संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट – भारत में घटे गरीब – 15 वर्षों में 41.5 करोड़ गरीबी से बाहर निकले

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर भारत की बढ़ती साख रुतबे प्रतिष्ठा और विकसित राष्ट्र की ओर बढ़ते कदमों की गूंज दो दिन पूर्व आई संयुक्त राष्ट्र वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक अपडेट 2023 में भी सुनाई दी जिसमें कहा गया है कि पिछले 15 वर्षों में भारत में 41.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं, जो भारत के लिए बहुत अच्छी और कालर टाइट करने वाली खबर है, जिसपर दुनिया भर में भारत की बल्ले-बल्ले होना स्वभाविक है। परंतु इसमें चार चांद जोड़ते हुए भारत को भी राजनीतिक सामाजिक द्दार्मिक भेदभाव भुलाकर अपनी स्कीमों, योजनाओं रेवि डियों की योजनाओं पर पुनर्वि चार करने की बात को रेखां कित करना समय की मांग है, क्योंकि यदि हम 80 करोड़ जनता को फ्री राशन स्कीम लगातार दे रहे हैं तो यूएन की रिपोर्ट के अनुसार अब उनमें से 41.5 करोड़ लोगों को बाहर करने का समय आ गया है। इसी प्रकार अनेक गरीबी उन्मूलन योज नाओं, सहायताओं सुविधाओं आरक्षण में भी उन्हें बाहर करने के लिए भी अब पुरानी योजनाओं को अपडेटेड करने का समय आ गया है ताकि वास्तविक गरीबों को इस अतिरिक्त वैकेंसी जगहों पर सुविधाएं दी जा सके ताकि मिशन जीरो गरीबी अपनी सफलता की मंजिल पर पहुंचे और देश का को पूर्ण विकसित राष्ट्र की पहचान मिले जिसमें जीरो गरीब, जीरो आरक्षण और समान आचार संहिता की कड़ियों को प्रमुखता से बाटाम अप से टापअप लेवल तक लागू किया जासके जिस के लिए तीव्र जनजागरण अभि यान चलाकर गरीबी रेखा से बाहर आए लोगों को स्वयंभू होकर योजनाओं से अपना हित वापस समर्पण करना होगा जैसे माननीय पीएम की अपील पर गैससिलेंडर व अन्य हितों से अनेक संपन्न नागरिकों ने अपनाहितसमर्पित किया था।
मेरा मानना है कि अभी फिर ऐसी अपील हमारे माननीय पीएम को करने की आवश्यकता है ताकि इनके स्थान पर हितों का लाभ अब अन्यों को मिल सके ताकि वे भी गरीबी बेरोजगारी से बाहर निकले।
चूंकि यूएन की अपडेटेड रिपोर्ट में भारत के 41.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सह योग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, अब गरीबी उन्मूलन आरक्षण स्कीम योजनाओं पर पुनर्वि चार को रेखांकित करना समय की मांग है। साथियों बात अगर हम यूएन वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक अपडेटेड रिपोर्ट 2023 की करें तो, 109 विकासशील देशों को कवर करने वाली बहुआयामी गरीबी का एक अंतरराष्ट्रीय संकेतक है। हर साल जुलाई में, सतत विकास पर संयुक्त राष्ट्र के उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच में वैश्विक एमपीआई प्रस्तुत किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार 11 जुलाई 2023 को कहा कि भारत में 20 05-2006 से2019-2021 के दौरान महज 15 साल के भीतर कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के आक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) की ओर से जारी किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत सहित 25 देशों ने 15 वर्षों में अपने वैश्विक एमपीआई मूल्यों (गरी बी) को सफलतापूर्वक आधा कर दिया, यह आंकड़ा इन देशों में तेजी से प्रगति को दर्शाता है।
इन देशों में कंबोडिया, चीन, कांगो, होंडुरास, भारत, इंडोनेशिया मोरक्को, सर्बिया और वियतनाम शामिल हैं। 2005-2006 में भारत में लग भग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी संकेत कों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूह के लोग शामिल हैं ने सबसे तेजी से प्रगति हासिल की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई। गरीबों के बीच खाना पकाने के ईंधन की उपलब्धता बढ़ी रिपोर्ट के अनुसार जो खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वच्छता से वंचि त लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है। पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया।
बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिर कर 13.6 प्रतिशत रह गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अलावे कई अन्य देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। गरीबी कम करने में सफलता हासिल करने वाले देशों की सूची में 17 देश ऐसे हैं जहां उक्त अवधि की शुरुआत में 25 प्रतिशत से कम लोग गरीब थे। वहीं भारत और कांगो में उक्त अवधि की शुरुआत में 50 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब थे। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 19 देशों की लिस्ट में शामिल है जिसके जिन्होंने 2005-2006 से 2015-2016 की अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा करने में सफलता हासिल की। यूएन का आंक ड़ा गावों और शहरों में विकास की खाई को भी दिखाता है। गांवों में रहने वाले 21.2 प्रतिशत लोग गरीब हैं, जबकि शहरों के लिए ये आंकड़ा 5.5 फीसदी है। भारत में 23 करोड़ गरीबों में 90 फीसदी गांवों में हैं। इस तरह से सरकार के सामने गरीबी उन्मूलन के लिए लक्ष्य स्पष्ट है। भारत दक्षिण एशिया का एकमात्र देश ऐसा है जहां पुरुष प्रधान के मुकाबले महिला प्रधान घरों में गरीबी ज्यादा है।
यहां महिला प्रद्दान घरों के 19.7 फीसदी लोग गरीबी में रहते हैं जबकि पुरुष प्रधान घरों के 15.9 प्रतिशत लोग निर्धनता में जीते हैं। भारत में 7 में से एक घर महिला प्रधान है। इस तरह से 3.9 करोड़ गरीब लोग वैसे घरों में रहते हैं जिनकी प्रधान महिला है। 2015-16 में जो 10 सूबे भारत के सबसे गरीब राज्यों में शामिल थे उनमें से 2019/21 में सिर्फ पश्चिम बंगाल ही इस सूची से बाहर निकल पाने में सफल हुआ है। बाकी 9 राज्य अभी भी सबसे निर्धन राज्यों में बने हुए हैं। ये राज्य हैं। बिहार, झारखंड, मेघालय, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और राज स्थान। रिपोर्ट में लिखा ग या है कि भारत का प्रदर्शन काफी उल्लेखनीय रहा है।
साथियों बात अगर हम भारत के वैश्विक जनसंख्या में प्रथम स्थान की करें तो, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। रिपोर्ट में कहा गया, भारत में विशेष रूप से गरीबी में उल्लेखनीय कमी दिखी। रिपोर्ट बताती है कि गरीबी से निपटा जा सकता है इसके अनुसार हालांकि कोविड-19 महामारी की अवधि के दौरान व्यापक आंकड़ों की कमी से तात्का लिक संभावनाओं का आक लन करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उल्लेख नीय है कि भारत में विशेष रूप से कोरोना महामारी के बीच एवं उसके बाद केंद्र सर कार द्वारा गरीब वर्ग के लाभा र्थ चलाए गए विभिन्न कार्य क्रमों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। खासतौर से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्या ण योजना’ के अंतर्गत देश के 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा प्रदान की गई है, उसे कोरोना महामारी के बाद भी जारी रखा गया है। इसके परिणाम स्वरूप देश में गरीब वर्ग को बहुत लाभ मिला है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्र वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) अपडेट 2023 जारी-भारत की बल्ले- बल्ले। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट – भारत में घटे गरीब-15 वर्षों में 41.5 करोड़ गरीबी से बाहर निकले। यूएन की गरी बी घटने की अपडेट रिपोर्ट को माने तो अब गरीबी उन्मूलन, आरक्षण स्कीम योजनाओं पर पुनर्विचार को रेखांकित करना समय की मांग है।

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