत्रण रसायनों का प्रयोग करते समय हाथ में दस्ताने पहनें। रसायनों को बच्चों एवं जानवरों की पहुँच से दूर रखें। दवा के प्रयोग के दौरान घर में रखी खाद्य सामग्री इत्यादि को अच्छी तरह से ढक दें। मरे हुए चूहों को घर से बाहर साव द्दानी पूर्वक मिट्टी में दबा दें।

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